103 ऋषि प्रसादः जुलाई 2001

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

निष्काम कर्म की महिमा


संत श्री आशाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः। स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः।। ‘जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी था योगी है केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला …

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दिल्ली की प्रसिद्ध कुतुब मीनार का सच….


हजार वर्ष से भी अधिक समय तक विदेशियों के अधीन रहने के कारण भारत के इतिहास में अनेकानेक सफेद झूठ घुसेड़ दिये गये हैं तथा वास्तविकता को जानबूझकर दबा दिया गया है। लम्बे समय से सरकारी मान्यता तथा संरक्षण में पुष्ट होने के कारण इन झूठी कथाओं पर सत्यता की  मोहर लग चुकी है। संत …

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एतत्सर्वं गुरुर्भक्त्या…..


संत श्री आशाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से हम लोगों के जीवन में दो तरह के रोग होते हैं- बहिरंग और अन्तरंग। बहिरंग रोगों की चिकित्सा तो डॉक्टर लोग करते ही हैं और वे इतने दुःखदायी भी नहीं होते हैं जितने कि अन्तरंग रोग होते हैं। हमारे अन्तरंग रोग हैं काम, क्रोध, लोभ और मोह। …

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