हे देवियो ! अपनी महिमा को पहचानो

हे देवियो ! अपनी महिमा को पहचानो


श्री माँ आनंदमयी जयंतीः 30 अप्रैल 2017)

माता-पिता के संस्कारों का संतान पर प्रभाव

श्री आनंदमयी माँ के पिता विपिनहारी भट्टाचार्य एवं माता श्रीयुक्ता मोक्षदासुंदरी देवी (विधुमुखीदेवी) – दोनों ही ईश्वर-विश्वासी, भक्तहृदय थे। माता जी के जन्म से पहले व बहुत दिनों बाद तक इनकी माँ को सपने में तरह-तरह के देवी देवताओं की मूर्तियाँ दिखती थीं और वे देखतीं कि उन मूर्तियों की स्थापना वे अपने घर में कर रही हैं। आनंदमयी माँ के पिता जी में ऐसा वैराग्यभाव था कि इनके जन्म के पूर्व ही वे घर छोड़कर कुछ दिन के लिए बाहर चले गये थे और साधुवेश में रहकर हरिनाम-संकीर्तन, जप आदि में समय व्यतीत किया करते थे।

माता जी के माता-पिता बहुत ही समतावान थे। इनके तीन छोटे भाइयों की मृत्यु पर भी इनकी माँ को कभी किसी ने दुःख में रोते हुए नहीं देखा। माता-पिता, दादा-दादी आदि के संस्कारों का प्रभाव संतान पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्षरूप से पड़ता ही है। माता जी बचपन से ही ईश्वरीय भावों से सम्पन्न, समतावान व हँसमुख थीं।

आनंदमयी माँ को आध्यात्मिक संस्कार तो विरासत में ही मिले थे अतः बचपन से ही कहीं भगवन्नाम-कीर्तन की आवाज सुनाई देती तो इनके शरीर की एक अनोखी भावमय दशा हो जाती थी। आयु के साथ इनका यह ईश्वरीय प्रेमभाव भी प्रगाढ़ होता गया। लौकिक विद्या में तो माता जी का लिखना पढ़ना मामूली ही हुआ। वे विद्यालय बहुत कम ही गयीं। परंतु अलौकिक विद्या में इन्होंने संयम, नियम-निष्ठा से व गृहस्थ के कार्यों को ईश्वरीय भाव से कर्मयोग बनाकर सबसे ऊँची विद्या-आत्मविद्या, ब्रह्मविद्या को भी हस्तगत कर लिया।

गुरु पर सर्वतोभाव से आत्मसमर्पण

सन् 1909 में 12 साल 10 महीने की उम्र में माता जी का विवाह हो गया। माता जी एक योग्य बहू के करने योग्य सभी काम करती थीं। माँ हररोज साधन-क्रिया नियम से करती थीं। वे दिन में गृहस्थी के सभी काम करतीं-पति की सेवा, भोजन बनाना, घर में बुहारी आदि और रात में कमरे के एक कोने में साधन करने बैठ जाती थीं। इन्हें दीक्षा के बाद 5 महीने तक योग की क्रियाएँ स्वतः होने लगीं। ये साधारण लोगों की समझ में अनोखी थीं। तरह-तरह के आसन, मुद्रा, पूजा आदि अपने-आप हो जाते थे। उस समय की बात बताते हुए माँ कहती हैं- “तब आसन-मुद्रा होते थे। खाना-पीना गुरु की इच्छा से करती थी। स्वाद-बोध नहीं होता था। यह भाव गुरु पर निर्भर रहने से आता है।

गुरु पर सर्वतोभाव (सम्पूर्णरूप) से आत्मसमर्पण कर देना चाहिए। अपने को उनके हात का खिलौना समझना चाहिए। जो कुछ होना है वह गुरु की इच्छा से अपने-आप हो जायेगा।”

यौगिक क्रियाओं से अनजान परिजनों में से कुछ का कहना था कि ‘यह भूत लीला है।’ कुछ लोग समझते थे कि ‘यह एक रोग है।’ अपनी-अपनी समझ से भोलानाथ जी को किसी झाड़-फूँकवाले या अच्छे डॉक्टर को दिखाने की सलाह देते थे। भोलानाथ जी ने लाचार होकर एक-दो झाड़-फूँकवालों को दिखाया लेकिन वे लोग माँ का भाव देख के ‘माँ-माँ’ कहते हुए इनको नमस्कार कर चलते बने।

माँ की स्वरूपनिष्ठा तथा साधना का सारसूत्र

माँ की निष्ठा ऐसी थी कि एक बार किसी संबंधी के यह पूछने पर कि “आप कौन हैं ?” माँ ने गम्भीर स्वर मेः “पूर्ण ब्रह्म नारायण।”

आनंदमयी माँ के पास रहने वालीं उनकी एक खास सेविका ने एक बार माँ से पूजन की आज्ञा ली। सेविका कहती हैं- “जिस दिन से मेरा माँ के चरणों पर फूल चढ़ाना (पूजन करना) शुरु हुआ, उस दिन से माँ ने मुझे और किसी देवता के चरणों में अंजली देने को मना कर दिया। तभी से सिर्फ इन (माँ) के चरणों को छोड़कर मैं और कहीं अंजलि नहीं देती।” यह घटना भी आनंदमयी माँ की स्वरूपनिष्ठा को दर्शाती है कि स्वयं से भिन्न कोई दूसरा तत्त्व है ही नहीं। और यह एक निष्ठावान शिष्य के लिए साधना का उत्तम मार्ग भी है कि हयात ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष को सदगुरुरूप में पाने के बाद उसके लिए फिर और किसी की पूजा बाकी नहीं रहती। गुरुवचन ही उसके लिए कानून हो जाता है, सब मंत्रों का मूल तथा सर्व सफलताओं को देने वाला हो जाता है। निश्चलदास जी महाराज ने कहा हैः

हरिहर आदिक जगत में पूज्य देव जो कोय।

सदगुरु की पूजा किये सबकी पूजा होय।। (विचारसागर वेदांत ग्रंथ)

भगवान को पाने का सबसे सीधा रास्ता

माँ से यह पूछे जाने पर कि “भगवान को पाने का सबसे सीधा रास्ता कौनसा है ?” उन्होंने बतायाः ” गुरु जो बतावें वह ही करें। गुरु के आदेश का पालन करके चलने से भगवत्प्राप्ति होगी।”

आनंदमयी माँ को गुरुप्रदत्त साधना ने आत्मपद में जगा दिया।

हे भारत की देवियो ! अपनी महिमा को पहचानो। स्वयं हरि-गुरुभक्तिमय जीवन व्यतीत करते हुए ब्रह्मज्ञानी सदगुरु के सत्संग आदि से अपनी संतानों में भी ऐसे दिव्य संस्कारों का सिंचन करो कि वे स्वयं को जानने वाले, प्रभु को पाने वाले बनें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2017, पृष्ठ संख्या 16,17 अंक 292

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *