विद्यार्थियों
व अभिभावकों
के लिए पावन
संदेश
तुम्हारे
जीवन में चार
चाँद न लगें
तो
मेरी
जिम्मेदारी !
डॉ. जे. मार्गन और दूसरे डॉक्टर लोग कहते हैं कि हिन्दुस्तान का ૐकार मंत्र बड़ा सफल है। ʹप्रणववादʹ ग्रंथ में ૐकार मंत्र से सम्बंधित 22 हजार श्लोकों का समावेश है। आपको मैं ૐकार का जप करने की रीति बताता हूँ। आपको पापनाशिनी ऊर्जा मिलेगी, आपके हृदय में भगवान का रस आयेगा। बच्चे-बच्चियों के परीक्षा में अच्छे अंक आयेंगे, यादशक्ति बढ़ेगी। उन्हें भगवान भी प्रेम करेंगे और लोग भी प्रेम करेंगे।
ૐकार मंत्र जपते समय पहले प्रतिज्ञा करनी होती हैः ʹૐकार मंत्र, गायत्री छंदः, भगवान नारायण ऋषि, अंतर्यामी परमात्मा देवता, अंतर्यामी प्रीत्यर्थे, परमात्मप्राप्ति अर्थे जपे विनियोगः।ʹ
कानों में उँगलियाँ डालकर लम्बा श्वास लो। जितना ज्यादा श्वास लोगे उतने फेफड़ों के बंद छिद्र खुलेंगे, रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी। फिर श्वास रोककर कंठ में भगवान के पवित्र, सर्वकल्याणकारी ʹૐʹ का जप करो। मन में ʹप्रभु मेरे, मैं प्रभु काʹ बोलो, फिर मुँह बन्द रख के कंठ से ʹૐ....ૐ....ૐ.....ૐ....ૐ.....ૐ.....ૐ.....ૐ....ૐ....ૐ...ૐ....ओઽઽઽम्.....ʹ का उच्चारण करते हुए श्वास छोड़ो। इस प्रकार दस बार करो। फिर कानों से उँगलियाँ निकाल दो।
इतना करने के बाद बैठ गये। होठों से जपो - ʹૐૐ प्रभुजी ૐ, आनंद देवा ૐ, अंतर्यामी ૐ....ʹ दो मिनट करना है। फिर हृदय से जपो - ʹૐशांति....ૐआनंद...ૐૐ.... मैं प्रभु का, प्रभु मेरे....ʹ आनंद आयेगा, रस आयेगा। जब ૐकार मंत्र के जप का प्रयोग करो तो गौ-चंदन या गूगल धूप कर सको तो ठीक है नहीं तो ऐसे ही करो। विद्युत का कुचालक कम्बल, कारपेट आदि का आसन होना चाहिए। यह प्रयोग करो, तुम्हारे जीवन में चार चाँद यदि न लगें तो मेरी जिम्मेदारी !
(टिप्पणीः इस प्रयोग की विडियो क्लिप http://www.bsk.ashram.org/dppgp/cp.aspx पर देखें।
प्रार्थना
यह शरीर मंदिर है प्रभु का, कण-कण में भगवान।
दैवी सम्पदा भरते जायें, भारत देश महान।। यह शरीर मंदिर है....
भेद नहीं है अपना पराया, ईश्वर की संतान।
गुरु संदेश सुनाते जायें, भारत देश महान।। यह शरीर मंदिर है....
होता है निर्दोष बाल मन, गुरु देते हैं ज्ञानांजन।
सुसंस्कार ये लेते जायें, भारत देश महान।। यह शरीर मंदिर है.....
गीता है आधार यहाँ का, गुरु का आतमज्ञान।
यही ज्ञान सँजोते जायें, भारत देश महान।। यह शरीर मंदिर है....
माटी है भारत की पावन, देव है हर इनसान।
ज्ञानामृत यहाँ पीते जायें, भारत देश महान।। यह शरीर मंदिर है....
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
महिला उत्थान ट्रस्ट
संत श्रीआशारामजी आश्रम, साबरमती, अहमदाबाद-5
email: ashramindia@ashram.org website: http://www.ashram.org
दूरभाषः 079.39877749.50.51.88 27505010.11
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
तुम्हारे जीवन में चार चाँद.....
प्रार्थना
सफलता
के सूत्र
जीवन
जीने की कला
मन को स्वस्थ व बलवान बनाने....
ऋषि-ज्ञान
को स्वीकारता
आधुनिक
विज्ञान
भारतीय
संस्कृति
काव्य
गुंजन
सुषुप्त
शक्तियों का
विकास
प्रेरक
प्रसंग
स्त्री-जाति के प्रति मातृभाव प्रबल करो
भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी की.....
संयम
की शक्ति
आपमें और पशुओं में क्या अन्तर है ?
महापुरुषों और चिकित्सकों का कहना है....
विवेक
दर्पण
मोबाइल बजा रहा है खतरे की घंटी
अश्विनी
मुद्रा =
अश्वशक्ति
(हार्स पावर)
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
वीर ! तुम
बढ़े चलो....
मुश्किलें
दिल के इरादे
आजमाती हैं।
स्वप्न
के परदे
निगाहों से
हटाती हैं।।
हौसला
मत हार गिरकर
ओ मुसाफिर !
ठोकरें
इन्सान को
चलना सिखाती
हैं।।
लाल
बहादुर
शास्त्री एक
गरीब विधवा
माता के सुपुत्र
थे। गरीबी के
कारण उनकी माँ
ने उन्हें पढ़ने
के लिए अपने
एक दूर के
रिश्तेदार के
यहाँ भेज
दिया।
लालबहादुर से
वे लोग जूठे
बर्तन मँजवाते,
कपड़े
धुलवाते तिस
पर गालियाँ
अलग से मिलतीं।
लालबहादुर
वास्तव में
बहादुर
निकले। शिला
सम हृदय बनाकर
उन्होंने
अनेक बार
अपमान तिरस्कार
सहा पर डटे
रहे और पढ़
लिख के एक दिन
भारत के
प्रधानमंत्री
पद तक पहुँचे।
उनकी
ईमानदारी और
कर्त्तव्यनिष्ठा
को आज भी याद किया
जाता है।
ईश्वरचन्द्र
के सामने बड़ी
चुनौतीपूर्ण
परिस्थिति
थी। दिन भर तो
वे कालेज में
पढ़ते-पढ़ाते,
वहाँ से आकर
चार लोगों के
लिए भोजन
तैयार करते,
सबको भोजन
कराकर बर्तन माँजते
और रात के दो
बजे तक पढ़ते।
अपने इस कठिन
परिश्रम से वे
व्याकरण,
साहित्य,
स्मृति, अलंकार
आदि में
पारंगत हो गये
और धीरे-धीरे ʹविद्यासागरʹ के रूप
में उनकी
ख्याति
सर्वत्र फैल
गयी। आज भी
उन्हें उनकी
उदारता व समाज
सेवा के लिए
याद किया जाता
है।
ऐसे
ही स्वामी
रामतीर्थजी
भी
विद्यार्थी-अवस्था
में बड़ी
अभावग्रस्त
दशा में रहे।
कभी तेल न
होता तो तो
सड़क के
किनारे के
लैम्प के नीचे
बैठकर पढ़
लेते। कभी धन
के अभाव में
एक वक्त ही
भोजन कर पाते।
फिर भी दृढ़
संकल्प और
निरन्तर
पुरुषार्थ से उन्होंने
लौकिक विद्या
ही नहीं पायी
अपितु
आत्मविद्या
में भी आगे
बढ़े और मानवीय
विकास की चरम
अवस्था
आत्मसाक्षात्कार
को उपलब्ध
हुए। अमेरिका
का
प्रेसिडेंट
रूजवेल्ट
उनके दर्शन और
सत्संग से
धन्य-धन्य हो
जाता था। कहाँ
तो एक गरीब
विद्यार्थी
और कहाँ ૐकार के
जप व
प्रभुप्राप्ति
के दृढ़
निश्चय से महान
संत हो गये !
हे
विद्यार्थी !
पुरुषार्थी
बनो, संयमी
बनो, उत्साही
बनो। लौकिक
विद्या तो पाओ
ही पर उस
विद्या को भी
पा लो, जो मानव
को जीते-जी
मृत्यु के पार
पहुँचा देती है।
उसे भी जानो
जिसको जानने
से सब जाना
जाता है, इसी
में तो
मानव-जीवन की
सार्थकता है।
हे वीर !
तुम बढ़े चलो....
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
बढ़े चलो... बढ़े चलो.... बढ़े चलो। - 2
न हाथ एक शस्त्र हो, न साथ एक अस्त्र हो।
न अन्न नीर वस्त्र हो, हटो नहीं डटो वहीं।। बढ़े चलो....
रहे समझ हिम शिखर, तुम्हारा पग उठे निखर।
भले ही जाय तन बिखर, रूको नहीं झुको नहीं।। बढ़े चलो......
घटा घिरी अटूट हो, अधर्म कालकूट हो।
वहीं अमृत घूँट हो, जिये चलो करे चलो।। बढ़े चलो.....
जमीं उगलती आग हो, छिड़ा मरण का राग हो।
लहू का अपने फाग हो, अड़ो वही गड़ो वहीं।। बढ़े चलो....
चलो नयी मिसाल हो, जलों तुम्हीं मशाल हो।
बढ़ो नया कमाल हो, रुको नहीं झुको नहीं।। बढ़े चलो....
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
ब्रह्मनिष्ठ
संत श्री
आशारामजी
बापू की हितभरी
वाणी
हमारे देश का भविष्य हमारी युवा पीढ़ी पर निर्भर है किन्तु उचित मार्गदर्शन के अभाव में वह आज गुमराह हो रही है। ब्रितानी औपनिवेशिक संस्कृति की देन वर्तमान शिक्षा-प्रणाली में जीवन के नैतिक मूल्यों के प्रति उदासीनता बरती गयी है। फलतः आज के विद्यार्थी का जीवन कौमार्यावस्था से ही विलासी और असंयमी हो जाता है। पाश्चात्य आचार-व्यवहार के अंधानुकरण से युवानों में जो फैशनपरस्ती, अशुद्ध आहार-विहार के सेवन की प्रवृत्ति, कुसंग, अभद्रता, चलचित्र-प्रेम आदि बढ़ रहे हैं, इससे दिनोंदि उनका पतन होता जा रहा है। वे निर्बल और कामी बनते जा रहे हैं। उनकी इस अवदशा को देखकर ऐसा लगता है कि वे संयमी जीवन की, ब्रह्मचर्य की महिमा से सर्वथा अनभिज्ञ हैं। लाखों नहीं, करोड़ो-करोड़ों छात्र-छात्राएँ अज्ञानतावश अपने तन मन के मूल ऊर्जा-स्रोत का व्यर्थ में क्षय कर पूरा जीवन दीनता-हीनता-दुर्बलता में तबाह कर देते हैं और सामाजिक अपयश के भय से मन-ही-मन कष्ट झेलते रहते हैं। इससे उनका शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य चौपट हो जाता है और सामान्य शारीरिक-मानसिक विकास भी नहीं हो पाता। इसका मूल कारण क्या है ? दुर्व्यसन तथा अनैतिक, अप्राकृतिक एवं अमर्यादित मैथुन द्वारा वीर्य की क्षति ! इससे रोगप्रतिकारक शक्ति घटती है, जीवनशक्ति का ह्रास होता है।
ब्रह्मचर्य के द्वारा ही हमारी युवा पीढ़ी अपने व्यक्तित्व का संतुलित एवं श्रेष्ठतर विकास कर सकती है। ब्रह्मचर्य के पालन से बुद्धि कुशाग्र बनती है, रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है तथा महान-से-महान लक्ष्य निर्धारित करने एवं उसे सम्पादित करने का उत्साह उभरता है, संकल्प में दृढ़ता आती है, मनोबल पुष्ट होता है। आध्यात्मिक विकास का मूल भी ब्रह्मचर्य ही है। भारत का सर्वांगीण विकास सच्चरित्र एवं संयमी युवाधन पर ही आधारित है। इसकी अवहेलना करना हमारे देश व समाज के हित में नहीं है। यौवन की सुरक्षा से ही सुदृढ़ राष्ट्र का निर्माण हो सकता है।
संयम-ब्रह्मचर्य
ब्रह्मचर्य विद्यार्थी जीवन का आधार है। काम, क्रोध, लोभ आदि आंतरिक शत्रुओं से युद्ध करने के ले यह आवश्यक रक्षा-कवच है।
ब्रह्मचर्य का पालन न करने वाले, असंयमित जीवन जीने वाले विद्यार्थी क्रोध, ईर्ष्या, आलस्य, भय, तनाव आदि का शिकार बन जाते हैं। ʹद हेरिटेज सेंटर फॉर डाटा एनालिसिसʹ की एक रिपोर्ट के अनुसार सतत अवसाद (डिप्रेशन) से पीड़ित व आत्महत्या करने वाली लड़कियों में संयमी लड़कियों की अपेक्षा यौन-संबंध करने वाली लड़कियों की संख्या तीन गुनी से अधिक है। सतत अवसाद से पीड़ित लड़कों में संयमी लड़कों की अपेक्षा यौन-व्यवहार करने वाले लड़कों की संख्या दुगने से अधिक है और आत्महत्या का प्रयास करने वाले लड़कों में संयमी लड़कों की अपेक्षा यौन-व्यवहार करने वाले लड़कों की संख्या आठ गुना अधिक है। इस कारण अमेरिका के सरकार ने 33 प्रतिशत स्कूलों में यौन शिक्षा के अंतर्गत केवल संयम की शिक्षा देने के लिए दस वर्षों में नौ अरब डॉलर खर्च किये।
भारत के ऋषियों ने तो प्राचीनकाल में ही अपने सदग्रंथों में ब्रह्मचर्य की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रखी है। आधुनिक भोगवादी सभ्यता युवक-युवतियों को मानसिक व शारीरिक रूप से बिल्कुल अशक्त कर रही है। जरा-जरा सी बात पर मानसिक संतुलन खो देना और आत्महत्या जैसा कदम उठाने की बढ़ रही वृत्ति इसी का दुष्परिणाम है। सिनेमा व टीवी चैनलों द्वारा दिखाये जा रहे अश्लील व हिंसात्मक दृश्य विद्यार्थियों के लिए बड़े घातक सिद्ध हो रहे हैं।
अतः विद्यार्थी वैदिक संस्कृति से संयुक्त ज्ञान का, संयम-शिक्षा का महत्त्व समझें और अपने में छुपी हुई दिव्य योग्यताओं का विकास हो सके ऐसे सुसंस्कारों से अपने जीवन को सँवारें।
आप
में और पशुओं
में क्या
अन्तर है ?
ब्रह्मचर्य सभी अवस्थाओं में विद्यार्थी, गृहस्थी, साधु-संन्यासी, सभी के लिए अत्यंत आवश्यक है।
जब स्वामी विवेकानंद जी विदेश में थे, तब ब्रह्मचर्य की चर्चा छिड़ने पर उन्होंने कहाः "कुछ दिन पहले एक भारतीय युवक मुझसे मिलने आया था। वह करीब दो वर्ष से अमेरिका में ही रहता है। वह युवक संयम का पालन बड़ी दृढ़तापूर्वक करता है। एक बार वह बीमार हो गया तो उसने डॉक्टर को बताया। तुम जानते हो कि डॉक्टर ने उस युवक को क्या सलाह दी ? कहाः ʹब्रह्मचर्य प्रकृति के नियम के विरूद्ध है। अतः ब्रह्मचर्य का पालन करना स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं है।ʹ
उस युवक को बचपन से ही ब्रह्मचर्य-पालन के संस्कार मिले थे। डॉक्टर की ऐसी सलाह से वह उलझन में पड़ गया। उसने मुझे सारी बातें बतायीं। मैंने उसे समझायाः "तुम जिस देश के वासी हो वह भारत आज भी अध्यात्म के क्षेत्र में विश्वगुरु के पद पर आसीन है। अपने देश के ऋषि मुनियों के उपदेश पर तुम्हें ज्यादा विश्वास है कि ब्रह्मचर्य को जरा भी न समझने वाले पाश्चात्य जगत के असंयमी डॉक्टर पर ? ब्रह्मचर्य को प्रकृति के नियम विरूद्ध कहने वालों को ʹब्रह्मचर्यʹ शब्द के अर्थ का भी पता नहीं है। ब्रह्मचर्य के विषय में ऐसे गलत ख्याल रखने वालों से एक ही प्रश्न है कि आपमें और पशुओं में क्या अन्तर है ?"
सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। चाहे बड़ा वैज्ञानिक हो या दार्शनिक, विद्वान हो या बड़ा उपदेशक, सभी को संयम की जरूरत है। स्वस्थ रहना हो तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है, सुखी रहना हो तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और सम्मानित रहना हो तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है। हे भारत के युवक व युवतियों ! यदि जीवन में संयम, सदाचार को अपना लो तो तुम भी महान-से-महान कार्य करने में सफल हो सकते हो।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
दिव्य
प्रेरणा
प्रकाश ज्ञान
प्रतियोगिता
के
प्रश्नपत्र
के प्रारूप के
उत्तर
1-2, 2-3, 3-4, 4-2, 5-4, 6-3, 7-4, 8-1, 9-2, 10-2, 11-3, 12-1, 13-1, 14-1, 15-3
युवक
युवतियो !
सावधान.....
