युग-प्रवर्तक
संत श्री
आशारामजी
महाराज
आत्मारामी, श्रोत्रिय, ब्रह्मनिष्ठ, योगिराज प्रातःस्मरणीय परम पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने आज भारत ही नहीं वरन् समस्त विश्व को अपनी अमृतवाणी से परितृप्त कर दिया है। बालक आसुमल का जन्म अखण्ड भारत के सिंध प्रांत के बेराणी गाँव में 17 अप्रैल 1941 को हुआ था। आपके पिता थाऊमलजी सिरुमलानी नगरसेठ थे तथा माता महँगीबा धर्मपरायणा और सरल स्वभाव की थीं। बाल्यकाल में ही आपश्री के मुखमंडल पर झलकते ब्रह्मतेज को देखकर, आपके कुलगुरु ने भविष्यवाणी की थी कि ʹआगे चलकर यह बालक एक महान संत बनेगा, लोगों का उद्धार करेगा।ʹ इस भविष्यवाणी की सत्यता आज किसी से छिपी नहीं है। ये ही आसुमल ब्रह्मनिष्ठा को प्राप्त कर आज बड़े-बड़े दार्शनिकों, वैज्ञानिकों, नेताओं तथा अफसरों से लेकर शिक्षित-अशिक्षित साधक-साधिकाओं तक सभी को अध्यात्म-ज्ञान की शिक्षा दे रहे हैं, भटके हुए मानव-समुदाय को सही दिशा प्रदान कर रहे हैं।
आपश्री का बाल्यकाल एवं युवावस्था विवेक-वैराग्य की पराकाष्ठा से संपन्न थे, जिससे आप अल्पायु में ही गृहत्याग कर प्रभुमिलन की प्यास में जंगलों में बीहड़ों में घूमते-तड़पते रहे। नैनीताल के जंगल में स्वामी श्री लीलाशाहजी आपको सदगुरुरूप में प्राप्त हुए। मात्र 23 वर्ष की अल्पायु में आपने पूर्णत्व का साक्षात्कार कर लिया। सदगुरु ने कहाः "आज से लोग तुम्हें ʹसंत आसारामजीʹ के रूप में जानेंगे। जो आत्मिक दिव्यता तुमने पायी है उसे जन जन में वितरित करो।"
गुरुआज्ञा शिरोधार्य करके समाधि-सुख छोड़कर आप अशांति की भीषण आग से तप्त लोगों में शांति का संचार करने हेतु समाज के बीच आ गये। सन् 1972 में आप श्री साबरमती के पावन तट पर स्थित मोटेरा पधारे, जहाँ दिन में भी मारपीट, लूटपाट, डकैती व असामाजिक कार्य होते थे। वही मोटेरा गाँव आज लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं का पावन तीर्थधाम, शांतिधाम बन चुका है। इस साबर-तट स्थित आश्रमरूपी विशाल वटवृक्ष की 370 से भी अधिक शाखाएँ आज भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में फैल चुकी हैं और इन आश्रमों में सभी वर्णों, जातियों और संप्रदायों के लोग देश-विदेश से आकर आत्मानंद में डुबकी लगाते हैं तथा हृदय में परमेश्वरीय शांति का प्रसाद पाकर अपने को धन्य-धन्य अनुभव करते हैं। अध्यात्म में सभी मार्गों का समन्वय करके पूज्यश्री अपने शिष्यों के सर्वांगीण विकास का मार्ग सुगम करते हैं। भक्तियोग, ज्ञानयोग, निष्काम कर्मयोग और कुण्डलिनी योग से साधक-शिष्यों का, जिज्ञासुओं का आध्यात्मिक मार्ग सरल कर देते हैं। निष्काम कर्मयोग हेतु आश्रम द्वारा स्थापित 1325 से भी अधिक सेवा समितियाँ आश्रम की सेवाओं को समाज के कोने-कोने तक पहुँचाने में जुटी रहती हैं।
ʹसभी का मंगलʹ का उदघोष पूज्य बापूजी को हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी व अन्य धर्मावलम्बी भी अपने हृदय-स्थल में बसाये हुए हैं व अपने को पूज्य श्री के शिष्य कहलाने में गर्व महसूस करते हैं। भारत की राष्ट्रीय एकता-अखण्डता व शांति के प्रबल समर्थक पूज्यश्री ने राष्ट्र के कल्याणार्थ अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है।
मंत्रदीक्षा
में मिलने
वाले
आशीर्वाद
मंत्र के लाभ
पूज्य
बापू जी
मंत्रदीक्षा
के समय
गुरुमंत्र या
सारस्वत्य
मंत्र के साथ
एक आशीर्वाद
मंत्र भी देते
हैं। रोज इस
मंत्र की एक
माला जप करने
से हार्ट अटैक
आदि हृदय के
विकारों से
रक्षा होती
है। दिमाग के
रोगों में भी
लाभ होता है।
यदि यकृत
(लीवर) खराब हो
गया हो तो
इसके नियमित जप
से ठीक हो
जाता है। इससे
पाचन की
गड़बड़ियाँ
भी ठीक हो
जाती हैं और
भूख खुलकर
लगती है। यदि पीलिया
(जाँडिस) हो तो
इस मंत्र का 50
माला जब करने
से वह दूर हो
जाता है। कुछ दिन
