श्रेष्ठ रोगहारी अमृत संजीवनीः ग्वारपाठा

श्रेष्ठ रोगहारी अमृत संजीवनीः ग्वारपाठा


 

ग्वारपाठा या घृतकुमारी स्वास्थ्यरक्षक, सौंदर्यवर्धक तथा रोगनिवारक गुणों से भरपूर है। यह शरीर को शुद्ध और सप्तधातुओं को पुष्ट कर रसायन का कार्य करता है। यह रोगप्रतिरोधक प्रणाली को मजबूत करने में अति उपयोगी एवं त्रिदोषशामक, जठराग्निवर्धक, बल, पुष्टि व वीर्य वर्धक तथा नेत्रों के लिए हितकारी है। यह यकृत के लिए वरदान स्वरूप है।

पीलिया, रक्ताल्पता, जीर्णज्वर (हड्डी का बुखार), तिल्ली (Spleen) की वृद्धि, नेत्ररोग, स्त्रीरोग, हर्पीज (herpes), वातरक्त (gout), जलोदर (ascites) घुटनों व अन्य जोड़ों का दर्द, जलन बालों का झड़ना, सिरदर्द, अफरा और कब्जियत आदि में यह उपयोगी है। पेट के पुराने रोग, चर्मरोग, गठिया व मधुमेह (diabetes) तथा बवासीर के रोगी को आमयुक्त (चिकने) रक्तस्राव में ग्वारपाठा बहुत लाभदायी है।

ग्वारपाठे पर नवीन शोधों के परिणाम

यह बिना किसी दुष्प्रभाव के सूजन एवं दर्द को मिटाता है तथा एलर्जी से उत्पन्न रोगों को दूर करता है।

यह रोगों से लड़ने में प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) के रूप में काम करता है। यह सूक्ष्म कीटाणु, बैक्टीरिया, वायरस एवं फंगस के कीटाणुओं से लड़ने की क्षमता रखता है।

त्वचा की मृत एवं खराब कोशिकाओं को पुनः जीवित कर त्वचा को सुदृढ़ बनाता है। रक्त में बने थक्कों को साफ करते हुए खून के प्रवाह को सुचारू करता है।

यह कोलेस्ट्रोल को घटाता है। हृदय की कार्यक्षमता बढ़ाकर उसे मजबूती प्रदान करता है।

शरीर में ताकत एवं स्फूर्ति लाता है।

यकृत एवं गुर्दों को सुचारू रूप से कार्य करने में मदद करता है एवं शरीर के जहरी पदार्थों को निकालने में सहायता करता है।

इसमें यूरोनिक एसिड होता है, जो आँतों के अंदर की दीवाल को सुदृढ़ बनाता है।

औषधीय प्रयोग

बवासीरः ग्वारपाठे के गूदे में 2-3 ग्राम हल्दी व 20 ग्राम मिश्री मिला के सुबह शाम सेवन करें। इससे बवासीर व बवासीर के कारण दुर्बलता दूर होती है।

मोटापाः आधा गिलास गर्म पानी में ग्वारपाठे का गूदा व 1 नींबू मिला के खाली पेट सेवन करें।

पेट के रोग– इसके रस या गूदे में 5-5 ग्राम शहद व नींबू का रस मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से पेट के सभी विकारों में लाभ होता है।

उच्च रक्तचाप– तरबूज के ताजे रस में ग्वारपाठे का रस मिलाकर पीने से रक्त की कमी दूर होती है, उच्च रक्तचाप नियंत्रित होता है

हृदयरोग- 3 ग्राम अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण में ग्वारपाठे का रस मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से हृदयरोगों की सुरक्षा होती है।

कब्ज– इसका गूदा पीसकर उसमें थोड़ा काला नमक मिला के सेवन करने से लाभ होता है।

रस या गूदे की मात्रा- बच्चे 5 से 15 ग्राम तथा बड़े 15 से 25 ग्राम सुबह खाली पेट लें।

सावधानी– जिनकी आँतों में पेचिश हो, पुरानी बवासीर जिसमें मस्से अधिक फूले हुए हों, गुदामार्ग से रक्तस्राव होता है, अतिसार हो, शरीर अत्यंत दुर्बल हो, जिन स्त्रियों को मासिक स्राव अधिक होता हो, गर्भवती या बच्चे को दूध पिलाती हों, वे ग्वारपाठे का अधिक समय तक प्रयोग न करें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2016, पृष्ठ संख्या 32 अंक 280

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