विश्वमानव के
मांगल्य में रत
पूज्य संत श्री
आशारामजी बापू
का परम हितकारी
संदेश
प्रेम तो निर्दोष होता है। प्रेम तो परमात्मा से, अल्लाह से मिलाता है। अल्लाह कहो, गॉड कहो, भगवान कहो, परम सत्ता का ही नाम है ʹप्रेमʹ। परम सुख, परम चेतना का नाम है ʹप्रेमʹ। वही राम, रहीम और गॉड का असली स्वरूप है, इसी में मानवता का मंगल है। सच्चे प्रेमस्वभाव से केवल भारतवासियों का ही नहीं, विश्वमानव का कल्याण होगा। लेकिन शादी विवाह के पहले, पढ़ाई के समय ही एक-दूसरे को फूल देकर युवक-युवतियाँ अपनी तबाही कर रहे हैं तो मुझे उनकी तबाही देखकर पीड़ा होती है। मानव-समाज को कहीं घाटा होता है तो मेरा दिल द्रवित हो जाता है। नारायण-नारायण.....
मेरे हृदय की व्यथा यह थी कि लोग बोलते हैं, ʹविकास का युग, विकास का युगʹ लेकिन यह आज के युवक-युवतियों के लिए विनाश का युग है, ऐसा युग भूतकाल में कभी नहीं आया। न शुद्ध दूध मिलता है, न शुद्ध घी मिलता है, न शुद्ध हवाएँ मिलती हैं, न शुद्ध संस्कार मिलते हैं। थोड़ा कुछ यौवन आया नहीं कि कुसंस्कारों के द्वारा उऩकी कमर टूट जाती है। मैं किसी का विरोध नहीं करना चाहता हूँ लेकिन मानवता का विनाश देखकर मेरा हृदय व्यथित होता है। यह बाहर की आँधी आयी है। हम विरोध करने के बजाये इसका थोड़ी दिशा दे देते हैं ताकि यहाँ कि दिशा से उन लोगों का भी मंगल हो। प्रेम दिवस मनायें लेकिन ʹमातृदेवो भव। पितृदेवो भव।ʹ करके।
विश्वमानव को
एक नयी दिशा.... मातृ-पितृ पूजन
दिवस
सभी लोग अपने माता पिता का सत्कार करें। भारत में और विश्व में ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ का कार्यक्रम मैं व्यापक करना चाहता हूँ। इस दिन बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता का आदर-पूजन करें और प्रणाम करें तथा माता-पिता अपनी संतानों को प्रेम करें। इससे वास्तविक प्रेम का विकास होगा।
सम्पर्कः
महिला उत्थान ट्रस्ट
संत
श्री आशारामजी
आश्रम, साबरमती,
अहमदाबाद-5
email: ashramindia@ashram.org website: www.ashram.org
दूरभाषः
079-39877749-50-51-88, 27505010-11
बाँटने के
लिए 100 पुस्तकें
लेने वालों को
20 पुस्तकें
प्रसादरूप में
दी जायेंगी।
मूल्यः 3 रूपये
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
हृदय की विकारी वासनाओं को प्रेम का जामा देना, प्रेम को बदनाम करना है। प्रेम और काम में बहुत अंतर है। काम नीचे के केन्द्रों में है। वह उत्तेजना और अँधापन पैदा करता है, विकार पैदा करता है और प्रेम ऊपर के केन्द्रों में है, वह सूझबूझ पैदा करता है, नित्य नवीन रस पैदा करता है, प्राणिमात्र में अपनत्व दिखाता है। केवल हिन्दुस्तान उन्नत हो ऐसा नहीं अपितु पूरा मानव-समाज.... पूरा विश्व इस काम-वासना की अंधी आँधी से बचकर संयमी, सदाचारी, स्वस्थ, सुखी व सम्मानित जीवन की राह पर चले और विश्व का मंगल हो क्योंकि हमें विरासत में वही मिला है।
ʹइन्नोसंटी रिपोर्ट कार्डʹ के अनुसार 28 विकसित देशों में हर साल 13 से 19 वर्ष की 12 लाख 50 हजार किशोरियाँ गर्भवती हो जाती हैं। उऩमें से 5 लाख गर्भपात कराती हैं और 7 लाख 50 हजार कुँवारी माता बन जाती हैं। अमेरिका में हर साल 4 लाख 94 हजार अनाथ बच्चे जन्म लेते हैं और 30 लाख किशोर-किशोरियाँ यौन रोगों के शिकार होते हैं।
