परिप्रश्नेन

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प्रश्नः मन अमनी भाव को कैसे प्राप्त होता है ?

पूज्य बापू जीः नमक की पुतली समुद्र को जाँचने जाये तो गायब होगी की रहेगी ? गायब हो जायेगी । ऐसे ही मन भगवान में जाते-जाते ब्रह्ममय हो जाता है । जैसे नमक की पुतली समुद्र को खोजे तो समुद्रमय हो जाती है, ऐसे ही मन शांत होते-होते, भगवान को खोजते-खोजते भगवन्मय हो जाता है । फिर अपने पुराने स्वभाव और भगवत्स्वभाव से जीता रहता है ।

देखो, सब मन में आता है लेकिन मन जब गुरु की प्रसादी में, गुरुकृपा में, भगवान में जाता है तो फिर मन अमनी भाव को प्राप्त होता है । जैसे लोहा पारस को छुआ दिया और फिर लोहे की आकृति तो रहेगी लेकिन उसको जंग नहीं लगता । ऐसे फिर उसका मन अमनी भाव को प्राप्त हो जाता है, ब्रह्मभाव को प्राप्त हो जाता है । ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर…. फिर उसके द्वारा समाज का सचमुच में भला होता है ।

प्रश्नः सच्ची भलाई कैसे हो ?

पूज्य श्रीः सच्चा भला तो आत्मसाक्षात्कारी पुरुषों द्वारा, भगवत्प्राप्त महापुरुषों द्वारा ही हो सकता है । दूसरा कर ही नहीं सकता सच्चा भला । दूसरे लोग तो काल्पनिक भला करेंगे । जिनको सत्यस्वरूप ईश्वर मिले हैं वे ही सचमुच में हमारा सच्चा भला कर सकते हैं । ‘जगत की भलाई, जगत की भलाई….’ कितनी ही भलाई करो, काल्पनिक भलाई करोगे । अपनी भलाई का स्वार्थ भूलने के लिए जगत की भलाई करो लेकिन भलाई करते-करते भलाई करने वाला ‘मैं कौन हूँ ?’ इसको खोजते-खोजते अपने ‘मैं कौन हूँ ?’ इसको खोजते-खोजते अपने ‘मैं को ईश्वर में डुबोये तो फिर जगत की भलाई असली होगी । नहीं तो वाहवाही के लिए तो कई लोग करते हैं । सब समाज-सुधारक, समाजसेवक, आगेवान सब जगत का भला करने लगे हैं लेकिन उन बेचारों का अपना भला हुआ कि नहीं, जरा देखो ! सब दूसरों को सुधारने का ठेका ले लेते हैं । अपने को तो सुधारो ! अपने मन को भगवान के सुख में डुबाओ फिर करो सुधार । और जो भी सेवा करो तो भगवान की प्रीति के लिए करो तो फिर मन भगवान में लगेगा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2020, पृष्ठ संख्या 34 अंक 327

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