ऐसे लोगों का शरीर साक्षात नरक है

ऐसे लोगों का शरीर साक्षात नरक है


दुर्जनाची गंधी विष्ठेचिये परी।….

अंग कुंभीपाक दुर्जनांचे।।

‘दुर्जनों के शरीर से विष्ठा की तरह (दुर्गुणरुपी) दुर्गंध आती है इसलिए सज्जन उसे देखते ही उससे दूर रहें। सज्जनों ! दुर्जनों से संगठन न करो, उनसे बात भी न करो। दुर्जनों का शरीर अखंड अपवित्रता से भरा रहता है, जिस प्रकार रजस्वला स्त्री के शरीर से निरंतर अशुद्ध रज का स्राव होता रहता है, उसी प्रकार दुर्जन की वाणी  सदा अशुद्ध बोलती रहती है। कुत्ता जब बौराता है तो किसी को भी काटने के लिए उसे दौड़ाता है। दुर्जन का स्वभाव भी वैसा ही होता है  अतः उससे (उसका संग करने से) डरें। दुर्जन के शरीर का स्पर्श भी अच्छा नहीं है। शास्त्र तो कहते हैं कि वह जिस स्थान में भी हो उस स्थान का त्याग करना चाहिए। संत तुकाराम जी कहते हैं कि उस दुर्जन के संबंध में जितना कुछ कहा जाय कम है। अब इतना ही बताता हूँ कि दुर्जन का शरीर साक्षात् नरक है।’

जेणें मुखें स्तवी।….. लोपी सोनें खाय माती।।

‘जिस मुख से कभी किसी की स्तुति की है, उसी मुख का उपयोग उसकी निंदा के लिए करना नीच जाति का लक्षण है। पास में सोना होते हुए भी वह मिट्टी खाता है।’

याचा कोणी करी पक्ष।… मद्यपानाचे समान।।

‘जो पापी को पाप करने के लिए समर्थन देता है तथा उससे सम्पर्क रखता है, वह भी उसी की तरह पापी है। पापी का पक्ष लेने वाला व्यर्थ ही पाप का भागी बनता है तथा पूर्वजों को नरकवास भोगने के लिए विवश करता है।’

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2017 पृष्ठ संख्या 27 अंक 289

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