फैशन की गुलामी में स्वास्थ्य न गँवायें

फैशन की गुलामी में स्वास्थ्य न गँवायें


एक सरकारी अधिकारी एक दिन सूट-बूट पहन कर, टाई लगा के दफ्तर पहुँचा। थोड़ी ही देर में उसे अपने कानों में साँय-साँय की आवाज सुनाई देने लगी, पसीना आने लगा, घबराहट होने लगी।

डॉक्टर के पास गये तो उसने कहाः “आपके दाँतों में समस्या है, ऑपरेशन करना होगा।”

उसने ऑपरेशन करा लिया। जब अगली बार दफ्तर पहुँचा तो फिर वे ही तकलीफें चालू हो गयीं। फिर डॉक्टर के पास गया तो उसने पुनः ऑपरेशन की सलाह दी। इस प्रकार उस व्यक्ति ने कई इलाज व ऑपरेशन करवा डाले परंतु उसे कोई आराम नहीं हुआ। आखिर में विशेषज्ञों की एक समिति बैठी, सबने जाँच करके कहाः “यह मर्ज लाइलाज है।”

इतने ऑपरेशन, इतनी दवाइयों व डॉक्टरों की मीटिंगों से आखिर और अधिक रुग्ण हो गया. पैसों की तबाही हो गयी और आखिर में डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिये।

उसने सोचा, ‘जब मरना ही है तो जिंदगी की सब ख्वाहिशें क्यों न पूरी कर ली जायें !’ सबसे पहले वह शानदार कोट-पैंट बनवाने के लिए दर्जी के पास पहुँचा।

दर्जी कोट के गले का नाप लेते हुए बोला कि ‘आप कोट का गला 16 इंच होना चाहिए।’ तो अधिकारी बोलाः “मेरे पुराने वाले कोट का गला तो 15 इंच है। तुम एक इंच क्यों बढ़ा रहे हो ?”

“साहब, तंग गले का कोट पहनने से घबराहट, बेचैनी आदि तकलीफें हो सकती हैं। कानों में साँय-साँय की आवाज भी आने लगती है। फिर भी आप कहते हैं तो उतना ही कर देता हूँ।”

अधिकारी चौंका ! सोचने लगा, ‘अब समझ में आया कि तंग गले के कोट के कारण ही मुझे तकलीफें हो रही थीं।’

उसने तो कोट पहनना ही छोड़ दिया। अब वह भारतीय पद्धति का कुर्ता-पायजामा आदि कपड़े पहनने लगा। उसकी सारी तकलीफें दूर हो गयीं।

अधिकारी को तो दर्जी के बताने पर सूझबूझ आ गयी परंतु आज अनेक लोग फैशन के ऐसे गुलाम हो गये हैं कि स्वास्थ्य को अनदेखा करके भी फैशनेबल कपड़े पहनना नहीं छोड़ते।

शोधकर्ताओं के अनुसार चुस्त कपड़े पहनने से दबाव के कारण रक्त-संचरण ठीक से नहीं होता। गहरे श्वास नहीं लिये जा सकते, जिससे खून सामान्य गति से शरीर के सभी भागों में नहीं पहुँचता। इससे शरीर की सफाई ठीक से नहीं हो पाती तथा जिन अंगों तक रक्त ठीक से एवं पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुँच पाता है, वे कमजोर पड़ जाते हैं। तंग जींस से हृदय को रक्त की वापसी और रक्त परिसंचरण में बाधा आती है, जिससे निम्न रक्तचाप होकर चक्कर एवं बेहोशी आ सकती है। नायलॉन के या अन्य सिंथेटिक (कृत्रिमः कपड़े पहनने से त्वचा के रोग होते हैं क्योंकि इनमें पसीना सोखने की क्षमता नहीं होती और रोमकूपों को उचित मात्रा में हवा नहीं मिलती।

भारत की उष्ण एवं समशोतोष्ण जलवायु है लेकिन यहाँ भी ठण्डे देशों की नकल करके अनावश्यक कोट, पैंट, टाई तथा तंग कपड़े पहनना गुलामी नहीं तो और क्या है ?

हमें अपनी संस्कृति के अनुरूप सादे, ढीले, सूती, मौसम के अनुकूल, मर्यादा-अनुकूल एवं आरामदायक कपड़े पहनने चाहिए।

फैशन की अंधी दौड़ में स्वास्थ्य व रूपयों की बलि न चढ़ायें। भारतीय संस्कृति के अनुरूप वस्त्रों का उपयोग कर अपने स्वास्थ्य व सम्पदा दोनों की रक्षा करें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2016, पृष्ठ संख्या 10, अंक 278

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