तक रोज दस
माला जप करे
तो पति-पत्नी
के झगड़े शांत
होते हैं।
रक्तचाप (हाई
बी.पी., लो.बी.पी.) में
भी इस
आशीर्वाद
मंत्र के जप
से फायदा होता
है
पावन उदगार
सुख-शांति
व स्वास्थ्य
का प्रसाद
बाँटने के लिए
ही बापू जी का
अवतरण हुआ है।
"मेरे
अत्यन्त
प्रिय मित्र
श्री आसाराम
जी बापू से
मैं पूर्वकाल
से हृदयपूर्वक
परिचित हूँ।
संसार में
सुखी रहने के
लिए समस्त
जनता को
शारीरिक
स्वास्थ्य और
मानसिक शांति
दोनों आवश्यक
हैं।
सुख-शांति व
स्वास्थ्य का
प्रसाद
बाँटने के लिए
ही इन संत का,
महापुरुष का
अवतरण हुआ है।
आज के
संतों-महापुरुषों
में प्रमुख
मेरे प्रिय
मित्र बापूजी
हमारे भारत
देश के,
हिन्दू जनता
के, आम जनता के,
विश्ववासियों
के उद्धार के
लिए रात-दिन
घूम-घूमकर
सत्संग, भजन,
कीर्तन आदि
द्वारा सभी
विषयों पर
मार्गदर्शन
दे रहें हैं।
अभी में गले
में थोड़ी
तकलीफ है तो
उन्होंने
तुरन्त मुझे
दवा बताई। इस
प्रकार सबके
स्वास्थ्य और
मानसिक शांति,
दोनों के लिए
उनका जीवन
समर्पित है।
वे धनभागी हैं
जो लोगों को
बापूजी के
सत्संग व
सान्निध्य
में लाने का
दैवी कार्य
करते हैं।"
काँची
कामकोटि पीठ
के
शंकराचार्य
जगदगुरु श्री
जयेन्द्र
सरस्वती जी
महाराज।
हर व्यक्ति
जो निराश है
उसे आसाराम जी
की ज़रूरत है
"श्रद्धेय-वंदनीय
जिनके दर्शन
से कोटि-कोटि
जनों के आत्मा
को शांति मिली
है व हृदय
उन्नत हुआ है,
ऐसे महामनीषि
संत श्री
आसारामजी के
दर्शन करके आज
मैं कृतार्थ
हुआ। जिस
महापुरुष ने,
जिस महामानव
ने, जिस दिव्य
चेतना से
संपन्न पुरुष
ने इस धरा पर
धर्म,
संस्कृति, अध्यात्म
और भारत की
उदात्त
परंपराओं को
पूरी ऊर्जा
(शक्ति) से
स्थापित किया
है, उस
महापुरुष के
मैं दर्शन न
करूँ ऐसा तो
हो ही नहीं
सकता। इसलिए
मैं स्वयं
यहाँ आकर
अपने-आपको
धन्य और कृतार्थ
महसूस कर रहा
हूँ। मेरे
प्रति इनका जो
स्नेह है यह
तो मुझ पर
इनका आशीर्वाद
है और बड़ों
का स्नेह तो
हमेशा रहता ही
है छोटों के
प्रति। यहाँ
पर मैं
आशीर्वाद
लेने के लिए
आया हूँ।
मैं
समझता हूँ कि
जीवन में लगभग
हर व्यक्ति निराश
है और उसको
आसारामजी की
ज़रूरत है।
देश यदि ऊँचा
उठेगा, समृद्ध
बनेगा, विकसित
होगा तो अपनी
प्राचीन
परंपराओं, नैतिक
मूल्यों और
आदर्शों से ही
होगा और वह
आदर्शों,
नैतिक
मूल्यों,
प्राचीन
सभ्यता,
धर्म-दर्शन और
संस्कृति का
जो जागरण है,
वह आशाओ के राम
बनने से ही
होगा। इसलिए
श्रद्धेय,
वंदनीय महाराज
श्री 'आसाराम
जी' की
सारी दुनिया
को जरूरत है।
बापू जी के
चरणों में
प्रार्थना
करते हुए कि
आप दिशा देते
रहना, राह
दिखाते रहना,
हम भी आपके
पीछे-पीछे
चलते रहेंगे
और एक दिन
मंजिल मिलेगी
ही, पुनः आपके
चरणों में
वंदन!"
प्रसिद्ध
योगाचार्य
श्री रामदेव
जी महाराज।
बापू
नित्य नवीन,
नित्य
वर्धनीय आनंदस्वरूप
हैं
"परम
पूज्य बापू के
दर्शन करके
मैं पहले भी आ
चुका हूँ।
दर्शन करके 'दिने-दिने
नवं-नवं
प्रतिक्षण
वर्धनाम्' अर्थात
बापू नित्य
नवीन, नित्य
वर्धनीय आनंदस्वरूप
हैं, ऐसा
अनुभव हो रहा
है और यह
स्वाभाविक ही
है। पूज्य
बापू जी को
प्रणाम!"
सुप्रसिद्ध
कथाकार संत
श्री मोरारी
बापू।
पुण्य
संचय व ईश्वर
की कृपा का
फलः
ब्रह्मज्ञान
का दिव्य
सत्संग
"ईश्वर
की कृपा होती
है तो मनुष्य
जन्म मिलता है।
ईश्वर की
अतिशय कृपा
होती है तो
मुमुक्षत्व
का उदय होता
है परन्तु जब
अपने
पूर्वजन्मों के
पुण्य इकट्ठे
होते हैं और
ईश्वर की परम
कृपा होती है
तब ऐसा
ब्रह्मज्ञान
का दिव्य
सत्संग सुनने
को मिलता है,
जैसा
पूज्यपाद बापूजी
के श्रीमुख से
आपको यहाँ
सुनने को मिल
रहा है।"
प्रसिद्ध
कथाकार
सुश्री
कनकेश्वरी
देवी।
बापू जी का
सान्निध्य
गंगा के पावन
प्रवाह जैसा
है
"कल-कल
करती इस
भागीरथी की
धवल धारा के
किनारे पर
पूज्य बापू जी
के सान्निध्य
में बैठकर मैं
बड़ा ही
आह्लादित व
प्रमुदित हूँ...
आनंदित हूँ...
रोमाँचित
हूँ...
