संत की महिमा

Rishi Prasad 270 Jun 2015

संत की महिमा


एक संत हजारों असंत को संत बना सकते हैं लेकिन हजारों संसारी मिलकर भी एक संत नहीं बना सकते। संत बनना कोई मजाक की बात नहीं है। एक संत कइयों के डूबते हुए बेड़े तार सकते हैं, कइयों के पापमय मन को पुण्यवान बना सकते हैं, कई अभागों का भाग्य बना सकते हैं, कई नास्तिकों को आस्तिक बना सकते हैं, कई अभक्तों को भक्त बना सकते हैं, दुःखी लोगों को शांत बना सकते हैं और शांत में शांतानंद (आत्मानंद) प्रकट कराके उसे मुक्त महात्मा बना सकते हैं। एक बार राजा सुषेण कहीं जा रहे थे। राजा के साथ उनका इकलौता बेटा, रानी और गुरु महाराज थे। यात्रा करते-करते एकाएक आँधी-तूफान आया। नाव खतरे में थी। सबके प्राण संकट में थे। सुषेण के कंठ में प्राण आ गये। राजा जोर-जोर से चिल्लाने लगेः “अरे बचाओ ! बाबा जी को बचाओ !! और कुछ भी ना करो, केवल इन बाबा जी को बचाओ !…” बस, इस बात की रट लगा दी। एक बार भी नहीं बोला कि ‘मुझे बचाओ, राजकुमार को बचाओ, रानी को बचाओ।’ बड़ी मुश्किल से दैवयोग से नाव किनारे लगी। सबके जी में जी आया।

मल्लाहों का जो आगेवान था, उसने पूछाः “राजा साहब ! आपने एक बार भी नहीं कहा कि मुझे बचाओ, रानी को बचाओ, मेरे बच्चे को बचाओ। बाबा जी को बचाओ, बाबा जी को बचाओ बोलते रहे !”

राजा बोलाः “मेरे जैसे दूसरे राजा मिल जायेंगे। मैं मर जाऊँगा तो गद्दी पर दूसरा आ जायेगा। रानी और उत्तराधिकारी भी दूसरे हो जायेंगे लेकिन हजारों के दिल की गद्दी पर दिलबर को बैठाने वाले ये ब्रह्मज्ञानी संत बड़ी मुश्किल से होते हैं। इसलिए ये बच गये तो सब बच गया।”

राजा संतों की महिमा को जानता था कि संतों की वाणी से लोगों को शांति मिलती है। संतों के दर्शन से समाज का पुण्य बढ़ता है। वे दिखते तो इन्सान हैं लेकिन वे रब से मिलाने वाले महापुरुष हैं। ब्रह्मवेत्ता संत का आदर मानवता का आदर है, ज्ञान का आदर है, वास्तविक विकास का आदर है। ऐसे ब्रह्मज्ञानी संत धरती पर कभी-कभार होते हैं। जितनी देर ब्रह्मवेत्ता संतों के चरणों में बैठते हैं और वचन सुनते हैं, वह समय अमूल्य होता है। संत के दर्शन-सत्संग से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-चारों फल फलित होने लगते हैं। उन्हीं संत से अगर हमको दीक्षा मिली तो वे हमारे सदगुरु बन गये। तब तो उनके द्वारा हमको वह फल मिलता है, जिसका अंत नहीं होता।

पुण्य-पाप, सुख-दुःख दे नष्ट हो जाते हैं परंतु संत के, सदगुरु के दर्शन-सत्संग का फल अनंत से मिलाकर मुक्तात्मा बना देता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2015, पृष्ठ संख्या 19, अंक 270
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