बच्चों पर तो वे जल्दी खुश होते हैं

Rishi Prasad 269 May 2015

बच्चों पर तो वे जल्दी खुश होते हैं


मोहन के पिता का बचपन में ही स्वर्गवास हो गया था। गरीब ब्राह्मणी ने अपने इकलौते बेटे को गाँव से 5 मील दूर गुरुकुल में प्रवेश करवाया। गुरुकुल जाते समय बीच में जंगल का रास्ता पड़ता था। एक दिन घर लौटने में मोहन को देर हो गयी। भयानक जानवरों की आवाजें आने लगीं – कहीं चीता, कहीं शेर तो कहीं सियार… मोहन थर-थर काँपने लगा। वह जैसे-तैसे करके जंगल से बाहर निकला। उसकी माँ राह देख रही थी। माँ ने कहाः “बेटा क्यों डरता है ?”
मोहनः “माँ ! अँधेरा हो गया था। हिंसक प्राणियों की भयानक आवाजें आ रही थीं इसलिए बड़ा डर लगता था। भगवान का नाम लेता-लेता मैं किसी तरह भाग आया।”
“तू अपने बड़े भाई को बुला लेता।”
“माँ ! मेरा कोई भाई भी है क्या ?”
“हाँ-हाँ बेटा !”
“कहाँ है ?”
“जहाँ से बुलाओ, वहीं आ जाता है।”
“मेरे भाई का नाम क्या है माँ ?”
“बेटा ! तेरे भाई का नाम है गोपाल। परंतु कोई उसको गोपाल बुलाता है, कोई गोविन्द, कोई कृष्ण तो कोई केशव….। जब भी डर लगे तब तू ‘गोपाल भैया ! गोपाल भैया !…’ करके उसको पुकारना तो वह आ जायेगा।”
दूसरे दिन भी गुरुकुल से लौटते समय देर हो गयी तो जंगल में मोहन को डर लगा। उसने पुकाराः “गोपाल भैया ! गोपाल भैया ! आ जाओ न, मुझे बड़ा डर लग रहा है….।”
इतने में मोहन को बड़ा ही मधुर स्वर सुनाई दियाः “भैया ! तू डर मत। मैं यह आया।”
गोपाल भैया का हाथ पकड़कर मोहन निडर होकर चलने लगा। जंगल की सीमा तक मोहन को लौटाकर गोपाल लौटने लगा।
मोहनः “गोपाल भैया ! घर चलो।”
गोपालः “नहीं भैया ! मुझे और भी काम हैं।”
घर जाकर मोहन ने माँ को सारी बात बतायी, माँ समझ गयी कि जो दयामय प्रभु द्रौपदी और गजेन्द्र की पुकार पर दौड़ पड़े थे, मेरे भोले, निर्दोष और दृढ़ श्रद्धा वाले बालक की पुकार पर भी वे ही आये थे।
अब मोहन वन में पहुँचते ही गोपाल भैया को पुकारता और वे झट आ जाते। एक दिन गुरुकुल में सारे बच्चे और कुछ शिक्षक उपस्थित हुए। गुरु जी के यहाँ दूसरे दिन श्राद्ध था। कौन बच्चा इन निमित्त क्या लायेगा – इस पर बातचीत हो रही थी। किसी ने कहाः “मैं शक्कर लाऊँगा।”
किसी ने कहाः “चावल लाऊँगा।”
किसी ने कहाः “चरौली और इलायची लाऊँगा।”
मोहन गरीब था, फिर भी उसने कहाः “गुरु जी ! गुरु जी ! मैं दूध लाऊँगा।”
मोहन ने घर जाकर गुरु जी के यहाँ श्राद्ध की बात बतायी और कहाः “माँ ! मुझे भी एक लोटा दूध ले जाना है।”
गरीब माँ कहाँ से दूध लाती ? माँ ने कहाः “बेटा ! जब गुरुकुल जायेगा न, तो गोपाल भैया से दूध माँग लेना, वे ले आयेंगे।”
दूसरे दिन मोहन ने जंगल में जाते ही गोपाल भैया को पुकारा और कहाः “आज मेरे गुरु जी के पिता का श्राद्ध है। मुझे एक लोटा दूध ले जाना है। माँ ने कहा है कि गोपाल भैया से माँग लेना।”
गोपाल ने मोहन के हाथ में दूध से भरा लोटा दे दिया।
मोहन लोटा लेकर गुरुकुल पहुँचा और बोलाः “गुरुजी ! गुरु जी ! गोपाल भैया ने दूध भेजा है।”