गंगा
भारत की
सुषुम्ना
नाड़ी है।
गंगा भारत की
संजीवनी है।
श्री
विष्णुजी के
चरणों से निकलकर
ब्रह्माजी के
कमण्डलु व
जटाधर के माथे
पर शोभायमान
गंगा
त्रैयोगसिद्धिकारक
है। विष्णुजी
के चरणों से
निकली गंगा
भक्तियोग की
प्रतीति
कराती है और
शिवजी के
मस्तक पर
स्थित गंगा
ज्ञानयोग की
उच्चतर
भूमिका पर
आरूढ़ होने की
खबर देती है।
मुझे ऐसा लग
रहा है कि आज
बापूजी के
प्रवचनों को
सुनकर मैं
गंगा में गोता
लगा रहा हूँ
क्योंकि उनका
प्रवचन, उनका
सान्निध्य
गंगा के पावन
प्रवाह जैसा
है।
वे
अलमस्त फकीर
हैं। वे बड़े
सरल और सहज
हैं। वे जितने
ही ऊपर से सरल
हैं, उतने ही
अंतर में गूढ़
हैं। उनमें
हिमालय जैसी
उच्चता,
पवित्रता,
श्रेष्ठता है
और सागरतल
जैसी
गम्भीरता है। वे
राष्ट्र की
अमूल्य धरोहर
हैं। उन्हें
देखकर ऋषि-परम्परा
का बोध होता
है। गौतम,
कणाद, जैमिनि, कपिल,
दादू, मीरा,
कबीर, रैदास
आदि सब
कभी-कभी उनमें
दिखते हैं।
जूना
अखाड़ा
पीठाधीश्वर स्वामी
अवधेशानंदजी
महाराज,
हरिद्वार।
बापू
जी हमारी आँख
में ज्ञान का
अंजन लगा रहे हैं
"संत महात्माओं के दर्शन तभी होते हैं, उनका सान्निध्य तभी मिलता है जब कोई पुण्य जागृत होता है। जरूर यह मेरे पुण्यों का ही फल है जो बापू जी के दर्शन हुए। देश भर की परिक्रमा करते हुए जन-जन के मन में अच्छे संस्कार जगाना, यह एक ऐसा परम राष्ट्रीय कर्तव्य है, जिसने हमारे देश को आज तक जीवित रखा है और इसके बल पर हम उज्जवल भविष्य का सपना देख रहे हैं, उस सपने को साकार करने की शक्ति-भक्ति एकत्र कर रहे हैं। पूज्य बापू जी सारे देश में भ्रमण करके जागरण का शंखनाद कर रहे हैं, संस्कार दे रहे हैं तथा अच्छे और बुरे में भेद करना सिखा रहे हैं। हमारी जो प्राचीन धरोहर थी और जिसे हम लगभग भूलने का पाप कर बैठे थे, बापू जी हमारी आँखों में ज्ञान का अंजन लगाकर उसको फिर से हमारे सामने रख रहे हैं। बापू जी का प्रवचन सुनकर बड़ा बल मिलता है। पुण्य-प्रवचन सुनते ही निराशा भी आज दूर हो गयी, बड़ा आनंद आया। मैं बापूजी के चरणों में विनम्र होकर नमन करता हूँ। उनका आशीर्वाद हमें मिलता रहे, उनके आशीर्वाद से प्रेरणा पाकर, बल प्राप्त करके हम कर्तव्य के पथ पर निरंतर चलते हुए परम वैभव को प्राप्त करें, यही प्रभु से प्रार्थना है।"
श्री
अटल बिहारी
वाजपेयी, तत्कालीन
प्रधानमंत्री
पू. बापूः
राष्ट्रसुख
के संवर्धक
"पूज्य
बापू द्वारा
दिया जाने
वाला नैतिकता का
संदेश देश के
कोने-कोने में
जितना अधिक
प्रसारित
होगा, जितना
अधिक बढ़ेगा,
उतनी ही मात्रा
में
राष्ट्रसुख
का संवर्धन
होगा, राष्ट्र
की प्रगति
होगी। जीवन के
हर क्षेत्र
में इस प्रकार
के संदेश की
जरूरत है।"
(श्री
लालकृष्ण
आडवाणी,
उपप्रधानमंत्री
एवं केन्द्रीय
गृहमंत्री,
भारत सरकार।)
सराहनीय
प्रयासों की
सफलता के लिए
बधाई
"मुझे
यह जानकर बड़ी
प्रसन्नता
हुई है कि 'संत
श्री
आसारामजी
आश्रम न्यास' जन-जन
में शांति,
अहिंसा और भ्रातृत्व
का संदेश
पहुँचाने के
लिए देश भर
में सत्संग का
आयोजन कर रहा
है। उसके
सराहनीय प्रयासों
की सफलता के
लिए मैं बधाई
देता हूँ।"
श्री
के. आर.
नारायणन्,
तत्कालीन
राष्ट्रपति, भारत
गणतंत्र, नई
दिल्ली।
आप समाज की
सर्वांगीण
उन्नति कर रहे
हैं
"आज
के भागदौड़
भरे स्पर्धात्मक
युग में
लुप्तप्राय-सी
हो रही आत्मिक
शांति का
आपश्री
मानवमात्र को
सहज में अनुभव
करा रहे हैं।
आप
आध्यात्मिक
ज्ञान द्वारा
समाज की
सर्वांगीण
उन्नति कर रहे
हैं व उसमें
धार्मिक एवं
नैतिक आस्था
को सुदृढ़ कर
रहे हैं।
श्री
कपिल सिब्बल,
विज्ञान व
प्रौद्योगिकी
तथा महासागर
विकास
राज्यमंत्री,
भारत सरकार।
आपने
दिव्य ज्ञान
का
प्रकाशपुंज
प्रस्फुटित
किया है
"आध्यात्मिक
चेतना जागृत
और विकसित
करने हेतु
भारतीय एवं
वैश्विक समाज
में दिव्य
ज्ञान का जो
प्रकाशपुंज
आपने
प्रस्फुटित
किया है, संपूर्ण
मानवता उससे
आलोकित है। मूढ़ता,
जड़ता,
द्वंद्व और
त्रितापों से
ग्रस्त इस
समाज में
व्याप्त
अनास्था तथा
नास्तिकता का
तिमिर समाप्त
कर आस्था,
संयम, संतोष
और समाधान का
जो आलोक आपने
बिखेरा है,
संपूर्ण समाज
उसके लिए
कृतज्ञ है।"
श्री
कमलनाथ,
वाणिज्य एवं
उद्योग
मंत्री, भारत
सरकार।
आपके
परमार्थ
कार्य में
म.प्र. के
लोगों को भी
जुड़ने का
अवसर मिले
"
मैं ईश्वर से
यही
प्रार्थना
करता हूँ कि
वे हमें ऐसा
मौका दें कि
हम गुरु की
वाणी को सुनकर
अपने-आपको
सुधार सकें।
गुरु जी के
श्री चरणों में
सादर समर्पित
होते हुए
मध्यप्रदेश
की जनता की ओर
से प्रार्थना करता
हूँ कि
गुरुदेव! आप
इस
मध्यप्रदेश
में बार-बार
पधारें और हम
लोगों को
आशीर्वाद
देते रहें
ताकि परमार्थ
के उस कार्य
में, जो आपने
पूरे देश में
ही नहीं, देश
के बाहर भी
फैलाया है, मध्यप्रदेश
के लोगों को
भी जुड़ने का
ज्यादा-से-ज्यादा
अवसर मिले।"
(श्री
दिग्विजय
सिंह,
तत्कालीन
मुख्यमंत्री,
मध्यप्रदेश।)
"जीवन
की दौड़-धूप
से क्या मिलता
है यह हम सब जानते
हैं। फिर भी
भौतिकवादी
संसार में हम
उसे छोड़ नहीं
पाते। संत
श्री
आसारामजी
जैसे दिव्य
शक्तिसम्पन्न
संत पधारें और
हमको आध्यात्मिक
शांति का पान
कराकर जीवन की
अंधी दौड़ से
छुड़ायें, ऐसे
प्रसंग
कभी-कभी ही
प्राप्त होते
हैं। ये
पूजनीय संतश्री
संसार में
रहते हुए भी
पूर्णतः
विश्वकल्याण
के लिए चिन्तन
करते हैं,
कार्य करते
हैं। लोगों को
आनंदपूर्वक
जीवन व्यतीत
करने की कलाएँ
और योगसाधना
की युक्तियाँ
बताते हैं।
आज
उनके समक्ष
थोड़ी ही देर
बैठने से एवं
सत्संग सुनने
से हमलोग और
सब भूल गये
हैं तथा भीतर शांति
व आनंद का
अनुभव कर रहे
हैं। ऐसे
संतों के
दरबार में
पहुँचना
पुण्योदय का
फल है। उन्हे
सुनकर हमको
लगता है कि
प्रतिदिन
हमें ऐसे सत्संग
के लिए कुछ
समय अवश्य
निकालना चाहिए।
पूज्य बापू जी
जैसे महान संत
व महापुरुष के
सामने मैं
अधिक क्या
कहूँ?
