पापों, रोगों, संतापों का नाश और उत्तम गति प्रदान करनेवाला व्रत

पापों, रोगों, संतापों का नाश और उत्तम गति प्रदान करनेवाला व्रत


(माघ मास व्रत : १३ जनवरी से १० फरवरी तक )
पूरा माघ मास ही ‘पर्व मास’ माना जाता है | इस मास का ऐसा प्रभाव हे की धरती पर कहीं का भी साफ़ जल गंगाजल की नाई पवित्र, हितकारी माना जाता है | पद्म पुराण (उत्तर खण्ड: २२१.८०) में लिखा है कि –

कृते तप: परं ज्ञानं त्रेतायां यजनं तथा |
द्वापरे च कलौ दानं माघ: सर्वयुगेषु च ||

‘सत्ययुग में तपस्या को, त्रेता में ज्ञान को, द्वापर में भगवान के पूजन को और कलियुग में दान को उत्तम माना गया है परन्तु माघ का स्नान सभी युगों में श्रेष्ठ समझा गया है |’

भगवान राम के पूर्वज राजा दिलीप ने वसिष्ठजी के चरणों में प्रार्थना की: “ प्रभु ! उत्तम व्रत, उत्तम जीवन और उत्तम सुख, भगवत्सुख का मार्ग बताने की कृपा करें |”

वसिष्ठजी बोले : “ राजन ! माघ मास में सूर्योदय से पहले जो स्नान करते हैं वे अपने पापों, रोगों और संतापों को मिटानेवाली पुण्याई प्राप्त कर लेते हैं | यज्ञ – याग, दान करके लोग जिस स्वर्ग को पाते हैं, वह माघ मास का स्नान करनेवाले को ऐसे ही प्राप्त हो जाता हैं |”

अत: संकल्प करो कि ‘मैं पुरे माघ मास में भगवद – चिंतन करके प्रात:स्नान करूँगा |’ चाहे रात को देर-सवेर सोयें, संकल्प करें कि ‘मुझे सूर्योदय से पहले इतने बजे स्नान करना ही है’ तो सुबह आँख खुल ही जायेगी | नियम – निष्ठा रक्षा करती है | थोड़ी ठंड लगेगी लेकिन शरीर में ठंड झेलने की ताकत आयेगी तो शरीर गर्मी भी पचा लेगा | आदमी प्रतिकूलता से जितना भागता है, उतना कमजोर संकल्पवाला हो जाता है और प्रतिकूलता को दृढ़ता से जितना झेलता है, उतना वह दृढ़संकल्पी हो जाता है |

सूर्योदय के समय सूरज दिख रहा हो चाहे बाद में दिखे, तुम तो पूर्व की तरफ जल – राशि अर्पण करके उस गीली मिट्टी का तिलक कर लो और लोटे में जो थोडा पानी बचा हो उसको देखते हुए ॐकार का जप करके थोडा-सा जल पी लो | आपको भगवच्चरणामृत, ताजे भगवत्प्रसाद का एहसास होगा |

माघ – स्नान से स्वर्ग की प्राप्ति
‘पद्म पुराण’ में कथा आती है कि सुव्रत नामक एक ब्राह्मण था | उसने नियम – अनियम की परवाह किये बिना जीवनभर धन कमाया | बुढापा आया, अब देखा कि ‘परलोक में तो यह धन साथ नहीं देगा |’ और तभी दैवयोग से एक रात उसका धन चोर चुरा ले गये | तो धन – चोरी के दुःख से दु:खी हुआ और ‘बुढापे में अब मैं क्या करूँ ?…’ ऐसा शोक कर रहा था, इतने में उसे आधा श्लोक याद आ गया कि ‘माघ मास में ठंडे पानी से स्नान करने से व्यक्ति की सद्गति होती है और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है |’ तो उसने माघ-स्नान शुरू किया | ९ दिन स्नान किया, १० वे दिन तो ठिठुरन से शरीर कृश हो गया और मर गया | उसने दुसरा कोई पुण्य नहीं किया था लेकिन माघ – स्नान के पुण्य – प्रभाव से वह स्वर्ग को गया |