आजकल के युवक-युवतियों के साथ बड़ा अन्याय हो रहा है। उन पर चारों ओर से विकारों को भड़काने वाले आक्रमण हो रहे हैं। एक तो वैसे ही अपनी पाशवी वृत्तियाँ यौन उच्छ्रंखलता की ओर प्रोत्साहित करती हैं और दूसरा, सामाजिक परिस्थितियाँ भी उसी ओर का आकर्षण बढ़ाती हैं। इस पर उन प्रवृत्तियों को वैज्ञानिक समर्थन मिलने लगे और संयम को हानिकारक बताया जाने लगे... कुछ तथाकथित आचार्य भी फ्रायड जैसे नास्तिक व अधूरे मनोवैज्ञानिक के व्यभिचारशास्त्र को आधार बनाकर ʹसम्भोग से समाधिʹ का उपदेश देने लगें, तब तो ईश्वर ही ब्रह्मचर्य के रक्षक हैं।
16 सितम्बर 1977 के ʹन्यूयार्क टाइम्सʹ में छपा थाः ʹअमेरिकन पेनल कहती है कि अमरीका में दो करोड़ से अधिक लोगों को मानसिक चिकित्सा की आवश्यकता है।ʹ इन परिणामों को देखते हुए अमेरिका के एक महान लेखक सम्पादक व शिक्षा विशारद मार्टिन ग्रोस अपनी ʹThe Psychological Societyʹ पुस्तक में लिखते हैं- ʹहम जितना समझते हैं उससे कहीं ज्यादा फ्रायड के मानसिक रोगों ने हमारे मानस व समाज में गहरा प्रवेश पा लिया है। अब हमें फ्रायड की छाया में बिल्कुल नहीं रहना चाहिए।ʹ
फ्रायड स्वयं स्पास्टिक कोलोन, सदा रहने वाला मानसिक अवसाद, स्नायविक रोग, सजातीय संबंध, विकृत स्वभाव, माइग्रेन, कब्ज, मृत्यु व धननाश का भय, घृणा और खूनी विचारों के दौरे आदि रोगों से पीड़ित था। स्वयं के जीवन में संयम का नाश कर दूसरों को भी घृणित सीख देने वाला फ्रायड इतना रोगी और अशांत होकर मरा। क्या आप भी ऐसा बनना चाहते हैं ? आत्महत्या के शिकार बनना चाहते हैं ? उसके मनोविज्ञान ने विदेशी युवक-युवतियों को रोगी बनाकर उनके जीवन का सत्यानाश कर दिया।
ʹसम्भोग से समाधिʹ का प्रचार फ्रायड की रूग्ण मनोदशा का ही प्रचार है। प्रो. एडलर और प्रो. सी.जी. जुंग जैसे मूर्धन्य मनोवैज्ञानिकों ने फ्रायड के सिद्धान्तों का खंडन कर दिया है, फिर भी यह खेद की बात है कि भारत में अभी भी की मानसिक रोग विशेषज्ञ और सेक्सोलॉजिस्ट फ्रायड जैसे पागल व्यक्ति के सिद्धान्तों का आधार लेकर इस देश के युवक युवतियों को अनैतिक और अप्राकृतिक मैथुन का, सम्भोग का संदेश व इसका समर्थन समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं के द्वारा देते रहते है। अब वे इस देश के लोगों को चरित्रभ्रष्ट और गुमराह करना छोड़ दें, ऐसी हमारी नम्र प्रार्थना है। ʹदिव्य प्रेरणा प्रकाशʹ पुस्तक पाँच बार पढ़ें-पढ़ायें, इसी में सबका कल्याण है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
सुंदर
समाज के
निर्माण का
आह्वान
मातृ-पितृ
पूजन दिवस (14
फरवरी)
भारतीय संस्कृति के दिव्य संस्कारों एवं उसके महापुरुषों के दिव्य ज्ञान को अपना के देश-विदेश के लोग आनंद व शांति का अनुभव कर रहे हैं। लेकिन यह घोर विडम्बना है कि अपने ही देश में किशोर एवं युवा वर्ग ऐसे आत्मारामी महापुरुषों के सान्निध्य और भारतीय संस्कृति के दिव्य जीवन को छोड़कर पाश्चात्य कल्चर के अंधानुकरण से अशांत तथा दुराचार और एड्स का शिकार हो रहा है। भारतीय संस्कृति पर हो रहे कुठाराघात से व्यथित होकर लोकहितकारी महापुरुष पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने इस बुराई को मोड़कर समाज को सही दिशा देते हुए एक अच्छाई का सर्जन करने का संकल्प लिया हैः "वेलेन्टाइन डे की गंदगी हमारे देश में न फैले इसलिए मैंने ʹवेलेंटाइन डेʹ मनाने के बदले ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ मनाने का आह्वान किया है।"
विकसित
देशों में
किशोरियों की
दशा,
वेलेन्टाइन
डे का
दुष्प्रभाव
कुल गर्भवती किशोरियाँ (उम्र 13 से 19) – 12,50,000 प्रतिवर्ष।
गर्भपात कराने वाली किशोरियाँ – 5,00,000
कुँवारी माता बनकर नर्सिंग होम, सरकार व माँ-बाप के लिए बोझा बनने वाली अथवा वेश्यावृत्ति धारण करने वाली किशोरियाँ – 7 लाख कुछ हजार
(ʹइन्नोसेन्टी
रिपोर्ट
कार्डʹ) के
अनुसार
14 फरवरी
ʹवेलेन्टाइन
डेʹ नहीं,
ʹमातृ-पितृ
पूजन दिवसʹ पर्व
के प्रवर्तक
पूज्य संत
श्री
आशारामजी बापू
का पावन संदेश
विश्व चाहता है, सभी चाहते हैं – स्वस्थ, सुखी, सम्मानित जीवन। बुद्धि में भगवान का प्रकाश हो, मन में प्रभु का प्रेम, मानवता का प्रेम हो, इन्द्रियों में संयम हो, बस हो गया ! आपका जीवन धनभागी हो जायेगा।
ʹवेलेन्टाइन डेʹ मनाने वालों की दुर्दशा से हमारा हृदय व्यथित होता है, लाखों का हृदय व्यथित होता है। तो देर-सवेर यह गंदी परम्परा हमारे भारत से जाय..... 14 फरवरी के दिन गणेशजी की स्मृति करो और ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ मनाओ। आपका तीसरा नेत्र खुल जाय, सूझबूझ खुल जाय। बच्चे अपने माता-पिता का पूजन करें, तिलक करें, प्रदक्षिणा करें और माँ-बाप बच्चों को तिलक करें और हृदय से लगायें। वैसे भी माँ-बाप का हृदय तो उदार होता है, वे ऐसे ही कृपा बरसाते रहते हैं ! लेकिन जब बच्चा कहता है न, "माँ ! तुम मेरी हो न ?" तो माँ की खुशी का ठिकाना नहीं रहताः "पिता जी ! तुम मेरे हो न ?" तो पिताजी का हृदय द्रवित हो जाता है। अगर ʹमातृ-पितृदेवो भवʹ करके नमस्कार करेगा तो माँ-बाप की आत्मा भी तो बच्चों पर रसधार, करूणा-कृपा बरसायेगी एवं मेरे भारत की कन्याएँ और मेरे भारत के युवक महान बनेंगे।
हम तो चाहते हैं कि ईसाइयों का भी मंगल हो, मुसलमानों का भी मंगल हो, मानवता का मंगल हो। युवक-युवती एक दूसरे को फूल दे के जो प्रेम-दिवस मनाते हैं, उसमें तो विनाश है और माता-पिता का पूजन करने में अन्तरात्मा की प्रसन्नता, संयम, सदगुण के फूल खिलाने का अवसर है। धन्य हैं वे बच्चे जो मातृ-पितृ पूजन करके सदगुणों के फूल खिलाते हैं ! धन्य हैं वे माँ-बाप जो दिव्य प्रेरणा की तरफ बच्चों को ले जाते हैं।
ब्रह्मचर्य के बिना जगत में, नहीं किसी ने यश पाया।।टेक।।
ब्रह्मचर्य से परशुराम ने, इक्कीस बार धनणी जीती।
ब्रह्मचर्य से वाल्मीकि ने, रच दी रामायण नीकी।।
ब्रह्मचर्य के बिना जगत में, किसने जीवन रस पाया ?...
ब्रह्मचर्य से रामचन्द्र ने, सागर-पुल बनवाया था।
ब्रह्मचर्य से लक्ष्मण जी ने, मेघनाद को मारा था।
ब्रह्मचर्य के बिना जगत में, सब को ही परवश पाया।....
ब्रह्मचर्य से महावीर ने, सारी लंका जलायी थी।
ब्रह्मचर्य से अंगदजी ने, अपनी पैज जमायी थी।।
ब्रह्मचर्य के बिना जगत में, सबने ही अपयश पाया।.....
ब्रह्मचर्य से आल्हा-उदल ने, बावन किले गिराये थे।
पृथ्वीराज दिल्लीश्वर को भी, रण में मार भगाये थे।।
ब्रह्मचर्य के बिना जगत में, केवल विष-ही-विष पाया।....
ब्रह्मचर्य से भीष्म-पितामह, शरशैया पर सोये थे।
ब्रह्मचारी शिवा वीर से, यवनों के दल रोये थे।।
ब्रह्मचर्य के रस के भीतर, हमने तो षडरस पाया।।...
ब्रह्मचर्य से राममूर्ति ने, छाती पर पत्थर तोड़ा।
लोहे की जंजीर तोड़ दी, रोका मोटर का जोड़ा।।
ब्रह्मचर्य है सरस जगत में, बाकी को कर्कश पाया।....
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
भारतीय
मनोवैज्ञानिक
महर्षि
पतंजलि के सिद्धान्तों
पर चलने वाले
हजारों
योगसिद्ध महापुरुष
इस देश में
हुए हैं, अभी
भी हैं और आगे
भी होते
रहेंगे।
बापूजी ने स्वयं
ऐसे अदृश्य
होने वाले कई
सिद्धियों के धनी
योगियों से
भेंट की हुई
है। जैसे-बापूजी
के मित्र संत
नारायण बापू, जिनके
आशीर्वाद ले
के
राष्ट्रपति
ज्ञानी जैल
सिंह धन्य हुए,
आनंदमयी
माँ, जिनके
चरणों में जा
के इंदिरा
गाँधी धन्य
होती थीं, ऐसे
ही हिमालय में
वर्षों की
समाधि से
सम्पन्न
लम्बी
आयुवाले
महापुरुष
मिले हैं,
मिलते हैं।
महर्षि
योगानंद,
स्वामी श्री
लीलाशाहजी
महाराज और
पूज्य बापूजी
भी ऐसे कई
महापुरुषों
से मिले हैं।
योगी चांगदेव
और
ज्ञानेश्वर
महाराज तो
लोकप्रसिद्ध
हैं ही।
महर्षि
पतंजलि के
सिद्धान्तों
पर चलकर ऊँचाई
को प्राप्त
हुए और भी कई
महापुरुष तथा
राजा अश्वपति, राजा जनक और
समर्थ रामदासजी, शिवाजी
जैसे
प्रसिद्ध और
कई अप्रसिद्ध
अनकों उदाहरण
इतिहास में
देखने को
मिलते हैं।
जबकि सम्भोग
के मार्ग पर
चलकर कोई
योगसिद्ध
महापुरुष हुआ
हो ऐसा हमने
तो नहीं सुना, बल्कि
दुर्बल हुए, रोगी हुए, एड्स के
शिकार हुए, अकाल मृत्यु
के शिकार हुए, खिन्नमना
हुए, अशांत
हुए, पागल
हुए, ऐसे
कई नमूने हमने
देखे हैं।
"हे विद्यार्थी ! अपने जीवन में संयम का पाठ याद रख। महान बनने की यही शर्त है। संयम और सदाचार। हजार बार असफल होने पर भी फिर से पुरुषार्थ कर, अवश्य सफलता मिलेगी। हिम्मत न हार। छोटा-छोटा नियम, छोटा-छोटा संयम का व्रत जीवन में लाते हुए आगे बढ़ और महान हो जा।" पूज्य बापू जी।
आज समाज में कितने ही ऐसे अभागे लोग हैं जो श्रृंगार रस की पुस्तकें पढ़कर, सिनेमाओं के कुप्रभाव के शिकार हो के, अश्लील वेबसाइटें देखकर स्वप्नावस्था या जाग्रतावस्था में अथवा तो हस्तमैथुन द्वारा माह में अनेक बार वीर्यनाश करते हैं। शरीर और मन को ऐसी आदत डालने से वीर्याशय बार-बार खाली होता रहता है। उसको भरने में ही शारीरिक शक्ति का अधिकतर भाग व्यय होने लगता है, जिससे शरीर को कांतिमान बनाने वाला ओज संचित ही नहीं हो पाता और व्यक्ति शक्तिहीन, ओजहीन, उत्साहशून्य बन जाता है। ऐसे व्यक्ति का वीर्य पतला होता है। यदि वह समय पर अपने को सँभाल नहीं सका तो शीघ्र ही वह स्थिति आती है कि उसके अण्डकोष वीर्य बनाने में असमर्थ हो जाते हैं। फिर भी यदि थोड़ा-बहुत वीर्य बनता है तो वह पानी जैसा ही बनता है, जिसमें संतानोत्पत्ति की ताकत नहीं होती। ऐसे व्यक्ति की हालत मृतक पुरुष जैसी हो जाती है। कई प्रकार के रोग उसे घेर लेते हैं। वह व्यक्ति जीते जी नरक का दुःख भोगता रहता है। शास्त्रकारों ने लिखा हैः
आयुस्तेजो
बलं वीर्यं
प्रज्ञा
श्रीश्च महद्
यशः।
पुण्यं
च
प्रीतिमत्वं
च हन्यतेઽब्रह्मचर्यया।।
ʹआयु, तेज, बल, वीर्य, बुद्धि, लक्ष्मी, यश, पुण्य और प्रीति – ये सब ब्रह्मचर्य का पालन न करने से नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए वीर्यरक्षा स्तुत्य है।ʹ
ʹअथर्ववेदʹ (16.1.1,4) में कहा गया हैः
अतिसृष्टो
अपां वृषभोઽतिसृष्टा
अग्नयो
दिव्याः। इदं
तमति सृजामि
तं माઽभ्यवनिक्षि।
ʹशरीर में व्याप्त वीर्यरूपी जल को बाहर ले जाने वाले, शरीर से अलग कर देने वाले काम को मैंने परे हटा दिया है। अब मैं इस काम को अपने से सर्वथा दूर फेंकता हूँ। मैं इस बल, बुद्धि, आरोग्यतानाशक काम का कभी शिकार नहीं होऊँगा।ʹ .....और इस प्रकार के संकल्प से अपना जीवन-निर्माण न करके जो व्यक्ति वीर्यनाश करता रहता है, उसकी क्या गति होती है, इसका भी वेदों में उल्लेख आता हैः
रुजन्
परिरूजन्
मृणन्
प्रमृणन्।।
म्रोको मनोहा
खनो निर्दाह
आत्मदूषिस्तनूदूषिः।।
ʹयह काम रोगी बनाने वाला है, बहुत बुरी तरह रोगी करने वाला है। मृणन् यानी मार देने वाला है। प्रमृणन् यानी बहुत बुरी तरह मारने वाला है। यह टेढ़ी चाल चलाता है, मानसिक शक्तियों को नष्ट कर देता है। शरीर में से स्वास्थ्य, बल, आरोग्यता आदि को नोच-नोच के बाहर फेंक देता है। शरीर की सब धातुओं को जला देता है। जीवात्मा को मलिन कर देता है। शरीर के वात, पित्त, कफ को दूषित करके उसे तेजोहीन बना देता है।ʹ (अथर्ववेदः 16.1.2,3)
अतः हमारे युवक-युवतियों को ब्रह्मचर्य संबंधित जानकारी जैसे – यौन-स्वास्थ्य, आरोग्यशास्त्र, दीर्घायु-प्राप्ति के उपाय व कामवासना नियंत्रित करने की विधि का स्पष्ट ज्ञान होना चाहिए। युवाओं का शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक प्रसन्नता और बौद्धिक सामर्थ्य बनाये रखने व इस देश के नागरिकों को एड्स जैसी घातक बीमारियों से ग्रस्त होने से बचाने तथा स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए हम सभी का यह नैतिक कर्त्तव्य है कि संयम-सदाचार को बढ़ाने वाले वातावरण को तैयार करें। ब्रह्मचर्य को पोषित करने वाला सत्साहित्य ʹदिव्य प्रेरणा प्रकाशʹ जैसी पुस्तकें युवा पीढ़ी को जरूर पढ़ायें।
महापुरुषों
और
चिकित्सकों
का कहना है
ब्रह्मचर्य
से बनोगे महान
से महान
ब्रह्मचर्य के पालन से बुद्धि कुशाग्र बनती है, रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है तथा महान-से-महान लक्ष्य निर्धारित करने एवं उसे सम्पादित करने का उत्साह उभरता है, संकल्प में दृढ़ता आती है, मनोबल पुष्ट होता है।
पूज्य
संत श्री
आशारामजी
बापू
दुःख के मूल को नष्ट करने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है।
महात्मा
बुद्ध
बारह वर्ष तक वीर्य को अस्खलित रखने से अर्थात् तेरह वर्ष की उम्र से पचीस वर्ष की उम्र तक तीनों योगों (भक्ति, ज्ञान व कर्म योग) से ब्रह्मचर्य के पालन से जो शक्ति पैदा होती है, उससे उस व्यक्ति की स्मरणशक्ति अतीव तीव्र हो जाती है।
श्री
रामकृष्ण
परमहंस
वीर्युक्तता ही साधुता है और निर्वीयता ही पाप है, अतः बलवान और वीर्यवान बनने की चेष्टा करनी चाहिए।
स्वामी
विवेकानंदजी
जो पूर्ण ब्रह्मचारी है उसके लिए इस संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है।
महात्मा
गांधी
ब्रह्मचर्य जीवन-वृक्ष का पुष्प है और प्रतिभा, पवित्रता, वीरता आदि गुण उसके कतिपय फल हैं।
महात्मा
थोरो
ब्रह्म के लिए चर्या (आचरण) ही ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य अर्थात् सभी इऩ्द्रियों पर संयम, सभी इन्द्रियों का उचित उपयोग।
संत
विनोबा भावे
समाज में सुख-शांति की वृद्धि के लिए स्त्री-पुरुष दोनों को ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए।
टॉलस्टाय
ब्रह्मचारी अपना प्रत्येक कार्य निरंतर करता रहता है। उसे प्रायः थकान नहीं लगती। वह कभी चिंतातुर नहीं होता। उसका शरीर सुदृढ़ होता है। उसका मुख तेजस्वी होता है। उसका स्वभाव आनंदी और उत्साही होता है।
डॉ.
एक्सन
वीर्य को पानी की भाँति बहाने वाले आजकल के अविवेकी युवाओं के शरीर को भयंकर रोग इस प्रकार घेर लेते हैं कि डॉक्टर की शरण में जाने पर भी उनका उद्धार नहीं होता।
डॉ.
निकोलस
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
राजकुमारी
मल्लिका इतनी
खूबसूरत थी कि
कई राजकुमार व
राजा उसके साथ
विवाह करना
चाहते थे लेकिन
वह किसी को
पसंद नहीं
करती थी।
आखिरकार उन
राजकुमारों व
राजाओं ने आपस
में एक जुट
होकर मल्लिका
के पिता को
किसी युद्ध
में हराकर उसका
अपहरण करने की
योजना बनायी।
मल्लिका
को इस बात का
पता चल गया।
उसने राजकुमारों
व राजाओं को
कहलवाया कि "आप
लोग मुझ पर
कुर्बान हैं
तो मैं भी आप
पर कुर्बान
हूँ। तिथि
निश्चित
करिये। आप लोग
आकर बातचीत
करें। मैं आप
सबको अपना
सौंदर्य दे
दूँगी।"
इधर
मल्लिका ने
अपने जैसी ही
एक सुंदर
मूर्ति
बनवायी एवं
निश्चित की गयी
तिथि से दो
चार दिन पहले
से वह अपना
भोजन उसमें
डाल देती थी।
जिस महल में
राजकुमारों व
राजाओं को
मुलाकात देनी
थी, उसी में
एक ओर वह
मूर्ति रखवा
दी गयी।
निश्चित तिथि
पर सारे राजा
व राजकुमार आ
गये। मूर्ति इतनी
हूबहू थी कि
उसकी ओर देखकर
राजकुमार
विचार कर ही
रहे थे कि ʹअब
बोलेगी.... अब
बोलेगी...ʹ इतने
में मल्लिका
स्वयं आयी तो
सारे राजा व राजकुमार
उसे देखकर दंग
रह गये कि ʹवास्तविक
मल्लिका
हमारे सामने
बैठी है तो यह कौन
है ?ʹ
मल्लिका
बोलीः "यह
प्रतिमा है।
मुझे यही
विश्वास था कि
आप सब इसको ही
सच्ची
मानेंगे और
सचमुच में
मैंने इसमें
सच्चाई
छुपाकर रखी
है। आपको जो सौंदर्य
चाहिए वह
मैंने इसमें
छुपाकर रखा है।"
यह कहकर ज्यों
ही मूर्ति का
ढक्कन खोला
गया, त्यों
ही सारा कक्ष
दुर्गन्ध से
भर गया। पिछले
चार पाँच
दिनों से जो
भोजन उसमें
डाला गया था, उसके सड़
जाने से ऐसी
भयंकर बदबू
निकल रही थी कि
सब छिः छिः कर
उठे।
तब
मल्लिका ने
वहाँ आये हुए
सभी राजाओं व
राजकुमारों
को सम्बोधित
करते हुए कहाः
"भाइयो !
जिस अन्न,
जल, दूध,
फल, सब्जी
इत्यादि को
खाकर यह शरीर
सुन्दर दिखता है,
मैंने वे ही
खाद्य सामग्रियाँ
चार पाँच
दिनों से
इसमें डाल रखी
थीं। अब ये
सड़कर
दुर्गन्ध
पैदा कर रही
हैं। दुर्गन्ध
पैदा करने
वाले इन
खाद्यान्नों
से बनी हुई चमड़ी
पर आप इतने
फिदा हो रहे
हो तो इस अन्न
को रक्त बनाकर
सौंदर्य देने
वाला वह आत्मा
कितना सुंदर
होगा !"