चाहे कुछ भी
कहूँ, वह सब
सूर्य के
सामने चिराग दिखाने
जैसा है।"
श्री
मोतीलाल वोरा,
अखिल भारतीय
काँग्रेस कोषाध्यक्ष,
पूर्व
मुख्यमंत्री
(म.प्र.), पूर्व राज्यपाल
(उ.प्र.)।
संतों के
मार्गदर्शन
में देश चलेगा
तो आबाद होगा
"पूज्य
बापू जी में
कर्मयोग,
भक्तियोग तथा
ज्ञानयोग
तीनों का ही
समावेश है। आप
आज करोड़ों-करोड़ों
भक्तों का
मार्गदर्शन
कर रहे हैं।
संतों के
मार्गदर्शन
में देश चलेगा
तो आबाद होगा।
मैं तो
बड़े-बड़े
नेताओं से यही
कहता हूँ कि
आप संतों का
आशीर्वाद
जरूर लो। इनके
चरणों में अगर
रहेंगे तो
सत्ता रहेगी,
टिकेगी तथा
उसी से धर्म
की स्थापना
होगी।"
श्री अशोक
सिंघल,
अध्यक्ष,
विश्व हिन्दू
परिषद।
हम
प्रार्थना
करते हैं कि
देश में अमन
चैन आये
"बापू
जी ! हम
अमन-चैन से
रहना चाहते
हैं, मगर देश
के अंदर व
बाहर ऐसी
ताकते हैं जो
हम लोगों को
लड़ाती रहती
हैं। मैं आपसे
प्रार्थना
करूँगा कि वे
ताकतें कभी
ताकतवर न हों।
आप जैसे खुदा
के प्यारे,
जिनको
उन्होंने यह
रोशनी बख्शी
है उनसे हम सब
प्रार्थना
करते हैं कि न
सिर्फ इस
प्रांत में
बल्कि
सम्पूर्ण देश
में अमन-चैन
आये और हम
तरक्की की राह
पर चलें।"
फारूख
अब्दुल्ला,
तत्कालीन
मुख्यमंत्री
(जम्मू-कश्मीर)
व केन्द्रीय
अक्षय ऊर्जा
मंत्री
राज्य
अतिथि के रूप
में पूज्य
बापू जी का
सम्मान
भारतभूमि अनादि काल से ब्रह्मनिष्ठ संतों एवं अवतारी महापुरुषों की चरणरज से पावन होती चली आ रही है। शास्त्रों में इन महापुरुषों को तन-मन में, जन-जन में सच्चिदानंद परमात्मा का आनंद-माधुर्य-चैतन्य जगाने वाले चलते-फिरते तीर्थ अर्थात् ʹजंगम-तीर्थʹ कहकर नवाजा गया है। जंगम तीर्थ की इस पावन श्रृंखला की वर्तमान कड़ी हैं सर्वहितकारी, विश्ववंदनीय ब्रह्मनिष्ठ संत श्री आसारामजी बापू।
भारत देश की यह प्राचीन परम्परा रही है कि राज्यकर्ता लोग ब्रह्मनिष्ठ महापुरुषों का सम्मान करें, उनसे सत्संग-मार्गदर्शन प्राप्त करें, जनता का सर्वोच्च हित कैसे हो इसकी कुंजियाँ प्राप्त करें, साथ ही उनके सर्वहितकारी सत्यसंकल्प का लाभ लें। इतिहास इस बात का साक्षी सत्संग एवं सेवा में रत रहते थे। ऐसे ही राजा जनक, राजा अश्वपति, राजा भोज, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, छत्रपति शिवाजी आदि असंख्य बुद्धिमान राजाओं ने भी इस पवित्र परम्परा का निर्वाह किया था। शासक तो कई आते हैं और जाते हैं परंतु ऐसे शासनकर्ता तो जनता के लिए आदरणीय हो जाते हैं। लोकहितकारी सत्संगकर्ता महापुरुषों के प्रति आदर, सम्मान, कृतज्ञता व्यक्त करने की यह परम्परा आज भी भारत में विद्यमान है। परम पूज्य बापूजी जब विभिन्न राज्यों में सत्संग-सद्भाव-सत्सेवा की पावन गंगा बहाते हुए भ्रमण करते हैं, तब अनेक राज्य सरकारें आपश्री को ʹराज्य-अतिथिʹ का दर्जा देकर आपका स्वागत-सम्मान करती हैं और आपके प्रति अपना अहोभाव व्यक्त करती हैं। अब तक बापू जी को राज्य-अतिथि का दर्जा देकर जनता में सुप्रतिष्ठा एवं सुयश पाने का सौभाग्य अनेक सरकारों ने पाया है, जैसे – 26 से 29 अप्रैल 2001 जम्मू-कश्मीर सरकार, 1 से 4 जून 2006 एवं 16-17 जून 2007 हिमाचल प्रदेश सरकार, 12 से 14 जुलाई 2010 उड़ीसा सरकार, 14 से 16 जुलाई 2010 छत्तीसगढ़ सरकार, 16 से 18 जुलाई 2010 मध्य प्रदेश सरकार तथा 25 से 30 सितम्बर 2010 कर्नाटक सरकार।
धर्मप्रेमियों की बहुलतावाले इस भारत देश में जो-जो सरकारें इस प्रकार जनता के प्राणस्वरूप ब्रह्मनिष्ठ महापुरुषों का आदर-सम्मान करती हैं, उन सरकारों के प्रति भी जनता में सद्भाव-आदर की भावना बढ़ती जाती है। यह परम्परा जितनी-जितनी सशक्त होती जायेगी, उतना ही भारत के हर राज्य का भाग्योदय होता जायेगा और भारत वैश्विक महासत्ता के रूप में उभरता जायेगा। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश एवं वर्तमान राष्ट्रपति ओबामा दोनों एक ही बात पर बड़ा आश्चर्य व्यक्त कर चुके हैं कि भारत में ऐसा क्या है कि भारतवासी अमेरिकनों की तुलना में हर क्षेत्र में आगे हैं ! यह बात उन दोनों के लिए एक बहुत बड़ी गुत्थी बन गयी है। इसका रहस्य जानना हो तो भी उन्हें भारत की इस परम्परा का थोड़ा तो निर्वाह करना ही पड़ेगा। पूज्य बापू जी जैसे आत्मानुभवी महापुरुष के चरणों में जाना ही पड़ेगा।
