आओ खेलें ज्ञान की होली


आओ खेलें ज्ञान की होली, राग-द्वेष भुलायें,

समता-स्नेह बढा‌ के दिल में, प्रेम का रंग लगायें


नहीं उछालें कीचड-मिट्टी, ना अपशब्द बुलायें

रंग पलाश से होली खेलें, ना गंदे रंग लगायें


नहीं पियें हम भाँग और मदिरा, पंचामृत बनायें

जिससे रहे मन में प्रसन्नता, ऐसा प्रसाद खायें


ठाकुर जी को भोग लगा के, अतिथि को भी खिलायें

आयी बसंत में प्यारी होली, आनंद-आनंद छाये


गुरूद्वार की न्यारी होली, परमानंद लुटाये

जैसे कहते सदगुरु प्यारे, वैसी होली मनायें


गुरुज्ञान में गोते लगाकर, निज़ को सहज बनायें

गुरुआज्ञा में शीश झुकाकर, गुरुसेवा अपनायें

गुरु रंग में जीवन रँगा के, आत्मज्ञान को पायें