ईश्वरप्राप्ति के लिए जरूरी है महापुरुषसंश्रय
‘महापुरुषसंश्रय’ का अर्थ है अभिमान छोड़कर सत्पुरुष की शरणागति। अपने बल, शरीर का सौंदर्य, धन, जाति, विद्या, बुद्धि, पद के सारे अभिमान छोड़कर आचार्य की शरण लेनी पड़ती है। आचार्याद्धैव विद्या विदिता साधिष्ठं प्रापतीति… (छांदोग्य उपनिषदः 4.9.3) आचार्य से जानी हुई विद्या ही प्रतिष्ठित होती है। तत्त्वज्ञान प्राप्त करने की यही विधि है। तद्विज्ञानार्थ स …