Monthly Archives: September 2016

वर्ष में ४ नवरात्रियाँ


 

 

साल में ४ नवरात्रियाँ होती हैं, जिनमे से २ नवरात्रियाँ गुप्त होती हैं –

  1. माघ शुक्ल पक्ष की प्रथम ९ तिथियाँ
  2. चैत्र मास की रामनवमी के समय आती हैं वो ९ तिथियाँ
  3. आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष के ९ दिन
  4. अश्विन महीने की दशहरे के पहले आनेवाली ९ तिथियाँ

‘ नवरात्रियों में उपवास करते, तो एक मंत्र जप करें ……..ये मंत्र वेद व्यास जी भगवान ने कहा है ….इस से श्रेष्ट अर्थ की प्राप्ति हो जाती है……दरिद्रता दूर हो जाती है ।

“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमल वासिन्ये स्वाहा”

 

श्राद्ध की महिमा


 

(संत श्री आशारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन एवं शास्त्रों से )

जीवात्मा का अगला जीवन पिछले संस्कारो से बनाता है | अत: श्राद्ध करके यह भावना की जताई है कि उनका अगला जीवन अच्छा हो |श्रद्धा और मंत्र के मेल से पितरो की तृप्ति के निमित्त जो विधि होती है उसे श्राद्ध कहते है | इसमें पिंडदानादि श्रद्धा से दिये जाते है | जिन पितरों के प्रति हम कृतज्ञतापूर्वक श्रद्धा व्यक्त करते है, वे हमारे जीवन की अडचनों को दूर करने में हमारी सहायता करते है |

‘वराह पुराण’ में श्रद्धा की विधि का वर्णन करते हुए मार्कन्ड़ेयजी गौरमुख ब्राम्हणसे कहते है :’विप्रवर ! छहों वेदांगों को जाननेवाले, यज्ञानुष्ठान में तत्पर, भानजे, दौहित्र, श्वसुर, जामाता, मामा, तपस्वी ब्राम्हण, पंचाग्नि में तपनेवाले, शिष्य,संबंधी तथा अपने माता-पिता के प्रेमी ब्राम्हणों को श्राद्धकर्म के लिए नियुक्त करना चाहिए |’ ‘वायु पुराण’ में आता है : “मित्रघाती, स्वभाव से ही विकृत नखवाला, काले दाँतवाला, कन्यागामी, आग लगानेवाला, सोमरस (शराब आदि मादक द्रव्य ) बेचनेवाला,जनसमाज में निंदित, चोर, चुगलखोर, ग्राम-पुरोहित, वेतन लेकर पढानेवाला, पुनर्विवहिता स्त्री का पति, माता -पिता का परित्याग करनेवाला, हीन वर्ण की संतान का पालन – पोषण करनेवाला, शुद्रा स्त्री का पति तथा मंदिर में पूजा करके जीविका चलानेवाला – ऐसा ब्राम्हण श्राद्ध के अवसर पर निमंत्रण देने योग्य नहीं है |” श्राद्धकर्म करनेवालों में कृतज्ञता के संस्कार सहज में दृढ़ होते है, जो शरीर कि मौत के बाद भी कल्याण का पथ प्रशस्त करते है | श्राद्धकर्म से देवता और पितर तृप्त होते है और श्राद्ध करनेवाले का अंत:करण भी तृप्ति का अनुभव करता है | बूढ़े -बुजुर्गो  ने आपकी उन्नति के लिए बहुत कुछ करेंगे तो आपके ह्रदय में भी तृप्ति और पूर्णता का अनुभव होगा |

औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को कैद कर दिया था और पिने के लिए नपा-तुला पानी एक फूटी हुई मटकी में भेजता था | तब शाहजहाँ ने अपने बेटे को लिख भेजा : “धन्य है वे हिंदू जो अपने मृतक माता-पिता को भी खीर और हलुए-पूरी से तृप्त करते है और तू जिन्दे बाप को एक पानी की मटकी तक नही दे सकता ? तुमसे तो वे हिंदू अच्छे, जो मृतक माता-पिता की भी सेवा कर लेते है |”

भारतीय संस्कृति अपने माता-पिता या कुदुम्ब-परिवार का ही हित नहीं, अपने समाज या देश का ही हित नहीं वरन पुरे विश्व का हित चाहती है |

ब्राह्मण को निमंत्रित करने की विधि


 

विचारशील पुरुष को चाहिए कि जिस दिन श्राद्ध करना हो उससे एक दिन पूर्व ही संयमी, श्रेष्ठ ब्राह्मणों को निमंत्रण दे दे | परंतु श्राद्ध के दिन कोई अनिमंत्रित तपस्वी ब्राह्मण घर पर पधारे तो उन्हें भी भोजन करना चाहिए | श्राद्धकर्ता पुरुष को घर आये हुए ब्राह्मणों के चरण धोने चाहिए | फिर अपने हाथ धोकर उन्हें आचमन कराना चाहिए | तत्पश्चात उन्हें आसन पर बिठाकर भोजन कराना चाहिए | पितरों के निमित्त अयुग्म अर्थात एक, तीन, पाँच, सात इत्यादि  की संख्या में तथा देवताओ  के निमित्त युग्म अर्थात दो, चार, छ : आठ आदि की संख्या में ब्राह्मणों को भोजन कराने की व्यवस्था करनी चाहिए | देवताओं एवं पितरों, दोनों के निमित्त एक-एक ब्राह्मण को भोजन कराने का भी विधान है |