मल्लिका
की इन
सारगर्भित
बातों का राजा
एवं
राजकुमारों
पर गहरा असर हुआ
और उन्होंने
कामविकार से
अपना पिंड
छुड़ाने का
संकल्प किया।
उधर मल्लिका
संत-शरण में पहुँच
गयी और उनके
मार्गदर्शन
से अपने आत्मा
को पाकर
मल्लियनाथ
तीर्थंकर बन
गयी।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
स्त्री-जाति
के प्रति
मातृभाव
प्रबल करो
मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत् |
पराई स्त्री
को माता
के समान और
पराए धन को मिट्टी
के ढेले
के समान समझो |
श्री रामकृष्ण परमहंस
कहा करते
थे : “ किसी सुंदर
स्त्री पर
नजर पड़ जाए तो
उसमें माँ जगदम्बा
के दर्शन
करो |
ऐसा विचार
करो कि यह
अवश्य देवी का
अवतार है,
तभी तो
इसमें इतना सौंदर्य
है |
माँ प्रसन्न
होकर इस
रूप में दर्शन
दे रही है, ऐसा समझकर
सामने खड़ी
स्त्री को मन-ही-मन प्रणाम
करो |
इससे तुम्हारे भीतर
काम विकार
नहीं उठ सकेगा |
शिवाजी के
पास कल्याण के
सूबेदार की स्त्रियों
को लाया
गया था तो
उस समय उन्होंने
यही आदर्श उपस्थित
किया था |
उन्होंने उन
स्त्रियों को ‘माँ’ कहकर
पुकारा तथा
उन्हें कई उपहार
देकर सम्मान
सहित उनके
घर वापस भेज
दिया |
अर्जुन सशरीर
इन्द्र सभा
में गया तो
उसके स्वागत में
उर्वशी,
रम्भा आदि
अप्सराओं ने
नृत्य किये |
अर्जुन के
रूप सौन्दर्य
पर मोहित
हो उर्वशी
रात्रि के
समय उसके निवास
स्थान पर
गई और प्रणय-निवेदन किया
तथा
साथ ही 'इसमें कोई
दोष नहीं लगता'
इसके पक्ष
में अनेक दलीलें
भी कीं |
किन्तु अर्जुन
ने अपने
दृढ़ इन्द्रियसंयम का
परिचय देते हुए
कहा :
गच्छ मूर्ध्ना प्रपन्नोऽस्मि पादौ
ते वरवर्णिनी |
त्वं
हि में मातृवत् पूज्या रक्ष्योऽहं पुत्रवत्
त्वया ||
( महाभारत : वनपर्वणि इन्द्रलोकाभिगमनपर्व : ४६.४७)
"मेरी दृष्टि
में कुन्ती,
माद्री और
शची का जो स्थान
है,
वही तुम्हारा
भी है |
तुम मेरे
लिए माता के
समान पूज्या
हो |
मैं तुम्हारे चरणों
में प्रणाम
करता हूँ |
तुम अपना दुराग्रह छोड़कर
लौट जाओ |
मेरी दृष्टि
में तुम माता
के समान
पूजनीया हो और
पुत्र के समान
मानकर
तुम्हें मेरी
रक्षा करनी
चाहिए।"
(महाभारत,
वनपर्वणि,
इन्द्रलोकाभिगमन
पर्वः 46.46,47)
इस
पर उर्वशी
ने क्रोधित
होकर उसे
नपुंसक होने
का शाप दे
दिया |
अर्जुन ने
उर्वशी से शापित
होना स्वीकार
किया,
परन्तु संयम
नहीं तोड़ा |
जो अपने
आदर्श से नहीं
हटता,
धैर्य और
सहनशीलता को अपने
चरित्र का
भूषण बनाता है,
उसके लिये
शाप भी वरदान
बन जाता है |
अर्जुन के
लिये भी ऐसा
ही हुआ |
जब इन्द्र
तक यह बात
पहुँची तो उन्होंने अर्जुन को
कहा : "तुमने इन्द्रिय संयम
के द्वारा ऋषियों
को भी पराजित
कर दिया |
तुम जैसे
पुत्र को पाकर
कुन्ती वास्तव
में श्रेष्ठ पुत्रवाली
है |
उर्वशी का
शाप तुम्हें वरदान
सिद्ध होगा |
भूतल पर
वनवास के १३वें
वर्ष में अज्ञातवास
करना पड़ेगा
उस समय यह
सहायक होगा |
उसके बाद
तुम अपना पुरुषत्व
फिर से
प्राप्त कर लोगे |"
इन्द्र के
कथनानुसार अज्ञातवास
के समय
अर्जुन ने विराट
के महल में
नर्तक वेश में
रहकर विराट
की राजकुमारी
को संगीत और
नृत्य विद्या
सिखाई थी
और इस प्रकार
वह शाप से
मुक्त हुआ था |
परस्त्री के
प्रति मातृभाव
रखने का
यह एक सुंदर उदाहरण
है |
ऐसा ही
एक उदाहरण वाल्मीकिकृत रामायण
में भी आता
है |
भगवान श्रीराम
के छोटे
भाई लक्ष्मण
को जब सीताजी
के गहने
पहचानने को
कहा गया तो लक्ष्मण
जी बोले
: हे तात ! मैं
तो सीता माता
के पैरों के
गहने और नूपुर
ही पहचानता
हूँ,
जो मुझे
उनकी चरणवन्दना
के समय दृष्टिगोचर
होते रहते
थे |
केयूर-कुण्डल आदि
दूसरे गहनों
को मैं नहीं
जानता |"
यह मातृभाववाली दृष्टि
ही इस बात
का एक बहुत
बड़ा कारण था
कि लक्ष्मणजी इतने
काल तक ब्रह्मचर्य का
पालन किये रह
सके |
तभी रावणपुत्र मेघनाद
को,
जिसे इन्द्र
भी नहीं
हरा सका था,
लक्ष्मणजी हरा
पाये |
पवित्र मातृभाव द्वारा वीर्यरक्षण का
यह अनुपम उदाहरण
है जो ब्रह्मचर्य की
महत्ता भी प्रकट
करता है |
भारतीय सभ्यता
और संस्कृति
में 'माता'
को इतना
पवित्र स्थान
दिया गया
है कि यह मातृभाव
मनुष्य को
पतित होते-होते
बचा लेता
है |
श्री रामकृष्ण
एवं अन्य
पवित्र संतों
के समक्ष जब
कोई स्त्री कुचेष्टा करना
चाहती तब वे
सज्जन,
साधक,
संत यह
पवित्र मातृभाव
मन में
लाकर विकार
के फंदे से
बच जाते |
यह मातृभाव
मन को विकारी
होने से
बहुत हद तक रोके
रखता है |
जब भी
किसी स्त्री
को देखने
पर मन में
विकार उठने लगे,
उस
समय सचेत
रहकर इस मातृभाव
का प्रयोग
कर ही लेना चाहिए |
प्रश्नः
सुबह स्नान के
बाद तुलसी के
पत्ते क्यों
खाने चाहिए ?
उत्तरः
तुलसी को घर
का वैद्य कहा
गया है।
वैज्ञानिकों
ने प्रयोग
करके जाना कि
अन्य पौधों के
मुकाबले
तुलसी में ऑक्सीजन
की मात्रा
तिगुनी होती
है। तुलसी के
पत्तों के
सेवन से बल, तेज और
यादशक्ति
बढ़ती है।
इसमें
कैंसर-विरोधी
तत्त्व भी
पाये जाते
हैं। फ्रैंच
डॉक्टर विक्टर
रेसिन ने कहा
हैः "तुलसी
एक अदभुत औषधि
है।"
अतः सुबह
स्नान के बाद
खाली पेट
तुलसी के 5-7 पत्ते
खाकर थोड़ा
पानी पीना
चाहिए। तुलसी
सेवन के दो
घंटे पहले और
बाद में दूध न
लें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
(ब्रह्मलीन
स्वामी श्री
लीलाशाहजी
महाराज के
अमृतवचन)
एक
मुसाफिर ने
रोम देश में
एक मुसलमान
लुहार को
देखा। वह लोहे
को तपाकर,
लाल करके
उसे हाथ में
पकड़कर
वस्तुएँ बना
रहा था, फिर
भी उसका
हाथ जल नहीं
रहा था। यह
देखकर
मुसाफिर ने
पूछाः "भैया
!
यह कैसा
चमत्कार है कि
तुम्हारा हाथ
जल नहीं रहा !"
लुहारः
"इस
फानी (नश्वर)
दुनिया में
मैं एक स्त्री
पर मोहित हो
गया था और उसे
पाने के लिए
सालों तक कोशिश
करता रहा
परंतु उसमें
मुझे असफलता
ही मिलती रही।
एक दिन ऐसा
हुआ कि जिस
स्त्री पर मैं
मोहित था, उसके पति पर
कोई मुसीबत आ
गयी।
उसने
अपनी पत्नी से
कहाः "मुझे
धन की अत्यधिक
आवश्यकता है।
यदि उसका बंदोबस्त
न हो पाया तो
मुझे मौत को
गले लगाना पड़ेगा।
अतः तुम कुछ
भी करके, तुम्हारी
पवित्रता
बेचकर भी मुझे
कुछ धन ला दो।ʹ
ऐसी स्थिति
में वह स्त्री
जिसको मैं
पहले ही चाहता
था,
मेरे पास
आयी। उसे
देखकर मैं बहुत
खुश हो गया।
सालों के बाद
मेरी इच्छा
पूर्ण हुई।
मैं उसे एकांत
में ले गया।
मैंने उससे आने
का कारण पूछा
तो उसने सारी
हकीकत बतायी।
उसने कहाः "मेरे
पति को धन की
बहुत
आवश्यकता है।
अपनी इज्जत व
शील को बेचकर
भी मैं उन्हें
कुछ धन ला देना
चाहती हूँ। आप
मेरी मदद कर
सकें तो आपकी
बड़ी
मेहरबानी।"
तब
मैंने कहाः "थोड़ा
धन तो क्या, तुम जितना
भी माँगोगी, मैं देने को
तैयार हूँ।"
मैं
कामांध हो गया
था,
मकान के
सारे
खिड़की-दरवाजे
मैंने बन्द
किये। कहीं से
थोड़ा भी
दिखायी दे ऐसी
जगह भी बंद कर
दी ताकि हमें
कोई देश न ले।
फिर मैं उसके
पास गया।
उसने
कहाः ʹरूको
!
आपने सारे
खिड़की-दरवाजे, छेद व सुराख
बंद किये हैं, जिससे हमें
कोई देख न सके
लेकिन मुझे
विश्वास है कि
कोई हमें अब
भी देख रहा
है।"
मैंने
पूछाः "अब
भी कौन देख
रहा है ?"
"ईश्वर
!
ईश्वर हमारे
प्रत्येक
कार्य को देख
रहा है। आप
उनके आगे भी
कपड़ा रख दो
ताकि आपको पाप
का प्रायश्चित
न करना पड़े।"
उसके ये शब्द
मेरे दिल के
आर-पार उतर
गये। मुझ पर
मानो हजारों
घड़े पानी ढुल
गया। मुझे
कुदरत का भय
सताने लगा।
मेरी सारी
वासना चूर-चूर
हो गयी। मैंने
खुदा से माफी
माँगी और अपनी
इस दुर्वासना
के लिए बहुत
ही पश्चाताप
किया।
परमेश्वर की
अनुकम्पा मुझ
पर हुई।
भूतकाल में
किये हुए
कुकर्मों की माफी
मिली, इससे मेरा
दिल निर्मल हो
गया। मैंने
सारे खिड़की-दरवाजे
खोल दिये और
कुछ धन लेकर
उस स्त्री के
साथ चल पड़ा।
वह स्त्री
मुझे अपने पति
के पास ले
गयी। मैंने धन
की थैली उसके पास रख दी और
सारी हकीकत
सुनायी। उस
दिन से मुझे
प्रत्येक
वस्तु में
खुदाई नूर
दिखने लगा है।
तब से अग्नि, वायु व जल
मेरे अधीन हो
गये हैं।"
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
स्वामी
रामतीर्थ जब
प्रोफेसर थे
तब उन्होंने
एक प्रयोग
किया और बाद में
निष्कर्षरूप
में बताया कि
जो विद्यार्थी
परीक्षा के
दिनों में या
परीक्षा से
कुछ दिन पहले
विषयों में
फँस जाते हैं, वे परीक्षा
में प्रायः
असफल हो जाते
हैं, चाहे
वर्ष भर
उन्होंने
अपनी कक्षा
में अच्छे अंक
क्यों न पाये
हों। जिन
विद्यार्थियों
का चित्त
परीक्षा के
दिनों में
एकाग्र और
शुद्ध रहा
करता है, वे
ही सफल होते
हैं।
ऐसे
ही ब्रिटेन की
विश्वविख्यात
ʹकेम्ब्रिज
यूनिवर्सिटीʹ
के कॉलेजों
में किये गये
सर्वेक्षण के
निष्कर्ष
असंयमी
विद्यार्थियों
को सावधानी का
इशारा देने
वाले हैं।
इनके अनुसार
जिन कॉलेजों
के विद्यार्थी
अत्यधिक
कुदृष्टि के
शिकार होकर
असंयमी जीवन
जीते थे,
उनके
परीक्षा
परिणाम खराब
पाये गये तथा
जिन कॉलेजों
में
विद्यार्थी
तुलनात्मक
दृष्टि से
संयमी थे,
उनके
परीक्षा-परिणाम
बेहतर स्तर के
पाये गये।
"कामविकार
से बचना हो तो
शिवजी, गणपति
जी,
अर्यमादेव,
हनुमानजी, भीष्म
जी का सुमिरन
करें
सुबह-सुबह।
काम से बचकर राम
में मन लगाने
की प्रार्थना
करों। दिन में
भगवद्-स्मृति,
हे नाथ, दयालु,
सदबुद्धि दे,
तेरी प्रीति
दे – इतना तो कर
सकते हो मेरे
भाई, सज्जनो !
लाड़ले लाल,
जल्दी हो जाओ
निहाल !"
पूज्य बापू जी
विद्यार्थी
प्रश्नोत्तरी
प्रश्नः
पूज्य बापू जी
!
सावधानी
बरतते हुए भी
वीर्यपात, स्वप्नदोष
होता हो तो
क्या करें ?
उत्तरः
सावधानी
बरतने पर भी
वीर्यपात का
कष्ट हो तो
चिंतिन न हों, बल्कि दृढ़
निश्चय से
अधिक सावधानी
बरतो। भगवत्प्रार्थना
करो। ʹૐ
अर्यमायै नमः"।
मंत्र का जप
करो।
सर्वांगासन
करके योनि को
सिकोड़ लो
(मूलबन्ध करो)
और श्वास को
बाहर निकालते
हुए पेट को
अंदर की ओर
खींचो। कुछ
समय
तक श्वास को
बाहर ही रोके
रखो और भावना
करो कि ʹमेरा
वीर्य
ऊर्ध्वगामी
हो रहा है।ʹ
इस प्रयोग से
ब्रह्मचर्य़ की
रक्षा होगी।
ʹૐ
माँ !.....
ૐ
गजानन.....ૐ
शिवजी !.....
रक्षा करो।ʹ
यह प्रार्थना
करें। अवश्य
रक्षा होती
है।
ૐ
अर्यमायै नमः
मंत्र का जप
सोने से पूर्व
21 बार करने से
बुरे सपने
नहीं आते।
सोने
से पहले
तर्जनी उँगली
से तकिये पर
अपनी माता का
नाम लिखकर
सोने से बहुत
लाभ होता है।
आँवले
के चूर्ण में
चौथाई हिस्सा
(25 प्रतिशत) हल्दी
चूर्ण मिलाकर
रखें। 7 दिन तक
सुबह शाम यह
मिश्रण 3-4
ग्राम लेने से
चमत्कारिक
लाभ होता है।
इसके सेवन से 2
घंटे पूर्व व
पश्चात दूध न
लें।
उत्साह
जहाँ, सफलता
वहाँ
पूज्य
बापू जी का
उत्साहवर्धक
संदेश
उत्साहसमन्वितः....
कर्ता
सात्त्विक
उच्यते।
ʹउत्साह
से युक्त
कर्ता
सात्त्विक
कहा जाता है।ʹ
(श्रीमद्
भगवदगीताः 18.26)
जो
कार्य करें
उत्साह से
करें, तत्परता
से करें,
लापरवाही न
बरतें। उत्साह
से काम करने
से योग्यता
बढ़ती है,
आनंद आता है।
उत्साहहीन
होकर काम करने
से कार्य बोझा
बन जाता है।
उत्साह
का मतलब है
सफलता,
उन्नति, लाभ
और आदर के समय
चित्त में काम
करने का जैसा
जोश, तत्परता,
बल बना रहता
है, ठीक ऐसा ही
प्रतिकूल
परिस्थिति
में भी चित्त
बना रहे। यही
वास्तविक
उत्साह है।
कैसी भी परिस्थिति
आये उसका
सदुपयोग
करें। कैसी भी
अंधकारमय
रात्रि हो
गुजर जायेगी।
प्रतिकूलता
को देख के
घबरा मत। बीते
हुए सुख-दुःख
की याद से अभी अपने
को परेशान मत
कर।
गम
की अँधेरी रात
में, दिल को न
बेकरार कर।
सुबह
जरूर आयेगी,
सुबह का
इंतजार कर।।
जिसका
उत्साह टूटा,
उसका जीवन
पूरा हो गया।
उत्साहहीन
जीवन व्यर्थ
है।
उत्साह
लाने के उपाय
शरीर
को खूब खींचे,
इतना खींचे कि
रग-रग में स्फूर्ति
आ जाये। फिर
शरीर को ढीला
छोड़ दें और दृढ़
भावना करें कि
ʹमुझमें
परमात्मा की
शक्ति,
परमात्मा का
आनंद,
परमात्मा का
उत्साह-सामर्थ्य,
परमात्मा की समता
भरी है। हरि ૐ....
हरि ૐ...
हरि ૐ....
ईश्वर मेरे
साथ हैं,
ईश्वर के
सदगुण मेरे
साथ हैं... ૐ... ૐ.... ૐ.... ૐ....
शांति... हरि ૐ...ʹ
कुछ मिनटों तक
शवासन में
पड़े रहें।
शुद्ध
हवा में
अनुलोम-विलोम
प्राणायाम
करके 10 बार
श्वास
लें-छोड़ें।
फिर श्वास
लेकर कंठ पर
दबाव पड़े इस
प्रकार सिर को
आगे-पीछे
हिलाते हुए
कंठ से ʹૐʹ
का उच्चारण
करें, मुँह
बंद रखें। ऐसा
2 बार करें।
जहाँ रहते हैं
वहाँ थोड़ा-सा
कपूर का चूरा छिड़क
दें।
पीपल
का स्पर्श और
घर में तुलसी
लगाना भी उत्साह,
बल व आरोग्य
वर्धक है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
मन
को स्वस्थ व
बलवान बनाने
के लिए
आहारशुद्धिः
आहारशुद्धौ
सत्त्वशुद्धिः
सत्त्वशुद्धौ
ध्रुवा
स्मृतिः।
ʹआहार
शुद्ध होने पर
मन शुद्ध होता
है। शुद्ध मन
में निश्चल
स्मृति (अखंड
आत्मानुभूति)
होती है।ʹ
(छान्दोग्य
उपनिषद् 7.26,2)
प्राणायामः
प्राणायाम
से मन का मल
नष्ट होता है।
रजो व तमो गुण
दूर होकर मन
स्थिर व शांत
होता है।
शुभ
कर्मः मन
को सतत शुभ
कर्मों में रत
रखने से उसकी
विषय-विकारों
की ओर होने
वाली भागदौड़
रुक जाती है।
मौनः
संवेदन,
स्मृति,
भावना, मनीषा,
संकल्प व
धारणा – ये मन
की छः
शक्तियाँ
हैं। मौन व
प्राणायाम से
इन सुषुप्त
शक्तियों का
विकास होता
है।
मंत्रजपः
भगवान
के नाम का जप
सभी विकारों
को मिटाकर दया,
क्षमा,
निष्कामता
आदि दैवी
गुणों को
प्रकट करता
है।
उपवासः
(अति
भुखमरी नहीं)
उपवास से मन
विषय-वासनाओं
से उपराम होकर
अंतर्मुख
होने लगता है।
"एकादशी
व्रत पापनाशक
तथा
पुण्यदायी
व्रत है।
प्रत्येक
व्यक्ति को
माह में दो
दिन उपवास
करना चाहिए।"
पूज्य बापू जी
प्रार्थनाः
प्रार्थना
से मानसिक
तनाव दूर होकर
मन हलका व प्रफुल्लित
होता है। मन
में विश्वास व
निर्भयता आती
है।
सत्यभाषणः
सदैव
सत्य बोलने से
मन में असीम
शक्ति आती है।
सद्
विचारः कुविचार
मन को अवनत व
सद् विचार
उन्नत बनाते हैं।
प्रणवोच्चारणः
दुष्कर्मों
का त्याग कर
किया गया ૐकार
का दीर्घ
उच्चारण मन को
आत्म-परमात्म
शांति में
एकाकार कर
देता है।
शास्त्रों
में दिये गये
इन उपायों से
मन निर्मलता,
समता व
प्रसन्नता
रूपी प्रसाद
प्राप्त करता
है।
विद्यार्थी
प्रश्नोत्तरी
प्रश्नः
सूर्योदय के
बाद भी सोते
रहने से क्या
हानि होती है ?
