046 ऋषि प्रसादः अक्तूबर 1996

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

किसके साथ कैसा व्यवहार ?


पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से आपको व्यवहार काल में अगर भक्ति में सफल होना है तो तीन बातें समझ लोः 1 अपने साथ पुरुषवत् व्यवहार करो । जैसे पुरुष का हृदय अनुशासनवाला, विवेकवाला होता है, ऐसे अपने प्रति तटस्थ व्यवहार करो । कहीं गलती हो गयी तो अपने मन को अनुशासित करो । 2 …

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शरीर की अमूल्य निधिः आँख


नगरी नगरस्येव रथस्येव रथी यथा। स्वशरीरस्य मेधावी कृत्येष्ववहितो भवत्।। (चरक संहिता) जैसे नगरपति नगर के योगक्षेम और वाहन चालक वाहन की सुरक्षा और सही राह पर चलाने के प्रति सदैव सतर्क रहता है वैसे ही मेधावी व्यक्ति अपने शरीररूपी नगर और जीवन की यात्रा कराने वाले वाहन की देखरेख और सुरक्षा करने तथा इसे सही …

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काम-क्रोध से बचो – पूज्य पाद संत श्री आशारामजी बापू


अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न कियाः अथ केन प्रयुक्तोઽयं पापंच चरति पूरूषः। अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः।। ʹहे कृष्ण ! तो फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात् लगाये हुए की भाँति किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है ?ʹ (गीताः3.36) भगवान श्रीकृष्ण ने कहाः काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः। महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्।। …

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