293 मई 2017 ऋषि प्रसाद

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

ऊँचे-में-ऊँचा है गुरु तत्त्व का प्रसाद ! – पूज्य बापू जी


कोई सोचता है कि ‘मनपसंद व्यञ्जन खाऊँगा तब सुखी होऊँगा,’ कोई बोलता है, ‘धन इकट्ठा करूँगा तब सुखी होऊँगा’, कोई सोचता है कि ‘सत्ता मिलेगी तब सुखी होऊँगा’ लेकिन आद्य शंकराचार्य जी ‘श्री गुर्वष्टकम्’ में कहते हैं- शरीरं सुरूपं तथा वा कलत्रं यशश्चारू चित्रं धनं मेरूतुल्यम्। मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं …

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शिक्षाप्रद है हनुमान जी का लंका-प्रवेश


हनुमान जी जब सीता जी की खोज में लंका जा रहे थे तो देवताओं ने उनकी परीक्षा करने हेतु सुरसा नामक सर्पों की माता को भेजा। सूक्ष्म बुद्धि के धनी हनुमान जी तुरंत समझ गये कि ‘यह स्वयं मेरा  मार्ग रोकने नहीं आयी है अपितु देवताओं द्वारा भेजी गयी है।’ उन्होंने कहाः ”हे माता ! …

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संसार असार है, सत्य तत्त्व ही सार है


भोगास्तुङ्गगतरङ्गभङ्गतरलाः प्राणाः क्षणध्वंसिन- स्तोकान्येव दिनानि यौवनसुखं स्फूर्तिः प्रियेष्वस्थिरा। तत्संसारमसारमेव निखिलं बुद्ध्वा बुधा बोधका लोकानुग्रहपेशलेन मनसा यत्नः समाधीयताम्।। ‘सांसारिक वस्तुओं के भोग से उत्पन्न सुख ऊँची उठने वाली लहरों के भंग के समान चंचल अर्थात् अस्थिर है। प्राण भी क्षण में नाश पाने वाले हैं। प्रियतम या प्रियतमा से संबंध रखने वाली यौवन की आनंद-स्फूर्ति भी …

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