इस पुस्तिका में छपे विभिन्न संत-महात्माओं एवं समाज के आगेवानों के उदगार पढ़कर आप जान सकते हैं कि परम पूज्य बापू जी तो सुख-समृद्धि का विस्तार करने वाली पावन गंगा के सदृश हैं, जिससे सभी अभिभूत हो रहे हैं, लाभान्वित हो रहे हैं। यहाँ दिये अनुभव-वचनामृत का पान तो आपके लिए एक आचमन मात्र है। और भी अनुभवों का अमृतपान करना हो तो आप आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ʹदिव्य प्रेरणा-प्रकाशʹ पढ़ सकते हैं, सत्प्रेरणा पा सकते हैं और अपने जीवन को भी आनंदमय बना सकते हैं।
ʹदिव्य प्रेरणा-प्रकाशʹ पुस्तक सभी को जरूर पढ़नी चाहिए। इसे पढ़ने से बच्चे तेजस्वी बनते हैं, नारियाँ स्वस्थ-सम्मानित जीवन जीने की कला प्राप्त करती हैं तथा भाइयों का स्वास्थ्य-बल, मनोबल एवं प्रभाव बढ़ता है। दिव्य प्रेरणा-प्रकाश में लिखा हुआ निम्नलिखित मंत्र दूध में देखते हुए 21 बार जप कर उस दूध को पीने से बुद्धिमान, वीर्यवान होना आसान हो जाता है।
ૐ नमो
भगवते महाबले
पराक्रमाय
मनोभिलाषितं
मनः स्तम्भ
कुरु कुरु
स्वाहा।
घर बैठे ʹऋषि प्रसादʹ व ʹलोक कल्याण सेतुʹ पत्र-पत्रिका आपको स्वस्थ, सुंदर, सम्मानित जीवन का कुछ प्रसाद परोसेंगी।
डॉ.
प्रेमजी
मकवाणा
मंत्र
से आरोग्यता
बीजमंत्रों का महत्त्व समझकर उनका उच्चारण किया जाय तो बहुत सारे रोगों से छुटकारा मिलता है। उनका अलग-अलग अंगों एवं वातावरण पर असर होता है।
ʹૐʹ के ʹओʹ उच्चारण से ऊर्जाशक्ति का विकास होता है तो ʹमʹ से मानसिक शक्तियाँ विकसित होती हैं। ʹૐʹ से मस्तिष्क, पेट और सूक्ष्म इन्द्रियों पर सात्त्विक असर होता है। ʹह्रींʹ उच्चारण करने से पाचन-तंत्र, गले व हृदय पर तथा ʹह्रंʹ से पेट, जिगर, तिल्ली, आँतों व गर्भाशय पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। औषधि को एकटक देखते हुए ʹૐ नमो नारायणाय।ʹ मंत्र का 21 बार जप करके फिर औषधि लेने से उसमें भगवद्-चेतना का प्रभाव आता है और विशेष लाभ होता है। रात को नींद न आती हो तो ʹशुद्धे-शुद्धे महायोगिनी महानिद्रे स्वाहा।ʹ इस मंत्र का जप-स्मरण करें। स्मरण करते-करते अवश्य अच्छी नींद आयेगी।
तुलसी
भरोसे राम के,
निश्चिंत होई
सोय।
अनहोनी
होनी नहीं,
होनी होय सो
होय।।
चिंतित व्यक्ति को अच्छी तरह इसका मनन करना चाहिए। किसी बिमारी के कारण नींद नहीं आती हो तो प्रातः ʹपानी प्रयोगʹ करें। (आधा से सवा लीटर पानी पियें) और उपरोक्त प्रयोग करें, अवश्य अच्छी नींद आयेगी। इससे बुरे सपने आने भी बंद हो जायेंगे, फिर भी आते हो तो सिरहाने के नीचे तीन मोरपंख रखके ʹૐ हरये नमः।ʹ मंत्र का जप करके सोयें तो बुरे विचार और बुरे स्वप्न धीरे-धीरे छू होने लगेंगे।
यदि कोई शिशु रात को चौंकता है, उसे नींद नहीं आती, माँ को जगाता है, परेशान रहता है तो उसको सिरहाने के नीचे फिटकरी रख दें। इससे उसे बढ़िया नींद आयेगी। (धनात्मक ऊर्जा बनाने वाला फिटकरी युक्त ʹवास्तुदोष-निवारकʹ प्रसाद आश्रम से निःशुल्क मिलता है। उसे शिशु के सिरहाने के नीचे रखें। उसे अपने घर के कमरों में पश्चिम दिशा में रखने से ग्रहबाधा की निवृत्ति और सुख-शांति में वृद्धि होती है।–सम्पादक)
स्मरणशक्ति
का विकास
स्मृतिकला तीन प्रकार की होती हैः तात्कालिक स्मृति, अल्पकालिक स्मृति तथा दीर्घकालिक स्मृति। मनुष्य में ये तीनों प्रकार विकसित होते हैं। अतः मनुष्य को प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा जाता है। परीक्षा में प्रश्नपत्र को देखकर घबरा जाने से आज अनेक विद्यार्थी याद किये हुए पाठ भी भूल जाते हैं। जबकि प्राचीन काल में महर्षि वाल्मीकि ने जप-ध्यान के द्वारा अपनी बौद्धिक शक्तियों का इतना विकास किया कि श्रीरामावतार से पूर्व ही उन्होंने श्रीराम की जीवनी को ʹरामायणʹ के रूप में लिपिबद्ध कर दिया। इसी प्रकार महर्षि वेदव्यासजी ने ʹश्रीमद् भागवत महापुराणʹ आज से हजारों वर्ष पूर्व ही कलियुगी मनुष्यों के लक्षण बता दिये थे। स्मरणशक्ति को बढ़ाने वाला भ्रामरी प्राणायाम हमारे ऋषियों की एक विलक्षण खोज है। सुबह, दोपहर, शाम तीनों संध्याओं के समय खाली पेट भ्रामरी प्राणायाम करने से स्मरणशक्ति का चमत्कारिक विकास होता है।