यौन-संबंध करने वालों में 25 प्रतिशत किशोर-किशोरियाँ यौन रोगों से पीड़ित हैं। असुरक्षित यौन-संबंध करने वालों में 50 प्रतिशत को गोनोरिया, 33 प्रतिशत को जैनिटल हर्पिस और एक प्रतिशत को एड्स का रोग होने की सम्भावना है। एड्स के नये रोगियों में 25 प्रतिशत रोगी 22 वर्ष से छोटी उम्र के होते हैं। आज अमेरिका के 33 प्रतिशत स्कूलों में यौन-शिक्षा के अंतर्गत ʹकेवल संयमʹ की शिक्षा दी जाती है। इसके लिये अमेरिका ने 40 करोड़ से अधिक डॉलर (20 अरब रूपये) खर्च किये हैं।
सर्वे भवन्तु सुखिनः..... हम किसी का विरोध नहीं करते हैं परंतु कोई बेचारा राह भूला है, हमारा भाई है, फूल देकर पड़ोस की बहन को बहन कहने की लायकात नष्ट कर रहा है और बहन फूल लेकर पड़ोस के भाई की नज़र से गिरकर विकारी कठपुतली बन रही है तो ऐसी बेटियों को, बेटों को सही दिशा मिले।
तू गुलाब
होकर महक तुझे
जमाना जाने।
विषय विकारों की आँधी में न बहकर संयम-सदाचार से युक्त स्वस्थ, सुखी एवं सम्मानित जीवन जियो। अपने लिये, माता-पिता के लिए खुशहालियाँ पैदा करने वाली सदभावना से, संयम से आपका मंगल हो और आपसे मिलने वाले का भी आनंद-मंगल हो।
मातृ-पितृ पूजन
दिवस – क्यों ?
माता-पिता
ने हमसे अधिक वर्ष
दुनिया में गुजारे
हैं, उनका अनुभव
हमसे अधिक है और
सदगुरु ने जो महान
अनुभव किया है
उसकी तो हमारे
छोटे अनुभव से
तुलना ही नहीं
हो सकती। इन तीनों
के आदर से उनका
अनुभव हमें सहज
में ही मिलता है।
अतः जो भी व्यक्ति
अपनी उन्नति चाहता
है, उस सज्जन को
माता-पिता और सदगुरु
का आदर पूजन आज्ञापालन
तो करना चाहिए,
चाहिए और चाहिए
ही ! 14 फरवरी को ʹवेलेंटाइन
डेʹ मनाकर
युवक-युवतियाँ
प्रेमी-प्रेमिका
के संबंध में फँसते
हैं। वासना के
कारण उनका ओज-तेज
दिन दहाड़े नीचे
के केन्द्रों में
आकर नष्ट होता
है। उस दिन ʹमातृ-पितृ
पूजनʹ काम-विकार
की बुराई व दुश्चरित्रता
की दलदल से ऊपर
उठाकर उज्जवल भविष्य,
सच्चरित्रा, सदाचारी
जीवन की ओर ले जायेगा।
अनादिकाल से महापुरुषों ने अपने जीवन में माता-पिता और सदगुरु का आदर-सम्मान किया है। पूज्य बापू जी ने भी बाल्यकाल से ही अपने माता-पिता की सेवा की और उनसे ये आशीर्वाद प्राप्त कियेः
पुत्र
तुम्हारा जगत,
में सदा रहेगा
नाम। लोगों के
तुमसे सदा, पूरण
होंगे काम।।
पूज्य श्री अपने सदगुरु भगवत्पाद साँई श्री लीलाशाहजी महाराज की आज्ञा में रहकर खूब श्रद्धा व प्रेम से गुरुसेवा करते थे। माता-पिता और सदगुरु की कैसी सेवा-पूजा करनी चाहिए इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पूज्यश्री के जीवन में देखने को मिलता है। उनकी सेवा से संतुष्ट माता-पिता और सदगुरु ने उन्हें कोई कमी भी नहीं रखी। इसका वर्णन करते हुए पूज्य बापू जी कहते हैं- "मैं अपने-आप में बहुत संतुष्ट हूँ। पिता ने संतोष के कई बार उदगार निकाले और आशीर्वाद भी देते थे। माँ भी बड़ी संतुष्ट रही और सदगुरु भी संतुष्ट रहे तभी तो महाप्रयाण मेरी गोद में किये और उऩ्हीं की कृपा मेरे द्वारा मेरे साधकों और श्रोताओं को संतुष्ट कर रही है, अब मुझे क्या चाहिए ! जो मुझे सुनते हैं, मिलते हैं, वे भी संतुष्ट होते हैं तो मुझे कमी किस बात की रही !"
