सर्व सफलताओं का मूल आत्मविश्वास

सर्व सफलताओं का मूल आत्मविश्वास


किसी भी क्षेत्र में सफलता का मूल रहस्य आत्मविश्वास है। आत्मविश्वास का मुख्य उद्देश्य है हृदय-क्षुद्रता का निराकरण। जिसके अंदर आत्मविश्वास होता है वह अनेक प्रतिकूलताओं के बावजूद संतुलित मनोमस्तिष्क से हर समस्या का समाधान सहज ही कर लेता है। अगर सारी साधन-सुविधाएँ उपलब्ध होने पर भी किसी में आत्मविश्वास का अभाव हो तो वह दीन हीन और किंकर्तव्यविमूढ़ (कर्तव्य का निर्णय करने में असमर्थ) हो जाता है। आत्मविश्वास की कमी असफलताओं की जननी है। अपनी शक्ति में विश्वास से ही शक्ति प्राप्त होती है।

श्री योगवासिष्ठ महारामायण में कहा गया हैः मानसं विद्धि मानवम्। मनुष्य मनोमय है। वह जैसा सोचता है, वैसा बन जाता है।

जो अपने को दीन-हीन समझता है वह दीन-हीन बन जाता है और इसके विपरीत जो अपने दिव्य स्वरूप, आत्मस्वरूप का ज्ञान पाता है, चिंतन करता है, उसके स्वभाव, संस्कार में दिव्यता भरती जाती है।

सफलता और असफलता में बहुत अंतर नहीं होता। जिस बिंदु पर असफलता की मृत्यु (समाप्ति) होती है, उसी बिंदु पर सफलता का जन्म (प्रारम्भ) हो जाता है।

सकारात्मक चिंतन व ईश्वर-विश्वास का प्रभाव

टॉमी नामक एक लड़का बचपन से ही बहरा और काफी मंदबुद्धि था। शिक्षक ने उसके माता पिता को कहाः “आपका बेटा कुछ नहीं सीख सकता। उसे स्कूल से निकाल लीजिये।”

वही बालक आगे चलकर महान आविष्कारक थामस एडीसन बने, जिन्होंने फोनोग्राफ, विद्युत बल्ब आदि अनेक महत्वपूर्ण आविष्कार किये। बिजली का बल्ब बनाने से पहले वे उसमें हजारों बार असफल हुए किंतु उन्होंने अपने आत्मबल को नहीं गिराया और अंततः अपने कार्य में सफल हुए।

67 वर्ष की आयु में एडीसन की फैक्ट्री जल गयी। उनकी जिंदगी भर की मेहनत धुआँ बनकर उड़ गयी लेकिन उन्होंने कहाः “यह बरबादी बहुत कीमती है। हमारी सारी गलतियाँ जलकर राख हो गयीं। मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि उसने हमें नयी शुरुआत करने का मौका दिया।”

कैसा सकारात्मक चिंतन व दृढ़ ईश्वर-विश्वास था उनका ! इनका दो गुणों के बल पर व्यक्ति असम्भव को भी सम्भव कर दिखाता है। भारतीय चिंतन इससे भी ऊँचा और सूक्ष्मतम है। वह भौतिक उपलब्धियों से अनंत गुना हितकारी है एवं उनका सभी उपलब्धियों की अचल आधारसत्ता सत्-चित्-आनंदस्वरूप परमात्मा का, वेदांत का ज्ञान करा देता है।

‘मुद्राराक्षस’ नामक ग्रंथ में लिखा हैः ‘अनेक लोगों के मुख से जब चाणक्य ने सुना कि कई प्रतिभाशाली व्यक्ति उनका साथ छोड़कर विपक्षियों में मिल गये हैं, उस समय उन्होंने आत्मविश्वासपूर्वक कहा थाः “जो चले गये हैं, वे तो चले ही गये हैं, जो शेष हैं वे भी जाना चाहें तो जा सकते हैं। मेरी कार्यसिद्धि में सैंकड़ों सेनाओं से अधिक बलशाली केवल एक मेरी सत्-बुद्धि मेरे साथ रहे।” उनका आत्मविश्वास एवं सत्-चिंतन रंग लाया और अंततः उन्होंने नंदवंश को पछाड़ ही डाला।

