Tag Archives: Ganesh Chaturthi

शास्त्रों की बाते १००% सत्य


एक बार गणपतिजी अपने मौजिले स्वभाव से आ रहे थे | वह दिन था चौथ का | चंद्रमा ने उन्हें देखा | चंद्र को अपने रूप,लावण्य, सौंदर्य का अहंकार था | उसने गणपतिजी ला नजाक उड़ाते हुये कहा : “ क्या रूप बनाया है | लंबा पेट है, हाथी का सिर है …” आदि कह के व्यंग कसा तो गणपतिजी ने देखा की दंड के बिना इसका अहं नहीं जायेगा |

गणपतिजी बोले: “ जा, तू किसीको मुँह दिखने के लायक नहीं रहेगा |”
फिर तो चंद्रमा उगे नहीं | देवता चिंतित हुये की पृथ्वी को सींचनेवाला पूरा विभाग गायब! अब औषधियाँ पुष्ट कैसी होगी, जगत का व्यवहार कैसे चलेगा ?”

ब्रम्हाजी ने कहा: “चंद्रमा की उच्छृंखलता के कारण गणपतिजी नाराज हो गये है|”

गणपतिजी प्रसन्न हो इसलिये अर्चना-पूजा की गयी | गणपतिजी जब थोड़े सौम्य हुये तब चंद्रमा मुँह दिखाने के काबिल हुआ | चंद्रमा ने गणपतिजी भगवान की स्त्रोत्र-पाठ द्वारा स्तुति की | तब गणपतिजी ने कहा: “ वर्ष के और दिन तो तुम मुँह दिखाने के काबिल रहोंगे लेकिन भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चौथ के दिन तुमने मजाक किया था तो इस दिन अगर तुमको कोई देखेंगा तो जैसे तुम मेरा मजाक उडाकर मेरे पर कलंक लगा रहे थे, ऐसे ही तुम्हारे दर्शन करनेवाले पर वर्ष भर में कोई भारी कलंक लगेगा ताकि लोगों को पता चले की

रूप दिसी मगरूर न थीउ, एदो हसन ते नाज न कर |

रूप और सौंदर्य का अहंकार मत करो | देवगणों का स्वामी, इन्द्रियों का स्वामी आत्मदेव है | तू मेरे आत्मा में रमण करनेवाले पुरुष के दोष देखकर मजाक उडाता है | तू अपने बाहर के सौंदर्य को देखता है तो बाहर का सौंदर्य जिस सच्चे सौंदर्य से आता है  उस आत्म-परमात्म देव मुझको तो तू जानता नहीं है | नारायण-रूप में है और प्राणी-रूप में भी वही है | हे चंद्र! तेरा ही असली स्वरुप वही है, तू बाहर के सौंदर्य का अहंकार मत कर |”

भगवान श्रीकृष्ण जैसे ने चौथ का चाँद देखा तो उनपर स्वमन्तक मणि चराने का कलंक लगा था | इतना भी नहीं की बलराम ने भी कलंक लगा दिया था, हालोंकी भगवान श्रीकृष्ण ने मणि चुरायी नहीं थी |
जो लोग बोलते है की ‘वह कथा हम नहि मानते , शास्र-वास्त्र हम नहीं मानते |’ तो आजमा के देखो भैया ! भाद्रपद शुक्ल चौथ के चंद्रमा के दर्शन करके देख, फिर देख, कथा-सत्संग को नही मानता तो समजा जायेगा, प्रतिष्ठा को धुल में मिला दे ऐसा कलंक लगेगा वर्ष भर में |

आप सावधान हो जाना | ‘नहीं देखना है, नहीं देखना है, नहीं देखना है ‘ ऐसा भी दिख जाता है | ऐसा कई बार हुआ हम लोगों से | एक बार लंदन में दिख गया, फिर हम हिंदुस्तान आये तो हमारे साथ न जाने क्या-क्या चला | फिर एक-दो साल बीते | फिर दिख गया तो क्या-क्या चला | अगले साल नहीं देखा तो उस साल ऐसे कुछ खास गडबड नहीं हुई |फिर इस साल देखेंगे तो ऐसा कुछ होगा…. लेकिन हम तो आदि हो गये, हमारे कंधे मजबूत हो गये |