कोई हिन्दू, ईसाई, मुसलमान, यहूदी नहीं चाहते कि हमारे बच्चे विकारों में खोखले हो जायें, माता-पिता व समाज की अवज्ञई करके विकारी और स्वार्थी जीवन जीकर तुच्छ हो जायें और बुढ़ापे में कराहते रहें। बच्चे माता-पिता व गुरुजन का सम्मान करें तो उनके हृदय से विशेष मंगलकारी आशीर्वाद उभरेगा, जो देश के इन भावी कर्णधारों को ʹवेलेन्टाइन डेʹ जैसे विकारों से बचाकर गणेश जी की नाईं इऩ्द्रिय-संयम व आत्मसामर्थ्य विकसित करने में मददरूप होगा। माता, पिता एवं गुरुजनों का आदर करना हमारी संस्कृति की शोभा है। माता-पिता इतना आग्रह नहीं रखते कि संतानें उनका सम्मान-पूजन करें परंतु बुद्धिमान, शिष्ट संतानें माता-पिता का आदर पूजन करके उनके शुभ संकल्पमय आशीर्वाद से लाभ उठाती हैं।
14 विकसित और विकासशील देशों के बच्चों व युवाओं में किये गये सर्वेक्षण में यह स्पष्ट हुआ है कि भारतीय बच्चे, युवक सबसे अधिक सुखी और स्नेही पाये गये। लंदन व न्यूयार्क में प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका एक बड़ा कारण है-भारतीय लोगों का पारिवारिक स्नेह एवं निष्ठा ! भारतीय युवाओं ने कहा कि ʹउनकि जीवन में प्रसन्नता लाने तथा समस्याओं को सुलझाने में उनके माता-पिता का सर्वाधिक योगदान है।ʹ भारत में माता-पिता हर प्रकार से अपने बच्चों का पोषण करते हैं और माता-पिताओं का पोषण संतजनों से होता है। माता-पिता, बच्चे-युवक सभी को पोषित करने वाला पूज्य बापू जी द्वारा प्रेरित ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ इस निष्कर्ष की पुष्टि करता है।
महान बनना सभी चाहते हैं, तरीके भी आसान हैं। बस, आपको चलना है। महापुरुषों के जीवन-चरित्र को आदर्श बनाकर आप सही कदम बढ़ायें, जरूर बढ़ायें। आपसे कइयों को उम्मीद है। हम भी आपके उज्जवल भविष्य की अपेक्षा करते हैं।
आधुनिक
वैज्ञानिकों का
मत
माता-पिता के पूजने से अच्छी पढाई का क्या संबंध-ऐसा सोचने वालों को अमेरिका की ʹयूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनियाʹ के सर्जन व क्लिनिकल असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सू किम और ʹचिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल ऑफ फिलाडेल्फिया, पेंसिल्वेनियाʹ के एटर्नी एवं इमिग्रेशन स्पेशलिस्ट जेन किम के शोधपत्र के निष्कर्ष पर ध्यान देना चाहिए। अमेरिका में एशियन मूल के विद्यार्थी क्यों पढ़ाई में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करते हैं ? इस विषय पर शोध करते हुए उऩ्होंने यह पाया कि वे अपने बड़ों का आदर करते हैं और माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हैं तथा उज्जवल भविष्य-निर्माण के लिए गम्भीरता से श्रेष्ठ परिणाम पाने के लिए अध्ययन करते हैं। भारतीय संस्कृति के शास्त्रों और संतों में श्रद्धा न रखने वालों को भी अब उनकी इस बात को स्वीकार करके पाश्चात्य विद्यार्थियों को सिखाना पड़ता है कि माता-पिता का आदर करने वाले विद्यार्थी पढ़ाई में श्रेष्ठ परिणाम पा सकते हैं।
जो विद्यार्थी माता-पिता का आदर करेंगे वे ʹवेलेन्टाइन डेʹ मनाकर अपना चरित्र भ्रष्ट नहीं कर सकते। संयम से उनके ब्रह्मचर्य की रक्षा होने से उनकी बुद्धिशक्ति विकसित होगी, जिससे उनकी पढ़ाई के परिणाम अच्छे आयेंगे।
मातृ-पितृ
पूजन का इतिहास
एक बार भगवान शंकर
के यहाँ उनके दोनों
पुत्रों में होड़
लगी कि, कौन बड़ा?