उत्तरः
ʹअथर्ववेदʹ
में बताया गया
है कि जो
व्यक्ति
सूर्योदय के बाद
भी सोता रहता
है उसके
ओज-तेज को
सूर्य की
किरणें पी
जाती हैं।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
आदमी
को लग जाय तो
ऊँट की मौत भी
उसमें वैराग्य
जगा देती है,
अन्यथा तो लोग
रिश्तेदारों
को जलाकर या
दफनाकर आते
हैं फिर भी
उनके जीवन में
वैराग्य नहीं
जगता।
(पूज्य
बापू जी की
अमृतवाणी)
बल्ख
बुखारा का शेख
वाजिद अली 999
ऊँटों पर अपना
बावर्चीखाना
लदवाकर जा रहा
था। रास्ता
सँकरा था। एक
ऊँट बीमार
होकर मर गया।
उसके पीछे आने
वाले ऊँटों की
कतार रूक गयी।
यातायात बंद
हो गया। शेख
वाजिद ने कतार
रूकने का कारण
पूछा तो सेवक
ने बतायाः "हुजूर
!
ऊँट मर गया
है। रास्ता
सँकरा है। आगे
नहीं जा सकते।"
शेख
को आश्चर्य
हुआः "ऊँट
मर गया !
मरना कैसा
होता है ?"
वह
अपने घोड़े से
नीचे उतरा।
चलकर आगे आया।
सँकरी गली में
मरे हुए ऊँट
को गौर से
देखने लगा।
"अरे
!
इसका मुँह भी
है,
गर्दन और
पैर भी मौजूद
हैं, पूँछ
भी है, पेट
और पीठ भी है
तो यह मरा
कैसे ?"
उस
विलासी शेख को
पता ही नहीं
कि मृत्यु
क्या चीज होती
है !
सेवक ने
समझायाः "जहाँपनाह
!
इसका मुँह, गर्दन, पैर, पूँछ, पेट,
पीठ आदि सब
कुछ है लेकिन
इसमें जो
जीवतत्त्व था,
उससे इसका
संबंध टूट गया
है। इसके
प्राण-पखेरू
उड़ गये हैं।"
"....तो
अब य़ह नहीं
चलेगा क्या ?"
"चलेगा
कैसे !
यह सड़ जायेगा,
गल जायेगा,
मिट जायेगा,
जमीन में
दफन हो जायेगा
या गीध, चीलें, कौवे, कुत्ते
इसको खा
जायेंगे।"
"ऐसा
ऊँट मर गया !
मौत ऐसे होती
है ?"
"हुजूर
!
मौत अकेले ऊँट
की ही नहीं बल्कि सबकी
होती है।
हमारी भी मौत
हो जायेगी।"
"......और
मेरी भी ?"
"शाहे
आलम !
मौत सभी की
होती है।"
ऊँट
की मृत्यु
देखकर
वाजिदअली के
चित्त को झकझोरता
हुआ वैराग्य
का तुफान उठा।
युगों से जन्मों
से प्रगाढ़
निद्रा में
सोया हुआ
आत्मदेव अब ज्यादा
सोना नहीं
चाहता था। 999
ऊँटों पर अपना
सारा रसोईघर, भोग-विलास
की
साधन-सामग्रियाँ
लदवाकर नौकर-चाकर, बावर्ची, सिपाहियों
के साथ जो जा
रहा था, उस
सम्राट ने उन
सबको छोड़कर
अरण्य का
रास्ता पकड़
लिया। वह फकीर
हो गया। उसके
हृदय से आर्जवभरी
प्रार्थना
उठीः ʹहे
खुदा !
हे परवरदिगार !
हे जीवनदाता !
यह शरीर
कब्रिस्तान
में दफनाया
जाय,
सड़ जाय, गल जाय, उसके
पहले तू मुझे
अपना बना ले
मालिक !ʹ
शेख
वाजिद के जीवन
में वैराग्य
की ज्योति ऐसी
जली कि उसने
अपने साथ कोई
सामान नहीं
रखा। केवल एक
मिट्टी की
हाँडी साथ में
रखी। उसमें भिक्षा
माँगकर खाता
था,
उसी से पानी
पी लेता था, उसी को सिर
का सिरहाना
बनाकर सो लेता
था। इस प्रकार
बड़ी
विरक्तता से
वह जी रहा था।
अधिक
वस्तुएँ पास
रखने से
वस्तुओं का
चिंतन होता है,
उनके
अधिष्ठान
आत्मदेव का
चिंतन खो जाता
है। साधक का
समय व्यर्थ
में चला जाता
है।
एक
बार वाजिदअली
हाँडी का
सिरहाना
बनाकर दोपहर
को सोया था।
कुत्ते को
भोजन की सुगंध
आयी तो हाँडी
को सूँघने लगा,
मुँह डालकर
चाटने लगा।
उसका सिर
हाँडी के सँकरे
मुँह में फँस
गया। वह ʹक्याऊँ......
क्याऊँ....ʹ
करके हाँडी
सिर के बल
खींचने लगा।
फकीर की नींद
खुली। वह उठ
बैठा तो
कुत्ता हाँडी
के साथ भागा।
दूर जाकर पटका
तो हाँडी फूट
गयी। शेख
वाजिद हँसने लगाः
"यह
भी अच्छा हुआ।
मैंने पूरा
साम्राज्य
छोड़ा,
भोग-वैभव
छोड़े, 999
ऊँट, घोड़े, नौकर-चाकर, बावर्ची
आदि सब छोड़े
और यह हाँडी
ली। हे प्रभु !
तूने यह भी
छुड़ा ली
क्योंकि अब तू
मुझसे मिलना
चाहता है।
प्रभु तेरी जय
हो !
अब
पेट ही हाँडी
बन जायेगा और
हाथ ही
सिरहाने का
काम देगा। जिस
देह को दफनाना
है,
उसके लिए अब
हाँडी भी कौन
संभाले !
जिससे सब
सँभाला जाता
है,
उसकी
मुहब्बत को अब
सँभालूँगा।"
आदमी
को लग जाय तो
ऊँट की मौत भी
उसमें
वैराग्य जगा
देती है, अन्यथा तो
कम्बख्त लोग
अब्बाजान को
दफनाकर घर आकर
सिगरेट
सुलगाते हैं।
अभागे लोग
अम्मा को,
बीबी को,
रिश्तेदारों
को
कब्रिस्तान
में पहुँचाकर
वापस आकर वाइन
(शराब) पीते
हैं। ऐसे
क्रूर लोगों
के जीवन में
वैराग्य नहीं
जगता। पापों
के कारण मन ईश्वर-चिंतन
में, रामनाम
में न लगता हो
तो भी रामनाम
जपते जाओ,
सत्संग सुनते
जाओ, ईश्वर
चिंतन में मन
लगाते जाओ।
इससे पाप कटते
जायेंगे और
भीतर का
ईश्वरीय आनंद
प्रकट होता जायेगा।
अभागा
तो मन है,
आप अभागे
नहीं हो। आप
सब पवित्र हो,
भगव्तस्वरूप
हो। आपका पापी, अभागा मन
अगर आपको भीतर
का रस न भी
लेने दे,
तो भी राम-राम, हरि ૐ, शिव-शिव आदि
भगवन्नाम के
जप में,
कीर्तन में, ध्यान-भजन
में,
संत-महात्मा
के सत्संग
समागम में
बार-बार जाकर
हरि रसरूपी
मिश्री चूसते
रहो। इससे
पापरूपी सूखा
रोग मिटता
जायेगा और
हरिरस की
मधुरता हृदय
में प्रकट
होती जाय़ेगी।
आपका बेड़ा
पार हो जायेगा।
फ्रांस
के वैज्ञानिक
डॉ. एंटोनी
बोविस ने बायोमीटर
(ऊजा मापक
यंत्र) का
उपयोग करके
वस्तु, व्यक्ति, वनस्पति या
स्थान की आभा
की तीव्रता
मापने की
पद्धति खोज
निकाली। इस
यंत्र द्वारा
यह मापा गया
कि सात्त्विक
जगह और मंत्र
का व्यक्ति पर
कितना प्रभाव
पड़ता है।
वैज्ञानिकों
ने पाया कि
सामान्य,
स्वस्थ
मनुष्य का
ऊर्जा-स्तर 6500
बोविस होता है।
पवित्र मंदिर,
आश्रम आदि
के गर्भगृहों
का ऊर्जा-स्तर
11000 बोविस तक
होता है। ऐसे
स्थानों में
जाकर सत्संग, जप, कीर्तन, ध्यान आदि
का लाभ ले के
अपना
ऊर्जा-स्तर
बढ़ाने की जो
परम्परा अपने
देश में है, उसकी अब
आधुनिक
विज्ञान भी
सराहना कर रहा
है क्योंकि
व्यक्ति का
ऊर्जा-स्तर
जितना अधिक होता
है उतना ही
अधिक वह
स्वास्थ्य, तंदुरूस्ती, प्रसन्नता
का धनी होता
है।
ऊर्जा-अध्ययन
करते हुए जब
वैज्ञानिकों
ने ૐकार
के जप से
उत्पन्न
ऊर्जा को मापा
तब तो उनके
आश्चर्य का
ठिकाना ही न
रहा क्योंकि
यह ऊर्जा 70000
बोविस पायी
गयी। और यही
कारण है कि ૐकार
युक्त
सारस्वत्य
मंत्र की
दीक्षा लेकर जो
विद्यार्थी
प्रतिदिन कुछ
प्राणायाम
और
जप करते हैं, वे चाहे
थके-हारे एवं
पिछड़े भी हों
तो भी शीघ्र
उन्नत हो जाते
हैं। ૐकार
की महिमा से
जपकर्ता को सब
तरह से लाभ
अधिक है। यदि
आपके मंत्र
में ૐकार
है तो लगे
रहिये।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
ʹमैं
मीठी वाणी
बोलूँ।ʹ
(अथर्ववेदः
16.2.2)
मीठी
और हितभरी
वाणी दूसरों
को आनंद,
शांति
और
प्रेम का दान
करती है और
स्वयं आनंद
शांति
और
प्रेम को
खींचकर
बुलाती है।
संत
श्री
आशारामजी
बापू का मधुमय
संदेश
मुख
से ऐसा शब्द
कभी मत निकालो
जो किसी का
दिल दुखाये और
अहित करे।
कड़वी और
अहितकारी
वाणी सत्य को
बचा नहीं सकती
और उसमें रहने
वाले आंशिक
सत्य का
स्वरूप भी
बड़ा कुत्सित
और भयानक हो
जाता है जो
किसी को प्यारा
और स्वीकार्य
नहीं लग सकता।
ढंग से कही
हुई बात प्रिय
और मधुर लगती
है। ऐसी वाणी
से सत्य की
रक्षा होती है
एवं उसमें ही सत्य
की शोभा है।
जिसकी
जबान गंदी
होती है उसका
मन भी गंदा
होता है।
महामना पंडित
मदनमोहन
मालवीय जी से
किसी विद्वान
ने कहाः "आप
मुझे सौ गाली
देकर देखिये,
मुझे गुस्सा
नहीं आयेगा।"
महामना
ने जो उत्तर
दिया वह उनकी
महानता को प्रकट
करता है। वे
बोलेः "आपके
क्रोध की
परीक्षा तो
बाद में होगी,
मेरा मुँह तो
पहले ही गंदा
हो जायेगा।"
गंदी
बातों को
प्रसारित
करने में न तो
अपना मुँह
गंदा बनाओ और
न औरों की
वैसी बातें ही
ग्रहण करो।
दूसरा कोई
कड़वा बोले,
गाली दे तो
तुम पर तो तभी
उसका प्रभाव
होता है जब
तुम उसे ग्रहण
करते हो। संत रज्जबजी
ने कहा हैः
रज्जब
रोष न कीजिये
कोई कहे क्यों
ही।
हँसकर
उत्तर दीजिये
हाँ बाबा जी !
यों ही।।
गोस्वामी
तुलसीदासजी
के ये वचन
सदैव याद रखने
योग्य हैं-
तुलसी
मीठे वचन ते
सुख उपजत चहुँ
ओर।
वशीकरण
यह मंत्र है
तज दे वचन
कठोर।।
विद्यार्थी
प्रश्नोत्तरी
प्रश्नः
ब्रह्ममुहूर्त
में (सुबह 4.30-5
बजे क्यों
जगना चाहिए ?
उत्तरः
इस समय शांत
वातावरण,
शुद्ध और शीतल
वायु रहने के
कारण मन में
सात्त्विक
विचार, उत्साह
तथा शरीर में
स्फूर्ति
रहती है।
विद्यार्थियों
के लिए अध्ययन
का यह सबसे
अच्छा समय है।
जो
जागत है सो
पावत है। जो सोवत
है सो खोवत
है।।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
भगवत्पाद
साँईं श्री
लीलाशाहजी की
मिठाई
पूज्य
बापू जी का
सदगुरु
संस्मरण
मेरे
गुरु जी का
आश्रम
नैनिताल में
था। एक बार
गुरु जी के
साथ सामान
लेकर एक कुली
आश्रम में आया।
गुरु
जी ने कहाः "अरे
आशाराम !"
मैंने
कहाः "जी
साँईं !"
"रस्सी
लाओ। इसको
बाँधना है।"
"जी
साँईं लाता
हूँ।"
गुरु
जी अपनी कुटी
में गये और
मैं रस्सी
लाने का नाटक
करने लगा। वह
कुली तो घबरा
गया। जो दो रूपये
लेने को बोल
रहा था, वह
रुपये लिए
बिना ही चले
जाने का विचार
करने लगा।
मैंने उसे
रोका और कहाः "अरे,
खड़ा रहा।"
कुली
ने पूछाः "भाई
!
क्या बात है ?"
मैंने कहाः "अरे
भाई !
खड़ा रहा।
गुरु जी ने
बाँधने की
आज्ञा दी है।"
इतने
में गुरु जी
आये और कुली
से कहने लगेः "इधर
आ... इधर आ !
ले यह मिठाई।
खाता है कि
नहीं ?
नहीं तो वह आशाराम
तुझे बाँध
देगा।"
उसने
तो
जल्दी-जल्दी
मिठाई खाना
शुरु कर दिया।
साँईं बोलेः "खा,
चबा-चबाकर खा।
खाना जानता है
कि नहीं ?"
उसने
कहाः "बाबा
जी !
जानता हूँ।"
साँईं
ने कहाः "अरे
आशाराम !
यह तो खाना
जानता है। इसे
बाँधना नहीं।"
मैंने
कहाः "जी
साँईं !"
साँईं
ने पुनः कहाः "आशाराम
!
यह तो मिठाई
खाना जानता
है। चबा-चबाकर
खाता है।"
फिर उसकी तरफ
देखकर बोलेः "यह
मिठाई घर ले
जा। दो दिन तक
थोडी-थोड़ी
खाना। मिठाई
कैसी लगती है ?"
कुली
ने कहाः "बाबाजी
!
मीठी लगती है।"
साँईं बोलेः "हाँ...
लीलाशाह की
मिठाई है।
सुबह में भी
मीठी और शाम
को भी मीठी,
दिन को भी
मीठी और रात
को भी मीठी।
लीलाशाहजी की
मिठाई जब खाओ
तब मीठी।"
कुली
भले अपने ढंग
से समझा होगा
परंतु हम तो समझ
रहे थे कि
पूज्य श्री
लीलाशाहजी
बापू का ज्ञान
जब विचारो तब
मधुर-मधुर।
ज्ञान भी मधुर
और ज्ञान देने
वाले भी मधुर
तो ज्ञान लेने
वाला मधुर
क्यों न हो
जाय ?
ज्यों
केले के पात
में, पात-पात
में पात।
त्यों
संतन की बात
में, बात-बात
में बात।।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
गुरु
बिनु भव निधि1
तरहिं2 न कोई |
जौं3
बिरंचि4
संकर सम होई ||
-संत
तुलसीदासजी
हरिहर
आदिक जगत में
पूज्यदेव जो
कोय |
सदगुरू
की पूजा किये
सबकी पूजा होय
||
-निश्चलदासजी
महाराज
सहजो
कारज5 संसार
को गुरू बिन
होत नाँही |
हरि तो
गुरू बिन क्या
मिले, समझ
ले मन माँही ||
-संत
कबीरजी संत
संत सरनि6
जो जनु7 परै8
सो जनु
उधरनहार9 |
संत की
निंदा नानका
बहुरि बहुरि
अवतार10 ||
-गुरू
नानक देवजी
"गुरूसेवा
सब भाग्यों की
जन्मभूमि है
और वह शोकाकुल
लोगों को
ब्रह्ममय कर
देती है | गुरुरूपी
सूर्य
अविद्यारूपी
रात्रि का नाश
करता है और
ज्ञानाज्ञान
रूपी सितारों
का लोप करके
बुद्धिमानों
को आत्मबोध का
सुदिन दिखाता
है |"
-संत
ज्ञानेश्वर
महाराज
"सत्य
के कंटकमय
मार्ग में
आपको गुरू के
सिवाय और कोई
मार्गदर्शन
नहीं दे सकता |"
-
स्वामी
शिवानंद
सरस्वती
"कितने
ही
राजा-महाराजा
हो गये और
होंगे, सायुज्य
मुक्ति कोई
नहीं दे सकता |
सच्चे
राजा-महाराज
तो संत ही हैं |
जो उनकी
शरण जाता है
वही सच्चा सुख
और सायुज्य
मुक्ति11
पाता है |"
-समर्थ
श्री रामदास
स्वामी
"मनुष्य
चाहे कितना भी
जप-तप करे,
यम-नियमों
का पालन करे
परंतु जब तक
सदगुरू की कृपादृष्टि
नहीं मिलती तब
तक सब व्यर्थ
है |"
-स्वामी
रामतीर्थ
प्लेटो
कहते है कि :
"सुकरात जैसे
गुरू पाकर मैं
धन्य हुआ ।"
इमर्सन
ने अपने गुरू
थोरो से जो
प्राप्त किया उसके
महिमागान में
वे भावविभोर
हो जाते थे ।
श्री
रामकृष्ण
परमहंस
पूर्णता का
अनुभव करानेवाले
अपने सदगुरूदेव
की प्रशंसा
करते नहीं
अघाते थे ।
पूज्यपाद
स्वामी श्री
लीलाशाहजी
महाराज भी
अपने सदगुरूदेव
की याद में
स्नेह के आँसू
बहाकर गदगद
कंठ हो जाते थे।
पूज्य
बापूजी भी
अपने
सदगुरूदेव की
याद में कैसे
हो जाते हैं
यह तो देखते
ही बनता है ।
अब हम उनकी
याद में कैसे
होते हैं यह
प्रश्न है । बहिर्मुख
निगुरे लोग
कुछ भी कहें,
साधक को
अपने सदगुरू
से क्या मिलता
है इसे तो साधक
ही जाते हैं ।
1-संसार
सागर, 2-तरना,
3-चाहे,
4-ब्रह्माजी,
5-कार्य, 6-शरण,
7-लोग, 8-पड़ते
हैं, 9-उद्धार
होता है,
10-संत-निंदक अनेक-अनेक
योनियों में
भटकता है।
11-सर्वोपरि मुक्ति,
जीवात्मा को
अपने सर्वव्यापक
आत्म-परमात्मस्वरूप
का अनुभव
होना।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
श्रद्धापूर्वाः
सर्वधर्मा
मनोरथफलप्रदाः।
श्रद्धया
साध्यते
सर्वं
श्रद्धया
तुष्यते हरिः।।
ʹश्रद्धापूर्वक
आचरण में लाये
हुए ही सब
धर्म
मनोवांछित फल
देने वाले
होते हैं। श्रद्धा
से सब कुछ
सिद्ध होता
है। और
श्रद्धा से ही
भगवान श्री
हरि संतुष्ट
होते हैं।ʹ (नारद
पुराण)
ʹजिन्होंने
नीम के पेड़
को आज्ञा देकर
चला दिया ऐसे
साँईं श्री
लीलाशाहजी का
शिष्य लगता हूँ।
यमराज
को दम मारकर
जिंदी हो गयी
ऐसी नानी का
दोहता लगता
हूँ।
गरीबों
की सेवा का
नियम न चूके
इसलिए घंटों
मेरा जन्म रोक
दिया ऐसी माँ
का बेटा लगता
हूँ।
मेरू
पर्वत चाहे
डिग जाय पर
जिनकी
श्रद्धा कभी
डिगती नहीं
ऐसे
करोड़ों-करोड़ों
शिष्यों का
मैं बापू लगता
हूँ।ʹ
ऐसा कोई
नाम याद करना
चाहें जिनका
सब कुछ दबंग
हो तो जो नाम
मुख में आता
है, वह है
आध्यात्मिक
गुरु पूज्य
संत श्री
आशाराम जी
बापू !
