112 ऋषि प्रसादः अप्रैल 2002

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

झूठ बोलने की आदत


एक आदमी को झूठ बोलने की आदत थी परन्तु उसे अपना उद्धार करने की भी बड़ी चिंता थी। अतः वह एक महात्मा के पास गया और बोलाः “महाराज ! मैंने मंत्रदीक्षा ली है, मंत्रजप भी करता हूँ लेकिन मुझे झूठ बोलने की आदत है। मैं झूठ बोलना नहीं छोड़ सकता। महाराज ! आप बोलें तो …

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ज्ञानेन्द्रियों के आहार में सावधानी


सत्संग हम जो भोजन लें वह ऐसा सात्विक और पवित्र होना चाहिए कि उसको लेने के बाद हमारा मन निर्मल हो जाय। ऐसा भोजन नहीं करना चाहिए जिससे आलस्य आये या तुरन्त नींद आ जाय। भोजन के बाद शरीर में उत्तेजना उत्पन्न हो जाय – ऐसा भोजन भी नहीं करना चाहिए। भोजन केवल मुँह से …

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ऐतरेय ऋषि की ज्ञाननिष्ठा


संत श्री आसाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से इतरा माता के पुत्र बालक ऐतरेय को पूर्वजन्म में जो गुरुमंत्र मिला था, उसका वह बाल्यकाल से ही जप करता था। वह न तो किसी की बात सुनता था, न स्वयं कुछ बोलता था। न अन्य बालकों की तरह खेलता ही था और न ही अध्ययन करता …

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