निर्णय लेने के
लिए दोनों गय़े
शिव-पार्वती के
पास। शिव-पार्वती
ने कहाः जो संपूर्ण
पृथ्वी की परिक्रमा
करके पहले पहुँचेगा,
उसी का बड़प्पन
माना जाएगा।
कार्तिकेय तुरन्त
अपने वाहन मयूर
पर निकल गये पृथ्वी
की परिक्रमा करने।
गणपति जी चुपके-से
एकांत में चले
गये। थोड़ी देर
शांत होकर उपाय
खोजा तो झट से उन्हें
उपाय मिल गया।
जो ध्यान करते
हैं, शांत बैठते
हैं उन्हें अंतर्यामी
परमात्मा सत्प्रेरणा
देते हैं। अतः
किसी कठिनाई के
समय घबराना नहीं
चाहिए बल्कि भगवान
का ध्यान करके
थोड़ी देर शांत
बैठो तो आपको जल्द
ही उस समस्या का
समाधान मिल जायेगा।
फिर गणपति जी आये
शिव-पार्वती के
पास। माता-पिता
का हाथ पकड़ कर
दोनों को ऊँचे
आसन पर बिठाया,
पत्र-पुष्प से
उनके श्रीचरणों
की पूजा की और प्रदक्षिणा
करने लगे। एक चक्कर
पूरा हुआ तो प्रणाम
किया.... दूसरा चक्कर
लगाकर प्रणाम किया....
इस प्रकार माता-पिता
की सात प्रदक्षिणा
कर ली।
शिव-पार्वती ने
पूछाः वत्स! ये
प्रदक्षिणाएँ
क्यों की?
गणपतिजीः
सर्वतीर्थमयी
माता... सर्वदेवमयो
पिता... सारी पृथ्वी
की प्रदक्षिणा
करने से जो पुण्य
होता है, वही पुण्य
माता की प्रदक्षिणा
करने से हो जाता
है, यह शास्त्रवचन
है। पिता का पूजन
करने से सब देवताओं
का पूजन हो जाता
है। पिता देवस्वरूप
हैं। अतः आपकी
परिक्रमा करके
मैंने संपूर्ण
पृथ्वी की सात
परिक्रमाएँ कर
लीं हैं। तब से
गणपति जी प्रथम
पूज्य हो गये।
शिव-पुराण में
आता हैः
पित्रोश्च
पूजनं कृत्वा प्रक्रान्तिं
च करोति यः।
तस्य वै पृथिवीजन्यफलं
भवति निश्चितम्।।
"जो पुत्र
माता-पिता की पूजा
करके उनकी प्रदक्षिणा
करता है, उसे पृथ्वी-परिक्रमाजनित
फल सुलभ हो जाता
है।"
"प्रेम
दिवस जरूर मनायें
लेकिन प्रेम दिवस
में संयम और सच्चा
विकास लाना चाहिए।" – पूज्य
बापू जी
पूजन
की विधिः
पूजन कराने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे विधि बोलता जाये और निम्नलिखित मंत्रों एवं आरती का मधुर स्वर में गायन करता जाय। तदनुसार बच्चे और माता-पिता पूजन को सम्पन्न करेंगे।
माता-पिता को स्वच्छ तथा ऊँचे आसन पर बिठायें।
आसने
स्थापिते ह्यत्र
पूजार्थं भवरोरिह।
भवन्तौ
संस्थितौ तातौ
पूर्यतां मे मनोरथः।।
अर्थात् ʹहे मेरे माता पिता ! आपके पूजन के लिए यह आसन मैंने स्थापित किया है। इसे आप ग्रहण करें और मेरा मनोरथ पूर्ण करें।ʹ
बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता के माथे पर कुंकुम का तिलक करें। तत्पश्चात् माता-पिता के सिर पर पुष्प एवं अक्षत रखें तथा फूलमाला पहनायें। अब माता-पिता की सात परिक्रमा करें। इससे उऩ्हें पृथ्वी परिक्रमा का फल प्राप्त होता है।
यानि
कानि च पापानि
जन्मान्तरकृतानि
च।
तानि
सर्वाणि नश्यन्तु
प्रदक्षिणपदे
पदे।।
पुस्तक में दिये चित्र अऩुसार बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता को झुककर विधिवत् प्रणाम करें।
अभिवादनशीलस्य
नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि
तस्य वर्धन्ते
आयुर्विद्या यशो
बलम्।।
अर्थात् जो माता पिता और गुरु जनों को प्रणाम करता है और उऩकी सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चारों बढ़ते हैं। (मनुस्मृतिः 2.121)
आरतीः बच्चे-बच्चियाँ थाली में दीपक जलाकर माता-पिता की आरती करें और अपने माता-पिता एवं गुरु में ईश्वरीय भाव जगाते हुए उनकी सेवा करने का दृढ़ संकल्प करें।
दीपज्योतिः
परं ब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो
हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोઽस्तु
ते।।
(आरती
की तर्ज -
ૐ जय जगदीश
हरे....)
ૐ जय जय मात-पिता, प्रभु गुरु जी मात-पिता।
सदभाव देख तुम्हारा-2, मस्तक झुक जाता।। ૐ जय जय मात-पिता..
कितने कष्ट उठाये हमको जनम दिया, मइया पाला-बड़ा किया।
सुख देती, दुःख सहती-2, पालनहारी माँ।। ૐ जय जय मात-पिता...
