089 ऋषि प्रसादः मई 2000

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

सब दोषों का मूलः प्रज्ञापराध


संत श्री आसारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से प्रज्ञापराधो मूलं सर्वदोषाणाम्… सभी दोषों का मूल है प्रज्ञा का अपराध। इस संसार में जितने भी दुःख हैं वे सब बेवकूफी के कारण ही उत्पन्न होते हैं। जहाँ बेवकूफी है वहाँ दुःख है। जहाँ समझ है वहाँ सुख है। जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ दु-ख …

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वाणी ऐसी बोलिये….


  संत श्री आसाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से परद्रव्येष्वभिध्यानं मनसानिष्टचिन्तनम्। वितथाभिनिवेशश्च त्रिविधं कर्म मानसम्।। पारूषष्यमनृतं चैव पैशुन्यं चापि सर्वशः। असंबद्ध प्रलापश्च वाङमयं साच्चतुर्विधम्।। अदत्तानामुपादानं हिंसा चैवाविधानतः। परदारोपसेवा च शारीरं त्रिविधं स्मृतम्।। (मनुस्मृतिः 12.5,6,7) मनुस्मृति में मनु महाराज कहते हैं कि मानव को सदैव दस दोषों से बचना चाहिए। दस दोषों में तीन मन के, …

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