एक बार घाटवाले बाबा ने मुझसे पूछा: “भाई! चौथ का चंद्रमा देखने से कलंक लगता है – ऐसा लिखा है |”

मैंने कहाँ : “हाँ |”.
“श्रीकृष्ण को भी लगा था ?”
“हाँ |”
“हमने तो देख लिया |”
“अपने देखा तो आपको कुछ नहीं हुआ|”
“मेरे को तो कुछ नहीं हुआ |”
“कितना समय हो गया |”
“वर्ष पूरा हो गया | अगले साल देखा चंद्र को तो कुछ नहीं हुआ |”
“कुछ नहीं तो शास्त्र झूठा है ?”
“नहीं, मेरे को तो कुछ नहीं हुआ पर लोगों ने हरिद्वार की दीवारों पर लिख दिया घाटवाला बाबा रंडीबाज है |” लोगों ने लिख दिया एयर लोगों ने पढ़ा, मेरे को तो कुछ नहीं हुआ|
अब ब्रम्हज्ञानी संत को तो क्या होगा बाबा !

यदि भूल से भो चौथ का चंद्रमा दिख जाय तो ‘श्रीमदभागवत’ के १०वे स्कंध, ५६-५७वे अध्याय में दी गयी ‘स्यमंतक मणि की चोरी’ की कथा का आदरपूर्वक श्रवण करना | भाद्रपद शुक्ल तृतीया या पंचमी के चंद्रमा के दर्शन कर लेना, इससे चौथ को दर्शन हो गये हाँ तो उसका ज्यादा खतरा नही होगा |

भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी का  चंद्रास्त समय आश्रम के कैलेंडर में देखें  | इस समय तक चंद्र-दर्शन न हो इसकी सावधानी रखे |

हे साधक ! तुरीयावस्था में जाग


(संत श्री आशारामजी बापू के सत्संग प्रवचन से)

देव-असुरों, शैव-शाक्तों, सौर्य और वैष्णवों द्वारा पूजित, विद्या के आरंभ में, विवाह में, शुभ कार्यों में, जप-तप-ध्यानादि में सर्वप्रथम जिनकी पूजा होती है, जो गणों के अधिपति है, इन्द्रियों के स्वामी है, सवके कारण है उन गणपतिजी का पर्व है ‘गणेश चतुर्थी’|

जाग्रतावस्था आयी और गयी, स्वप्नावस्था आई और गयी, प्रगाढ़ निद्रा (सुषुप्ति) आयी और गयी – इन तीनों अवस्थाओं को स्वप्न जानकर हे साधक ! तू चतुर्थी अर्थात तुरीयावस्था (ब्राम्ही स्थिति) में जाग |

तुरीयावस्था तक पहुँचने के लिए तेरे रास्ते में अनेक विघ्न-बाधाएँ आयेगी | तू तब चतुर्थी के देव, विघ्नहर्ता गणपतिजी को सहायता हेतु पुकारना और उनके दण्ड का स्मरण करते हुए अपने आत्मबल से विघ्न-बाधाओं को दूर भगा देना |

बाधाएँ कब बाँध सकी हे पथ पे चलनेवालों को |
विपदाएँ कब रोक सकी है आगे बध्नेवालों की ||


हे साधक ! तू लम्बोदर का चिंतन करना और उनकी तरह बड़ा उदर रखना अर्थात छोटी-छोटी बाते को तू अपने पेट में समां लेना, भूल जाना | बारंबार उनका चिंतन कर अपना समय नहीं बिघड़ना |

बीत गयी सो बीत गयी, तक़दीर का शिकवा कौन करे |
जो तीर कमान से निकल गया, उस तीर का पीछा कौन करे ||