अनुशासित कर आपने उन्नत हमें किया, पिता आपने जो है दिया।
कैसे ऋण चुकाऊँ -2, कुछ न समझ आता।। ૐ जय जय मात-पिता..
सर्वतीर्थमयी माता सर्व देवमय पिता, ૐ सर्वदेवमय पिता।
जो कोई इनको पूजे-2, पूजित हो जाता।। ૐ जय जय मात-पिता..
मात-पिता की पूजा गणेश जी ने की, श्रीगणेश जी ने की।
सर्वप्रथम गणपति को-2, ही पूजा जाता।। ૐ जय जय मात-पिता..
बलिहारी सदगुरु की मारग दिखा दिया, सच्चा मारग दिखा दिया।
मातृ-पितृ पूजन कर – 2, जग जय जय गाता।। ૐ जय जय मात-पिता..
मात-पिता प्रभु गुरु की आरती जो गाता, है प्रेम सहित गाता।
वो संयमी हो जाता, सदाचारी हो जाता, भव से तर जाता।। ૐ जय जय मात-पिता..
लफंगे-लफंगियों की नकल छोड़, गुरु सा संयमी होता, गणेश सा संयमी होता।
स्वयं आत्मसुख पाता-2, औरों को पवाता।। ૐ जय जय मात-पिता..
पूज्य बापू जी का परम मंगलकारी संदेश है कि "पूजन-विधि हो जाय तब बच्चे थोड़ी देर चुप बैठें। माँ बाप बच्चों को देखें और मन ही मन उनके प्रति आत्मकृपा बरसा रहे हों, उन मिनटों में बच्चे के आदर से, सदभाव से माँ-बाप की तरफ देखें और चिंतन करें कि उनका अंतर्यामी परमात्मा हम पर आशीर्वाद बरसा रहा है, अपना शुभ आशीष बरसा रहा है। इससे तुम्हारा मंगल होगा बेटे-बेटियो ! माँ-बाप ऐसे ही तुम्हारा मंगल चाहते हैं और इस दिन तो विशेष कृपा बरसाते हैं। माँ-बाप बच्चों को आशीर्वाद दें कि इनका मंगल हो।
बाद में माँ-बाप भी बच्चों को तिलक करें, सिर पर हाथ घुमायें, शुभ आशीष दें। माता-पिता अपनी संतान को प्रेम से सहलायें। संतान अपने माता-पिता के गले लगे। बेटे-बेटियाँ माता-पिता में ईश्वरीय अंश देखें और माता-पिता बच्चों में ईश्वरीय अंश देखें।"
यही है असली प्रेम दिवस ! पूज्य बापू जी द्वारा प्रेरित ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ !
इस दिन बच्चे-बच्चियाँ पवित्र संकल्प करें कि ʹमैं अपने माता-पिता व गुरुजनों का आदर करूँगा/करूँगी। उन्हें रोज प्रणाम करूँगा/करूँगी। मेरे जीवन को महानता के रास्ते ले जाने वाली उऩकी आज्ञाओं का पालन करना मेरा कर्तव्य है और मैं उसे अवश्य पूरा करूँगा/करूँगी। हरि ૐ.... हरि ૐ....
इस समय माता-पिता अपने बच्चों को सिर पर हाथ रखकर स्नेहमय आशीष बरसायें एवं उनके मंगलमय जीवन के लिए इस प्रकार शुभ संकल्प करें- "तुम्हारे जीवन में उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति व पराक्रम की वृद्धि हो। तुम्हारा जीवन माता-पिता एवं गुरु की भक्ति से महक उठे। तुम्हारे कर्मों में धर्म, सज्जनता और कुशलता आये। तुम त्रिलोचन बनो – तुम्हारी बाहर की आँख के साथ भीतरी, विवेक की कल्याणकारी आँख जागृत हो। तुम पुरुषार्थी बनो और हर क्षेत्र में सफलता तुम्हारे चरण चूमे।ʹ
आयुष्माण भव – ʹतुम दीर्घायु बनोʹ। श्रद्धावान भव – ʹतुम श्रद्धावान बनो।ʹ विद्यावान भव ʹतुम विद्यावान बनो।ʹ ब्रह्मविद् भव - ʹतुम ब्रह्मवेत्ता बनो।ʹ
बच्चे बच्चियाँ माता-पिता को मधुर प्रसाद खिलायें एवं माता-पिता अपने बच्चों को प्रसाद खिलायें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
युगप्रवर्तक संत श्री आशारामजी बापू की जीवनयात्रा....
