सुख, शांति व पुण्य का वर्धक : श्राद्ध

सुख, शांति व पुण्य का वर्धक : श्राद्ध


 

सुख, शांति पुण्य का वर्धक : श्राद्ध 

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष या महालय पक्ष बोलते हैं । श्रद्धया दीयते यत्र, तच्छड्ढाद्धं परिचक्षते ‘श्रद्धा से जो पूर्वजों के लिए किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं ।‘ आपका एक माह बीतता है तो पितृलोक का एक दिन होता है । साल में एक बार ही श्राद्ध करने से कुल-खानदान के पितरों को तृप्ति हो जाती है ।

श्राद्ध क्यों जरूरी है ?

जो श्राद्ध करते हैं वे स्वयं भी सुखी-सम्पन्न होते हैं और उनके दादे-परदादे, पुरखे भी सब सुखी होते हैं । श्राद्ध के दिनों में पितर आशा रखते हैं कि हमारे बच्चे हमारे लिए कुछ-न-कुछ अर्पण करें, हमें तृप्ति हो । शाम तक वे इधर-उधर निहारते रहते हैं । अगर श्राद्ध नहीं करते तो वे दुत्कारकर चले जाते हैं । फिर घर में कोई-न-कोई मुसीबतें, आपदाएँ बनी रहती हैं सब धन-दौलत होते हुए भी ।

हारीत स्मृति में लिखा है: ‘जिसके घर में श्राद्ध नहीं होता उनके कुल-खानदान में वीर पुत्र उत्पन्न नहीं होते । कोई निरोग नहीं रहता । लम्बी आयु नहीं होती और किसी-न-किसी तरह का झंझट और खटपट बनी रहती है । किसी तरह कल्याण नहीं प्राप्त होता ।‘

विष्णु पुराण में लिखा है: ‘श्राद्ध से ब्रह्मा, इन्द्र, रुद्र, वरुण, अष्टवसु, अश्विनीकुमार, सूर्य, अग्नि, वायु, ऋषि, पितृगण, पशु-पक्षी, मनुष्य और जगत भी संतुष्ट होता है । श्राद्ध करनेवाले पर इन सभीकी प्रसन्न दृष्टि रहती है ।‘ वह इतने लोगों को संतुष्ट करने में सक्षम होता है तो स्वयं असंतुष्ट कैसे रहेगा !

यदि श्राद्ध करने की शक्ति हो तो 

श्राद्ध पक्ष में अपनी शक्ति के अनुसार श्राद्ध करना चाहिए । चीज-वस्तु लाने की ताकत नहीं हो तो साग से ही श्राद्ध करें । साग खरीदने की भी शक्ति नहीं है तो हरा चारा काटकर गाय माता को खिला दें और हाथ ऊपर कर दें कि ‘हे पितरो ! आपकी तृप्ति के लिए मैं गाय को तृप्त करता हूँ, आप उसीसे तृप्त हो जाइये ।ङ्क तभी भी उस व्यक्ति का भाग्य बदल जायेगा ।

गाय को घास देने की भी शक्ति नहीं है तो जिस तिथि में पिता-माता चले गये, उस दिन स्नान करके पूर्वाभिमुख होकर दोनों हाथ ऊपर करें : ‘हे भगवान सूर्य ! मैं लाचार हूँ । कुछ नहीं कर पाता हूँ । आप मेरे पिता-माता, दादा-दादी… (उनका नाम तथा उनके पिता का नाम व कुल-गोत्र का नाम लेकर) को तृप्त करें, संतुष्ट करें ।ङ्क जिसके पास साधन-सामग्री है और लाचार-लाचार करते हैं, वे लाचार बन जायेंगे लेकिन जो सचमुच लाचार हैं, उन पर भगवान विशेष कृपा करते हैं । आपकी प्रार्थना से जब पितर तृप्त और संतुष्ट होंगे तो आपके जीवन में धन-धान्य, तृप्ति-संतुष्टि चालू हो जायेगी ।

श्राद्ध का ऐतिहासिक प्रमाण 

भगवान श्रीरामचन्द्रजी वनवास के समय पुष्कर में ठहरे थे । दशरथजी स्वर्गवासी हो गये और श्राद्ध की तिथियाँ आयीं । रामजी ऋषि-मुनियों, ब्राह्मणों को आमंत्रण दे आये । जो कुछ कंदमूल भाई लक्ष्मण को लाना था, लाया और सीताजी ने सँवारा । सीताजी ब्राह्मणों को भोजन परोसने लगीं और रामजी भी देने लगे लेकिन अचानक जैसे शेर को देख के हिरनी कूदकर भाग जाती है जंगल में, ऐसे ही सीताजी झड़ियों में चली गयीं । रामजी ने लक्ष्मण की मदद ली, सीता की जगह परोसकर ब्राह्मणों को भोजन कराया । जब वे सब चले गये तो जैसे डरी-डरी हिरनी आती है ऐसे सीताजी आयीं ।

