दुर्गुणों को मिटाने में कैसे हों सफल ?

दुर्गुणों को मिटाने में कैसे हों सफल ?


एक महिला का लड़का बड़ा चंचल था। वह कहना नहीं मानता था अतः महिला क्रोधी स्वभाव की हो गयी थी। क्रोध से शरीर में जलन होती थी और आगे चलकर चर्मरोग भी हो गया। व्रत के दिन आये तो घर और आस-पड़ोस के लोग कुछ-न-कुछ वस्तु का त्याग कर रहे थे। उस महिला ने सोचा कि ‘मुझे तो क्रोध ही परेशान करता है तो मैं क्यों न इसे त्याग दूँ !”

उसने भगवान से प्रार्थना कीः ‘प्रभु ! मैं क्रोध को छोड़ती हूँ, इस कार्य में आप मुझे सहायता दें।’ फिर घर के सभी लोगों को बतायाः “मैंने क्रोध छोड़ने का व्रत लिया है।” और बच्चों से कहाः “मैं तो इसमें सावधान रहूँगी पर मेरे बच्चो ! इसमें आप सब भी मेरी सहायता करना कि ऐसे अनुचित कार्यो से बचना हो मुझे क्रोध दिलाते हों। इससे तुम्हारा भी व्रत-पालन होगा, उन्नति होगी। मेरी इतनी सहायता करोगे ने मेरे लाल !”

बच्चों ने हामी भरी और माँ के शुभ संकल्प का समर्थन करना आरम्भ किया। वह कभी-कभी सुनती थी, बच्चे अपने कमरे में बात करते थे कि ‘आओ, और कुछ करने से पहले हम अपना बिस्तर ठीक कर लें, जिससे भगवान के सामने दिये हुए अपने वचन को माँ निभा सके।’

कभी क्रोध का प्रसंग आने पर महिला जिसके कारण क्रोध आया है उस बच्चे के पास बैठती और भगवान से अपने को तथा बच्चे को क्षमा करने के लिए प्रार्थना करती। फिर बच्चों को कहतीः “तुम लोग मुझे वैसे ही क्षमा करो जैसे कि मैंने तुम्हें किया।” फिर कहती कि “अपने परस्पर क्षमा-दान के कारण भगवान ने भी हमको क्षमा कर दिया है।”

इस प्रकार अभ्यास करते हुए भगवत्कृपा से, आत्मकृपा से वह क्रोध व चर्मरोग से मुक्त हो गयी।

अपनी कोई भी कमजोरी, दुर्गुण हो तो उसे हटाने का संकल्प करें, व्रत ले लें। स्वजनों की मदद और ईश्वर का, सदगुरु का आश्रय लें तो अवश्य सफलता मिलेगी परंतु अपने दुर्गुणों को पहचानकर उन्हें दूर करने की सच्ची लगन भी होनी चाहिए। अभी चतुर्मास (19 नवम्बर 2018) तक चालू है। स्कंद पुराण (ब्राह्म खंड) में ब्रह्मा जी देवर्षि नारद जी से कहते हैं- “चतुर्मास व्रत का अनुष्ठान सभी वर्ण के लोगों के लिए महान फलदायक है। व्रत के सेवन में लगे हुए मनुष्यों द्वारा सर्वत्र भगवान का दर्शन होता है। चतुर्मास आने पर व्रत का यत्नपूर्वक पालन करे।”

अतः इस सुअवसर में स्वयं कुछ-न-कुछ व्रत लेकर तथा दूसरों को व्रत-पालन में सहायता करते हुए सभी को अपना जीवन उन्नत करना चाहिए।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 29 अंक 309

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