आत्मारामी, श्रोत्रिय, ब्रह्मनिष्ठ, योगिराज प्रातः स्मरणीय पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने आज भारत ही नहीं वरन् समस्त विश्व को अपनी अमृतवाणी से परितृप्त कर दिया है।
जन्म व बाल्यकालः बालक आसुमल का जन्म अखण्ड भारत के सिंध प्रांत के बेराणी गाँव में 17 अप्रैल 1941 को हुआ था। आपके पिता थाऊमल जी सिरूमलानी आपश्री के मुखमंडल पर झलकते ब्रह्मतेज को देखकर आपके कुलगुरु ने भविष्यवाणी की थी कि ʹआगे चलकर यह बालक एक महान संत बनेगा, लोगों का उद्धार करेगा।ʹ इस भविष्यवाणी की सत्यता आज किसी से छिपी नहीं है।
युवावस्था (विवेक-वैराग्य) – आपश्री का बाल्यकाल एवं युवावस्था विवेक वैराग्य की पराकाष्ठा से सम्पन्न थे, जिससे आप अल्पायु में ही गृह-त्याग कर प्रभुमिलन की प्यास में जंगलों-बीहड़ों में घूमते-तड़पते रहे। नैनीताल के जंगल में स्वामी श्री लीलाशाहजी आपको सदगुरु रुप में प्राप्त हुए। मात्र 23 वर्ष की अल्पायु में आपने पूर्णत्व की साक्षात्कार कर लिया। सदगुरु ने कहाः ʹआज से लोग तुम्हें ʹसंत आशारामजीʹ के रूप में जानेंगे। जो आत्मिक दिव्यता तुमने पायी है उसे जन-जन में वितरित करो।ʹ
ये ही आसुमल ब्रह्मनिष्ठा को प्राप्त कर आज बड़े-बड़े दार्शनिकों, वैज्ञानिकों, नेताओं तथा अफसरों से लेकर अनेक शिक्षित-अशिक्षित साधक-साधिकाओं तक सभी को अध्यात्म-ज्ञान की शिक्षा दे रहे हैं, भटके हुए मानव-समुदाय को सही दिशा प्रदान कर रहे हैं।
आश्रम स्थापना व लोक कल्याणः गुरुआज्ञा शिरोधार्य करके समाधि-सुख छोड़कर आप अशांति की भीषण आग से तप्त लोगों में शांति का संचार करने हेतु समाज के बीच आ गये। सन् 1972 में आप श्री साबरमती के पावन तट पर स्थित मोटेरा पधारे, जहाँ दिन में भी मारपीट, लूटपाट, डकैती व असामाजिक कार्य होते थे। वही मोटेरा गाँव आज लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं का पावन तीर्थधाम, शांतिधाम बन चुका है। इस साबर-तट स्थित आश्रमरूपी विशाल वटवृक्ष की 400 से भी अधिक शाखाएँ आज भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में फैल चुकी हैं और इन आश्रमों में सभी वर्णों, जातियों और सम्प्रदायों के लोग देश-विदेश से आकर आत्मानंद में डुबकी लगाते हैं तथा हृदय में परमेश्वरीय शांति का प्रसाद पाकर अपने को धन्य-धन्य अनुभव करते हैं। अध्यात्म में सभी मार्गों का समन्वय करके पूज्यश्री अपने शिष्यों के सर्वांगीण विकास का मार्ग सुगम करते हैं। भक्तियोग, ज्ञानयोग, निष्काम कर्मयोग और कुंडलिनी योग से साधक-शिष्यों का, जिज्ञासुओं का आध्यात्मिक मार्ग सरल कर देते हैं। निष्काम कर्मयोग हेतु आश्रम द्वारा स्थापित 1400 से भी अधिक सेवा समितियाँ आश्रम की सेवाओं को समाज के कोने-कोने तक पहुँचाने में जुटी रहती हैं।
योग सामर्थ्य के धनीः ब्रह्मनिष्ठा अपने-आप में एक बहुत बड़ी ऊँचाई है। ब्रह्मनिष्ठा के साथ यदि योग-सामर्थ्य भी हो तो दुग्ध शर्करा योग की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसा ही सुमेल देखऩे को मिलता है पूज्य बापू जी के जीवन में। एक ओर जहाँ आपकी ब्रह्मनिष्ठा साधकों को सान्निध्यमात्र से परम आनंद, पवित्र शांति में सराबोर कर देती है, अकालग्रस्त स्थानों में वर्षा होना, वर्षों से निःसंतान रहे दम्पत्तियों को संतान होना, रोगियों के असाध्य रोग सहज में दूर होना, निर्धनों को धन प्राप्त होना, अविद्वानों को विद्वता प्राप्त होना, घोर नास्तिकों के जीवन में आस्तिकता का संचार होना – इस प्रकार की अऩेकानेक घटनाएँ आपके योग-सामर्थ्य सम्पन्न होने का प्रमाण हैं। ʹसभी का मंगलʹ का उदघोष करने वाले पूज्य बापू जी को हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी व अन्य धर्मावलम्बी भी अपने हृदय-स्थल में बसाये हुए हैं व अपने को पूज्यश्री के शिष्य कहलाने में गर्व महसूस करते हैं। भारत की राष्ट्रीय एकता-अखंडता व शांति के प्रबल समर्थक पूज्य बापू जी ने राष्ट्र के कल्याणार्थ अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
आप कहते हैं.....
