वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य-सुरक्षा

वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य-सुरक्षा


(वर्षा ऋतुः 21 जून 2015 से 22 अगस्त 2015 तक)

वर्षा ऋतु का नमीयुक्त वातावरण जठराग्नि को मंद कर देता है। शरीर में पित्त का संचय व वायु का प्रकोप हो जाता है, जिससे वात-पित्त जनित व अजीर्णजन्य रोगों का प्रादुर्भाव होता है।

अपनी पाचनशक्ति के अनुकूल मात्रा में हलका सुपाच्य आहार लेना और शुद्ध पानी का उपयोग करना – इन 2 बातों पर ध्यान देने मात्र से वर्षा ऋतु में अनेक बीमारियों से बचाव हो जाता है। शाम का भोजन 5 से 7 बजे के बीच कर लें। इससे भोजन का पाचन शीघ्र होता है।

इस ऋतु में शरीर की रक्षा करने का एक ही मूलमंत्र है कि पेट और शरीर को साफ रखा जाय अर्थात् पेट में अपच व कब्ज न हो और त्वचा साफ और स्वस्थ रखी जाय। आयुर्वेद के अनुसार कुपित मल अनेक प्रकार के रोगों को जन्म देता है। इससे गैस की तकलीफ, पेट फूलना, जोड़ों का दर्द, दम गठिया आदि की शिकायत हो जाती है। अशुद्ध और दूषित जल का सेवन करने से चर्मरोग, पीलिया, हैजा, अतिसार जैसे रोग हो जाते हैं।

बारिश में होने वाली बीमारियाँ व उनका उपचार

आँत की सूजन (gastroenteritis) गंदे पानी तथा दूषित खाद्य पदार्थों के सेवन से यह रोग फैलता है। इसमें उलटी, पतले दस्त, बुखार, रसक्षय (शरीर में पानी की कमी) इत्यादि लक्षण सम्पन्न होते हैं।

प्राथमिक उपचारः सफाई का ध्यान रखें। भोजन में चावल का पानी (माँड) तथा दही में समान भाग पानी मिला के मथकर बनाया हुआ मट्ठा लें। नमक व शक्कर मिलाया हुआ पानी बार-बार पियें, जिससे रसक्षय (डिहाइड्रेशन) न होने पाये। इसमें नींबू भी मिला सकते हैं। मूँग की दाल की खिचड़ी में देशी घी अच्छी मात्रा में डालकर खायें। अच्छी तरह उबाला हुआ पानी पियें। भोजन ताजा, सुपाच्य लें।

दस्त (bacillary dysentery) उपरोक्त अनुसार।

दमाः वर्षा ऋतु में बादलों के छा जाने पर दमे के मरीजों को श्वास लेने में अत्यधिक पीड़ा होती है। उस समय 20 मि.ली. तिल का तेल गर्म कर पियें। तिल या सरसों के गर्म तेल में थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर छाती व पीठ पर मालिश करें। फिर गर्म रेती की पोटली से सेंक करें।

सर्दी, खाँसी, ज्वरः वर्षाजन्य सर्दी, खाँसी, जुकाम, ज्वर आदि में अदरक व तुलसी के रस में शहद मिलाकर लेने से व उपवास रखने से आराम मिलता है।

जठराग्नि को प्रदीप्त करने के उपाय

भोजन में अदरक, हींग अजवाइन, काली मिर्च, मेथी, राई, पुदीना आदि का विशेष उपयोग करें। तिल का तेल वात-रोगों का शमन करता है।

भोजन में अदरक व नींबू का प्रयोग करें। नींबू वर्षाजन्य रोगों में बहुत लाभदायी है।

100 ग्राम हरड़ चूर्ण में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिला के रख लें। दो-ढाई ग्राम रोज सुबह ताजे जल के साथ लेना हितकर है।

हरड़ तथा सोंठ को समभाग मिलाकर 3-4 ग्राम मिश्रण 5 ग्राम गुड़ के साथ सेवन करने से जठराग्नि निरंतर प्रदीप्त रहती है।

वर्षाजन्य व्याधियों से रक्षा व रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाने हेतु गोमूत्र सर्वोपरि है। सूर्योदय से पूर्व 20 से 30 मि.ली. ताजा गोमूत्र 8 बार महीन सूती वस्त्र से छानकर पीने से अथवा 20 से 25 मि.ली. गोझरण अर्क पानी में मिलाकर पीने से शरीर के सभी अंगों की शुद्धि होकर ताजगी, स्फूर्ति व कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

सावधानियाँ- वर्षा ऋतु में पानी उबालकर पीना चाहिए या पानी में फिटकरी का टुकड़ा घुमायें, जिससे गंदगी नीचे बैठ जायेगी।

शाम को संध्या के समय घर में अँधेरा करने से मच्छर बाहर भाग जाते हैं। थोड़ा बहुत धूप-धुआँ कर सकते हैं। और सुबह घर में अँधेरा छा होने से मच्छर अंदर घुसते हैं। उस समय उजाला करने से मच्छरों का प्रवेश रुकता है। गेंदे के फूलों के पौधे का गमला दिन में बाहर व संध्या को कमरे में रखें। गेंदे के फूलों की गंध से भी मच्छर भाग जाते हैं और मच्छरदानी आदि से भी मच्छरों से बचें, जैसे साधक अहंकार से बचता है।

इन दिनों में ज्यादा परिश्रम या व्यायाम नहीं करना चाहिए। दिन में सोना, बारिश में ज्यादा देर तक भीगना, रात को छत पर अथवा खुले आँगन में सोना, नदी में स्नान करना और गीले वस्त्र जल्दी न बदलना हानिकारक होता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2015, पृष्ठ संख्या 31,32 अंक 271

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