115 ऋषि प्रसादः जुलाईः 2002

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

श्रीकृष्ण और सुदामा


  कंस-वध के बाद श्री कृष्ण तथा बलराम गुरुकुल में निवास करने की इच्छा से काश्यपगोत्री सान्दीपनी मुनि के पास गये, जो अवन्तीपुर (उज्जैन) में रहते थे। दोनों भाई विधिपूर्वक गुरु जी के पास रहने लगे। उस समय वे बड़े ही सुसंयत ढंग से रहते व अपनी चेष्टाओं को सर्वथा नियंत्रित रखे हुए थे। गुरु …

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योगीराज तैलंगस्वामी के वचनामृत


  ‘गुरु’ शब्द का अर्थ है – ‘ग’ शब्द से गतिदाता, ‘र’ शब्द से सिद्धिदाता और ‘उ’ शब्द से कर्त्ता, यानी जो गति-मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं, उन्हें गुरु कहा जाता है, इसीलिए ईश्वर और गुरु में प्रभेद नहीं है। ऐसे गुरु को कभी मनुष्यवत् नहीं समझना चाहिए। अगर गुरु पास में हों तो किसी …

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समय और साधन का सदुपयोग कैसे ?


  परम सुहृद परमात्मा ने असीम करुणा करके हम लोगों को जो विवेक, बुद्धि और ज्ञान आदि दिये हैं, उनका उचित उपयोग करके हमें विचार करना चाहिए कि हमारा समय किस कार्य में बीत रहा है। परमात्मा ने हमको जो कुछ भी दिया है, क्या हम उन सबका सदुपयोग कर रहे हैं ? यदि नहीं, …

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