224 ऋषि प्रसादः अगस्त 2011

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

अमूल्य औषधि


भगवन्नाम की महिमा का वर्णन करते हुए संत विनोबाजी भावे कहते हैं- “मेरी तो यह धारणा है कि सभी रोगों और कष्टों की अचूक दवा ईश्वर में श्रद्धा रखकर भक्तिभाव से उपासना में तल्लीन रहना ही है। यदि आसपास भगवद्भक्ति का वातावरण रहे, भगवान के भक्तों द्वारा भजन होता रहे, तब कुछ पूछना ही नहीं …

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यह तो गुरु का अधिकार है !


ब्रह्मनिष्ठ पूज्य बापू जी की परम हितकारी अमृतवाणी एक बड़ा भारी पण्डित था, वामन पंडित। वह दिग्विजय की मशाल लेकर घूमा। जो उससे शास्त्रार्थ करे, उसको परास्त कर देता। चलते-चलते थकान के कारण एक वृक्ष के नीचे बैठा। संध्या का समय था। उस वृक्ष पर एक ब्रह्मराक्षस रहता था। दूसरा ब्रह्मराक्षस बैठने को आया तो …

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खुशी का मूल किसमें ? – पूज्य बापू जी


शरणानंद जी महाराज भिक्षा के लिए किसी द्वार पर गये तो उस घर के लोगों को उन्होंने बड़ा खुश देखा। महाराज ने पूछाः “अरे ! किसी बात की खुशी है बेटे-बेटियाँ ?” “महाराज ! क्या बतायें, आज तो बहुत मजा आ रहा है। बहुत खुशी हो रही है।” शरणानंद जीः “अरे भाई ! कुछ तो …

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