097 ऋषि प्रसादः जनवरी 2001

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

साधना में सत्संग की आवश्यकता


संत श्री आसारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से जप, तप, व्रत, उपवास, ध्यान, भजन, योग आदि साधन अगर सत्संग के बिना किये जायें तो उनमें रस नहीं आता। वे तो साधनमात्र हैं। सत्संग के बिना वे व्यक्तित्व के सिंगार बन जाते हैं। जब तक ब्रह्मवेत्ता महापुरुष का जीवंत सान्निध्य इन साधनों को सुहावना नहीं बनाता, तब …

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महासंकल्प और वर्तमान संकल्प


संत श्री आसारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनषज्जते। सर्वसंकल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते।। ʹजिस काल में न तो इन्द्रियों के भोगों में और न कर्मों में ही आसक्त होता है उस काल में सर्व संकल्पों का त्यागी पुरुष योगारूढ़ कहा जाता है।ʹ (श्रीमद् भगवद् गीताः 6-4) इस श्लोक के द्वारा भगवान स्वयं आपने भगवद-अनुभव …

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