नीच मनुष्यों का संग न करें !

नीच मनुष्यों का संग न करें !


साँईं श्री लीलाशाह जी की अमृतवाणी

जैसे धुआँ सफेद मकान को भी काला कर देता है, वैसे ही कुसंगी मनुष्य अच्छे मनुष्य को भी बिगाड़ देता है। ‘सत्संग तारता है, कुसंग डुबोता है।’ यह सच ही है। भँवरी एक कीड़े को लाकर अपने घर में बंद कर देती है। थोड़े दिनों के पश्चात कीड़ा उसके सदृश हो जाता है।

इसी प्रकार दुष्टों का संग है। उनका संग करने से मन मलिन होता है। नीच मनुष्यों के के संग को विषवत् समझें।

अशुभ विचारों का उदय न होने दें

आप ज्ञान के अंकुश से अशुभ विचारों को अपने हृदयरूपी मंदिन में आने ही न दो। यदि किसी प्रकार आपके मन में अशुभ विचार ने आकर वास किया तो बस, अपनी कुशल न समझना। इसका परिणाम यह निकलेगा कि वह आपसे अयोग्य, शैतानी कार्य करवा के आपका अपने बल से सर्वनाश कर देगा।

आपकी शुद्ध बुद्धि ही अशुभ विचार को झुकायेगी। आरम्भ से ही (अशुभ विचार को) उदय न होने दो।

अपने भीतर (मन में) काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों को बिठाकर उसमें परमात्मा को कैसे बैठा सकोगे ! मन को मंदिर बनाओ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2017, पृष्ठ संख्या 25 अंक 297

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