पुण्य – अर्जन का पर्व मकर संक्रांति

पुण्य – अर्जन का पर्व मकर संक्रांति


 

(१४ जनवरी : पुण्यकाल : सूर्योदय से सूर्यास्त तक )

संक्रांति का अर्थ है बदलाव का समय | उत्तरायण से देवताओं का ब्राह्ममुहूर्त शुरू हो जाता है | अत: हमारे ऋषियों ने उत्तरायण को साधना व परा – अपरा विद्याओं की प्राप्ति के लिए सिद्धिकाल माना है |

मकर संक्रांति पर स्नान, दान व्रत, जप-अनुष्ठान, पूजन, हवन, सुमिरन, ध्यान, वेद-पाठ, सत्संग –श्रवण, सेवा आदि का विशेष महत्त्व है | ‘धर्मसिंधु’ ग्रंथ में आता है किसंक्रांति होने पर जो व्यक्ति स्नान नहीं करता, वह सात जन्मों तक रोगी और निर्धन होता है | सूर्योदय से पहले स्नान करने से दस हजार गोदान करने का फल मिलता है | कुटे हुए तिल, जौ मिश्रित गोमूत्र या गोबर से रगड़ के स्नान करें तो और अच्छा | इस पर्व पर तिल के उपयोग की विशेष महिमा है | संक्रांति पर देवों और पितरों को तिलदान अवश्य करना चाहिए |   वैदिक साहित्य में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है |

सूर्योदय होने से प्राणिजगत में चेतना का संचार होता है और उसकी कार्यशक्ति में वृद्धि होती है | सृष्टि में जीवन के लिए सबसे अधिक आवश्यकता सूर्य की है | सूर्य की गति से संबंधित होने के कारण यह पर्व हमारे जीवन में गति, नवचेतना, नव-उत्साह और नवस्फूर्ति लाता है | उत्तरायण के बाद दिन बड़े होने लगते हैं |

पूज्य बापूजी कहते हैं : “मकर संक्रांति पुण्य – अर्जन का दिवस है | यह सारा दिन पुण्यमय है; जो भी करोगे कई गुना पुण्यदायी हो जायेगा | मौन रखना, जप करना, भोजन आदि का संयम रखना और भगवत्प्रसाद को पाने का संकल्प करके भगवान को जैसे भीष्मजी कहते हैं कि ‘हे नाथ ! मैं तुम्हारी शरण हूँ | हे अच्युत ! हे केशव ! हे सर्वेश्वर ! मेरी बुद्धि आपमें विलय हो |’ ऐसे ही प्रार्थना करते – करते मन – बुद्धि को उस सर्वेश्वर में विलय कर देना |”

स्त्रोत – लोक कल्याण सेतु – दिसम्बर -२०१५ (निरंतर अंक :२२२) से

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