तो यहीं, अभी जीवन्मुक्ति का विलक्षण सुख !

तो यहीं, अभी जीवन्मुक्ति का विलक्षण सुख !


जीवन्मुक्ति माने नकद माल ! उधार माल नहीं । जीवन्मुक्ति माने तुरंत आनंद ! जीवन्मुक्ति माने गुलामी से छूटना । चीजों की, आदमियों की, लोक-लोकांतर की, जन्म-मरण की गुलामी से छूटना । यह जो दिन रात आपका अहं बदलता रहता है इसी का नाम पुनर्जन्म है । हाय-हाय ! आज मैंने पाप किया तो मैं पापात्मा हो गया, पुण्य किया तो मैं पुण्यात्मा हो गया ।… आज सुख आया तो सुखी हो गया, दुःख आया तो दुःखी हो गया । ….. इसी का नाम पुनर्जन्म है । आप पुनर्जन्म के चक्कर में पड़ गये हैं । सवेरे आपने एक कुत्ते को डंडा मारा तो आप पापात्मा हो गये । उसके बाद कौए को रोटी दे दी और चींटी के बिल के सामने आटा डाल दिया तो आप पुण्यात्मा हो गये । हैं ? आपकी पत्नी ने मुस्कराकर देख लिया तो आप सुखी हो गये । आपके बच्चे ने आपकी बात नहीं मानी तो आप दुःखी हो गये । यह जो आपका अहं दिन भर में पचहत्तर मरतबा बदलता है इसी का नाम पुनर्जन्म है । पापात्मा होना एक जन्म है, पुण्यात्मा होना दूसरा जन्म है, सुखी होना तीसरा जन्म है, दुःखी होना चौथा जन्म है ।

इस अहं की एक निष्ठा होती है । जब वह पराकाष्ठा पर पहुँच जाती है तब अपने स्वरूप को नहीं बदलती है । इस बदलते हुए अहं को स्वरूपनिष्ठ करो । ‘मैं असंग-अद्वय सच्चिदानंदघन परब्रह्म-परमात्मा हूँ’ – यह स्वरूपनिष्ठा है । यह अहं के पर्दे को फाड़कर अद्वितीयता के आवरण का भंग है । आप देखेंगे कि उसमें आप न कभी पुण्यात्मा होंगे, न कभी पापात्मा होंगे, न कभी दुःखी होंगे, न कभी सुखी होंगे, न कभी पराधीन होंगे और न कभी आवागमनी होंगे । हाँ ! आपका यह जीवन ही परमानंद और परम ज्ञान से भर जायेगा । आप यहीं, अभी यह जीवन्मुक्ति का विलक्षण सुख अनुभव करेंगे ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2019, पृष्ठ संख्या 23 अंक 317

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