यह दिमाग दूध से बना है, अंडे से नहीं

यह दिमाग दूध से बना है, अंडे से नहीं


आजादी से पूर्व की बात है। एक बार काँग्रेस कार्यकारिणी की एक बैठक में जिस रिपोर्ट के आधार पर एक महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पारित करना था वह नहीं मिल रही थी। सब चिंतित थे।

सदस्यों को अचानक ध्यान आया कि वह रिपोर्ट डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद पढ़ चुके हैं। जब राजेन्द्र प्रसाद जी से पूछा गया तो वे बोलेः “हाँ, मैं पढ़ चुका हूँ और आवश्यकता हो तो बोलकर लिखवा सकता हूँ।” सबने सोचा इतनी लम्बी रिपोर्ट एक बार पढ़ने के बाद कैसे लिखवायी जायेगी ?’

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जब 100 से अधिक पृष्ठ लिखवा चुके तब वह रिपोर्ट भी मिल गयी। कौतूहलवश सदस्यों ने दोनों रिपोर्टों का मिलान किया तो कहीं भी अंतर न मिला। सभी आश्चर्यचकित रह गये। पं. नेहरू ने प्रशंसाभरे स्वर में पूछाः “ऐसा आला (श्रेष्ठ) दिमाग कहाँ से पाया ?” उन्होंने सौम्य मुस्कान के साथ जवाब दियाः “यह दिमाग दूध से बना है, अंडे से नहीं।”

दुग्धाहारी बच्चे मार लेते हैं बाजी

अमेरिका के डॉक्टर वेकफील्ड ने विद्यार्थियों पर प्रयोग करके सिद्ध किया है कि मांसाहारी बच्चों से फलाहारी और उनसे भी ज्यादा दुग्धाहारी बच्चों की स्मृतिशक्ति अधिक होती है।

देशी गाय का दूध पीने से मस्तिष्क (बुद्धि) का तेजी से विकास होता है। विद्यार्थियों के शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास के लिए जरूरी पोषक तत्त्व गोदुग्ध में विद्यमान होते हैं। कम स्मृतिशक्ति वाले बच्चों को दूध पिलाया जाय तो वे बुद्धिमान बनेंगे और बुद्धिमान बच्चों को पिलाया जाय तो वे और भी स्मृतिवान, मेधावी होंगे। देशी गोदुग्ध के सेवन से बुद्धि सूक्ष्म होने के साथ स्वभाव सौम्य व शांत बनता है, मन में पवित्र विचार उपजते हैं तथा मानसिक शुद्धि में मदद मिलती है। अतः अपने बच्चों को देशी गाय का दूध अवश्य पिलायें।

कैसा रखें बच्चे का नाम ? पूज्य बापू जी

पहले के जमाने में माता-पिता को ‘मातुश्री-पिताश्री’ बोलते थे। वैसे भी ‘पिता, माता’ पवित्र शब्द हैं और उनके साथ ‘श्री’ मिल जाता है- ‘मातुश्री, पिताश्री’ कितने पवित्रता, दिव्यता लाने वाले वचन बन जाते हैं। ‘पिताश्री !’ यह बोलने में हृदय पर कैसा असर होता है आप विचारिये और ‘डैडी, मम्मी’ बोलने में….? अब अपने बच्चों को कह दो कि इन फैशनेबल शब्दों को छोड़ो, ‘पिताश्री, मातुश्री’ कहा करें।

आजकल बच्चे-बच्चियों के नाम भी कैसे रखते हैं – बबलू, टिन्नू, मिन्नू, विक्की, श्लेष्मा….। अब श्लेष्मा तो नाक से निकली हुई गंदगी को बोलते हैं। क्या बच्चों का ऐसा गंदा नाम रखा जाता है ? गार्गी, मदालसा रखो, श्रीहरि, हरिशरण, प्रभुशरण, राम, श्याम, हरिप्रसाद, शिवप्रसाद रखो। श्रीविष्णुसहस्रनाम में से कोई नाम रखो। ऐसे नाम रखो जिनसे भगवान की याद आये और बच्चों में दैवी गुण आ जायें तथा माता-पिता में उच्च विचार आ जायें। हम पाश्चात्य जगत से बहुत-बहुत प्रभावित हो गये हैं। वे तो अपने कल्चर से परेशान हैं और उनका कचरा हम ले रहे हैं। अपनी संस्कृति भूले जा रहे हैं। नहीं, नहीं…. अपनी संस्कृति अपनाओ !

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2018 पृष्ठ संख्या 23 अंक 304

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