दबंग
प्राकट्य
जन्म के
बाद तो हर कोई
खुशियाँ
मनाता है,
लेकिन बापू जी
के धरती पर
प्राकट्य से
पहले ही एक सौदागर
सुंदर और
विशाल झूला
लेकर घर पर आ
गया। बोलाः "आपके घर
संत-पुरुष आऩे
वाले हैं।"
और खूब अनुनय
विनय करके
भव्य झूला दे
गया। है न
दबंग
प्राकट्य !
दबंग
बाल्यकाल
बाल्यावस्था
में किसी ने "ऐ टेणी
(ठिंगूजी)"
कहकर बुलाया
तो बालक आसुमल
ने रोज
पुलअप्स करके
40 दिनों में ही
पीछे से जाकर
उसके कंधे पर
हाथ रखाः "ऐ
पहचाना ?"
वह व्यक्ति
बोलाः "अरे
भाई साहब !
आप.... आप .... क्षमा
करना !"
ऐसी दबंगई की
बोलती बंद !
दबंग
युवावस्था
आपकी
युवावस्था
योग, ज्ञान,
वैराग्य की
दबंगई से
सुशोभित रही।
एक बार
नदी-किनारे
खाली बरामदे
में रात्रि को
ध्यानस्थ
बैठे आपको
चोर-डाकू
समझकर मच्छीमारों
का पूरा गाँव
लाठियाँ, भाले
हथियारों से
लैस होकर आपको
घेर के खड़ा
हो गया। लेकिन
आप तो शांतभाव
से भीड़ को
चीरते हुए
निकल पड़े, किसी
की हिम्मत
नहीं कि
निहत्थे आपको
स्पर्श भी
करता।
डीसा(गुजरात)
में बनास नदी
के सुनसान
तटवर्ती इलाके
में एक शराब
की भट्टीवाले
ने आपके गले
पर धारिया
(तलवार से भी
बड़ा धारदार
हथियार) रखा,
बोलाः "खींचू
?"
"तेरी
मर्जी पूरण
हो।" – यह
सुनकर वह गला
काटने वाला
धारिया एक तरफ
फेंका और
शातिर, खूँखार
व्यक्ति खुद
चरणों में गिर
पड़ा। वह
अपराधी
व्यक्ति और
उसके साथी भी
भक्तिभाव
वाले हो गये।
कैसी दबंगई !
दबंग
चुनौती
आपने
चुनौती भी दी
तो सीधे ईश्वर
कोः "मुझे
भले तुम्हें
पाने के लिए
खूब यत्न करने
पड़ रहे हैं
किंतु तू मुझे
एक बार मिल ,
मैं तुम्हें
सस्ता बना
दूँगा।"
और क्या
दबंगई है कि
पाया भी और
चैलेंज
निभाया भी !
दबंग
मुहब्बत
एक दिन
सुबह भूख लगी तो
उस समय जंगल
में रमते जोगी
हठ कर बैठ
गयेः ʹजिसको
गरज होगी
आयेगा,
सृष्टिकर्ता
खुद लायेगा।ʹ और दो
किसान स्वप्न
में परमात्मा
की प्रेरणा पा
के दूध व फल
लेकर हाजिर !
दबंग
सत्संग
शरीर की 72
वर्ष की उम्र
में भी – बापू
जी एक... पूनम
एक..... और पूनम
दर्शन-सत्संग 4-4
जगह ! हर जगह,
हर रोज
हवा-पानी का
बदलाव और सतत
भ्रमण... फिर भी
अजब स्फूर्ति,
अजब मस्ती,
अजब नृत्य और नित्य
उत्सव.... भारत
में ही नहीं
पाकिस्तान के ʹगाजी
गार्डनʹ में
भी अभूतपूर्व
उत्सव ! ʹविश्व
धर्म संसदʹ में
भी भारत का
दबंग नेतृत्व ! वहाँ के
सबसे प्रभावशाली
वक्ता, सत्संग
के लिए दूसरों
से कहीं ज्यादा
समय। सब कुछ
दबंग !
दबंग
प्रेरणास्रोत
लौकिक
पढ़ाई कक्षा 3
तक लेकिन
आध्यात्मिक
अनुभूति का
ज्ञान अदभुत ! तभी तो
कई डि. लिट्.,
पी.एच.डी.,
आई.ए.एस. आदि
तथा कई राष्ट्रपति,
प्रधानमंत्री,
मुख्यमंत्री,
खिलाड़ी,
वैज्ञानिक
एवं
सुप्रसिद्ध
हस्तियाँ
चरणों में शीश
झुकाकर भाग्य
चमका लेती
हैं।
दबंग
पहल
14 फरवरी
को ʹवेलेन्टाइन
डेʹ
के स्थान पर ʹमातृ-पितृ-पूजन
दिवसʹ
का
विश्वव्यापी
अभियान आपने
शुरु किया,
जिसको आज समाज
के सभी धर्म,
सभी मत-पंथ,
सम्प्रदायों
के साथ सभी
क्षेत्र के
अग्रणियों,
राष्ट्रपति,
मुख्यमंत्रियों
का भी समर्थन
प्राप्त हुआ
है।
महाराजश्री
की इस दबंग पहल
का समर्थन
करते हुए
छत्तीसगढ़
सरकार ने इसे
राज्यस्तरीय
पर्व घोषित कर
दिया है।
दबंग
चमत्कार
29 अगस्त 2012
को गोधरा
(गुजरात)
में बापू जी
का
हेलिकॉप्टर
क्रैश हुआ।
मजबूत धातु के
भारी भरकम
पुर्जों से
बने
हेलिकॉप्टर के
तो
टुकड़े-टुकड़े
हो गये लेकिन
अंदर बैठे पूज्य
बापू जी और
सभी शिष्यों
के कोमल
शरीरों का
पुर्जा-पुर्जा
चुस्त-तंदुरूस्त
रहा। जबकि आज
तक की
हेलिकॉप्टर
क्रैश
दुर्घटनाओं
का इतिहास
बड़ा
रक्तरंजित
है। हादसे के
तुरंत बाद
बापू जी ने
भक्तों के बीच
पहुँचकर दबंग
सत्संग भी
किया
हेलिकॉप्टर
हुआ चूर-चूर,
दबंग बापू जी
ज्यों-के-त्यों
भरपूर !
आप अपने
दिव्य ʹपावर
हाउसʹ
से कुंडलिनी
शक्तिपात की
ऐसी दबंग
वर्षा कर देते
हैं कि सामने
बैठे हुए
हजारों
शिविरार्थियों
की कुंडलिनी
जागृत हो जाती
है और उनके
जीवन में
ज्ञान और आनंद
का उजाला-ही-उजाला
हो जाता है।
जीवन का
हर पल, हर
लम्हा दबंग
उत्सव बन जाता
है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
पूज्य
बापू जी की
ज्ञानमयी
अमृतवाणी
नैमिषारण्य
(जो लखनऊ के
पास है) में
शबर जाति का
कृपालु नाम का
एक व्यक्ति ʹवृक्ष-नमनʹ
मंत्रविद्या
जानता था।
उसकी विद्या
में ऐसा प्रभाव
था कि खजूर के
वृक्ष झुक
जाते थे र उनका
रस वह एकत्र
करता था।
महर्षि
वेदव्यासजी
को वह मंत्र
जान लेने की
जिज्ञासा
हुई। व्यास जी
उसके पास जाते
तो कृपालु भाग
जाता था।
जब बहुत
बार व्यासजी
निराश होकर
लौटे तो उसके बेटे
को उन पर दया आ
गयी। वह बोलाः
"आप
जैसे
महापुरुष
हमारे घर आयें
और हमारे पिता
जी न मिलें, यह
ठीक नहीं
लगता। आखिर
आपको हमारे
पिता जी से
क्या काम है ?"
वेदव्यासजी
बोलेः "मैं
उनसे ʹवृक्ष
नमन विद्याʹ का
मंत्र लेना
चाहता हूँ।"
"महाराज
! यह छोटी
सी बात तो मैं
ही बता दूँ
आपको।"
थोड़ी विधि
करा के बेटे
ने मंत्र दे
दिया।
कृपालु
शबर आया तो
बेटे ने सारी
हकीकत बता दी।
वह नाराज हो
गया कि "मूर्ख
है तू !
वेदव्यासजी
इतने बड़े
महापुरुष हैं,
उन्हें हम
मन्त्र कैसे
दे सकते हैं ! अगर हम
मंत्र दें और
उनमें
श्रद्धा नहीं
हो तो मंत्र
सफल नहीं
होगा। जो
मंत्र और
मंत्रदाता का
आदर नहीं करता
उसको मंत्र
फलता नहीं है।
तू जा और
देख, व्यासजी
मंत्र देने
वाले का आदरपूजन
करते हैं कि
नहीं करते ?
अगर नहीं
करेंगे तो
उनको मंत्र नहीं
फलेगा।"
शबरपुत्र
वेदव्यासजी
के पास गया तो
उस समय ऋषि,
मुनि, तपस्वी,
हजारों लोगों
से और राजाओं
से सम्मानित
होने वाले
व्यक्ति भी
व्यासजी के चरणों
में बैठे थे।
व्यासजी की
नजर जब
शबरपुत्र पर
पड़ी तो वे
उठकर उसका
स्वागत करने
गये और आसन पर
बैठाकर उसका
सत्कार किया।
वह दंग रह गया
कि ʹभगवान
श्री कृष्ण
जिनका आदर
करते हैं ऐसे
भगवान
व्यासजी ने
मेरा सत्कार
किया !ʹ
घर जाकर
अपने पिता को
सारा
वृत्तांत
सुनाया। तब
उसके पिता ने
कहाः "सचमुच,
व्यासजी महान
हैं।"
व्यासजी
की विशाल
बुद्धि एवं
नम्रता का
सदगुण,
मंत्रदाता का
आदर और मंत्र
पर श्रद्धा
विश्वास हमें
बहुत कुछ सिखाता
है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
ૐ
नमः शिवाय।
राम ૐ. ૐ
गं गं गणपतये
नमः। हरि ૐ।
ૐ
नमो भगवते
वासुदेवाय। ૐ
गुरु। हरि ૐ।
भगवान
श्रीकृष्ण ने
श्रीमद्
भगवदगीता में
कहा हैः यज्ञानां
जपयज्ञोઽस्मि।
ʹयज्ञों
में जपयज्ञ
मैं हूँ।ʹ मंत्रजाप
मम दृढ़
बिस्वासा।
पंचम भक्ति सो
बेद
प्रकासा।।
ʹमेरे
मंत्र का जप
और मुझमें
दृढ़ विश्वास –
यह पाँचवीं
भक्ति है।ʹ
(श्रीरामचरित
मानस)
इस
प्रकार
विभिन्न
शास्त्रों
में मंत्रजप की
अदभुत महिमा
बतायी गयी है।
परंतु यदि
मंत्र किन्हीं
ब्रह्मनिष्ठ
सदगुरु से
दीक्षा में प्राप्त
हो जाय तो
उसका प्रभाव
अनंत गुना
होता है। संत
कबीर जी कहते
हैं-
सदगुरु
मिले अनंत फल,
कहत कबीर
विचार।
श्रीसदगुरुदेव
की कृपा और
शिष्ट की
श्रद्धा, इन
दो पवित्र
धाराओं के
संगम का नाम
ही ʹदीक्षाʹ
है। भगवान
शिवजी ने
पार्वतीजी को
आत्मज्ञानी
महापुरुष
वामदेवजी से
दीक्षा
दिलवायी थी। काली
माता ने श्री
रामकृष्ण को
ब्रह्मनिष्ठ सदगुरु
तोतापुरी
महाराज से
दीक्षा लेने
के लिए कहा
था। भगवान
विट्ठल ने
नामदेवजी को
आत्मवेत्ता
सत्पुरुष
विसोबा खेचर
से दीक्षा
लेने के लिए
कहा था। भगवान
श्री राम और
श्रीकृष्ण ने
भी अवतार लेने
पर सदगुरु की
शरण में जाकर
मार्गदर्शन
लिया था। इस प्रकार
जीवन में
ब्रह्मनिष्ठ
सदगुरु से दीक्षा
पाने का बड़ा
महत्त्व है।
"तीन
चीजें मृत्यु
के बाद भी
पीछा नहीं
छोड़तीं-
पुण्य, पाप और
गुरुमंत्र।
पुण्य मृत्यु
के बाद स्वर्ग
में ले जाता
है, पाप नरक
में ले जाता
है और अगर
श्रद्धा से
गुरुमंत्र का
जप करते रहें
तो जब तक
ईश्वरप्राप्ति
नहीं होती तब
तक समर्थ सदगुरु
से दीक्षा में
मिला मंत्र भी
पीछा नहीं छोड़ता।"
(पूज्य बापू
जी)
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
पूज्य
बापू जी से
मंत्रदीक्षा
लेने के बाद
भक्तों के
जीवन में अनेक
प्रकार के लाभ
होने लगते
हैं, जिनमें 19
प्रकार के
प्रमुख लाभ इस
प्रकार हैं-
गुरुमंत्र
के जप से
बुराइयाँ कम
होने लगती
हैं। पापनाश व
पुण्य संचय
होने लगता है।
मन पर
सुख-दुःख का
प्रभाव पहले
जैसा नहीं
पड़ता।
सांसारिक
वासनाएँ कम
होने लगती
हैं।
मन कि
चंचलता व
छिछोरापन
मिटने लगता
है।
अंतःकरण
में
अंतर्यामी
परमात्मा की
प्रेरणा
प्रकट होने
लगती है।
अभिमान
गलता जाता है।
बुद्धि
में शुद्ध
सात्त्विक
प्रकाश आने
लगता है।
अविवेक
नष्ट होकर
विवेक जागृत
होता है।
चित्त
को समाधान,
शांति मिलती
है, भगवदरस,
अंतर्मुखता
का रस और आनंद
आने लगता है।
आत्मा व
ब्रह्म की
एकता का ज्ञान
प्रकाशित होता
है कि ʹमेरा
आत्मा
परमात्मा का
अविभाज्य अंग
है।ʹ
हृदय
में
भगवत्प्रेम
निखरने लगता
है, भगवन्नाम,
भगवत्कथा में
प्रेम बढ़ने
लगता है।
परमानंद
की प्राप्ति
होने लगती है
और भगवान व भगवान
का नाम एक है –
ऐसा ज्ञान
होने लगता है।
चित्त
में पहले की
अपेक्षा
हलचलें कम
होने लगती हैं
और व्यक्ति
समत्वयोग में
पहुँचने के काबिल
बनता जाता है।
व्यक्ति
साकार या
निराकार
जिसको भी
मानता है, उसी
की प्रेरणा से
उसके ज्ञान व
आनंद के साथ और
अधिक
एकाकारता का
एहसास करने
लगता है।
दुःखालय
संसार में,
दुनियावी
चीजों में
पहले जैसी
आसक्ति नहीं
रहती है।
मनोरथ
पूर्ण होने
लगते हैं।
गुरुमंत्र
परमात्मा का
स्वरूप ही है।
उसके जप से
परमात्मा से संबंध
जुड़ने लगता
है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
रंगवर्षा
द्वारा बरसी
गुरुकृपा
"मेरे
पति
आई.एस.आर.ओ.(इंडियन
स्पेस रिसर्च
ऑर्गनाइजेशन)
में
वैज्ञानिक
है। मेरे
बच्चे गौरव के
पित्ताशय (गाल
ब्लैडर) में
पथरी थी।
मैंने एक से
एक डॉक्टर को
दिखाया पर सभी
ने बोला कि
इसके
पित्ताशय की
थैली को ऑपरेशन
करके निकालना
पड़ेगा। मुझे
भीतर से प्रेरणा
हुई कि बापू
जी के होली
शिविर में
सूरत जायें।
बापू जी के
हाथों से
रंगवर्षा का लाभ
मिला। हम लोग
वापस भोपाल
आये और
सोनोग्राफी
करवायी तो
पित्ताशय में
कुछ भी नहीं
मिला, पथरी
गायब हो गयी
थी।
ममता
सिंह, अयोध्या
नगर, भोपाल,
म.प्र.
बड़दादा
की कृपा से
ब्लड कैंसर
गायब
"मुझे ʹब्लड
कैंसरʹ था। मैं
रायपुर स्थित
बापू जी के
आश्रम में
गया, बड़
बादशाह (पूज्य
बापू जी
द्वारा
शक्तिपात
किया गया वटवृक्ष)
की परिक्रमा
की। 20 दिन बाद
खून की जाँच करायी
तो श्वेत कणों
की संख्या
पाँच लाख से
घट कर 9600∕घन
मि.मी. हो गयी
थी। डॉक्टर
बोल उठेः "मैंने
अपने पूरे
कैरियर में
ऐसा केस पहली
बार देखा कि
ब्लड कैंसर का
मरीज मात्र 20
दिन में ठीक
हो गया।"
भोज
चन्द्राकर
बालोद,
जि.दुर्ग
(छत्तीसगढ़)
श्रीआशारामायण
के पाठ से
जीवनदान
"मेरा 10
वर्षीय पुत्र
अचानक बीमार
हुआ। साँस भी
मुश्किल से ले
रहा था।
डॉक्टर बोलेः ʹगंभीर
हालत है।
ऑपरेशन करना
पड़ेगा।ʹ मैं
पैसे लेने घर
गया व ʹश्रीआशारामायण
का पाठ शुरु
करवाया। फिर
हॉस्पिटल
पहुँचा तो बच्चा
हँस खेल रहा
था। यह सब
बापू जी की
असीम कृपा और
श्री
आशारामायण-पाठ
का फल है।"
सुनील
चांडक,
अमरावती (महा.)
नाम
प्रताप से
सुनामी से
सुरक्षा
"मैं
तोशिबा की
सॉफ्टवेयर
कम्पनी में
काम करता हूँ।
12 दिसम्बर 2010 को
मैं
व्यापार-यात्रा
पर टोकियो
(जापान) गया
था। एक दिन
सुबह जब मैं
गुरुमंत्र का
जप कर रहा था तो
एकाएक मुझे
प्रेरणा हुई
कि ʹतू
भारत वापस
चला
जा।ʹ 11
मार्च को मैं
टोकियो से
बैंगलोर के
लिए रवाना हो
गया। उसके
केवल दो घंटे
बाद वहाँ
सुनामी का
महातांडव
हुआ। मुझे मौत
के मुँह से
निकालने वाले
सदगुरुदेव और
गुरुमंत्र की
महिमा का
वर्णन नहीं हो
सकता।"
तारकेश्वर
प्रसाद,
बैंगलोर
मुझको
जो मिला है वो
तेरे दर से
मिला है...
