कल का इंतजार नहीं, आज का लाभ उठाओ

कल का इंतजार नहीं, आज का लाभ उठाओ


काल तीन होतें हैं – भूतकाल, भविष्यकाल और वर्तमान काल। लेकिन भूत और भविष्य जब भी आते हैं तो वर्तमान बनकर ही आते हैं इसलिए वर्तमान काल ही सर्वोत्तम है। जिसने वर्तमान ‘आज’ को सुधार लिया उसका भूत कैसा भी हो, भविष्य अवश्य सुखमय बन जाता है क्योंकि वह ‘आज’ बनकर ही आता है।

प्रसिद्ध सामाजिक विचारक जॉन रस्किन हमेशा अपनी मेज पर ‘Today’ (आज) लिखा हुआ पत्थर का टुकड़ा रखते थे। एक दिन उनके किसी मित्र ने उनसे पूछा कि “इसका अर्थ क्या है ?” तो उन्होंने कहाः “मेरे हाथ से कहीं वर्तमान यों ही न निकल जाय इसलिए मैं यह पत्थर अपने पास रखता हूँ। Today शब्द को देख के मुझे सदैव याद रहता है कि समयरूपी धन का क्षणांश भी अत्यंत मूल्यवान है। मेरा एक क्षण भी बेकार  न जाय इसलिए मैंने यह युक्ति की है।”

युक्ति भले अनोखी हो, बात बड़ी अनमोल है। क्षण-क्षण का सदुपयोग ! आप किस संस्कृति के सपूत हो पता है ? उस संस्कृति के जो कहती हैः क्षणार्धं क्षेमार्थं… हे अमृतपुत्रो ! आधा क्षण भी कल्याण के लिए पर्याप्त है। वेद भगवान भी स्नेहमय वचनों से जगा रहे हैं।

इममद्य यज्ञं नयातग्रे।

‘हे मनुष्यो ! इस जीवन यज्ञ को आज ही वर्तमान काल में ही आगे बढ़ाओ, शम-दम आदि श्रेष्ठ गुणों से जीवन यज्ञ को अलंकृत करो।’ (यजुर्वेदः 1.12)

एक क्षण भी न जाय व्यर्थ !

जैसे हर पाप का प्रायश्चित करना होता है वैसे ही समय को नष्ट करने के पाप का प्रायश्चित भी जरूरी है। इस पूर्व के प्रमाद का प्रायश्चित्त तो यही हो सकता है कि अब वर्तमान हर क्षण का सतर्क रहकर सदुपयोग करें। यदि वह नहीं किया तो उसका कुफल अवश्य ही भोगना पड़ता है और समय की बरबादी कररने वाले का ही नाश !

जैसे नदी के बहते हुए जल में एक ही बार स्नान किया जा सकता है, दूसरी बार वह जल कहाँ दूर निकल जाता है, उसी प्रकार वर्तमान का भी एक ही बार लाभ लिया जा सकता है, यदि वह भूतकाल बन गया तो उसे वापस नहीं लाया जा सकता। अतः जीवन के उच्चतम कार्य के लिए अवसर की तलाश में बैठे रहना उचित नहीं, बुद्धिमानों के लिए हर समय अवसर होता है।

जिन्होंने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के लिए विशेष महत्त्व एवं समय दिया है, संतों का सत्संग, जप-ध्यान, परोपकार किया है, मानव-जीवन के वास्तविक लक्ष्य को पाया है उनके व्यवहार में, बुद्धि में, जीवन में विलक्षण लक्षण आ जाते हैं। वे पठित हों या अपठित, दुनिया उनके सामने सिर झुकाकर अपना भाग्य बना लेती है। स्वामी रामतीर्थ जी, संत मीराबाई, परमहंस श्री योगानंद जी, भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाह जी, संत श्री आशाराम जी बापू आदि का जीवन इस बात की गवाही दे रहा है।

उठो ! जागो ! क्षण-क्षण बीता जा रहा है, मृत्यु दिनों दिन नजदीक आ रही है। अभी नहीं जागे तो कब जागोगे ? देर न करो, वर्तमान के प्रत्येक क्षण को ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों के मार्गदर्शन-अनुसार अपने आत्मकल्याण में लगा दो।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2018, पृष्ठ संख्या 12 अंक 304

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