सभी महान विभूतियों एवं संतों-महापुरुषों की सफलता व महानता का रहस्य आत्मविश्वास, आत्मबल, सदाचार में ही निहित रहा है। उनके जीवन में चाहे कितनी भी प्रतिकूल व कठिन परिस्थितिआँ आयीं पर वे घबराये नहीं, आत्मविश्वास व निर्भयता के साथ उनका सामना किया और महान हो गये। वीर शिवाजी ने 16 वर्ष की उम्र में तोरणा का किला जीत लिया था। पूज्यपाद लीलाशाह जी महाराज ने 20 वर्ष की उम्र में ही परमात्म-तत्त्व का साक्षात्कार कर लिया। गांधी जी ने आत्मविश्वास के बल पर ही अंग्रेज शासकों को भारत छोड़ के भागने पर मजबूर कर दिया।

1893 में जिस विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद जी ने धर्म-ध्वजा फहरायी थी, उसी में 1993 में पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू ने भारतीय संस्कृति की महानता और सत्य सनातन वैदिक ज्ञान का डंका बजाया था। इसके पीछे भी इन महापुरुषों का आत्मबल, आत्मविश्वास ही था।

पांडवों की सीमित सेना द्वारा कौरवों की विशाल सेना के छक्के छुड़ाने की बात हो या सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा छोटे-छोटे टुकड़ों और रियासतों में बँटे भारत के एकीकरण के महत्कार्य की, इन सफलताओं के पीछे भी आत्मविश्वास ही था।

बहुत से छात्र साधारण योग्यता होते हुए भी आत्मविश्वास के धनी होने के कारण प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते जले जाते हैं और अनेक योग्य छात्र भी आत्मविश्वास के अभाव में यही सोचते रह जाते हैं कि ‘क्या हम सफल हो पायेंगे !’

आत्मविश्वास के अभाव से ही पूरे  वर्ष कड़ी मेहनत करने पर भी जब परीक्षा की घड़ी आती है तो बहुत से छात्र हताश हो जाते हैं और जानते हुए भी जवाब नहीं दे पाते, फलतः असफल हो जाते हैं।

आत्मविश्वास कैसे जगायें ?

पूज्य बापू जी सत्संग में बताते हैं- “आत्मविश्वास यानी अपने आप पर विश्वास। आत्मविश्वास ही सभी सफलताओं की कुंजी है। इसकी कमी होना, स्वयं पुरुषार्थ न करके दूसरे के भरोसे अपना कार्य छोड़ना – यह अपने साथ अपनी आत्मिक शक्तियों का भी अनादर करना है। ऐसा व्यक्ति जीवन में असफल रहता है। जो अपने को दीन-हीन, अभागा न मानकर अजन्मा आत्मा, अमर चैतन्य मानता है, उसको दृढ़ विश्वास हो जाता है कि ईश्वर व ईश्वरीय शक्तियों का पुंज उसके साथ है।

आत्मविश्वास मनुष्य की बिखरी हुई शक्तियों को संगठित करके उसे दिशा प्रदान करता है। आत्मविश्वास से मनुष्य की शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक शक्तियों का मात्र विकास ही नहीं होता बल्कि ये सम्पूर्ण शक्तियाँ उसके इशारे पर नाचती हैं।

आत्मविश्वास सुदृढ़ करने के लिए प्रतिदिन शुभ संकल्प व शुभ कर्म करने चाहिए तथा सदैव अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित रखना चाहिए। जितनी ईमानदारी व लगन के साथ हम इस ओर अग्रसर होंगे, उतनी ही शीघ्रता से आत्मविश्वास बढ़ेगा। फिर कैसी भी विकट परिस्थिति आने पर हम डगमगायेंगे नहीं बल्कि धैर्यपूर्वक अपना मार्ग खोज लेंगे। फिर भी यदि कोई ऐसी  परिस्थिति आ जाय जो हमें हमारे लक्ष्य से दूर ले जाने की कोशिश करे तो परमात्म-चिंतन करके ‘ॐ’ का दीर्घ उच्चारण करते हुए हमें ईश्वर की शरण चले जाना चाहिए। इससे आत्मबल बढ़ेगा, खोया हुआ मनोबल फिर से जागृत होगा। (आत्मबल जगाने के प्रयोग हेतु पढ़ें आश्रम की पुस्तक ‘जीवन रसायन’, पृष्ठ 92)

अतः कैसी भी विषम परिस्थिति आये, घबरायें नहीं बल्कि आत्मविश्वास जगाकर आत्मबल, उद्यम, साहस, बुद्धि व धैर्यपूर्वक उसका सामना करें और अपने लक्ष्य को पाने का संकल्प दृढ़ रखें।

लक्ष्य न ओझल होने पाये, कदम मिलाकर चल1

सफलता तेरे कदम चूमेगी, आज नहीं तो कल।।

1 शास्त्र व ब्रह्मज्ञानी संत से।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2017, पृष्ठ संख्या 12,13,26 अंक 291

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