234 ऋषि प्रसादः जून 2012

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

महिमावंत दृष्टि – पूज्य बापू जी


ऋषि कहते हैं- ʹगुरुर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः। जो ब्रह्मा की नाईं हमारे हृदय में उच्च संस्कार भरते हैं, विष्णु की नाईं उनका पोषण करते हैं और शिवजी की नाईं हमारे कुसंस्कारों एवं जीवभाव का नाश करते हैं, वे हमारे गुरु हैं।ʹ फिर भी ऋषियों को पूर्ण संतोष नहीं हुआ, अतः उन्होंने आगे कहाः ʹगुरुर्साक्षात् परब्रह्म …

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लाभकारी मूली


ताजी व कोमल मूली त्रिदोषशामक, जठराग्निवर्धक व उत्तम पाचक है। गर्मियों में इसका सेवन लाभदायी है। इसका कंद, पत्ते, बीज सभी औषधीय गुणों से संपन्न हैं। ताजी व कोमल मूली ही खानी चाहिए। पुरानी, सख्त व मोटी मूली त्रिदोषप्रकोपक, भारी एवं रोगकारक होती है। इसके 100 ग्राम पत्तों में 340 मि.ग्रा, कैल्शियम, 110 मि.ग्रा. फास्फोरस …

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कैसा करूणावान हृदय


पूज्य बापू जी पावन अमृतवाणी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र ऋभु मुनि जन्मजात ज्ञातज्ञेय थे, फिर भी वैदिक मर्यादा का पालन करने के लिए अपने बड़े भाई सनत्सुजात से दीक्षित हो गये एवं अपने आत्मानंद में परितृप्त रहने लगे। ऋभु मुनि ऐसे विलक्षण परमहंस कोटि के साधु हुए कि उनके शरीर पर कौपीनमात्र था। उऩकी …

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