तुझसे जो भूल हो गयी हो उसका निरिक्षण करना, उसे सुधार लेना | दूसरों की गलती याद करके उसका दिल मत खराब करना | तू अब ऐसा दिव्य चिंतन करना की भूल का चिंतन तुच्छ हो जाय | तू गणपतिजी का स्मरण से अपना जीवन संयमी बनाना | भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण, भगवान गणपति, मीराबाई, शबरी आदि ने तीनों अवस्थाओं को पार कर अपनी चौथी अवस्था-निज स्वरुप में प्रवेश किया और आज के दिन वे तुम्हे ‘चतुर्थी ’की याद दिला रहे है कि ‘हे साधक ! तू अपनी चौथी अवस्था में जागने के लिए आया है | चौथ का चाँद की तरह कलंक लगाये ऐसे संसार के व्यवहार में तू नहीं भटकना | आज की संध्या के चन्द्र को तू निहारना नहीं |

आज की चतुर्थी तुन्हें यह संदेश देती है कि संसार में थोडा प्रकाश तो दिखता है परंतु इसमें चन्द्रमा कि नाई कलंक है |यदि तुम इस प्रकाश में बह गये, बाहर के व्यव्हार में बह गये तो तुम्हे कलंक लग जायेगा | धन-पद-प्रतिष्ठा के बल से तुम अपने को बड़ा बनाने जाओंगे तो तुम्हे कलंक लगेगा, परंतु यदि तुम चौथी अवस्था में पहुँच गये तो बेडा पार हो जायेगा |
जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने गोपी-गोपियों को दृष्टि से निहारकर अपनी संप्रेषण-शक्ति से अधरामृत का पान कराया ऐसे ही मोरया बाप्पा (गणपतिजी ) भी तुम्हे अधरामृत पान करा दे ऐसे समर्थ है ! वे आपको अभय देनेवाले, उनके दुःख और  दरिद्रता को दूर करनेवाले तथा  संतों एवं गुरुओ के द्वारा तत्वज्ञान करानेवाले है |

वे चतुर्थी के देव संतों का हर कार्य करने में तत्पर रहते है । वेदव्यासजी महाराज लोकमांगल्य हेतु ध्यानस्थ ‘महाभारत’ कि रचना कर रहे थे और गणपतिजी लगातार उनके बोले श्लोक लिख रहे थे | गणपतिजी की  कलम  कभी रुकी नहीं और सहयोग करने का कर्तुत्व-अकर्तुत्व में जरा भी नहीं आया क्योंकि कर्तुत्व-अकर्तुत्व जीव में  होता है | जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति ये अवस्थाएँ जीव की है और तुरीयावस्था गणपति-तत्व की है | भगवान गणपति अपने प्यारों को तुरीय में पहुँचाना चाहते इसलिए उन्होंने चतुर्थी तिथि पसंद की है |

गिरिजा संत समागम सम न लाभ कछु आन |
बिनु हरि कृपा न होई सो गावहिं बेड पुरान ||

(श्रीरामचरित.उ.कां.:१२५ ख)

भगवान सदाशिव ने तुलसीदासजी से कहलवाया है कि संत-सान्निध्य के सामान जगत में और कोई लाभ नहीं | साहब या शेठ की कृपा हो तो धन बढाता है, सुविधा बढती है; मित्रों की कृपा हो तो वाहवाही बढती है परंतु भगवान की कृपा तो संत-समागम होता है | जब सच्चे संतों का समागम प्राप्त हो जाय तो तुम पक्का समझना कि भगवान पूर्णरूप से तुम पर प्रसन्न है, गणपति बाप्पा तुम पर प्रसन्न है तभी तुम सत्संग में आ सके हो |