भ्रामरी प्राणायाम कैसे करें ? दोनों हाथों की तर्जनी (अँगूठे के पासवाली उँगली से दोनों कानों के छिद्रों को बंद कर लें। इसके बाद खूब गहरा श्वास लेकर कुछ समय तक रोके रखें, तत्पश्चात मुख बंद करके श्वास छोड़ते हुए भौंरे के गुंजन की तरह ʹૐ.....ʹ का लम्बा गुंजन करें। मस्तिष्क की कोशिकाओं में हो रहे स्पंदन पर अपने मन को एकाग्र रखें। श्वास लेने व छोड़ने की क्रिया नथुनों के द्वारा ही होनी चाहिए। श्वास छोड़ते समय होंठ बंद रखें तथा ऊपर व नीचे के दाँतों के बीच कुछ फासला रखें। प्रारम्भ में सुबह, दोपहर अथवा शाम जिस संध्या में समय मिलता हो, इस प्राणायाम का नियमित रूप से दस-दस मिनट अभ्यास करें। एक माह बाद प्रतिदिन एक-एक मिनट बढ़ाते हुए तीस मिनट तक (अपनी क्षमता के अनुसार) यह प्राणायाम कर सकते हैं।
त्राटकः
त्राटक
से एकाग्रता
तथा बुद्धि का
विकास होता
है। एकाग्र मन
से पढ़ा हुआ
याद भी शीघ्र हो
जाता है।
व्यक्ति का मन
जितना एकाग्र
होता है, समाज
पर उसकी वाणी,
स्वभाव तथा
क्रिया-कलापों
का उतना ही
गहरा प्रभाव
पड़ता है।
त्राटक का
अर्थ है किसी
निश्चित आसन
पर बैठकर किसी
निश्चित
वस्तु, बिंदु,
मूर्ति, दीपक,
चाँद, तारे
आदि को बिना
पलकें झपकाये
एकटक देखना। त्राटक
व ध्यान-भजन
के समय देशी
गाय के घी का दीया
जलाना
लाभदायक होता
है, जबकि
मोमबत्ती से कार्बन
डाईऑक्साइड
निकलती है जो
हानिकारक है।
भाँग, शराब, चाय, बीड़ी, कॉफी आदि पदार्थों के सेवन से स्मरणशक्ति क्षीण हो जाती है। गाय का दूध, गेहूँ, चावल, ताजा मक्खन, अखरोट तथा तुलसी के पत्ते इत्यादि के सेवन से जीवनशक्ति और स्मरणशक्ति का विकास होता है।
शीतऋतुचर्या
शीत ऋतु में खारा तथा मधुर रसप्रधान आहार लेना चाहिए।
पचने में भारी, पौष्टिकता से भरपूर, गरम व स्निग्ध प्रकृति के, घी से बने पदार्थों का यथायोग्य सेवन करना चाहिए।
उड़द पाक, सालम पाक, सौभाग्य शुंठी पाक जैसे पुष्टिकारक पदार्थों या च्यवनप्राश का उपयोग करना चाहिए। सौभाग्य शुंठी पाक की महिमा शिवजी ने पार्वती जी को बतायी थी। इसके आगे सारे पाक बौने हो जाते हैं। 3000 रूपये प्रति किलो किसी संस्था में बिकता है। शास्त्रों से लेकर समिति ने बनाया और करीब 250 रूपये प्रति किलो मिले ऐसी व्यवस्था की जा रही है।
मौसमी फल व शाक, दूध, रबड़ी, घी, मक्खन, मट्ठा, शहद, उड़द, खजूर, तिल, खोपरा, मेथी, पीपर, सूखा मेवा तथा चरबी बढ़ाने वाले अन्य पौष्टिक पदार्थ इस ऋतु में सेवन योग्य माने जाते हैं। प्रातः सेवन हेतु रात को भिगोये हुए कच्चे चने (खूब चबा-चबाकर खायें), मूँगफली, गुड़, गाजर, केला, शकरकंद, सिंघाड़ा, आँवला आदि कम खर्च में सेवन किये जाने वाले पौष्टिक पदार्थ हैं।
इन दिनों ताजा दही, छाछ, नींबू आदि का सेवन कर सकते हैं। खट्टे दही से सदैव बचें। भूख को मारना या समय पर भोजन न करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
त्रिदोषशामक
व
रोग-प्रतिरोधक
प्रयोग
लाभः इससे वायु-पित्त-कफ संबंधी 132 बीमारियों के अलावा इन दोषों की मिश्रित विकृति से अन्य जो सैंकड़ों बीमारियाँ होती हैं, वे नहीं हो पायेंगी।
इस मुद्रा को करने से श्वेत-प्रदर, धातुक्षय, स्वप्नदोष आदि सभी तकलीफें, पेट के अनेक विकार (कब्ज, एसिडिटी, गैस, दर्द, बवासीर आदि) तो दूर होंगे ही, साथ ही आपकी कुंडलिनी शक्ति, प्राणशक्ति ऊर्ध्वगामी हो जायेगी। काम-क्रोधादि षडरिपुओं पर विजय पाने में मदद मिलेगी।
विधिः सुबह खाली पेट भूमि पर चटाई, कम्बल इत्यादि विद्युत की कुचालक बिछायत बिछा के पूर्व या दक्षिण की तरफ सिर करके श्वासन में लेट जायें। पूरा श्वास बाहर फेंक दें व पेट को अंदर-बाहर (बाहर कम, अंदर ज्यादा) 20-25 बार करें। ऐसा 3 बार श्वास छोड़ कर करने से 60-70 बार पेट की क्रिया हो जायेगी। श्वास बाहर निकाल के 30-40 बार गुदाद्वार का आकुंचन-प्रसरण करें, जैसे घोड़ा लीद छोड़ते समय करता है। इस प्रक्रिया को 4-5 बार दुहराना है, जिससे आकुंचन-प्रसरण 150 से 200 बार हो जायेगा। इसे ʹस्थल बस्तिʹ कहते हैं।
मंत्रदीक्षा
से सफलता
परम पूज्य संत श्री आशारामजी बापू मंत्रदीक्षा के समय विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र और अन्य दीक्षार्थियों को गुरुमंत्र की दीक्षा देते हैं। सारस्वत्य के जप से बुद्धि कुशाग्र बनती है और विद्यार्थी मेधावी होता है। दीक्षा के समय सिखायी जाने वाली यौगिक युक्तियों से फेफड़े व हृदय मजबूत बनते हैं, रोगप्रतिकारक शक्ति व धारणाशक्ति बढ़ती है। ऐसे अनेक-अनेक फायदे होते हैं। सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा पाकर कई विद्यार्थियों ने अपना भविष्य उज्जवल बनाया है। वीरेन्द्र मेहता नामक एक सामान्य विद्यार्थी ने ʹऑक्सफोर्ड डिक्शनरीʹ के 80000 हजार शब्द पृष्ठ संख्या सहित याद कर एक महान विश्वविक्रम दर्ज किया है। तांशु नामक 5 साल के छोटे से बच्चे ने दिल्ली की जोखिम भरी सड़कों पर 10 कि.मी. कार चलाकर अपने छोटे भाई की जान बचायी। उसे राष्ट्रपति एवं अनेक मान्यवरों द्वारा सम्मानित किया गया।
