नादानों की नादानी और संत की करुणा

नादानों की नादानी और संत की करुणा


भक्त कोकिल साँईं वृंदावन में निवास करते थे । एक बार वे अयोध्या जा रहे थे तो एक सज्जन ने उन्हें बताया कि “कानपुर में मेरे एक मित्र रहते हैं । आप उनके घर अवश्य जाना । वे कानपुर के आगे आपको जहाँ भी जाना होगा वहाँ की हर व्यवस्था कर देंगे ।” इतना कहकर उन्होंने मित्र के नाम एक पत्र लिख के दिया । कोकिल जी वहाँ गये और उस व्यक्ति को पत्र दिया । उस व्यक्ति का स्वभाव जरा बिगड़ गया था । पत्र पढ़ते ही वह आग बरसाते हुए बोलाः “जान न पहचान, हमारे मित्र बन गये ! जाओ-जाओ ! मैं कोई बंदोबस्त नहीं करता । मेरे पास तुम्हारे बैठने के लिए भी कोई जगह नहीं है ।”

इतना सुनकर भी कोकिल जी बड़े सहज और शांत भाव से उसके घर के सामने जो चबूतरा था, उस पर बैठ गये और अपने साथियों एवं सेवकों से सत्संग-भगवच्चर्चा करने लगे ।

आधे घंटे के बाद उन्होंने एक सेवक से कहाः “जाओ, उनके यहाँ से एक गिलास पानी माँग लाओ ।”

सेवक बोलाः “महाराज ! उस व्यक्ति ने आपका इतना अपमान किया फिर भई आप उसी के घर से जल लाने को भेजते हैं !”

“तुम मेरी आज्ञा मानकर जाओ और पानी ले आओ ।” सेवक पानी ले आया ।

अन्य सेवकों ने पूछाः “महाराज ! आपने ऐसा क्यों किया ?”

उन्होंने कहाः “देखो भाई ! हम उनके यहाँ अतिथिरूप से आये । उन्होंने न हमें बैठाया, न खिलाया, न मीठी वाणी ही बोले । इससे उनके अनिष्ट की आशंका है । इसलिए हमने उनके यहाँ से पानी मँगवाया । पूज्य का अनादर और अपूज्य की पूजा होने से अनिष्ट अवश्यम्भावी है ।”

शास्त्र कहते हैं-

अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूजनीयो न पूज्यते ।

त्रीणि तत्र भविष्यन्ति दारिद्रयं मरणं भयम् ।।

‘अपूजनीय व्यक्तियों का जहाँ आदर, सम्मान, पूजा होती है और पूजनीय व्यक्तियों का जहाँ पूजन नहीं किया जाता, वहाँ दरिद्रता, मृत्यु और भय – ये तीनों संकट अवश्य आते हैं ।’ (शिव पुराण, रूद्र संहिता, सती खंडः 35.9)

अज्ञानी लोगों को भले अपने मनुष्य जीवन की कद्र न हो, अज्ञानवश वे भले उसका ऐसे सर्वनाश करने से हिचकिचाते न हों लेकिन संत तो जानते हैं कि इस जीवन को इस तरह नष्ट नहीं किया जा सकता । प्राणिमात्र के सच्चे हितैषी शास्त्र, संत एवं मनीषीगण ऐसे लोगों को सावधान करते है कि संतों और भक्तों की अवहेलना करने वाले हो नादानो ! हो सके तो संतों-महापुरुषों के दैवी कार्यों में सहभागी होकर अपना भाग्य बना लो और उनके दिखाये मार्ग का अनुसरण करके अपना कल्याण कर लो लेकिन यह न कर सको तो संत-निंदा या संत-अवहेलना करके कम से कम दरिद्रता, मृत्यु और भय के भागी तो मत बनो । याद रखो, संत तो शायद माफ कर दें किंतु प्रकृति देवी संतों-भक्तों की निंदा या अनादर करने वालों को जल्दी माफ नहीं करती ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2019, पृष्ठ संख्या 7 अंक 321

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