-पूज्य बापू जी
(मकर सक्रान्तिः 14 जनवरी)
सब पर्वों की तारीखें बदलती जाती हैं किंतु मकर सक्रांति की तारीख नहीं बदलती। यह नैसर्गिक पर्व है। किसी व्यक्ति के आने-जाने से या किसी के अवतार से यह पर्व नहीं हुआ। प्रकृति में जो मूलभूत परिवर्तन होता है, उससे संबंधित है यह पर्व और प्रकृति की हर चेष्टा व्यक्ति के तन और मन से संबंध रखती है।
इस काल में भगवान भास्कर की गति उत्तर की तरफ होती है। अंधकार वाली रात्रि छोटी होती जाती है और प्रकाश वाला दिन बड़ा होता जाता है। अब ठंडी का जोर कम होता जायेगा। न गर्मी, न ठंडी, अब वसंत ऋतु आयेगी, बहारें आयेंगी। अगर प्यार से सूर्यनारायण का हृदयपूर्वक चिंतन करते हो और आरती घुमाते हो तो हृदय में मस्ती, आनंद उभरेगा। वसंत ऋतु की बहारें तो आयेंगी लेकिन अंतरात्मा-परमात्मा की बहार भी शुरु और जायेगी।
महाशुभ दिन
मकर सक्रांति या उत्तरायण सत्त्व-प्रदायक व सत्त्ववर्धक दिन है, महाशुभ दिन है। अच्छे-अच्छे कार्य करने के लिए शुभ मुहूर्त भी मकर सक्रांति के बाद ज्यादा निकलते हैं। पुराणों का कहना है कि इन दिनों देवता लोग जागृत होते हैं। मानवीय 6 महीने बीतते हैं, तब देवताओं की एक रात होती है। उत्तरायण के दिन से देवताओं की सुबह मानी जाती है। इस दिन से देवता लोग धरती पर होम हवन, यज्ञ-याग, नैवेद्य, प्रार्थना आदि के स्वीकार करने के लिए (सूक्ष्म रूप से) विचरण करते हैं।
मकर सक्रांति का लाभ उठायें
इस दिन सुबह जल्दी उठकर जल में तिल डाल के जो स्नान करता है, उसे 10 हजार गोदान का फल मिलता है। इस दिन सूर्यनारायण का मानसिक रूप से ध्यान करके उनसे मन ही मन आयु और आरोग्य के लिए प्रार्थना करने से प्रार्थना विशेष प्रभावशाली होती है।
तिल-उबटन से, गौ-गोबर व तिल आदि के मिश्रण से स्नान करना एवं तिल खाना हितकारी व पुण्यदायी माना गया है। इस दिन भगवान सूर्य को तिलमिश्रित जल से अर्घ्य दें और पीने के पानी में, हवन में तिल का उपयोग करें। सक्रांति के दिन तिल का दान पापनाश करता है, भोजन में तिल आरोग्य देता है, तिल हवन पुण्य देता है। पीने के पानी में भी थोड़े तिल डालकर पीना स्वास्थ्यप्रद होता है। किंतु रात्रि को तिल व तिल के तेल से बनी वस्तुएँ खाना वर्जित हैं।
सूर्यकिरण चिकित्सा
निर्दोष चिकित्सा पद्धतियों की औषधियों में सूर्य और चन्द्रमा की कृपा से ही रोगनाशक शक्तियाँ आती हैं। सूर्यस्नान से बहुत सारे रोग मिटते हैं। सिर को ढककर सूर्य की कोमल किरणों में लेट जाओ। लेटे-लेटे किया गया सूर्य स्नान विशेष फायदा करता है। सारे शरीर को सूर्य की किरणें मिलें, जिससे आपके अंगों में जिन रंगों की कमी है, वात-पित्त का जो असंतुलन है वह ठीक होने लगे। सूर्यस्नान करने के पहले एक गिलास गुनगुना पानी पी लो और सूर्यस्नान करने के बाद ठंडे पानी से नहा लो तो ज्यादा फायदा होगा। सूर्य की रश्मियों में अदभुत रोगप्रतिकारक शक्ति है। दुनिया का कोई वैद्य अथवा कोई मानवी इलाज उतना दिव्य स्वास्थ्य और बुद्धि की दृढ़ता नहीं दे सकता है, जितना सुबह की कोमल सूर्य-रश्मियों में छुपे ओज-तेज से मिलता है।
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सूर्य स्नान बाहर से ठीक है लेकिन मन और मति को ठीक करने के लिए भगवान के नाम का जप आवश्यक है।
उत्तरायण का संदेश
जैसे सूर्यनारायण समुद्र, नदियों, नालों, कीचड़ आदि विभिन्न जगहों से जल तो उठा लेते हैं लेकिन समुद्र के खारेपन एवं नालों आदि के गंदेपन से स्वयं प्रभावित नहीं होते। साथ ही बादलों की उत्पत्ति में एवं जीव-जगत को स्फूर्ति-ताजगी प्रदान करने में कारण रूप होकर परोपकार के कार्यों में सूर्यदेव संलग्न रहते हैं। उनकी नाई आप भी सदगुणों को कहीं से भी उठा लें और परोपकार में संलग्न रहें लेकिन स्वयं किसी के दुर्गुणों से प्रभावित न हों। इस प्रकार आप अपना लक्ष्य ऊँचा बना लीजिये और उसे रोज दोहराइये। फिर तो प्रकृति और परमात्मा आपको कदम-कदम पर सहयोग और सत्प्रेरणा देंगे।
आप आपने लक्ष्य पर अडिग रहने की प्रतिज्ञा कीजिये और एकांत में उसे जोर-से दोहराइये। जैसे – ‘मेरी इस प्रतिज्ञा को यक्ष, गंधर्व, किन्नर आदि सब सुनें ! आज से मैं गुरुदेव के भगवान के हृदय को ठेस पहुँचे ऐसा कोई काम नहीं करूँगा।’ ऐसा करने से आपका मनोबल बढ़ेगा। बस, इतना कर लिया तो बाकी सब रक्षक गुरुकृपा, भगवत्कृपा अपने-आप सँभाल लेती है और आपको ऊपर उठाती है। अनपढ़ लोग भी पूजनीय बन जाते हैं गुरुकृपा से।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2015, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 276
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