114 ऋषि प्रसादः जून 2002

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

जैसा खाओ अन्न….


बासमती चावल बेचने वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से साँठ-गाँठ हो गयी। सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल मिलने लगा। सेठ को हुआ कि इतना पाप हो रहा है तो कुछ धर्म-कर्म भी करना चाहिए। एक दिन उसने बासमती चावल की खीर बनवायी और किसी साधु बाबा को आमंत्रित कर भोजन प्रसाद लेने …

Read More ..

जल-पान विचार


तृप्ति, संतोष व उत्साह की उत्पत्ति, अन्न के पाचन, रसादि धातुओं के रूपान्तरण और सम्पूर्ण शरीर में रक्त के यथायोग्य परिभ्रमण के लिए जल तथा अन्य पेय पदार्थों की आवश्यकता होती है। सभी पेय पदार्थों में पानी सर्वश्रेष्ठ है। इसे जीवन कहा गया है। शारीरिक बल, आरोग्य और पुष्टि की वृद्धि में जल सहायक होता …

Read More ..

कर्मयोग की सिद्धता


संत श्री आसाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसंछिन्नसंशयम्। आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनंजय।। ‘हे धनंजय ! जिसने कर्मयोग की विधि से समस्त कर्मों को परमात्मा में अर्पण कर दिया है और जिसने विवेक के द्वारा समस्त संशयों का नाश कर दिया है, ऐसे वश में किये हुए अन्तःकरण …

Read More ..