"1998 में
मात्र 7 वर्ष
की उम्र में
मैंने
सारस्वत्य
मंत्र की
दीक्षा
प्राप्त की।
सन् 2001 में मुझे स्टार
टीवी पर
आयोजित
कार्यक्रम
में प्रथम
पुरस्कार व भारत
सरकार की ओर
से सन् 2006 का ʹबाल
श्रीʹ
पुरस्कार
मिला। नवम्बर
2007 में 15 वें
इन्टरनैशनल
चिल्ड्रेन्स
फिल्म
फेस्टीवल,
हैदराबादʹ में
मुझे बाल
निर्णायक
मंडल में
आमंत्रित किया
गया। 2008-09 में ʹइण्डियन
आयडल-4ʹ
में मैं टॉप-6
तक पहुँची।
गायन क्षेत्र
के प्रतिष्ठित
निर्णायकों
ने मेरे गायन
की खुले दिल
से प्रशंसा
की। यह सब
गुरुदेव के
आशीर्वाद एवं
गुरुदीक्षा
का ही प्रभाव
है।"
भव्या पंडित,
मुंबई
दीक्षा
से बदलती है
जीवन दिशा
"मैं
पेशे से एक
डॉक्टर हूँ और
सन् 1960 से
अमेरिका में
रहता हूँ।
मुझे मेडिकल
कॉलेज में
प्रवेश नहीं
मिल रहा था, उस
समय भगवान की
महती कृपा से ही
मुझे बापू जी
के सत्संग में
जाने का
सौभाग्य
मिला। उनकी
कृपा से मुझे
कॉलेज में
प्रवेश मिल
गया। मैं कई
साधु-महात्माओं
के पास गया पर बापू
जी के सत्संग
में मुझे
अवर्णनीय,
असीम शांति का
अनुभव हुआ।
मुझे कई
दुर्व्यसनों
से भी मुक्ति
मिल गयी। पहले
मेरी आमदनी भी
बहुत कम थी
किंतु अब बापू
जी की कृपा से
सालभर में
लगभग एक करोड़
रूपये से भी
ज्यादा कमा
लेता हूँ। आज
मेरा पूरा
परिवार पूज्य
बापू जी से दीक्षित
है।"
Dr. Rajeev
Yadav, 2362, Camberwell, St. Louis, Missouri (U.S.A.)
जो यहाँ
मिला वह कहीं
नहीं
"मेरे
माता-पिता के
पास अरबों की
जमीन-जायदाद है।
मैं अनेक
देशों में
घूमा हूँ
लेकिन जो प्रेम
और शांति
मैंने पूज्य
बापू जी के
दिव्य सान्निध्य
में पायी है
वह मुझे
दुनिया में
कहीं नहीं
मिली।"
Mr. James W.Higgins, South Wells, U.K.
सारस्वत्य
मंत्र के
अदभुत परिणाम
"मैं
बारहवीं का
छात्र हूँ।
पहले मैं
पढ़ाई में
बहुत कमजोर
था। खेलकूद
तता स्कूल की
किसी भी
प्रवृत्ति
में मेरा मन
नहीं लगता था।
सन् 2006 में
माता-पिता ने
मुझे पूज्य
बापू जी से
सारस्वत्य मंत्र
की दीक्षा
दिला दी थी।
मैंने
मंत्रजप,
भ्रामरी
प्राणायाम
तथा बापू जी
द्वारा बताये
गये अन्य
प्रयोग शुरु
कर दिये।
मैंने 2
अनुष्ठान
किये तो उनके
चमत्कारिक फायदे
मुझे देखने को
मिले। वर्ष 2011
में जी.के. ओलम्पियाड
में राज्य में
पहला तथा
भारतभर में चौथा
स्थान प्राप्त
कर मैंने
स्वर्णपदक
पाया तथा
विज्ञान
ओलम्पियाड
में रजत पदक
पाया।
करुणासिंधु गुरुदेव
पूज्य बापू जी
की महिमा अपार
है !"
पंकज
शर्मा,
निजामपुर, जि.
बुलंदशहर
(उ.प्र.)
सारस्वत्य
मंत्र की
दीक्षा लेकर
कई विद्यार्थियों
ने अपना
भविष्य
उज्जवल बनाया
है। आप भी ऐसे
सौभाग्यशाली
बनिये।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
अपना
ईश्वरीय वैभव
जगाने का पर्व
गुरुपूर्णिमा
पूज्य
बापू जी की
दिव्य
अमृतवाणी
गुरुपूर्णिमा
का दूसरा नाम
है
व्यासपूर्णिमा।
वेद के गूढ़
रहस्यों का
विभाग करने
वाले
कृष्णद्वैपायन
की याद में यह
गुरुपूर्णिमा
महोत्सव
मनाया जाता
है। भगवान
वेदव्यास ने बहुत
कुछ दिया मानव
जाति को। ऐसे
वेदव्यासजी को
सारे ऋषियों
और देवताओं ने
खूब-खूब
प्रार्थना की ʹहे
जाग्रत देव
सदगुरु !
हर देव का
अपना
तिथि-त्यौहार
होता है तो आप
जैसे
महापुरुषों
के
पूजन-अभिवादन
के लिए भी कोई
दिन होना चाहिए।ʹ
गुरुभक्तों
के लिए
गुरुवार तय
हुआ और व्यासजी
ने जो विश्व
का प्रथम आर्ष
ग्रंथ रचा ʹब्रह्मसूत्रʹ, उसके
आरम्भ-दिवस
आषाढ़ी
पूर्णिमा का ʹव्यासपूर्णिमा,
गुरुपूर्णिमाʹ नाम
पड़ा।
तो इस
दिन व्यासजी
की स्मृति में
ʹअपने-अपने
गुरु में
सत्-चित्-आनंदस्वरूप
ब्रह्म परमात्मा
का वास हैʹ, ऐसा
सच्चा ज्ञान
याद करके उनका
पूजन करते हैं।
यह तपस्या का
दिन है, व्रत
का दिन है। ʹमेरे
मन में ये
कमियाँ हैं,
मेरे व्यवहार
में ये-ये
कमियाँ हैं,
मेरे जीवन में
ये-ये कमियाँ हैंʹ - इस
प्रकार आत्म-विश्लेषण
करके उन
कमियों को
निकालने के
लिए हम कर
सकें उस
प्रकार का कोई
व्रत या
जप-अनुष्ठान
आदि का कोई
नियम लेकर आगे
की यात्रा के
लिए संकल्प
करने का दिन
है।
व्यासपूर्णिमा
का पर्व हमारी
सोयी हुई शक्तियाँ
जगाने को आता
है।
व्यासपूर्णिमा
हमें स्वतंत्र
सुख, स्वतंत्र
ज्ञान,
स्वतंत्र
जीवन का संदेश
देती है, हमें
अपनी महानता
का दीदार
कराती है।
मानव ! तुझे
नहीं याद
क्या, तू
ब्रह्म का ही
अंश है।
व्यासपूर्णिमा
कहती है कि
तुम अपने
भाग्य के आप
विधाता हो,
तुम अपने आनंद
के स्रोत आप
हो। सुख हर्ष
देगा, दुःख
शोक देगा
लेकिन ये
हर्ष-शोक
आयेंगे-जायेंगे,
तुम तुम्हारे
आनंदस्वरूप
को जगाओ फिर
सब बौने हो
जायेंगे। यह
वह पूनम है जो
हर जीव को
अपने
भगवत्स्वभाव
में स्थिति
करने में बड़ा
सहयोग देती
है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
कबीर सोई
दिन भला जा
दिन साधु
मिलाय।
अंक भरै भरि
भेंटिये पाप
शरीरां
जाय।।1।।
कबीर दरशन
साधु के बड़े
भाग दरशाय।
जो होवे
सूली सजा काटै
ई टरी
जाय।।2।।
दरशन कीजै
साधु का दिन
में कई कई
बार।
आसोजा का
मेह ज्यों
बहुत करै
उपकार।।3।।
कई बार नहीं
कर सकै दोय
बखत करि लेय।
कबीर साधु
दरस ते काल
दगा नहीं
देय।।4।।
दोय बखत
नहीं कर सकै
दिन मे करू इक
बार।
कबीर साधु
दरस ते उतरै
भौ जल
पार।।5।।
दूजै दिन
नहीं करि सकै
तीजै दिन करू
जाय।
कबीर साधु
दरस ते मोक्ष
मुक्ति फल
पाय।।6।।
तीजै चौथे
नहीं करै
सातैं दिन करू
जाय।
या में
विलंब न कीजिये
कहै कबीर
समुझाय।।7।।
सातैं दिन
नहीं करि सकै
पाख पाख करि
लेय।
कहै कबीर सो
भक्तजन जनम
सुफल करि
लेय।।8।।
पाख पाख
नहीं करि सकै
मास मास करू
जाय।
ता में देर न
लाइये कहै
कबीर
समुझाय।।9।।
मात-पिता
सुत इस्तरी
आलस बंधु
कानि।
साधु दरस को
जब चलै ये
अटकावै
खानि।।10।।
इन अटकाया
ना रहै साधु
दरस को जाय।
कबीर सोई
संतजन मोक्ष
मुक्ति फल
पाय।।11।।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
एक बार
भक्तिमति
मीराबाई को
किसी ने ताना
माराः "मीरा
! तू तो
राजरानी है।
महलों में
रहने वाली,
मिष्ठान्न-पकवान
खाने वाली और
तेरे गुरु
झोंपड़े में
रहते हैं।
उन्हें तो एक
वक्त की रोटी
भी ठीक से
नहीं मिलती।"
मीरा से
यह कैसे सहन
होता। मीरा ने
पालकी मँगवायी
और गुरुदर्शन
के लिए चल
पड़े। मायके
से कन्यादान
में मिला एक
हीरा उसने
गाँठ में बाँध
लिया। रैदास
जी की कुटिया
जगह-जगह से
टूटी हुई थी।
वे एक हाथ में
सूई और दूसरे
में एक फटी-पुरानी
जूती लेकर
बैठे थे। पास
ही एक कठोती
पड़ी थी। हाथ
से काम और मुख
में नाम चल
रहा था। ऐसे महापुरुष
कभी बाहर से
चाहे
साधन-सम्पदा
विहीन दिखें
पर अंदर की
परम सम्पदा के
धनी होते हैं
और बाहर की
धन-सम्पदा
उनके चरणों की
दासी होती है।
यह संतों का
विलक्षण
ऐश्वर्य है।
मीरा ने
गुरुचरणों
में वह
बहूमूल्य
हीरा रखते हुए
प्रणाम किया।
उसके नेत्रों
में श्रद्धा-प्रेम
के आँसू उमड़
रहे थे। वह
हाथ जोड़कर निवेदन
करने लगीः "गुरुजी
! लोग
मुझे ताने
मारते हैं कि
मीरा तू तो
महलों में
रहती है और
तेरे गुरु को
रहने के लिए
अच्छी कुटिया भी
नहीं है।
गुरुदेव
मुझसे यह सुना
नहीं जाता।
अपने चरणों
में एक दासी
की यह तुच्छ
भेंट स्वीकार
कीजिये। इस
झोंपड़ी और
कठौती को
छोड़कर
तीर्थयात्रा
कीजिये और...."
और आगे
संत रैदासजी
ने मीरा को
बोलने का मौका
नहीं दिया। वे
बोलेः "गिरधर
नागर की
सेविका होकर
तुम ऐसा कहती
हो ! मुझे
इसकी जरूरत
नहीं है। बेटी
! मेरे
लिए इस कठौती
का पानी ही
गंगाजी है, यह
झोंपड़ी ही
मेरी काशी है।"
इतना
कहकर रैदासजी
ने कठौती में
से एक अंजलि जल
लेकर उसकी धार
की और अनेकों
सच्चे मोती
जमीन पर बिखर
गये। मीरा
चकित-सी देखती
रह गयी।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
विद्यार्थी
जीवन को महान
बनाने के आठ
दिव्य सूत्र
पूज्य
बापू जी
ओजस्वी-तेजस्वी
व महान बनने
के लिए
विद्यार्थी-जीवन
में आठ सदगुण
आने ही चाहिएः
शांत
स्वभावः शांत
रहना सीखो
मेरे बच्चे ! ૐઽઽઽ.....
उच्चारण किया
और जितनी देर
उच्चारण किया
उतनी देर शांत
हो गये। ऐसा 10
से 15 मिनट
ध्यान करें। शांत
रहने से
याददाश्त,
सामर्थ्य
बढ़ेंगे और दूसरे
भी कई लाभ
होंगे।
इन्द्रिय-संयमः
कौन
कितनी ज्यादा
देर चुप रह
सकता है ?
कौन कितनी देर
अपनी
इन्द्रियों
को नियंत्रित
कर सकता है ? – ऐसे
अपनी
इन्द्रियों
पर अपना
प्रभाव जमाओ।
जो जितना
संयमी होता
है, उसका जीवन
उतना ही अधिक
सफल होता है।
निर्दोष
व्यवहारः माँ-बाप
से झूठ बोलना,
लड़ना-झगड़ना
आदि दोष जिनमें
हैं – उनके दोष
अपने में न
आयें और उनके
भी दोष निकलें,
ऐसा अपना
निर्दोष
व्यवहार
रखें। अपनी
खुशी से दूसरे
के गम हरो।
अपनी सूझबूझ
से दूसरे की
बेवकूफी दूर
करो बापू के
बच्चे !
सदाचारः
झूठ-कपट,
पलायनवादिता,
कपटाचार अपना
बहुत नुकसान
करते हैं।
जिसके जीवन
में संयम है,
सदाचार है वह
विद्यार्थी
जीवन के हर क्षेत्र
में सफल होता
है।
ब्रह्मचर्यः ʹदिव्य
प्रेरणा
प्रकाशʹ
पुस्तक
पढ़ना।
ब्रह्मचर्य
का गुण
विद्यार्थी-जीवन
में होना ही
चाहिए। यह
बुद्धि में
प्रकाश लाता
है, जीवन में
ओज-तेज, ऊँची
समझ लाता है कि
ʹआत्मा
ब्रह्म है, उसको
पहचानना ही
हमारा लक्ष्य
है।ʹ
अनासक्तिः
विद्यार्थी
आसक्ति-रहित
होना चाहिए। ʹमुझे
ऐसा कपड़ा
चाहिए, ऐसा
खाना चाहिए।ʹ
नहीं-नहीं। हर
हाल में मस्त
रहने का सदगुण
!
माँ-बाप का
ख्याल रखो और
अपने
अड़ोस-पड़ोस
का भी मंगल और
ख्याल....!
सत्याग्रहः
कोई
झूठ-कपट करके तुम्हें
दबाये और तुम
उसके आगे
घुटने टेक के
दिखावटी माफी
माँगों, काहे
को ? तुम
सचमुच दीन-हीन
नहीं हो तो
ऐसा करना भी
असत् है। अपनी
महिमा में
रहो।
सहिष्णुताः
कोई
परिस्थिति
सदा नहीं
रहेगी। न अपने
को पापी मानो,
न चिंतित
मानो, न दोषी
मानो। अपने को
प्रभु का और
प्रभु को अपना
मानो तो
तुम्हारी
सारे दोष
मिटाने की
शक्तियाँ
विकसित
होंगी।
इन
सदगुणों के
विकास से
सर्वगुणसम्पन्न
परमात्मा का
दीदार करना भी
आसान हो
जायेगा।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
मोबाइल
बजा रहा है
खतरे की घंटी
अनेक वैज्ञानिक प्रयोगों से प्रमाणित हो चुका है कि मोबाइल से प्रसारित विद्युत-चुम्बकीय विकिरण से कैंसर, मस्तिष्क-टयूमर, नुपंसकता, आनुवांशिक विकृतियाँ, अनिद्रा, याददाश्त में कमी, सिरदर्द आदि अऩेक भयानक रोग भी होते हैं। ये इतनी सारी हानियाँ जो विज्ञान से पकड़ में आयीं, इनके अलावा कुछ और भी हानियाँ भविष्य में पकड़ में आयेंगी।
फिनलैंड की शोध संस्था ʹरेडिएशन एंड न्यूक्लियर सेफ्टी अथॉरिटीʹ ने पाया कि मस्तिष्क के जिस ओर (दायें-बायें) मोबाइल सटाकर प्रयोग किया जाता है, उस तरफ मस्तिष्क-कैंसर होने की सम्भावना 39 प्रतिशत बढ़ जाती है।
केवल मोबाइल ही नहीं, सामान्यतया इमारतों की छत पर स्थापित मोबाइल एंटेना या टॉवर भी कम हानिकारक नहीं है। जर्मनी में किये गये एक अध्ययन के अनुसार मोबाइल टॉवर भी कम हानिकारक नहीं हैं। जर्मनी में किये गये एक अध्ययन के अनुसार मोबाइल टॉपर की 400 मीटर की परिधि में रहने या कार्य करने वाले लोगों में कैंसर पीड़ितों की संख्या दस वर्षों में तीन गुना बढ़ गयी। स्वीडन में हुए शोध से स्पष्ट हुआ कि 20 वर्ष की उम्र से पूर्व ही मोबाइल का प्रयोग शुरु करने वालों को मस्तिष्क-कैंसर का सर्वाधिक खतरा है।
विद्यार्थी के स्वास्थ्य एवं अध्ययन में व्यवधान आने से कई शिक्षा बोर्डों व शिक्षण संस्थाओं ने मोबाइल के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है।
भूलकर
भी उन खुशियों
से न खेलो,
जिनके पीछे लगी
हों गम की
कतारें।
वैज्ञानिक प्रमाण व रोजमर्रा के अऩुभव हमारी आँखें खोलने के लिए पर्याप्त हैं। मोबाइल के विज्ञापनों में अक्सर आता हैः ʹसिर्फ इतने पैसे भरो और अनलिमिटेड बात करो।ʹ पर याद रखिये आपका समय, आपका जीवन अनलिमिटेड नहीं है। अंतिम घड़ी में एक श्वास भी आप अधिक नहीं ले सकते। आपके जीवन का क्षण-क्षण कीमती है और ईश्वर की प्राप्ति के लिए है। अपने कीमती समय को कीमती-में-कीमती परमात्मा के भजन-सुमिरन, सत्संग, सत्कर्म में लगायें, मोबाइल की मुसीबतों में न उलझें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
अशुभ
विवाह
अमंगलं
गुटखा खाद्यं,
अमंगलं
सुरापानम्।
अमंगलं
धूम्रपानं,
अमंगलं
सर्वदर्व्यसनम्।।
स्नेही
स्वजन
चि.कैंसर
कुमार उर्फ
लाइलाज मरकट
(कुपुत्र-श्री
असंयम सिंह
एवं तम्बाकू
देवी)
निवास
स्थानः
व्यसनपुर
संग
सौ.
बीड़ी कुमारी
उर्फ सिगरेट
देवी
कुपुत्री-चरमदास
एवं कोकीन
बहन)
निवास
स्थानः
दुःखनगर
का अशुभ विवाह तय हो गया है। अतः इस भयंकर प्रसंग पर किमाम काका, कॉफी काकी, गुटखा मामा, पान-मसाला मामी, शराब फूफा, चुटकी बूआ, गाँजा मौसा, चाय मौसी, स्मैक बहनोई, हेरोइन बहन, चूना दादा, खैनी दादी जैसे दुष्ट बुजुर्गों की उपस्थिति में नव दम्पत्ति को अभिशाप प्रदान करने हेतु आप सभी महानुभाव सादर आमंत्रित हैं।
सूचनाः बारात का समय सुविधानुसार है। बारात व्यसनपुर से ऐम्बयूलैंस द्वारा अस्पताल पहुँचेगी। वहाँ से शमशान घाट जायेगी, जहाँ बारातियों का स्वागत शमशान अग्नि से निरन्तर जारी रहेगा।
विवाह
स्थल
चिंता
भवन, नं. 2, कष्ट
मुहल्ला,
दुर्गति गली,
दुःख नगर
जि.
यमपुरी (नरक
लोक) – 420420
आने से पहले खूब सोच-विचार लो क्योंकि आना सुलभ है पर वापस जाना....
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
मानव-जीवन
का मुख्य
उद्देश्य
परमात्मप्राप्ति
ही है।
शारीरिक
स्वास्थ्य,
मनोबल और
बुद्धि का सत्त्व
इन तीनों से
सम्पन्न
मनुष्य ही भोग
और मोक्ष पा
लेता है।
इसमें
समझपूर्वक
किये गये एकादशी
आदि
व्रत-उपवासों
की अत्यंत
महत्त्वपूर्ण
भूमिका है।
मनुष्य की
सर्वांगीण
उन्नति के
सूत्र इनमें
निहित हैं।
निर्जला
एकादशी (ज्येष्ठ
शुक्ल पक्ष)- वर्षभर
की एकादशियों
का फल इस
एकादशी को
करने से
प्राप्त हो
जाता है। इस
दिन किये गये
दान-पुण्य,
हवन-होम का फल
अक्षय होता
है। रात्रि जागरण
के साथ ʹनिर्जला
एकादशीʹ करने
वाले की बीती
हुई और आऩे
वाली सौ
पीढ़ियों को
परम धाम की
प्राप्ति
होती है।
शयनी
(देवशयनी)
एकादशी (आषाढ़
शुक्ल पक्ष)- यह महान
पुण्यमयी,
स्वर्ग व
मोक्ष प्रदान
करने वाली है।
देवशयनी से
प्रबोधिनी
एकादशी तक भलीभाँति
धर्म का आचरण
करने वाला परम
गति पाता है।
पापांकुशा
एकादशी
(आश्विन शुक्ल
पक्ष)- यह
सब पापों को
हरने
वाली, स्वर्ग
व मोक्षप्रद,
शरीर को निरोग
बनाने वाली
तथा सुंदर स्त्री,
धन एवं मित्र
देने वाली है।
इस दिन उपवास
और रात्रि
जागरण करने
वाले माता,
पिता तथा पत्नी
के पक्ष की 10-10
पीढ़ियों का
उद्धार कर
लेते हैं।
रमा
एकादशी
(कार्तिक
शुक्ल पक्ष)- इस व्रत
के प्रभाव से
चन्द्रभागा
दिव्य भोग,
दिव्य रूप को
प्राप्त हो
मंदराचल के
शिखर पर विहार
करती है। यह
एकादशी
बड़े-बड़े
पापों को हरने
तथा चिंतामणि
व कामधेनु के
समान सब मनोरथों
को पूर्ण करने
वाली है।
प्रबोधिनी/देवउठी
एकादशी
(कार्तिक
शुक्ल पक्ष)- विधिपूर्वक
इस व्रत को
करने वाला नंत
सुख पाता है
और अंत में
स्वर्गलोक
जाता है।
मोक्षदा
एकादशी
(मार्गशीर्ष
शुक्ल पक्ष)- यह व्रत
चिंतामणि के
समान समस्त
कामनाओँ को पूर्ण
करने वाला है।
इस व्रत के
प्रभाव से पाप
नष्ट होता है
और मरने के
बाद मोक्ष की
प्राप्ति
होती है।
आमलकी
एकादशी
(फाल्गुन
शुक्ल पक्ष) इस दिन
आँवले के
वृक्ष के पास
रात्रि-जागरण
करने से मनुष्य
सब पापों से
छूट जाता है
और सहस्र
गोदान का फल
पाता है।
(वर्ष
की सभी
एकादशियों की
विस्तृत
कथाओं तथा व्रत
महिमा एवं
विधि की
विस्तृत
जानकारी के लिए
पढ़ें आश्रम
की पुस्तक ʹएकादशी
व्रत-कथाएँʹ)
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
स्पन्दोष दूर, बल भी भरपूरः दो खूब पके केलों का गूदा निकालकर खूब फेंट लें। फिर उसमें हरे आँवलों का रस 1 तोला (11.5 ग्राम) तथा शुद्ध शहद 1 तोला मिलाकर सुबह शाम चाटें। कुछ ही दिनों के प्रयोग से प्रभाव प्रत्यक्ष दिखेगा।
घर में कलह-निवारण, सुख, स्वास्थ्य व शांति हेतुः रोज प्रातः व सायं देशी गाय के गोबर से बने कंडे का एक छोटा टुकड़ा जला लें। उस पर देशी गाय के घी में मिश्रित चावल के कुछ दाने डाल दें ताकि वे जल जायें। इससे घर में स्वास्थ्य व शांति बनी रहती है तथा वास्तुदोषों का निवारण होता है।
डरावने, बुरे स्वप्नों से बचाव व बढ़िया नींद हेतुः ૐ हरये नमः मंत्र जपते हुए सोयें। सिरहाने आश्रम की निःशुल्क प्रसादी ʹगृहदोष-बाधा निवारण यंत्र रख दें।
याददाश्त का चमत्कारिक पोषकः Memory Booster रोज सुबह आँवले का मुरब्बा खाने से स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है। अथवा च्यवनप्राश खाने से इसके साथ की अन्य लाभ भी होते हैं।
100 ग्राम सौंफ, 100 ग्राम बादाम व 200 ग्राम मिश्री तीनों को कूटकर मिला लें। सुबह यह मिश्रण 3 से 5 ग्राम चबा-चबाकर खायें, ऊपर से दूध पी लें। (दूध के साथ भी ले सकते हैं।) इससे भी याददाश्त बढ़ेगी।
चमकते
दाँत, मजबूत
मसूड़ेः वादे
नहीं हकीकत
रात को नींबू के रस में दातुन के अगले हिस्से को डुबो दें। सुबह उस दातुन से दाँत साफ करें तो मैले दाँत भी चमक जायेंगे।
सप्ताह-पन्द्रह दिन में एक बार रात को सरसों का तेल और सेंधा नमक मिला के उससे दाँतों को रगड़ लें। इससे दाँत और मसूड़े मजबूत बनेंगे।
मधुमेह
को अलविदा
(डायबिटीज का
रामबाण प्रयोग)
सुबह आधा किलो करेले (पके, सस्ते भी चलेंगे) काटकर एक चौड़े बर्तन में रख के उन्हें पैरों से कुचलें। जीभ में कड़वाहट का एहसास हो तब कुचलना छोड़ दें। यह प्रयोग दस दिन तक करें। इससे मधुमेह नियंत्रित हो जायेगा। आवश्यक हो तो यह प्रयोग दस दिन बाद पुनः दोहरा सकते हैं।
गृहदोष-वास्तुदोष
निवारक
प्रसादः
यह आश्रम से निःशुल्क मिलता है। इसे अपने कमरे व कार्यालय में रख दें। इसको छूकर ऋणायनों से समृद्ध बनी हुई हवा और धनात्मक ऊर्जा लाभदायी होगी।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
शरीर
की जैविक
घ़ड़ी पर
आधारित
दिनचर्या
हम
क्या खाते हैं
कैसे सोते हैं
यह जितना महत्त्वपूर्ण
है, उतना ही
महत्त्वपूर्ण
है हम खाते और
सोते हैं। यदि
अपनी
दिनचर्या,
खान-पान तथा
नींद को
प्राकृतिक
शारीरिक
कालचक्र या
शरीर की जैविक
घड़ी के
अनुरूप
नियमित किया
जाय तो
अधिकांश
रोगों से
रक्षा, उत्तम
स्वास्थ्य एवं
दीर्घायु की
प्राप्ति
होती है।
समय व
विशेष
क्रियाशील
अंग |
विवरण |
प्रातः 3 से 5 फेफड़े |
ब्राह्ममुहूर्त में उठने वाले व्यक्ति बुद्धिमान व उत्साही होते हैं। थोड़ा सा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमें। दीर्घ श्वसन व प्राणायाम करें। फेफड़ों को शुद्ध वायु व ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्राह्ममुहूर्त में सोये नहीं। इस समय सोने से जीवन निस्तेज हो जाता है। |
प्रातः 5 से 7 बड़ी आँत |
जो व्यक्ति इस समय भी सोते रहते हैं या मल-त्याग नहीं करते, उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं। अतः प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल त्याग कर लेना चाहिए। |
सुबह 7 से 9 जठर |
इस समय (भोजन के 2 घंटे पहले) दूध अथवा फलों का रस या कोई पेय पदार्थ ले सकते हैं। |
9 से 11 अग्नाशय व प्लीहा |
यह भोजन के लिए उपयुक्त है। इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं। भोजन से पहले ʹरं-रं-रं...ʹ बीज मंत्र का जप करने से जठराग्नि और भी प्रदीप्त होती है। |
दोपहर 11 से 1 हृदय |
करुणा, दया, प्रेम आदि हृदय की संवेदनाओं को विकसित एवं पोषित करने के लिए दोपहर 12 बजे के आसपास मध्याह्न-संध्या करने का विधान हमारी संस्कृति में है। इस समय भोजन न करें। |
1 से 3 छोटी आँत |
लगभग इस समय अर्थात् भोजन के करीब 2 घंटे बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए, जिससे त्याज्य पदार्थों को आगे बड़ी आँत की तरफ भेजने में छोटी आँत को सहायता मिल सके। इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है तथा शरीर रोगी व दुर्बल हो जाता है। |
3 से 5 मूत्राशय |
2 से 4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्रत्याग की प्रवृत्ति होगी। |
शाम 5 से 7 गुर्दे |
इस काल में हल्का भोजन कर लेना चाहिए। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट तक (संध्याकाल में) भोजन न करें। देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते हैं। |
रात्रि 7 से 9 मस्तिष्क |
प्रातः काल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है। शाम को दीप जलाकर ʹदीपो ज्योतिः परं ब्रह्म....ʹ आदि स्तोत्रपाठ व शयन से पूर्व स्वाध्याय अपनी संस्कृति का अभिन्न अंग है। |
9 से 11 रीढ़ की हड्डी में मेरूरज्जु |
इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है और जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है। रात्रि 9 बजे के बाद पाचन संस्थान के अवयव विश्रांति प्राप्त करते हैं, अतः यदि इस समय भोजन किया जाय तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं है और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने से रोग उत्पन्न करते हैं। इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है। |
11 से 1 पित्ताशय |
इस समय का जागरण पित्त को प्रकुपित कर अनिद्रा, सिरदर्द आदि पित्त-विकार तथा नेत्ररोगों को उत्पन्न करता है। रात्रि को 12 बजने के बाद दिन में किये गये भोजन द्वारा शरीर के क्षतिग्रस्त कोशों के बदले में नये कोशों का निर्माण होता है। इस समय जागते रहोगे तो बुढ़ापा जल्दी आयेगा। |
1 से 3 यकृत |
इस समय शरीर को गहरी नींद की जरूरत होती है। इसकी पूर्ति होने न पर पाचनतंत्र बिगड़ता है। |
निम्न
बातों का भी
विशेष ध्यान
रखें
ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखें, जिससे ऊपर बताये समय में खुलकर भूख लगे।
सुबह व शाम के भोजन के बीच बार-बार कुछ खाते रहने से मोटापा, मधुमेह, हृदयरोग जैसी बीमारियाँ और मानसिक तनाव अवसाद (Mental stress & depression) आदि का खतरा बढ़ता है।
जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन करें। कुर्सी पर बैठकर भोजन करने से पाचन शक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो बिल्कुल नहींवत् हो जाती है। इसलिए ʹबूफे डिनरʹ से बचना चाहिए।
भोजन के तुरन्त बाद पानी न पियें, अन्यथा जठराग्नि मंद पड़ जाती है और पाचन ठीक से नहीं हो पाता। अतः डेढ़-दो घंटे बाद ही पानी पियें। भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी अनुकूलता अनुसार घूँट-घूँट पियें। फ्रिज का ठंडा पानी कभी न पियें।
इस प्रकार थोड़ी सी सजगता हमें स्वस्थ जीवन की प्राप्ति करा देगी।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
प्रश्नः
नियमित
सत्संग-श्रवण
से क्या लाभ
होते हैं ?
पूज्य
बापू जीः नियमित
रुप से सत्संग
सुनेंगे तो
आपका मन हलकी
कामनाओं और
तुच्छ
आकर्षणों से
बच जायेगा। यदि
कोई व्यक्ति
बार-बार
सत्संग सुनता
विचारता है तो
वह
श्रेष्ठ-में-श्रेष्ठ
उस परमात्म देव
का
साक्षात्कार
भी कर सकता
है।
सत्संग-श्रवण
से अंतःकरण
में जो शांति
और आनंद फलता
है, उसके आगे स्वर्ग
का सुख भी
अत्यंत तुच्छ
है।
प्रश्नः
जीवन में
श्रद्धा का
क्या महत्त्व
है ?
पूज्य बापू जीः श्रद्धा एक ऐसा सदगुण है कि यह जिसके हृदय में रहता है वह रसमय हो जाता है, उसकी हताशा, निराशा, पलायनवादिता नष्ट हो जाती है। भगवान, भगवत्प्राप्त महापुरुष, शास्त्र, गुरुमंत्र और अपने-आप पर श्रद्धा परम सुख की अमोघ कुंजी है। ʹनारद पुराणʹ में श्री सनकजी कहते हैं-
श्रद्धापूर्वाः
सर्वधर्मा
मनोरथफलप्रदाः।
श्रद्धया
साध्यते
सर्वं
श्रद्धया
तुष्यते हरिः।।
ʹश्रद्धापूर्वक आचरण में लाये हुए ही सब धर्म मनोवांछित फल देने वाले होते हैं। श्रद्धा से सब कुछ सिद्ध होता है और श्रद्धा से ही भगवान श्रीहरि संतुष्ट होते हैं।ʹ
प्रश्नः
विश्व में
शास्त्रों का
अथाह भण्डार
है परन्तु
उनमें से ʹश्रीमद्
भगवद् गीताʹ
सर्वश्रेष्ठ
क्यों है ?
पूज्य बापू जीः गीता सर्वशास्त्रमयी है। इसमें सारे शास्त्रों का सार भरा है। गीता कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग की त्रिवेणी है। इसने मात्र भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में अपने दिव्य ज्ञान का प्रकाश फैलाया है। इस छोटे-से ग्रंथ में जीवन की गहराइयों को छूते ऐसे सत्य व ज्ञानयुक्त विचारों का समावेश है, जिनके नित्य अध्ययन एवं चिंतनमात्र से मनुष्य की हताशा, निराशा एवं चिंताएँ मिट जाती हैं और उसमें साहस, समता, सरलता, स्नेह, शांति धर्मनिष्ठा आदि दैवी गुण सहज ही विकसित हो उठते हैं। गीता ग्रंथ पूरे विश्व में अद्वितीय है।
प्रश्नः
भौतिक विकास
के साथ
आध्यात्मिक
विकास क्यों
जरूरी है ?
पूज्य बापू जीः वास्तव में भौतिक विकास उन्हीं के जीवन में शोभा पाता है जिनके जीवन में आध्यात्मि रस का विकास हुआ है। अगर मानव-समाज आध्यात्मिक रस को भूलकर केवल भौतिक विकास में ही लगा रहे तो वह विनाश की ओर जाने लगेगा जैसी आज भौतिक दृष्टि से विकसित देशों की दशा है। भौतिक वस्तुएँ केवल बाह्य सुविधाएँ देती हैं। भीतर की शांति और आनंद नहीं देती। जिसने भौतिक विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक विकास की ओर ध्यान दिया है, वही सरलता से आगे बढ़ सका है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
कर्मयोग
महान कर्मयोगी पूज्य बापू जी की जीवनचर्या का अवलोकन किया जाय तो लगता है जैसे कर्मयोग ने स्वयं शरीर धारण कर लिया हो। निंदा व स्तुति के कितने ही प्रसंग आये-गये लेकिन महाकर्मयोगी का कर्मयोग, अलौकिक आनंद बाँटने का सेवाकार्य अबाधित गति से सतत चलता ही रहा है। महाकर्मयोगी बापू जी स्वयं तो कर्मयोग में रह रहते ही हैं, साथ ही अपने करोड़ों शिष्यों को भी प्राणिमात्र के हित के लिए सेवाकार्यों में लगाते हैं।
पूज्य बापू जी कहते हैं- "समाज के अनेक लोग पीड़ा ग्रस्त हैं, उनका ध्यान रखें। मंदिर तो बनने चाहिए लेकिन गरीबों के लिए मकान भी बनने चाहिए, आरोग्य केन्द्र भी बनने चाहिए, उन्हें कपड़े भी मिलने चाहिए।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
हर साल देश के सैंकड़ों स्थानों में सत्संग-कार्यक्रमों के द्वारा करोड़ों लोगों का आध्यात्मिक, नैतिक, सामाजिक एवं स्वास्थ्यसम्बंधी मार्गदर्शन और सर्वांगीण विकास।
ध्यान योग शिविरों के माध्यम से हर साल लाखों साधकों का विहंग (हवाई) मार्ग से आध्यात्मिक विकास।
17000 से अधिक बाल संस्कार केन्द्र।
गरीब बच्चों में नोटबुकों व प्रसाद आदि का वितरण।
विद्यालयों में ʹयोग व उच्च संस्कार शिक्षाʹ कार्यक्रम।
युवा सेवा संघ, महिला उत्थान मण्डल, बाल मण्डल, कन्या मण्डल व छात्र मण्डल द्वारा भक्ति जागृति यात्राएँ।
व्यसनमुक्ति अभियान।
वृक्षारोपण से पर्यावरण-सुरक्षा।
गरीबों-आदिवासियों में नियमित निःशुल्क अनाज वितरण।
कारागृह में प्रोजेक्टर-सत्संग।
शीतल पलाश शरबत, छाछ व जल का निःशुल्क वितरण।
गरीबों, मजदूरों में गर्म भोजन के डिब्बों (हॉट-केस) का वितरण।
प्राकृतिक आपदाओं (अकाल, बाढ़, भूकम्प आदि) में सेवाकार्य।
गरीबों, बेरोजगारों, वृद्धों के लिए ʹभजन करो, भोजन करो, दक्षिणा पाओʹ योजना।
आयुर्वैदिक, होमियोपैथिक, एक्युप्रेशर व प्राकृतिक चिकित्सा सेवाएँ एवं गरीब इलाकों हेतु चल-चिकित्सालय सेवा (मोबाइल डिस्पेन्सरीज)।
अस्पतालों में सेवा- मरीजों को फल, दवाओं व सत्साहित्य आदि का वितरण।
गौ सेवा- कत्लखाने ले जायी जा रही हजारों गायों का संरक्षण-पालन।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
छात्रों
के महान
आचार्य पूज्य
बापू जी द्वारा
सूक्ष्म
विश्लेषण
हमारे शारीरिक व मानिसक आरोग्य का आधार हमारी जीवनशक्ति (Life Energy) है। इसे ʹप्राणशक्तिʹ भी कहते हैं। हमारे जीवन जीने के ढंग के मुताबिक हमारी जीवनशक्ति का ह्रास या विकास होता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने जीवन का सूक्ष्म निरीक्षण करके जीवनशक्ति विषयक गहनतम रहस्य खोज लिये थे। डॉ. डायमंड ने उन मनीषियों की खोज को अध्ययन व प्रयोग की सहायता से समझने का प्रयास किया। (जीवनशक्ति को प्रभावित करने वाले आठ घटकों में से निम्नलिखित दो घटकों पर हम विचार करेंगे।)
आहार
का प्रभाव
ब्रेड, बिस्कुट, मिठाई, फास्टफूड आदि कृत्रिम खाद्य पदार्थों से तथा बार-बार गर्म किये हुए और अतिशय पकाये हुए पदार्थों से जीवनशक्ति क्षीण होती है।
एक सामान्य आदमी की जीवनशक्ति यंत्र के द्वारा जाँच लो, फिर उसके मुँह में शक्कर दो और जीवनशक्ति यंत्र के द्वारा जाँच लो, फिर उसके मुँह में शक्कर दो और जीवनशक्ति को जाँचो, वह कम हुई मिलेगी। डॉ. डायमंड ने प्रयोगों से सिद्ध किया कि कृत्रिम शक्कर आदि पदार्थों के उपभोग से जीवनशक्ति का ह्रास होता है और प्राकृतिक फल, सब्जी आदि के सेवन से विकास होता है।
भौतिक
वातावरण का
प्रभाव
