ऐसे लोग अपनी 7-7 पीढ़ीयाँ तारते हैं-पूज्य बापू जी

ऐसे लोग अपनी 7-7 पीढ़ीयाँ तारते हैं-पूज्य बापू जी


मशीन को काम दिया जाता है और इंसान को ज्ञान दिया जाता है । एक होता है ऐहिक ज्ञान, दूसरा अलौकिक ज्ञान और तीसरा ब्रह्मज्ञान । ऐहिक ज्ञान और अलौकिक ज्ञान – ये जहाँ से आते हैं वह है वास्तविक ज्ञान (ब्रह्मज्ञान) । ब्रह्मज्ञान के आराधकों को अथवा ब्रह्मज्ञान के पिपासुओं को उस वास्तविक ज्ञान का आदर करना चाहिए । उसका जितना आदर होगा उतना ही उनकी बुद्धि उधर के लिए समय लगायेगी और उतना ही उनकी इन्द्रियों और मन पर बुद्धि का अधिकार जमता जायेगा । ज्यों-ज्यों इन्द्रियों और मन पर बुद्धि का अधिकार जमता जायेगा त्यों-त्यों बुद्धि ‘ऋत’ आत्मा में विश्रांति पाती जायेगी । ‘ऋत’ माने सत्य और सत्य में विश्रांति पाते ही बुद्धि को सत्यस्वरूप परब्रह्म-परमात्मा का साक्षात्कार होगा । तब वह बुद्धि ऋतम्भरा प्रज्ञा कही जाती है । गीता में भगवान ने कहाः ‘तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ।’ उसकी प्रज्ञा प्रतिष्ठित हो गयी ।

इसलिए अन्नदान, भूमिदान, कन्यादान, गोदान, गौरस-दान से भी ज्यादा मंगलकारी ऋषियों के सत्संग का दान करने वालों को तो धन्यवाद, उनके माता-पिताओं को भी धन्यवाद और उनको जो उत्साहित करें उनको भी धन्यवाद ।

भगवान कहते हैं-

प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते ।

प्रसाद से सारे दुःख मिटते हैं ।

धनभागी हैं वे लोग, जो ‘ऋषि प्रसाद’, ‘ऋषि दर्शन’ बाँटते हैं-बँटवाते हैं ! उनके माता-पिता को भी धन्यवाद है ! ऐसे लोग अपनी 7-7 पीढ़ीयाँ तारते हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2019, पृष्ठ संख्या 16,17 अंक 317

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *