कितना
तेरा रहम था
कितना
तेरा रहम था,
कितनी तेरी
दया थी |
अब भी
वही कृपा है, अब भी
वही दया है ||
जब मैं
गिरा तूने
हाथ बढ़ाया
उठाने को |
जब भी
गुमराह होने
को था तूने
कान पकड़ा
समझाने को |
वो
तेरा रहम था
ये समझ न थी उस
वक्त |
अब
सोचता हूँ तूने
ना किया होता
ये एहसान तो |
घुट-घुट
के जी रहा
होता मरने को ||
मैं
चाहूँ या ना
चाहूँ पर तुमने
सदा है चाहा |
भूला
हूँ हर दफा तुझको
तुझसे
किया किनारा |
दुनिया
में मस्त होके
मस्ती बहुत सी
की है |
उस
झूठी माया से उबारकर
मुझे कर दिया दिवाना |
माँ की
तरह तुमने सदा
ध्यान मेरा
रखा |
कभी डाँटा कभी
मारा कभी
प्यार करके
रखा |
गलती
की तो भी तूने
ना मुझसे मुँह
फेरा |
उपदेश
देकर मुझको
दिखाया नया
सवेरा ||