टेरिलीन, पोलिएस्टर आदि सिंथेटिक कपड़ों से तथा रेयॉन, प्लास्टिक आदि से बनी हुई चीजों से जीवनशक्ति को क्षति पहुँचती है। रेशम ऊन, सूत आदि प्राकृतिक चीजों से बने हुए कपड़े, टोपी आदि से यह नुकसान नहीं होता।
रंगीन चश्मा, इलेक्ट्रानिक घड़ी, ऊँची एड़ी की चप्पल, सैंडल आदि पहनने से जीवनशक्ति कम होती है। प्रायः तमाम परफ्यूम्स सिंथेटिक (कृत्रिम) होते हैं। वे सब हानिकारक सिद्ध हुए हैं। बर्फवाला पानी पीने से जीवनशक्ति एवं पाचनशक्ति कम होती है।
किसी भी प्रकार की फ्लोरोसेन्ट लाइट, टयूबलाइट के सामने देखने से जीवनशक्ति कम होती है। उद्योगों के कारण होने वाले वायु-प्रदूषण से भी जीवनशक्ति का ह्रास होता है।
बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू आदि के व्यसन से प्राणशक्ति को अत्यंत हानि होती है। केवल इन चीजों का व्यसनी ही नहीं बल्कि उसके सम्पर्क में आने वाले भी इनके दुष्परिणामों के शिकार होते हैं।
एक्स-रे-मशीन के आसपास दस फुट के क्षेत्र में जाने वाले आदमी की प्राणशक्ति में कमी आती है।
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इस आसन में शरीर का आकार गाय के मुख जैसा हो जाता है, इसलिए यह ʹगोमुखासन कहलाता है।
लाभः दमा, क्षय व फेफड़ों से संबंधित बीमारियों के लिए यह बहुत उपयोगी माना गया है।
पाँव, भुजाएँ, कंधे, घुटने कमर बलवान तथा हड्डियाँ मजबूत बनती हैं। वीर्य पुष्ट होने से यह ब्रह्मचर्य तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए सहायभूत है।
विधिः जमीन पर बैठ जायें। बायें पाँव को मोड़कर एड़ी का हिस्सा गुदा पर लगायें। फिर दायें पैर को मोड़कर उसकी एड़ी बायें नितम्ब की बगल में सटा दें। पैरों के पंजे सीधे व जमीन से लगे रहें और घुटने एक दूसरे से सटे रहें।
अब दायें हाथ को गले की बगल के नीचे से होकर पीछे की ओर से ले जाकर व बायें हाथ को बायीं ओर उलटकर बायीं बगल के नीचे से होकर पीठ की तरफ से इतना गर्दन की तरफ लायें कि दोनों हाथों की आठों उंगलियाँ आपस में फँस जायें। फिर कमर के उपरी भाग को सीधा रखते हुए स्थिर रहें। इसमें आँखें खुली हों और श्वास साधारण चलना चाहिए। फिर इस क्रिया को हाथ व पैरों को बदलकर करना चाहिए।
इस आसन के अभ्यास से पद्मासन और मयूरासन दोनों से होने वाले लाभ मिलते हैं। इसलिए इसे ʹपद्ममयूरासन या मयूरपद्मासनʹ कहते हैं।
लाभः चेहरे का तेज बढ़ता है। ब्रह्मचर्य-पालन में सहायता मिलती है। शरीर के जहरीले तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। सीना, फेफड़े, प्लीहा, यकृत, गुर्दे, अग्नाशय आदि सभी अंग सुचारु रूप से कार्यशील बनते हैं।
विधिः पद्मासन लगाकर जमीन पर घुटनों के बल ख़ड़े हो जायें। दोनों हाथों के बीच चार अंगुर का अंतर रखते हुए हाथों को कोहनियों से मोड़कर नाभि के आसपास पेट के कोमल भाग पर रखें तथा श्वास भरते हुए आगे की तरफ झुककर पैरों को पद्मासन की स्थिति में ही रखकर पीछे की ओर लम्बा करें। पूरा शरीर जमीन के समानांतर रहे। इस स्थिति में यथासम्भव रहें। पुनः मूल स्थिति में आते हुए श्वास छोड़ें। इस आसन को 3 से 5 बार करें।
इसमें शरीर का भार केवल पाँव के अँगूठे पर आने से इसे ʹपादांगुष्ठासनʹ कहते हैं। वीर्य की रक्षा व ऊर्ध्वगमन हेतु महत्त्वपूर्ण होने से सभी को विशेषतः बच्चों व युवाओं को यह आसन अवश्य करना चाहिए।
लाभः अखंड ब्रह्मचर्य की सिद्धि, वज्रनाड़ी(वीर्यनाड़ी) व मन पर नियंत्रण तथा वीर्यशक्ति को ओज में रूपांतरित करने में उत्तम है।
मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। बुद्धि की स्थिरता व प्रखरता शीघ्र प्राप्त होती है।
रोगों में लाभः स्वप्नदोष, मधुमेह, नपुंसकता व वीर्यदोषों में विशेष लाभदायी है।
विधिः पंजों के बल बैठें। बायें पैर की एड़ी सीवनी (गुदा व जननेन्द्रिय के बीच का स्थान) पर लगायें। दोनों हाथों की उँगलियाँ जमीन पर रखकर दायाँ पैर बायीं जाँघ पर रखें। सारा भार बायें पंजे पर (विशेषतः अँगूठे पर) संतुलित करके हाथ कमर पर या नमस्कार की मुद्रा में रखें। प्रारम्भ में कुछ दिन आधार लेकर कर सकते हैं। कमर सीधी व शरीर स्थिर रहे। श्वास सामान्य, दृष्टि आगे किसी बिन्दु पर एकाग्र व ध्यान संतुलन रखने में हो। यही क्रिया पैर बदलकर भी करें।
समयः प्रारम्भ मे दोनों पैरों से आधा एक मिनट करें। दोनों पैरों को एक समान समय देकर यथासम्भव बढ़ा सकते हैं।
सावधानीः अंतिम स्थिति के लिए शीघ्रता नहीं करें, क्रमशः अभ्यास बढ़ायें। इसे दिन भर में दो-तीन बार कभी भी कर सकते हैं किंतु भोजन के तुरंत बाद न करें।
लाभः संकल्पबल बढ़ता है। बुद्धि तीक्ष्ण होती है। कल्पनाशक्ति का विकास होता है। तन में स्फूर्ति एवं मन में प्रसन्नता अपने आप प्रकट होती है। स्नायु सुदृढ़ बनते हैं।
धातुक्षय, स्वप्नदोष, अजीर्ण, कमर का दर्द, मंदाग्नि, सिरदर्द, अनिद्रा, उदररोग, नेत्रविकार आदि असंख्य रोगों में इस आसन से लाभ होता है।
विधिः बिछे हुए आसन पर बैठ जायें। दाहिन पैर घुटने से मोड़कर एड़ी सीवन (उपस्थ और गुदा के मध्य) के दाहिने भाग में और बायाँ पैर मोड़कर एड़ी सीवन के बायें भाग में ऐसे रखें कि दोनों पैर के तलवे एक दूसरे को लगकर रहें।
श्वास लेकर दोनों हाथ सामने जमीन पर टेककर शरीर को ऊपर उठायें और दोनों पैरों के पंजों पर इस प्रकार बैठें कि शरीर का वजन एड़ी के मध्य भाग में आये। उँगलियों वाला भाग छूटा रहे। अब श्वास छोड़ते हुए दोनों हाथों की हथेलियों को दोनों घुटनों पर रखें। अंत में बहिर्कुम्भक करके ठोड़ी छाती पर दबायें। चित्तवृत्ति मूलाधार चक्र में और दृष्टि भी उसी दिशा में लगायें। क्रमशः अभ्यास बढ़ाकर दस मिनट तक यह आसन कर सकते हैं।
इस आसन में शरीर का आकार गरुड़ पक्षी के समान हो जाता है, इसलिए इसे ʹगरुड़ासनʹ कहते हैं।
लाभः इससे पैरों, घुटनों और जाँघों को बल मिलता है। कंधे, कोहनियों, घुटनों, पैरों और जोड़ों तथा सम्पूर्ण भुजाओं में किसी प्रकार का दर्द या कम्पन आदि हो तो इस आसन के अभ्यास से ठीक हो जाता है। इस आसन से शरीर के संतुलन व एकाग्रता में वृद्धि होती है।
विधिः चित्र में दर्शाये अनुसार खड़े होकर बायें पाँव से दायें पाँव की जंघा और पिंडलियों को लपेट लें तथा दोनों हाथों को इस प्रकार लपेटें कि रस्सी के समान सम्पूर्ण भुजा बँट जाये। कुछ समय इसी स्थिति में खड़े रहकर फिर दायें घुटने को थोड़ा-सा मोड़ते हुए शरीर को कुछ नीचे लायें। ध्यान रहे कि लपेटा हुआ हाथ छाती के सम्मुख गरुड़ की चोंच के समान होगा। पुनः सीधे ख़ड़े हो जायें व पैर बदलकर अभ्यास करें।
सृष्टि संहार के समय कालभैरव जिस प्रकार का भयंकर रूप धारण करते हैं, इस आसन में ठीक वैसी ही शारीरिक स्थिति होती है। इसलिए इसको सिद्धों ने ʹकालभैरवासनʹ कहा है।
लाभः शरीर में दृढ़ता आती है और आंतरिक बल भी बढ़ता है। निर्भीकता आती है। शरीर में स्फूर्ति आती है। जिह्वा व गले के रोग और टॉन्सिल्स की तकलीफ में आराम मिलता है।
यह आँखों के लिए भी परम उपयोगी माना गया है। इससे चेहरे पर होने वाले फोड़े-फुंसियाँ ठीक हो जाते हैं।
इसका अभ्यास करने पर चेहरे पर अदभुत कांति आ जाती है तथा सीना चौड़ा व सुंदर हो जाता है।
विधिः दोनों पैरों के बीच एक एक फुट का अंतर रखकर इस प्रकार खड़े हों कि एक पैर के पीछे दूसरा पैर हो। फिर चित्र में दिखाये अनुसार एक हाथ को आगे और दूसरे हाथ को पीछे करते हुए और मुख को पूर्णतया खोलकर जीभ को बाहर निकालते हुए दोनों आँखों को पूर्णतया खोलकर दोनों भौहों को देखते हुए, बिना किसी हिलचाल के स्थिर रहें।
टिप्पणीः
इसे
पैर बदलकर भी
करना चाहिए।
लाभः इसके नियमित अभ्यास से ज्ञानतंतु पुष्ट होते हैं। चोटी के स्थान के नीचे गाय के खुर के आकारवाला बुद्धिमंडल है, जिस पर इस प्रयोग का विशेष प्रभाव पड़ता है और बुद्धि व धारणाशक्ति का विकास होता है।
विधिः सीधे खड़े हो जायें। हाथों की मुट्ठियाँ बंद करके हाथों को शरीर से सटाकर रखें। सिर पीछे की तरफ ले जायें। दृष्टि आसमान की ओर हो। इस स्थिति में गहरा श्वास 25 बार लें और छोड़ें। मूल स्थिति में आ जायें।
लाभः इसके नियमित अभ्यास से मेधाशक्ति बढ़ती है।
विधिः सीधे खड़े हो जायें। हाथों की मुट्ठियाँ बंद करके हाथों को शरीर से सटा कर रखें। आँखें बंद करके सिर को नीचे की तरफ इस तरह झुकायें कि ठोढ़ी कंठकूप से लगी रहे और कंठकूप पर हलका-सा दबाव पड़े। इस स्थिति में गहरा श्वास 25 बार लें और छोड़ें। मूल स्थिति में आ जायें।
विशेषः उपरोक्त दोनों प्रयोगों में श्वास लेते समय मन में ʹૐʹ का जप करें व छोड़ते समय उसकी गिनती करें।
ध्यान दें- ये दोनों प्रयोग सुबह खाली पेट करें। शुरु-शुरु में 15 बार श्वास लें और छोड़ें, फिर धीरे-धीरे बढ़ाते हुए 25 तक पहुँचे।
उन्नति
की उड़ानः ʹकुंभकʹ
श्वास को अंदर भरकर रोक देना इसे ʹआभ्यांतर कुम्भकʹ कहते हैं। श्वास को पूर्णतया बाहर निकालकर बाहर ही रोकें रखना इसे ʹबाह्य कुम्भकʹ कहते हैं।
लाभः आभ्यांतर कुम्भक से आरोग्य तथा बल की वृद्धि होती है। बाह्या कुम्भक से पाप, ताप, रोग व शोक निवृत्त होते हैं। कुम्भक के अभ्यास से व्यक्ति स्वास्थ्य व दीर्घायु प्राप्त करता है।
वीर्य ऊर्ध्वगामी होकर शरीर को पुष्ट, तेजस्वी व कांतिमान बनाता है। कुम्भक श्वास को लम्बा, गहरा व लयबद्ध बनाता है। इससे श्वास कम खर्च होते हैं व आयु बढ़ती है।
विधिः पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन में बैठ जायें। मस्तक, गर्दन और छाती एक सीधी रेखा में व आँखें आधी खुली, आधी बंद रहें।
अब दोनों नथुनों से गहरा श्वास लें और एक मिनट आभ्यांतर कुम्भक करें। फिर श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड़ दें। 4-5 सामान्य श्वास ले लें, फिर गहरा श्वास लें और पूरा बाहर निकाल कर 40 सैकेण्ड तक बाह्य कुम्भक करें। फिर श्वास लेकर सामान्य श्वास चलने दें। इस प्रकार 7 बार आभ्यांतर व 7 बार बाह्य कुम्भक करें। इस दौरान प्रणव ૐ अथवा गुरुमंत्र का मानसिक जप चालू रखें। त्रिबंध के साथ कुम्भक किया जाय तो वह पूर्ण लाभदायी सिद्ध होता है।
त्रिबंध में सर्वप्रथम मूलबंध करें यानी श्वास लेने से पहले गुदा को अंदर सिकोड़ लें, फिर उड्डीयान बंध करें अर्थात् नाभि के स्थान को अधिक से अधिक भीतर व ऊपर की ओर सिकोड़ लें, उसके बाद दोनों नथुनों से खूब श्वास भरकर ठोड़ी को गले के बीच में जो खड्डा (कंठकूप) है, उसमें दबा दें – यह हो गया जालन्धर बंध। अब आभ्यांतर व बाह्य कुम्भक करने के पश्चात उड्डीयान बंध, फिर जालंधर बंध, फिर मूलबंध खोलें।
अश्विनी
मुद्रा-अश्वशक्ति
(हार्स पावर)
लाभः इसे करने से 132 प्रकार की बीमारियाँ दूर होती हैं। श्वेत प्रदर, धातुक्षय, स्वप्नदोष, पेट के विकार दूर होते हैं। सुषुप्त शक्तियाँ खिल उठती हैं। बुद्धि व व्यक्तित्व प्रभावशाली बनते हैं। घोड़े की तरह प्रचंड शक्ति का भंडार प्राप्त होता है।
विधिः सुबह खाली पेट चटाई या कम्बल बिछा के पूर्व अथवा दक्षिण की तरफ सिर करके शवासन में लेट जायें। पूरा श्वास बाहर फेंक दें और 30-40 बार गुदाद्वार का आकुंचन-प्रसरण करें, जैसे घोड़ा लीद छोड़ते समय करता है। इस प्रक्रिया को 4-5 बार दुहरायें।
ज्ञानमुद्रा-एकाग्रता(Concentration)
लाभः मानसिक रोग जैसे की अनिद्रा अथवा अतिनिद्रा, कमजोर याद्दाश्त, क्रोधी स्वभाव आदि हो तो यह मुद्रा अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होगी। यह एकाग्रता में परम लाभदायी है।
यह मुद्रा करने से पूजा पाठ, ध्यान भजन में मन लगता है।
विधिः तर्जनी अर्थात् प्रथम उँगली को अँगूठे के नुकीले भाग पर स्पर्श कराओ। शेष तीनों उँगलियाँ सीधी रहें।
अवधिः इस मुद्रा का प्रतिदिन 30 मिनट करना चाहिए।
लाभः हृदयरोगों जैसे कि हृदय की घबराहट, हृदय की तीव्र या मंद गति, हृदय का धीरे-धीरे बैठ जाना आदि में थोड़े ही समय में लाभ होता है। अगर किसी को हृदयाघात (हार्ट-अटैक) आये या हृदय में अचानक पीड़ा होने लगे, तब तुरंत ही यह मुद्रा करने से हृदयाघात को भी रोका जा सकता है।
पेट की गैस, मेद की वृद्धि और हृदय तथा पूरे शरीर की बेचैनी इस मुद्रा के अभ्यास से दूर होती है।
विधिः अँगूठे के पासवाली पहली उँगली को अँगूठे के मूल में लगा के अँगूठे के अग्रभाग को बीच की दोनों उँगलियों के अग्रभाग के साथ मिलाकर सबसे छोटी उँगली (कनिष्ठिका) को अलग से सीधी रखें।
अवधिः आवश्यकतानुसार हर रोज 20 से 30 मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास किया जा सकता है।
लाभः शारीरिक व मानसिक पवित्रता में वृद्धि होती है और अभ्यासकर्ता में सात्त्विक गुणों का समावेश होने लगता है।
मूत्र उत्सर्जन में कठिनाई, पेटदर्द, कब्जियत और मधुमेह जैसी बीमारियों में लाभदायक है। छाती और गले में कफ जम गया हो तो इस मुद्रा के अभ्यास से कफ को भी सहज ही उत्सर्जित किया जा सकता है।
विधिः अँगूठे के अग्रभाग से मध्यमा और अनामिका (छोटी उँगली के पास वाली उँगली) के अग्रभागों का स्पर्श करें। बाकी की दो उँगलियाँ सहजावस्था में सीधी रखें।
अवधिः इस मुद्रा का अभ्यास किसी भी समय, कितनी भी अवधि के लिए कर सकते हैं, परंतु प्रतिदिन नियमित रूप से करें।
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संत
श्री
आशारामजी
आश्रम द्वारा
आयोजित
दिव्य
प्रेरणा
प्रकाश ज्ञान
प्रतियोगिता
के
प्रश्नपत्र
का प्रारूप
समयः
1.30 घंटा कुल
अंक- 100
आपकी जानकारी के लिए यहाँ कुछ नमूने दिये गये हैं। ʹदिव्य प्रेरणा प्रकाश ज्ञान प्रतियोगिताʹ में ऐसे 100 सरल व विकल्पात्मक प्रश्न () होंगे। ʹहे वीर आगे बढ़ोʹ साहित्य से 70 अंक और श्रीमद् भगवद् गीता, महाभारत व रामायणʹ ग्रन्थों से 30 अंक के प्रश्न होंगे।
निम्नलिखित
रिक्त
स्थानों की
पूर्ति हेतु सही
विकल्प का
क्रमांक
कोष्ठक में
लिखें।
भारत का सर्वांगीण विकास सच्चरित्रता और .......... युवाधन पर ही आधारित है। ( )
1.फैशनपरस्त 2.संयमी 3. अशिक्षित 4.निर्बल
............... ने 14 फरवरी को ʹमातृ-पितृ-पूजन दिवसʹ मनाने का आह्वान किया है। ( )
1.रामतीर्थजी 2.गांधी जी 3.पूज्य संत श्री आशारामजी बापू 4.तिलकजी।
..............करने से 132 प्रकार की बीमारियाँ दूर होती हैं। ( )
1.कालभैरवासन 2.अपानमुद्रा 3 हलासन 4.अश्विनी मुद्रा।
एकादशी व्रत –
1 रोगवर्धक 2 पुण्यदायक 3.पापवर्धक 4.तीनों सही ( )
ૐकार मंत्र के जप से प्राप्त ऊर्जा (बोविस में) –
1.75000 2.11000 3.6500 4.70000 ( )
उचित
मिलान कीजिए
मिठाई फास्टफूड गुरुपूजन का पर्व
रात्रि 7 से 9 बजे पाँच बार पढ़े-पढ़ायें
व्यासपूर्णिमा जीवनशक्ति का ह्रास
ʹदिव्य प्रेरणा प्रकाशʹ पुस्तक मस्तिष्क की विशेष सक्रियता
निम्नलिखित
वचन किनके
हैं, यह नीचे
दिये गये
विकल्पों में
से छाँटिये।
"अन्न को रक्त बनाकर सौन्दर्य देने वाला वह आत्मा कितना सुन्दर होगा।" ( )
"आपके क्रोध की परीक्षा तो बाद में होगी, मेरा मुँह तो पहले ही गंदा हो जायेगा।" ( )
"गुरु बिन भव निधि तरहिं न कोई। जो बिरंचि शंकर सम होई।।" ( )
विकल्पः 1.संत तुलसीदासजी 2. मल्लिका 3.मदनमोहन मालवीय जी।
श्रीमद्
भगवद् गीता,
रामायण व
महाभारत
ग्रंथों पर
आधारित
प्रश्न
ʹʹयज्ञों
में जपयज्ञ
मैं हूँ।ʹʹ ये वचन
किनके हैं ?
1.भगवान
श्रीकृष्ण
2.अर्जुन 3.भगवान
शिवजी। (
)
हनुमान
जी के अनुसार
विपत्तिकाल
कौन-सा होता है
?
1.जब
भगवत् सुमिरन
न हो 2.जब धन छिन
जाय 3.जब रोग
आ घेरें। ( )
भीम
ने कौन-से दिन
बिना अन्न-जल
के व्रत रखा
था ?
( )
1.देवउठी
एकादशी
2.शिवरात्रि
3.निर्जला
एकादशी
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