224 ऋषि प्रसादः अगस्त 2011

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

अपनी समझ बढ़ाओ – पूज्य बापू जी


यह अलौकिक अर्थात् अति अदभुत त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है परंतु जो पुरुष केवल मुझको ही निरंतर भजते हैं, वे इस माया को उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात् इस संसार से तर जाते हैं।’ दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया। मामेव ये प्रपद्यन्ते मामायमेतां तरन्ति ते।। (गीताः 7.14) हे अर्जुन ! मुझ अंतर्यामी आत्मदेव …

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संसार मुसाफिरखाना


भगवत्पाद स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज यह दुनिया सराय है। सराय में हर चीज से काम निकाला जाता है। वह किसी यात्री की निजी सम्पत्ति नहीं है। प्रत्येक यात्री जैसे सराय में थोड़े समय के लिए सुख लेकर तत्पश्चात् अपने-अपने देश को जाता है, वैसे ही हम जो धन, माल, परिवार देखते हैं, वह सब थोड़े …

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मनःस्थिति का परिमार्जन


पूज्य बापू जी की विवेकसम्पन्न अमृतवाणी स्वामी श्री अखण्डानंद जी महाराज का एक सत्संगी था। उसने बताया कि मुझे पुस्तक पढ़ने का बड़ा शौक था। मैं डॉक्टर बनने के लिए पुस्तकें पढ़ता था। एक दिन मैं ‘रोग के लक्षण एवं उसका इलाज’ पढ़ रहा था। पढ़ते-पढ़ते मुझे लगा कि इसमे रोग के जो भी लक्षण …

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