भक्तों की भक्ति को कैसे पुष्ट करते हैं भगवान व गुरु !

भक्तों की भक्ति को कैसे पुष्ट करते हैं भगवान व गुरु !


पूज्य बापू जी

भगवान रामानुजाचार्यजी के शिष्य थे अनंतालवार (अनंतालवान)। वे तिरुपति (आंध्र प्रदेश) में रहते थे। वहाँ तिरुमला की पहाड़ी पर भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर था। डाकू-चोर के भय से लोग सूरज उगने के बाद ही वहाँ जाते थे और शाम को आ जाते थे लेकिन रामानुजाचार्यजी ने अपने शिष्य को आदेश दियाः “आलवार ! तुम पहाड़ी पर रहकर तिरुपति भगवान (भगवान वेंकटेश्वर) की पूजा करो !”

आलवार ने वहीं छोटा-मोटा मकान बनाया और तिरुपति भगवान की पूजा करने लगे। वे और उनकी पत्नी आसपास की जमीन ठीक करते, पौधे बोते, तुलसी बोते…. ऐसा करते। एक लड़का आया, बोलाः “आलवार ! मेरे को काम पर रखोगे ?”

आलवार ने सोचा, ‘इतना सुकोमल लड़का क्या काम करेगा !” बोलेः “जाओ, तुम छोटे बच्चे हो। मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है, जाओ…. अरे जाओ न !”

उन्होंने बड़ी-बड़ी आँखें दिखायीं तो वह बच्चा चला गया।

दूसरे दिन वह बालक आलवार की पत्नी के पास आया, बोलाः “माता जी ! देखो, तुम पौधे लगाती हो न, मैं भी मदद करता हूँ। मुझे कुछ सेवा दो। मेरी सेवा जो करते हैं न, मैं उनकी सेवा करता हूँ तो मुझे अच्छा लगता है।”

बालक धीरे-धीरे छुप के मदद करने लगा। वह बाई खाना-पीना दे दे तो खा लेता और सेवा बड़ी तत्परता से करता था। एक दिन आलवार की नज़र पड़ गयी, ‘अरे, इसको मना किया था, काहे को आया सेवा करने को ?’ यह सोचकर उस लड़के को बुलाने के लिए उन्होंने एक कंकड़ उठा के उसकी और फेंका तो उसके सिर में लग गया और खून बहने लगा। वह लड़का भागा और उनकी आँखों से ओझल हो गया।

उधर मंदिर में क्या हुआ कि भगवान तिरुपति की मूर्ति से खून बहने लगा। पुजारी और भक्तों में खलबली मच गयीः ‘ओ हो ! यह क्या हो गया !…. कैसे हो गया!….’ इतने में एक बालक के अंदर भगवान ने प्रेरणा की। बालक बोलाः “आलवार को इधर बुलाओ और उसके घर में कपूर पड़ा है, वह भगवान की मूर्ति पर लगाओ तो खून बंद हो जायेगा।”

लोग दौड़-दौड़ के गये, आलवार को लाये और कपूर लाये, भगवान की मूर्ति को लगाया तो खून टपकना बंद हो गया। भक्त आलवार को अब समझने में देर न लगी कि जिस लड़के को मैंने पत्थर मारा वही तिरुपति भगवान हैं, बालक का रूप लेकर आये थे। बोलेः “हे तिरुपति बाला जी ! मैंने तुमको पहचाना नहीं, मैंने तुम्हारा अपमान किया। मुझे माफ करो, माफ करो….. ऐसा करते-करते भाव-विभोर हो गये।

भगवान बोलेः “कोई बात नहीं, रोज खिलाता है तो एक दिन मार दिया तो क्या है ! प्यार में होता रहता है। आ जाओ ! तुम मेरे, मैं तुम्हारा… ”

वे भगवान के हृदय में समा गये।

कैसी भगवान की लीला है ! भक्तों की भक्ति को कैसे पुष्ट करते हैं भगवान ! हिन्दू धर्म की महानता देखो ! भगवान की भक्ति और गुरु की कृपा के प्रभाव को देखकर तो नास्तिक भी सुधरने का सीजन हो जाता है (सुधरने की प्रेरणा मिल जाती है)।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 8, अंक 309

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