228 ऋषि प्रसादः अक्तूबर 2011

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

अपने भक्त के कारणे राम तजउ निज रूप


(पूज्य बापू जी की मधुमय अमृतवाणी) मैं तो उन लोगों को धनभागी मानता हूँ जो भगवान के भक्त की सेवा करते हैं, संत का सत्संग सुनते हैं । महाराष्ट्र में परली बैजनाथ है । वहाँ एक भक्त रहते थे, जिनका नाम था जगन्मित्र । गाँव वालों ने उन्हें थोड़ी जमीन दी थी । उसी में …

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सुख और यश में विशेष सावधान ! पूज्य बापू जी


सुख और दुःख, अनुकूलता और प्रतिकूलता प्रकृति व प्रारब्धवेग से आते है । फिर अंदर सुखाकार-दुःखाकार वृत्ति पैदा होती है । अनजान लोग उस  वृत्ति से जुड़कर ‘मैं सुखी हूँ, मैं दुःखी हूँ’ ऐसा मान लेते हैं । अपने द्रष्टा स्वभाव को नहीं जानते । सुख आये तो बहुतों के हित में लगाना चाहिए, इससे …

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भारतीय संस्कृति का स्वाभिमान


(पं. मदनमोहन मालवीय जयंतीः 25 दिसम्बर 2011) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से संस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय जी हिन्दू धर्म व संस्कृति के अनन्य पुजारी थे । उन्होंने अपना सारा जीवन भारत माता की सेवा में अर्पित कर दिया था । वे जितने उदार, विनम्र, निभिमानी, परदुःखकातर एवं मृदु थे उतने ही संयमी, दृढ़, स्वाभिमानी व अविचल …

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