"यह पुनीत व पुण्य शुरुआत है। हम तहेदिल से आपका सहयोग और हृदय से वंदन करते हैं।" – श्री कल्कि पीठाधीश्वर प्रमोद कृष्णम् जी महाराज, अध्यक्ष, उत्तर भारत, अखिल भारतीय संत समिति।
"हम लोग ʹमातृ-पितृ-पूजन दिवसʹ मनायें तो यह दिवस एक महाकुम्भ बनकर हमारे घर में हमेशा-हमेशा के लिए विराजमान हो जायेगा।" संत श्री देवकीनंदन ठाकुर जी
"पूज्य बापू जी ने युवावर्ग को वासना से बचाकर उपासना का मार्ग खोल दिया है।" – महामंडलेश्वर स्वामी परमात्मानंदजी।
"गाँव-गाँव, गली-गली में मातृ-पितृ पूजन होगा। भारतीय संस्कृति की इस उज्जवलता को हम पूरे विश्व के सामने प्रस्तुत करेंगे।" – युवा क्रांतिद्रष्टा संत दिनेश भारती जी
"माता-पिता पूजन दिवस बहुत ही अच्छा प्रयास है। आजकल के युवान-युवतियों को इसका महत्त्व बताना बहुत जरूरी है।" – प्रसिद्ध गायिका अनुराधा पौडवाल
"मुझे पूरा विश्वास है कि बापू जी हमें एक नयी दिशा दिखा रहे हैं।" महामंडलेश्वर स्वामी देवेन्द्रानंदजी गिरी, राष्ट्रीय महामंत्री, अखिल भारतीय संत समिति।
"यह दिवस समूचे हिन्दुस्तान में नये इतिहास का सृजन करेगा।" –जैन समाज के आचार्य युवा लोकेश मुनिश्रीजी
"बापू जी के दिल की जो पीड़ा है, वह हम सबके दिल की पीड़ा है। बापू जी मेरे जो नौ लाख अनुयायीगण हैं, आप जब आवाज देंगे, वे आपकी सेवा में, राष्ट्र की सेवा में आपके सम्मुख खड़े होंगे।" – आचार्य देवप्रकाश देवश्रीजी
"मातृ-पितृ पूजन दिवस निश्चित तौर पर बहुत ही अच्छी बात है।" मुख्तार अब्बास नकवी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भा.ज.पा.
"सांस्कृतिक उत्थान के लिए ʹवेलेन्टाईन डेʹ को ʹमाता-पिता पूजन दिवसʹ में बदलने जैसे प्रयास निरंतर हों।" प्रसिद्ध अभिनेत्री भाग्यश्री
"पूज्य बापूजी के द्वारा ʹमातृ-पितृ पूजनʹ की पहल बहुत ही क्रान्तिकारी है।" – जयप्रकाश अग्रवाल, दिल्ली प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष व सांसद
"पूरे देश में ʹमातृ-पितृ पूजनʹ कार्यक्रम का सफल आयोजन यह एक प्रशंसनीय कार्य है।" – सिकंदर सिंह मलूका, शिक्षा मंत्री, पंजाब
तुम्हारे जीवन
में चार चाँद न
लगें तो मेरी जिम्मेदारी
!