कमजोर स्मृतिवाला अजय मिश्रा व भैंस चराने वाला क्षितीश सोनी इन विद्यार्थियों ने बापू जी से सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा लेकर उसका अनुष्ठान किया। परिणाम यह हुआ कि अजय मिश्रा नोकिया कंपनी में ʹविश्वस्तरीय प्रबंधकʹ हुए और क्षितीश सोनी ʹगो एयरʹ हवाई जहाज कम्पनी में ʹमुख्य इंजीनीयरʹ पद पर पहुँचे हैं। अजय मिश्रा का सालाना वेतन 30 लाख रूपये और क्षितीश सोनी का सालाना वेतन 21.60 लाख रूपये हैं। ʹनेशनल रिसर्च डेवलपमैंट कॉरपोरेशनʹ के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित युवा वैज्ञानिक और फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. राहुल कत्याल अपने कमजोर विद्यार्थी-जीवन को याद कर कहते हैं कि "पूज्य बापू जी से प्राप्त सारस्वत्य मंत्रदीक्षा प्रतिभा विकास की संजीवनी बूटी है।" उपरोक्त सभी विद्यार्थी अपने यश का श्रेय बापू जी की कृपा से प्राप्त सारस्वत्य मंत्रदीक्षा और यौगिक प्रयोगों को ही देते हैं।
भारत के सबसे तेज बोलर इशांत शर्मा अपने यश का सारा श्रेय बापू जी से प्राप्त मार्गदर्शन व कृपा को देते हैं। वे कहते हैं- "पूज्य बापू जी की मंत्रदीक्षा व संयम-सदाचार के उपदेश से जीवन के हर क्षेत्र में विद्यार्थियों को अप्रतिम सफलता मिल सकती है। ʹदिव्य प्रेरणा प्रकाशʹ ग्रंथ के हर विद्यार्थी को पढ़ना ही चाहिए।"
आश्रम द्वारा आयोजित ʹविद्यार्थी उत्थान शिविरʹ व ʹविद्यार्थी उज्जवल भविष्य निर्माण शिविरʹ विद्यार्थियों के लिए वरदान ही सिद्ध होते हैं। ʹदिव्य प्रेरणा-प्रकाश ज्ञान प्रतियोगिताʹ अब तक 30 लाख से अधिक विद्यार्थी लाभान्वित हो चुके हैं।
हे प्रभु! आनन्ददाता!! ज्ञान हमको दीजिये।
हे प्रभु! आनन्ददाता !! ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।। हे प्रभु......
लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें।
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें।। हे प्रभु......
निंदा किसी की हम किसी से भूलकर भी न करें।
ईर्ष्या कभी भी हम किसी से भूलकर भी न करें।। हे प्रभु...
सत्य बोलें झूठ त्यागें मेल आपस में करें।
दिव्य जीवन हो हमारा यश तेरा गाया करें।। हे प्रभु....
जाय हमारी आयु हे प्रभु ! लोक के उपकार में।
हाथ डालें हम कभी न भूलकर अपकार में।। हे प्रभु....
कीजिये हम पर कृपा अब ऐसी हे परमात्मा!
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा।। हे प्रभु....
प्रेम से हम गुरुजनों की नित्य ही सेवा करें।
प्रेम से हम संस्कृति ही नित्य ही सेवा करें।। हे प्रभु...
योगविद्या ब्रह्मविद्या हो अधिक प्यारी हमें।
ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त करके सर्वहितकारी बनें।। हे प्रभु....
संत
मिलन को जाइये
कबीर सोई दिन भला जा दिन साधु मिलाय। अंक भरे भरि भेटिये पाप शरीरां जाय।।1।।
कबीर दरशन साधु के बड़े भाग दरशाय। जो होवे सूली सजा काटै ई टरी जाय।।2।।
दरशन
कीजै साधु का
दिन में कई-कई
बार। आसोजा का
मेह ज्यों
बहुत कर
उपकार।।3।।
कई बार
नहीं कर सकै
दोय बखत कर
लेय। कबीर
साधु दरस ते
काल दगा नहीं
देय।।4।।
दोय
बखत नहीं कर
सकै तीजे दिन
करू जाय। कबीर
साधु दरस ते
उतर भौ जल
पार।।5।।
दूजै
दिन नहीं कर
सकै तीजै दिन
करू जाय। कबीर
साधु दरस ते
मोक्ष मुक्ति
फल पाय।।।6।।
तीजै
चौथे नहीं करै
सातें दिन करू
जाय। या में
विलंब न कीजिये
कहै कबीर
समुझाय।।7।।
सातैं
दिन नहीं करि
सकै पाख पाख
करि लेय। कहे कबीर
सो भक्तजन
जन्म सुफल करि
लेय।।8।।
पाख
पाख नहीं करि
सकै मास मास
करू जाय। ता
में देर न
लाइये कहै
कबीर
समुझाय।।9।।
मात
पिता सुत
इस्तरी आलस
बन्धु कानि।
साधु दरस को
जब चलै ये
अटकावे
खानि।।10।।
इन
अटकाया ना रहै
साधु दरस को
जाय। कबीर सोई
संत जन मोक्ष
मुक्ति फल
पाय।।11।।
विघ्न
बाधा निवारक
प्रयोग
हल्दी और चावल पीसकर उसके घोल से घर के प्रवेश द्वार पर ʹૐʹ बना दें। यह घर को बाधाओं से सुरक्षित रखने में मदद करता है। केवल हल्दी के घोल से भी ʹૐʹ लिखें तो यही फल प्राप्त होगा।
लक्ष्मीवर्धक
प्रयोग
ʹश्री हरि... श्री हरि.... श्री हरिʹ थोड़ी देर जप करें। तीन बार जपने से एक मंत्र हुआ। उत्तराभिमुख होकर इस मंत्र की 1-2 माला शांतिपूर्वक करें और चलते-फिरते भी इसका जप करें तो विशेष लाभ होगा और रोजी रोटी के साथ ही शांति, भक्ति और आनंद भी बढ़ेगा। जल में गौमूत्र मिलाकर स्नान करने से पापों का नाश होता है। दही लगाकर स्नान करने से लक्ष्मी बढ़ती है। (अग्नि पुराणः 267,6,7) लक्ष्मी की इच्छा रखने वाले को दूध खुला नहीं छोड़ना चाहिए, ढककर रखना चाहिए। स्मृति एवं स्वास्थ्य वर्धक प्रयोगः आश्रम की गौ चंदन (स्पेशल) धूपबत्ती जलाने से वातावरण ऋणायनों से समृद्ध हो जाता है और कमरा बंद करके उसके पवित्र वातावरण में प्राणायाम करने से स्मृतिशक्ति, आरोग्यशक्ति, रोगप्रतिकारक शक्ति में बढ़ोतरी होती है।
बोधायन
ऋषि प्रणीत
दरिद्रतानाशक
प्रयोग
28 दिन (4 सप्ताह) तक सफेद बछड़े वाली सफेद गाय के दूध की खीर बनायें। खीर बनाते समय दूध को ज्यादा उबालना नहीं चाहिए। चावल पानी में पकायें, फिर दूध डालकर एक-दो उबाल दे दें। उस खीर का सूर्यनारायण को भोग लगायें। सूर्यनारायण का स्मरण करें और खीर को देखते-देखते एक हजार बार ओंकार का जप करें। फिर स्वयं भोग लगायें। जप के प्रारम्भ में यह विनियोग बोलें – ૐकार मंत्र गायत्री छंदः अंतर्यामी ऋषि परमात्मा देवता अंतर्यामी प्रीतिअर्थे, परमात्मप्राप्ति अर्थे जपे विनियोग। इससे ब्रह्मचर्य की रक्षा होगी, तेजस्विता बढ़ेगी तथा सात जन्मों की दरिद्रता दूर होकर सुख-सम्पदा की प्राप्ति होगी।
रोग
प्रतिकारक
शक्ति वर्धक
पहले के जमाने में गाँवों में पर्वों, त्यौहारों, उत्सवों के अवसर पर तथा नूतन वर्ष के प्रथम दिन अशोक और नीम के वृक्षों के पत्तों के तोरण (बंदनवार) बाँधते थे, जिससे कि वहाँ से लोग गुजरें तो वर्ष भर प्रसन्न रहें, निरोग रहें। अशोक और नीम के पत्तों में रोगप्रतिकारक शक्ति होती है। उस तोरण के नीचे से गुजरकर जाने से रोगप्रतिकारक शक्ति बनी रहती है। पर्वों उत्सवों के अवसरों पर आप भी अपने घरों में तोरण बाँधो तो अच्छा है।
आश्रम
के
सेवाकार्यों
की झलक
सत्संगः देश-विदेश में सदविचारों, सुसंस्कारों, यौगिक क्रियाओं व स्वास्थ्यप्रद युक्तियों का ज्ञान बाँटा जा रहा है। असंख्य लोग असाध्य रोगों से मुक्ति पा रहे हैं। ध्यान योग शिविरों में कुंडलिनी योग व ध्यान योग द्वारा तनाव व विकारों से छुटकारा दिलाकर लोगों की सुषुप्त शक्तियों को जागृत किया जाता है। विद्यार्थी उत्थान शिविरः इनमें पूज्य बापूजी के सान्निध्य में विद्यार्थियों को ज्ञान-ध्यान-यौगिक क्रियाओं का प्रसाद प्राप्त होता है। सत्साहित्य प्रकाशनः आश्रम द्वारा 14 भाषाओं में 345 पुस्तकों का प्रकाशन किया जा रहा है। मासिक पत्रिका ʹऋषि प्रसादʹ 7 भाषाओं में प्रकाशित की जा रही है। मासिक पत्र ʹलोक कल्याण सेतुʹ भी प्रकाशित होता है। बाल संस्कार केन्द्रः ये 18000 केन्द्र विद्यार्थियों में सुसंस्कार सिंचन में रत हैं। पिछड़े लोगों का विकासः गरीबों, आदिवासियों को नियमित निःशुल्क अनाज-वितरण, भंडारे (भोजन-प्रसाद वितरण), अनाज, वस्त्र, बर्तन, बच्चों को नोटबुकें, मिठाई प्रसाद आदि का वितरण तथा नकद आर्थिक सहायता देने का कार्य बड़े पैमाने पर होता है। प्याऊः सार्वजनिक स्थलों पर शीतल छाछ व जल का निःशुल्क वितरण होता है। ʹभजन करो, भोजन करो, रोजी पाओʹ योजनाः जो बेरोजगार या नौकरी-धंधा करने में सक्षम नहीं हैं उन्हें सुबह से शाम तक जप, कीर्तन, सत्संग का लाभ देकर भोजन और रोजी दी जाती है ताकि गरीबी, बेरोजगारी घटे व जप-कीर्तन से वातावरण की शुद्धि हो। आपातकालीन सेवाः अकाल, बाढ़, भूकंप, सुनामी तांडव – सभी में आश्रम ने निरंतर सेवाएँ दी हैं। गौ-सेवाः विभिन्न राज्यों में 9 बड़ी गौशालाओं का संचालन हो रहा है, जिनमें कत्लखाने ले जाने से रोकी गयीं हजारों गायों की सेवा की जा रही है। ʹयुवा सेवा संघʹ तथा युवाधन सुरक्षा व व्यसनमुक्ति अभियानः इनसे युवाओं को मार्गदर्शन मिल रहा है तथा व्यसनों के व्यसन छूट रहे हैं। चिकित्सा-सेवाः निर्दोष चिकित्सा पद्धतियों से निष्णात वैद्यों द्वारा उपचार किये जाते हैं। ʹनिःशुल्क चिकित्सा शिविरोंʹ का आयोजन होता है। दूर-दराज के आदिवासी व ग्रामीण क्षेत्रों में चल-चिकित्सालय जाते हैं। अस्पतालों में सेवाः मरीजों में फल, दूध व दवाओं का वितरण किया जाता है।
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