सत्संग जीवन की अनिवार्य माँग है | जो सत्संग नहीं करता वह कुसंग जरूर करता है | जो आत्मरस नहीं लेता, रामरस की तरफ नहीं बढता बह काम के गड्डे में जरुर गिरता है | तुम रामरस की तरफ कदम बढ़ाते रहना, सत्संग की तरफ अहोंभाव से बढते रहना, सत्कार्यों में उत्साह से लगे रहना फिर तुम्हारी वह चतुर्थी दूर नही| जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति जिसकी सत्ता से आती और जाती है, पसार होती है फिर भी जो द्रष्टा ज्यों-का-त्यों है, वह तुम्हारा परमात्मास्वरुप प्रकट हो जायेगा | फिर एक ही साथ भगवान सदाशिव, भगवान गणपति, माँ उमा, भगवान ब्रम्हा, भगवान विष्णु और ब्रम्हांड के सारे पूजनीय-वंदनीय देवों के आत्मा तुम हो जाओंगे और सब देव तुम्हारा आत्मा जो जायेंगे | उनमें और तुममें भेद मिटकर एक अखंड तत्व, अखंड सत्य का साक्षात्कार हो जायेगा और यही तो चतुर्थी का लक्ष्य है |

विघ्नविनाशक भगवान श्री गणपतिजी


(गणेश चतुर्थी:)

जिस प्रकार अधिकांश वैदिक मंत्रों के आरम्भ में ‘ॐ’ लगाना आवश्यक माना गया है, वेदपाठ के आरम्भ में ‘हरि ॐ’ का उच्चारण अनिवार्य माना जाता है, उसी प्रकार प्रत्येक शुभ अवसर पर श्री गणपतिजी का पूजन अनिवार्य है । उपनयन, विवाह आदि सम्पूर्ण मांगलिक कार्यों के आरम्भ में जो श्री गणपतिजी का पूजन  करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है ।

गणेश चतुर्थी के दिन गणेश उपासना का विशेष महत्त्व है । इस दिन गणेशजी की प्रसन्नता के लिए इस ‘गणेश गायत्री’ मंत्र का जप करना चाहिए :

महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ।

श्रीगणेशजी का अन्य मंत्र, जो समस्त कामनापूर्ति करनेवाला एवं सर्व सिद्धिप्रद है :

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गणेश्वराय ब्रह्मस्वरूपाय चारवे ।

सर्वसिद्धिप्रदेशाय विघ्नेशाय नमो नमः ।।

(ब्रह्मवैवर्त पुराण, गणपति खंड : 13.34)

गणेशजी बुद्धि के देवता हैं । विद्यार्थियों को प्रतिदिन अपना अध्ययन-कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व भगवान गणपति, माँ सरस्वती एवं सद्गुरुदेव का स्मरण करना चाहिए । इससे बुद्धि शुद्ध और निर्मल होती है ।

विघ्न निवारण हेतु

गणेश चतुर्थी के दिन ‘ॐ गं गणपतये नमः ।’ का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्नों का निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढ़ती है ।

भूलकर भी न करें…

गणेश चतुर्थी के दिन चाँद का दर्शन करने से कलंक लगता है ।  चन्द्रास्त का समय आश्रम के कैलेंडर में देखें   । इस समय तक चन्द्रदर्शन निषिद्ध है ।

भूल से चन्द्रमा दिख जाने पर ‘श्रीमद् भागवत’ के 10वें स्कंध के 56-57वें अध्याय में दी गयी ‘स्यमंतक मणि की चोरी’ की कथा का आदरपूर्वक पठन-श्रवण करना चाहिए । भाद्रपद शुक्ल तृतीया या पंचमी के चन्द्रमा का दर्शन करना चाहिए, इससे चौथ को दर्शन हो गये हों तो उसका ज्यादा दुष्प्रभाव नहीं होगा ।

निम्न मंत्र का 21, 54 या 108 बार जप करके पवित्र किया हुआ जल पीने से कलंक का प्रभाव कम होता है । मंत्र इस प्रकार है :

सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः ।

सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ।।

‘सुंदर, सलोने कुमार ! इस मणि के लिए सिंह ने प्रसेन को मारा है और जाम्बवान ने उस सिंह का संहार किया है, अतः तुम रोओ मत । अब इस स्यमंतक मणि पर तुम्हारा ही अधिकार है ।’

(ब्रह्मवैवर्त पुराण, अध्याय : 78)