ईश्वर तक पहुँचने की चाबीः भगवन्नाम

ईश्वर तक पहुँचने की चाबीः भगवन्नाम


नाम में महान शक्ति है पर अर्थ का ज्ञान होने पर उसकी वास्तविकता समझ में आती है। जब द्वेषवश किसी को उल्लू, गधा, सुअर आदि बुरे नामों से पुकारा जाता है तो वह अपना संतुलन खो बैठता है। सभी अपना नाम पुकारे जाने पर प्रत्युत्तर देते हैं।

सिद्ध महापुरुषों की वाणियाँ बताती हैं कि भगवन्नाम में महान सामर्थ्य है। असंख्य लोगों ने जप की सहायता से आध्यात्मिक उन्नति की है। यह एक महत्त्वपूर्ण साधना-पद्धति है। भगवन्नाम जप करने वाले साधक में भगवन्नाम की शक्ति अवश्य प्रकट होती है। भगवन्नाम मन में उठ रहे अशुभ विचारों को निरस्त करता है। साधक के लिए नाम-जप के बिना पूर्ण पवित्र जीवन-यापन एक तरह से असम्भव है। अतः हमें निरंतर गुरुमंत्र का और जिन्हें दीक्षा लेने का सौभाग्य नहीं मिला उन्हें भगवन्नाम का जप करना चाहिए ताकि हमारे शरीर एवं मन पवित्र और आध्यात्मिक स्पंदनों से स्पंदित होते रहें। नाम महाराज हमारी बाधाओं को दूर करते हैं और हमारे आत्मा और परमात्मा का एकत्व-ज्ञान पाने में सहायता करते हैं।

जप या ध्यान का अभ्यास करते समय तन्द्रा (झोंके खाना) मत आने दो। यदि सुस्ती आती है तो उठकर कमरे में जप करते-करते टहल लो। जब मन चंचल और बहिर्मुख होता है, तब दीर्घ (लम्बा) या प्लुत (उससे अधिक लम्बा) भगवन्नाम उच्चारण करना चाहिए।

गुरुमंत्र के हर जप के साथ भावना करो कि ‘हमारे शरीर, मन और इन्द्रियों के दोष निकल रहे हैं, बुद्धि शुद्ध हो रही है।‘ गुरुमंत्र का जप मन को शांत करता है। जब मस्तिष्क अत्यन्त तनावपूर्ण अथवा अवसादपूर्ण स्थिति में आ जाय तो तत्काल प्रभुनाम गुनगुनाते हुए आनंदस्वरूप आत्मा का चिंतन शुरु कर दो। पवित्र भावना करो कि ‘इससे शरीर एवं मस्तिष्क में एक नयी लय के साथ संतुलन की स्थिति की शुरुआत हो रही है।’ आप अनुभव करेंगे कि कैसे चित्त की बहिर्मुख प्रवृत्ति शांत और अन्तर्मुख हो रही है।

गुरुमंत्र-जप की तुलना उस मजबूत रस्सी से की जा सकती है, जिसका एक सिरा नदी में है और दूसरा किनारा बड़े कुंदे से बँधा है। जिस प्रकार रस्सी को पकड़ के आगे बढ़ते हुए तुम अंत में कुंदे को छूते हो, उसी प्रकार भगवन्नाम की प्रत्येक आवृत्ति तुम्हें भगवान के समीप ले जाती है। जप सचेत होकर तथा ध्यानपूर्वक करना चाहिए और धीरे-धीरे इसे बढ़ाना चाहिए।

कई बार हम अपने समक्ष उपस्थित खतरे की कल्पना से बढ़ा-चढ़ा लेते हैं। परिस्थिति प्रायः इतनी बुरी नहीं होती जितनी हम मान लेते हैं। गुरु-ज्ञान, अद्वैत ज्ञान का सहारा हो तो हर परिस्थिति से अप्रभावित रह सकते हैं। परंतु यदि परिस्थितियों में सत्यबुद्धि नहीं हट रही हो तो सदा प्रार्थना, जप करें। यदि पराजित भी हो जायें तो भी हमारी पराजय सफलता की सीढ़ी बन जायेगी। भगवन्नाम मन को एक तरह से सम्बल प्रदान करता है।

गुरुमंत्र जप के साथ गुरुदेव का ध्यान करना चाहिए लेकिन जब ध्यान के योग्य मनःस्थिति न हो, तब एकाग्रता से एवं प्रीतिपूर्वक गुरुमंत्र का 10-20 माला जप करो। यदि वे यंत्रवत भी हो जायें तो भी लाभ होगा। तुम्हारी इच्छा हो या न हो, जप किये जाओ। ‘मन नहीं लगता’ ऐसा सोच के मन के द्वारा ठगे मत जाओ। गुरु-परमात्मा का चिंतन करते हुए उनसे प्राप्त भगवन्नाम-रसामृत का पान करते-करते रसमय होते जाओ। संकल्प-विकल्पों से कभी हार न मानो। गुरुमंत्र का जप इस तरह करते रहो कि तुम्हारे कान (सूक्ष्म रूप से) उसे सुनें और मन उसके अर्थ का चिंतन करे।

जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाने का सरल साधन है भगवान को अपना मान के भगवत्प्राप्ति हेतु प्रीतिपूर्वक भगवन्नाम का सुमिरन और जप। इस कलिकाल में सबके लिए सुलभ और अमोघ साधन है भगवन्नाम जप। इस असार संसार में केवल भगवन्नाम व गुरु ज्ञान व आत्म ज्ञान ही सार है।

गुरुमंत्र-जप, ध्यान, सत्संग-श्रवण व सदगुरु-आज्ञाओं का पालन करने से परमात्मा सत्य लगने लगेंगे। जैसे असार संसार की सत्यता समाप्त होती जायेगी, वैसे-वैसे सत्स्वरूप परमात्मा की ‘सत्’ता का ज्ञान होने लगेगा और भगवन्नाम, नामी (परमात्मा) और नाम जपने वाला – तीनों एक हो जायेंगे।

जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई। (श्रीरामचरि. अयो. कां. 126.2)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2016, पृष्ठ संख्या 19,21 अंक 277

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