‘‘सीते! आज का तेरा व्यवहार मुझे आश्चर्य में डाले बिना नहीं रहता है  

सीताजी बोलीं : ‘‘नाथ ! क्या कहूँ, जिनको श्राद्ध के निमित्त बुलाया था वे बैठे, इतने में आपके पिताजी, मेरे ससुरजी मुझे उनमें दिखाई दिये । अब ससुरजी के आगे ऐसे वल्कल पहनकर मैं कैसे घूमूँगी ! इसलिए मैं शर्म के मारे भाग गयी ।ङ्कङ्क ऐसी कथा आती है ।

श्राद्ध के लिए उचित स्थान 

गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार तीर्थ अथवा गौशाला, देवालय या नदी-तट भी श्राद्ध के लिए उत्तम जगह मानी जाती है । नहीं तो अपने घर में ही परमात्मदेव के नाम से पानी छिटक के गोबर अथवा गोधूलि, गोमूत्र आदि से लीपन करके फिर श्राद्ध करें तो भी पवित्र माना जाता है । श्राद्ध में जब तुलसी के पत्तों का उपयोग होता है तो पितर प्रलयपर्यंत तृप्त रहते हैं और ब्रह्मलोक तक जाते हैं ।

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव

नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः ।। 

‘देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा और स्वाहा को मेरा सर्वदा नमस्कार है, नमस्कार है ।‘(अग्निपुराण: ११७.२२) 

श्राद्ध के आरम्भ व अंत में इस मंत्र का तीन बार उच्चारण करने से श्राद्ध की त्रुटियाँ क्षम्य हो जाती हैं, पितर प्रसन्न हो जाते हैं और आसुरी शक्तियाँ भाग जाती हैं ।

पितरों की संतुष्टि देती सुखमय जीवन

आपके घर मेहमान आ गये २५, आपने सबको खानपान का अनुरोध किया । किसीने खाया, किसीने नहीं खाया लेकिन आपके मधुमय व्यवहार से सब तृप्त होकर गये । ऐसे ही आपको मैं खिलाता नहीं हूँ लेकिन आपका मंगल हो इस भावना से बोलता हूँ और आप लोग तृप्त होकर जाते हैं । बदले में आप मेरे लिए क्या-क्या तृप्ति की भावना करते हैं । तो आपका संकल्प भी तो काम करता है ! तो जैसा आप देते हैं वैसा अनंत गुना आपको मिलता है । श्राद्ध करने से पितरों को आप तृप्त करते हैं तो वे भी आपको तृप्ति की भावनाओं से तृप्त करते हैं । श्राद्धकर्म करनेवाले की दरिद्रता चली जायेगी । रोग और बीमारियाँ भगाने की पुण्याई बढ़ जायेगी । स्वर्गीय वातावरण बन जाता है घर में । आयु, प्रज्ञा, धन, विद्या और स्वर्ग आदि की प्राप्ति के लिए श्राद्ध फायदेवाला है । श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को मुक्ति के रास्ते भी प्रेरित करते हैं ।

श्राद्ध में रखें ये सावधानियाँ

* पितरों को खिलाये बिना नहीं खायें । पराया अन्न भी नहीं खाना चाहिए ।

* श्राद्धकर्ता श्राद्ध पक्ष में पान खाना, तेल-मालिश, स्त्री-सम्भोग, संग्रह आदि न करे ।

* श्राद्ध का भोक्ता दुबारा भोजन तथा यात्रा आदि न करे । श्राद्ध खाने के बाद परिश्रम और प्रतिग्रह से बचें ।

* श्राद्ध करनेवाला व्यक्ति ३ से ज्यादा ब्राह्मणों तथा ज्यादा रिश्तेदारों को न बुलाये ।

* श्राद्ध के दिनों में ब्रह्मचर्य व सत्य का पालन करें और ब्राह्मण भी ब्रह्मचर्य का पालन करके श्राद्ध ग्रहण करने आये ।

श्राद्ध पक्ष का संदेश 

भगवान कहते हैं : ‘वैदिक रीति से अगर आप मेरे स्वरूप को नहीं जानते हो तो श्रद्धा के बल से जिस-जिस देवता के, पितर के निमित्त जो भी कर्म करते हो, उन-उनके द्वारा मेरी ही सत्ता-स्फूर्ति से तुम्हारा कल्याण होता है । देवताओं को पूजनेवाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजनेवाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजनेवाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा पूजन करनेवाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं । इसलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता ।‘ अतः श्राद्ध तो करो लेकिन ‘पितरों में, देवताओं में जो सत्ता है, वह मेरे प्रभु की है ।‘ प्रभु की सत्ता सर्वत्र देखने से सर्वेश्वर प्रभु की स्मृति हो जायेगी । आपका कर्म परमात्मा को संतुष्ट करनेवाला हो जायेगा ।

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