वह क्या है जो भगवान भी नहीं सह पाते ?

वह क्या है जो भगवान भी नहीं सह पाते ?


कार्तिक मास (व्रतः 13 अक्तूबर 2019 से 12 नवम्बर 2019 तक)

वाल्मीकि रामायण में कथा आती है । सतयुग में ब्रह्मवादी गौतम मुनि हो गये । उनके शिष्य का नाम था सौदास (सोमदत, सुदास) ब्राह्मण । एक दिन सौदास शिव आराधना में लगा हुआ था । उसी समय वहाँ गुरु गौतम मुनि आ पहुँचे परंतु सौदास ने अभिमान के कारण उन्हें उठकर प्रणाम तक नहीं किया । फिर भी क्षमासागर गुरु शिष्य के बर्ताव से रुष्ट नहीं हुए बल्कि उन्हे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि मेरा शिष्य शास्त्रोक्त कर्मों का अनुष्ठान कर रहा है । किन्तु भगवान शिवजी सदगुरु की अवहेलना को सह न सके । सदगुरु का अपमान बहुत बड़ा पाप है अतः शिवजी ने सौदास को राक्षस-योनि में जाने का शाप दे दिया ।

सौदास ने हाथ जोड़कर कहाः “गुरुदेव ! मैंने जो अपराध किया है वह क्षमा कीजिये ।”

गौतम ऋषिः “वत्स ! तुम भगवान की अमृतमयी कथा को भक्तिभाव से आदरपूर्वक श्रवण करो, वह समस्त पापों का नाश करने वाली है । ऐसा करने से यह शाप केवल बारह वर्षों तक ही रहेगा ।”

शाप के प्रभाव से सौदास भयानक राक्षस होकर निर्जन वन में भटकने लगा और सदा भूख प्यास से पीड़ित तथा क्रोध के वशीभूत रहने लगा ।

एक बार वह घूमता-घामता नर्मदा जी के तट पर पहुँचा । उसी समय वहाँ गर्ग मुनि भगवान के नामों का गान करते हुए पधारे ।

मुनि को आते देख राक्षस बोल उठाः “मुझे भोजन प्राप्त हो गया ।” वह मुनि की ओर बढ़ा परंतु उनके द्वारा उच्चारित होने वाले भगवन्नामों को सुन के दूर ही खड़ा रहा । जब वह महर्षि को मारने में असमर्थ हुआ तो बोलाः “महाभाग ! आपके पास जो भगवन्नामरूपी कवच है वही राक्षसों के महान भय से आपकी रक्षा करता है । आपके द्वारा किये गये भगवन्नाम-स्मरण मात्र से मुझ जैसे राक्षस को भी परम शांति मिली ।”

सदगुरु की अवहेलना के फलस्वरूप भगवान शिवजी द्वारा शाप मिलना, गुरु जी द्वारा शाप से छूटने का उपाय बताया जाना आदि सब बातें राक्षस ने मुनि को बतायीं और उनसे विनती कीः “मुनिश्रेष्ठ ! आप मुझे भगवत्कथा सुनाकर, सत्संगामृत पिला के मेरा उद्धार कीजिये ।”

गर्ग मुनि उस राक्षस के प्रति दया से द्रवित हो उठे और उसे रामायण की कथा सुनायी । उसके प्रभाव से उसका राक्षसत्व दूर हो गया । वह देवताओं के समान सुंदर, तेजस्वी और कांतिमान हो गया तथा भगवद्धाम को प्राप्त हुआ ।

(कार्तिक मास में रामायण के श्रवण की विशेष महिमा बतायी गयी है । रामायण की कथा उसके आध्यात्मिक रहस्य के साथ सुनने से ही उसके श्रवण का पूर्ण फल प्राप्त होता है अतः पूज्य बापू जी के रामायण एवं योगवासिष्ठ महारामायण पर हुए सत्संगों का अवश्य लाभ लें ।)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2019, पृष्ठ संख्या 10 अंक 321

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