आत्मा ब्रह्म बनता नहीं, स्वयं ब्रह्म ही है
ब्रह्मज्ञान से ग्रंथि (अज्ञान ग्रंथि) और उसके मूल – दोनों का नाश हो जाता है। आत्मा में आत्मा के अज्ञान से बुद्धि, मन, इन्द्रियाँ, विषय इनके संयोग-वियोग, सुख-दुःख सब प्रतीत होते हैं। परंतु सम्पूर्ण प्रतीति वहीं दिखती है जहाँ यह नहीं है। अनंत में सांत (अंतयुक्त), चेतन में जड़, सत् में असत्, अनन्य में अन्य …