माघ मास में विशेष करणीय
इस मास में पुण्यस्नान, दान, तप, होम और उपवास भयंकर पापों का नाश कर देते हैं और जीव को उत्तम गति प्रदान करते हैं | जिस वस्तु में आसक्ति है, उस वास्तु को बलपूर्वक त्याग दें तो अधर्म की जड़ें कटती हैं | जो माघ मास में इन छ: प्रकार से तिलों का उपयोग करता है, वह इहलोक और परलोक में वांछित फल पाता है :
तिल का उबटन, तिलमिश्रित जल से स्नान, तिल से तर्पण या अर्घ्य, तिल का होम, तिल का दान और तिलयुक्त भोजन |

माघ मास में जप तो जरुर करना चाहिए | इस मास में एक समय भोजन करने से व्यक्ति दूसरे जन्म में धनवान कुल में जन्म लेगा | दूसरी बात, माघ मास में धीरे – धीरे गर्मी बढ़ती है तो एक समय भोजन करनेवाला स्वस्थ रहेगा और उसका सत्त्वगुण बढ़ेगा | ज्यादा खायेगा तो आलस्य और तमोगुण बढ़ेगा | तो यह स्वास्थ्य के साथ – साथ पुण्यलाभ की व्यवस्था है अपने व्रत – पर्वो में |

पूरे माघ मास का फल
पूरा मास जल्दी स्नान कर सकें तो ठीक है नहीं तो एक सप्ताह तो अवश्य करें | त्रयोदशी से माघी पूर्णिमा तक अंतिम ३ दिन प्रात: स्नान करने से भी महीनेभर के स्नान का प्रभाव, पुण्य प्राप्त होता है |

जो वृद्ध या बीमार हैं, जिन्हें सर्दी – जुकाम आदि है वे सूर्यंनाड़ी अर्थात दायें नथुने से श्वास चलाकर स्नान करें तो सर्दी – जुकाम से रक्षा हो जायेगी |

ऐसा तीर्थस्नान तो सभी कर सकते हैं
इस मास में तीर्थस्नान की महिमा है | बाहर के तीर्थ में स्नान न कर सको तो ह्रदय से ही मानसिक तीर्थों में जाकर स्नान कर लिया – ‘सत्य तीर्थ, क्षमा तीर्थ, मौन तीर्थ, ब्रह्मचर्य तीर्थ, अद्रोह (द्वेषरहितता) तीर्थ, इन्द्रियनिग्रह तीर्थ, ज्ञान तीर्थ, आत्मतीर्थ, ध्यान तीर्थ, सर्वभूतदया तीर्थ, आर्जव (सरलता) तीर्थ, दान तीर्थ, दम (मनोनिग्रह) तीर्थ, संतोष तीर्थ, नियम तीर्थ, मंत्रजप तीर्थ, प्रियभाषण तीर्थ, धैर्य तीर्थ, अहिंसा तीर्थ और शिव (कल्याणस्वरूप परमात्मा) स्मरण तीर्थ …. इन आध्यात्मिक तीर्थों में हम जा रहे हैं और फिर हम परमात्मा के नाम का जप करते हैं | मन की शुद्धि सब तीर्थों से उत्तम तीर्थ है |’ यह स्नान माघ मास में बहुत लाभ देगा |

यदि कोई निष्काम भाव से केवल भगवत्पसन्नता, भगवत्प्राप्ति के लिए माघ – स्नान करता है तो उसको भगवत्प्राप्ति भी बहुत – बहुत आसानी से होती है |

स्त्रोत – ऋषिप्रसाद – जनवरी २०१६, निरंतर अंक : २७७ से

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *