ईश्वर व गुरु के कार्य में मतभेदों को आग लगाओ

ईश्वर व गुरु के कार्य में मतभेदों को आग लगाओ


पूज्य बापू जी

अगर चित्र में संदेह होगा तो गुरुकृपा के प्रभाव का तुम पूरा फायदा नहीं उठा पाओगे। तुम्हें भले चारों तरफ से असफलता लगती हो लेकिन गुरु ने कहा कि ‘जाओ, हो जायेगा’ तो यह असफलता सफलता में बदल जायेगी। तुम्हारे हृदय से हुंकार आता है कि ‘मैं सफल हो ही जाऊँगा !’ तो भले तुम्हारे सामने बड़े-बड़े पहाड़ दिखते हों लेकिन उनमें से रास्ता निकल आयेगा। पहाड़ों को हटना पड़ेगा अगर तुम्हारे में अटूट श्रद्धा है। विघ्नों को हट जाना पड़ेगा अगर तुम्हारा निश्चय पक्का है। डगमगाहट नहीं…. ‘हम नहीं कर सकते, अनाथ हैं, हम गरीब हैं, अनपढ़ हैं, कम पढ़े हैं, अयोग्य हैं…. क्या करें ?’ अरे, तीसरी से भी कम पढ़े हो क्या ? मन-इन्द्रियों में घूमने वाले लोगों का संकल्प साधक के संकल्प के आगे क्या मायना रखता है ! ‘यह काम मुश्किल है, यह मुश्किल है….’ मुश्किल कुछ नहीं है। जगत नियंता का सामर्थ्य तुम्हारे साथ है, परमात्मा तुम्हारे साथ है। मुश्किल को मुश्किल में डाल दो कि वह आये ही नहीं तुम्हारे पास ! Nothing is impossible, everything is possible, असम्भव कुछ भी नहीं है, सब सम्भव है।

जा के मन में खटक है, वही अटक रहा। जा के मन में खटक नहीं, वा को अटक कहाँ।।

विश्वासो फलदायकः। इसलिए अपना विश्वास गलित नहीं करना चाहिए। अपने विश्वास में अश्रद्धा, अविश्वास का घुन नहीं लगाना चाहिए। ‘क्या करें, हम नहीं कर सकते, हमारे से नहीं हो सकता है…’ ‘नहीं कैसे ? गोरखनाथ जी जैसे योगियों के संकल्प से मिट्टी के पुतलों में प्राणों का संचार होकर सेना खड़ी होना यह भी तो अंतःकरण का संकल्प है ! तो तुम्हारे पास अंतःकरण और परमात्मा उतने का उतना है। नहीं कैसे हो सकता ? एक में एक मिलाने पर दुगनी नहीं ग्यारह गुनी शक्ति होती है। तीन एक मिलते हैं तो 111 हो जाता है, बल बढ़ जाता है। ऐसे ही दो-तीन-चार व्यक्ति संस्था में मजबूत होते हैं सजातीय विचार के, तो संस्था की कितनी शक्ति होती है ! देश के बिखरे-बिखरे लोग 125 करोड़ हैं लेकिन मुट्ठीभर लोग एक पार्टी के झंडे के नीचे एक सिद्धांत पर आ जाते हैं तो 125 करोड़ लोगों के अगुआ, मुखिया हो जाते हैं, हुकूमत चलाते हैं। एकदम सीधी बात है। साधक-साधक सजातीय विचार के हों, ‘यह ऐसा, वह ऐसा…..’ नहीं। भगवान के रास्ते का, ईश्वर की तरफ ले जाने वाले रास्ते का स्वयं फायदा ले के लोगों तक भी यह पहुँचाना है तो एकत्र हो गये। वे बिल्कुल नासमझ हैं जो आपसी मतभेद के कारण व्यर्थ में ही एक दूसरे की टाँग खींचकर सेवाकार्य में बाधा डालने का पाप करते हैं। कितने भी आपस में मतभेद हों लेकिन ईश्वरीय कार्य में, गुरु के कार्य में मतभेदों को आग लगाओ, आपका बल बढ़ जायेगा, शक्ति बढ़ जायेगी, समाज-सेवा की क्षमताएँ बढ़ जायेंगी। ॐ….ॐ…ॐ…

स्रोत ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2018, पृष्ठ संख्या 2, अंक 310

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