महापुरुषों का दृष्टिकोण

महापुरुषों का दृष्टिकोण


शरीर की सार्थकता

एक दिन श्री रमण महर्षि के एक भक्त ने उन्हें आश्रमवासियों हेतु पत्तल बनाते हुए देखा। भक्त ने महर्षि से पूछाः “आप पत्तल बनाने का यह छोटा सा काम कर रहे हैं ! क्या यह समय का अपव्यय नहीं है ?”

महर्षि बोलेः “बेटे ! ऊँचा उद्देश्य सामने रखकर उचित मार्ग से कर्म करना यह समय का अपव्यय नहीं। आप अपने प्रत्येक कार्य से उपयुक्त (योग्य) बातें सीख सकते हैं। अब पत्तल बनाने का ही उदाहरण लो। जब जोड़े हुए पत्ते भूखे व्यक्तियों के भोजन के काम आते हैं तभी उनकी उपयोगिता समझ में आती है। भोजन के बाद वे केवल फेंकने के ही काम आते हैं। उसी तरह अगर हम अपने शरीर का उपयोग उन्नत जीवन जीने के लिए और जरूरतमंदों की मदद के लिए करते हैं तो ही इस शरीर की सार्थकता है। केवल अपने लिए जीने वाला स्वार्थी मनुष्य सौ साल तक भी जिया तो भी उसका वह जीवन निरर्थक ही है। जीना, खाना और बढ़ना – इतना करने वाले भेड़-बकरियों से अधिक वह कुछ नहीं होगा।”

हरेक दाने में है ईश्वर का हाथ !

एक दिन महर्षि को रसोईघर के आसपास चावल के दाने बिखरे हुए दिखे। उसी समय वे उन दानों को चुनने लगे। महर्षि के भक्तगण उनके आसपास इकट्ठे हो गये। ईश्वर के लिए सब कुछ छोड़ने वाले ऐसे महापुरुष को इतनी एकाग्रता के साथ चावल के कुछ दाने इकट्ठे करने में मग्न देखकर भक्त को कुछ जानने की जिज्ञासा हुई।

एक भक्त ने पूछाः “भगवन् ! रसोईघर में चावल की कितनी ही बोरियाँ पड़ी हैं। आप इन थोड़े दानों के लिए इतना कष्ट क्यों उठा रहे हैं ?”

महर्षि बोलेः “आपको ये केवल चावल के कुछ दाने ही दिखते हैं पर इनके अंदर क्या है यह देखने की कोशिश करो। खेत की जुताई करने वाले और बीज बोने वाले किसान का कठोर परिश्रम, समुद्र का पानी एवं सूरज की तपन, बादल और बारिश, शीतल हवाएँ और ऊष्मायुक्त सूर्य प्रकाश, नर्म जमीन और चावल के पौधे का जीवन-चैतन्य – यह सब कुछ उस दाने में आ गया है। यह बात आपने पूर्णरूप से समझ ली तो आपको हरेक दाने में ईश्वर का हाथ दिखेगा। अतः उसे आप अपने पैरों के नीचे न रौंदें। आपको उन्हें खाना नहीं है तो पक्षियों को खिला दो।”

पूज्य बापू जी के सत्संग में आता हैः “आप जो कौर खाते हैं वह प्रत्येक कौर किसी न किसी के मुँह से बचाकर, छीना-झपटी करके आप तक लाया गया होता है। जीव-जंतुओं और पक्षियों के मुँह से छीनकर अन्न आपकी रसोई तक पहुँचाया जाता है। अतः वस्तुओं का सदुपयोग करके कर्म को कर्मयोग बना लो।”

इस प्रकार श्री रमण महर्षि, साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज, पूज्य बापू जी जैसे ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष हमें कितना उपयोगी, उद्योगी, सहयोगी और आनंदमय जीवन जीने की कला सिखा देते हैं !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2017, पृष्ठ संख्या 10 अंक 297

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