गुरु जी व्यस्त थे, सामने तक न देखा। उन्हें पता था कि गरीब मोहन क्या लाया होगा।
मोहन ने फिर से कहा तो गुरु जी बोलेः “बैठ अभी।”
थोड़ी देर बाद मोहन फिर बोलाः “गुरु जी ! दूध लाया हूँ। गोपाल भैया ने दिया है।”
गुरु जी ने कहाः “सेवक ! ले जा। जरा-सा दूध लाया है और सिर खपा दिया। जा, इसका लोटा खाली कर दे।”
सेवक लोटा ले गया। खाली बर्तन में दूध डाला। बर्तन भर गया। दूसरे बर्तन में डाला, दूसरा बर्तन भी भर गया। जितने बर्तनों में दूध डालता बर्तन भर जाते पर लोटा खाली होता। सेवक चौंका। उसने जाकर गुरु जी को बताया।
गुरु जीः “कहाँ से लाया है यह अक्षयपात्र ?”
मोहनः “एक मेरे गोपाल भैया हैं, उनसे माँगकर लाया हूँ। मेरी पुकार सुनते ही वे आ जाते हैं ?”
“तेरी आवाज सुनकर तेरे गोपाल भैया कैसे आ जाते हैं ?”
“मेरी माँ ने बताया था कि कोई यदि प्रेम से और विश्वास से उसको पुकारे, ध्यान करे तो वह प्रकट हो जाता है।” उसने प्रारम्भ से सारी घटना बतायी।
गुरु जी ने मोहन को प्रणाम किया और कहाः “मोहन ! मुझे भी ले चल, अपने गोपाल भैया के दर्शन करा।”
मोहनः “चलिये गुरु जी ! जब मैं घर जाऊँगा, तब जंगल के रास्ते में गोपाल भैया को बुलाऊँगा। तब आप भी उन्हें देख लीजिये।”
श्राद्ध-विधि पूरी होने के बाद गुरु जी मोहन के साथ चले। रास्ते के जंगल में मोहन ने आवाज लगायी- “गोपाल भैया ! गोपाल भैया ! आ जाओ न !”
मोहन को आवाज सुनाई दी- “आज तुम अकेले तो हो नहीं, डर तो लगता नहीं, फिर मुझे क्यों बुलाते हो ?”
मोहन- “डर तो नहीं लगता मेरे गुरु जी तुम्हारे दर्शन करना चाहते हैं।”
गुरु जी- “मेरे कर्म ऐसे हैं कि मुझे देखकर भगवान नहीं आते। तू दूर जाकर पुकार।”
मोहन ने दूर जाकर पुकारा- “गोपाल भैया दिखे। मोहन ने कहा- “मेरे गुरु जी को भी दर्शन दो न !”
गोपाल- “वे मेरा तेज सहन नहीं कर सकेंगे। तेरी माँ तो बचपन से भक्त थी, तू भी बचपन से भक्ति करता है। तुम्हारे गुरु जी ने इतनी भक्ति नहीं की है। उनसे कहो कि ‘जो प्रकाश-पुंज दिखेगा, वे ही गोपाल भैया हैं।’ जाओ, गुरु जी को मेरे प्रकाश का दर्शन हो जायेगा, उसी से उनका कल्याण हो जायेगा।”
मोहन ने आकर कहाः “देखिये गुरु जी ! गोपाल भैया खड़े हैं।”
गुरु जी- “मेरे को नहीं दिखते, केवल प्रकाश दिखता है।”
मोहन- “हाँ, वे ही हैं, वे ही हैं गोपाल भैया !”
गुरु जी गदगद हो गये, उनका रोम-रोम आनंदित हो उठा, अष्टसात्विक भाव प्रकट हो गये। गुरु जी- “गोपाल ! गोपाल !…. ” पुकार उठे। अब तो गुरु जी मोहन को अपना गुरु मानने लगे क्योंकि उसी ने भगवद् दर्शन का रास्ता बताया।
बच्चो ! तुम भी मोहन की नाईं भगवन्नाम जपते जाओ। गोपाल भैया तुम पर भी प्रसन्न हो जायेंगे। स्वप्न में भी दर्शन दे देंगे। बच्चों पर तो वे जल्दी खुश होते हैं। तुम भी भगवान के साथ सेवक-स्वामी, सखा-भैया के भाव से कोई भी संबंध जोड़कर प्रेम से उन्हें पुकारोगे तो तुम्हारे हृदय में भी आनंद प्रकट हो जायेगा।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2015, पृष्ठ संख्या 12,13 अंक 269
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