- लोकसंत
पूज्य बापू जी
डॉ. जे मार्गन और दूसरे डॉक्टर लोग कहते हैं कि हिन्दुस्तान का ૐकार मत्र बड़ा सफल है। ʹप्रणववादʹ ग्रंथ में ૐकार मंत्र से संबंधित 22 हजार श्लोकों का समावेश है। आपको मैं ૐकार का जप करने की रीति बताता हूँ। आपको पापनाशिनी ऊर्जा मिलेगी, आपके हृदय में भगवान का रस आयेगा। बच्चे-बच्चियों के परीक्षा में अच्छे अंक आयेंगे, यादशक्ति बढ़ेगी। उऩ्हें भगवान भी प्रेम करेंगे और लोग भी प्रेम करेंगे।
ૐकार मंत्र जपते समय पहले प्रतिज्ञा करनी होती हैः "ૐकार मंत्रः. गायत्री छंदः, भगवान नारायण ऋषिः, अंतर्यामी परमात्मा देवता, अंतर्यामी प्रीत्यर्थे, परमात्मप्राप्ति अर्थे जपे विनियोगः।"
कानों में उंगलियाँ डालकर लम्बा श्वास लो, कंठ से भगवान के पवित्र, सर्वकल्याण कारी ʹૐʹ का जप करो। जितना ज्यादा श्वास लोगे उतने फेफड़ों के बंद छिद्र खुलेंगे, रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी। मन में ʹप्रभु मेरे, मैं प्रभु काʹ बोलो, फिर कानों में उँगली डालकर कंठ से ૐૐૐ... ओઽઽઽ....म् का उच्चारण करो (भ्रामरी प्राणायाम)। इस प्रकार दस बार करो। फिर कानों में से उँगलियाँ निकाल दो।
इतना करने के बाद शांत बैठ गये। होठों से जपो - ʹૐૐ प्रभुजी ૐ, आनंद देवता ૐ, अंतर्यामी ૐ...ʹ दो मिनट करना है। फिर हृदय से जपो - ʹૐ शांति.... ૐ आनंद.... ૐૐૐ...ʹ जीभ व होंठ मत हिलाओ। अब कंठ से जप करना है। श्रीकृष्ण जी ने यह चस्का यशोदा जी को लगाया था। जब ૐकार मंत्र के जप का प्रयोग करो तो गौ चंदन या गूगल धूप कर सको तो ठीक है नहीं तो ऐसे ही करो। विद्युत का कुचालक कम्बल, कारपेट आदि का आसन होना चाहिए।
यह प्रयोग करो, तुम्हारे जीवन में चार चाँद न लगें तो मेरी जिम्मेदारी !
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
एकादशी
व्रत माहात्म्य
मानव-जीवन
का मुख्य उद्देश्य
परमात्मप्राप्ति
ही है। शारीरिक
स्वास्थ्य, मनोबल
और बुद्धि का सत्त्व
इन तीनों से सम्पन्न
मनुष्य ही भोग
और मोक्ष पा लेता
है। इसमें समझपूर्वक
किये गये एकादशी
आदि व्रत-उपवासों
की अत्यंत महत्त्वपूर्ण
भूमिका है। मनुष्य
की सर्वांगीण उन्नति
के सूत्र इनमें
निहित हैं।
कामदा एकादशी
(चैत्र शुक्ल पक्ष)-
शापित
ललित इस व्रत के
पुण्य प्रभाव से
राक्षस योनि से
मुक्त हो पुनः
गंधर्वत्व को प्राप्त
हुआ। यह एकादशी
ब्रह्महत्या व
पिशाचत्व के दोषों
का नाश करने वाली
है।
मोहिनी एकादशी
(वैशाख शुक्ल पक्ष)-
पापी,
दुराचारी और वेश्यागामी
होने से पिता व
बंधु-बांधवों से
परित्यक्त धृष्टबुद्धि
इस एकादशी के विधिपूर्वक
व्रत-पालन से निष्पाप
हो, दिव्य देह धारण
कर श्रीविष्णुधाम
को प्राप्त हुआ।
इस एकादशी के उपवास
से महापाप नष्ट
होते हैं।
निर्जला एकादशी
(ज्येष्ठ शुक्ल
पक्ष)- वर्षभर की
एकादशियों का फल
इस एकादशी को करने
से प्राप्त हो
जाता है। इस दिन
किये गये दान-पुण्य,
हवन-होम का फल अक्षय
होता है। रात्रि
जागरण के साथ ʹनिर्जला
एकादशीʹ करने
वाले की बीती हुई
और आऩे वाली सौ
पीढ़ियों को परम
धाम की प्राप्ति
होती है।
शयनी (देवशयनी)
एकादशी (आषाढ़
शुक्ल पक्ष)- यह महान
पुण्यमयी, स्वर्ग
व मोक्ष प्रदान
करने वाली है।
देवशयनी से प्रबोधिनी
एकादशी तक भलीभाँति
धर्म का आचरण करने
वाला परम गति पाता
है।
कामिका एकादशी
(श्रावण कृष्ण
पक्ष)- इसके स्मरणमात्र
से वाजपेय यत्र
का फल मिलता है।
इस दिन तुलसी की
मंजरी चढ़ा के
तथा दीपक जलाकर
केशव का पूजन करने
वाले के जन्मभर
के पाप नष्ट होते
हैं, उसके पितर
स्वर्गलोक में
अमृतपान से तृप्त
होते हैं। दीपदान
करने वाले के पुण्यों
की गणना चित्रगुप्त
भी नहीं कर पाते।
पुत्रदा एकादशी
(श्रावण शुक्ल
पक्ष)- संतानहीन राजा
महीजित को इस व्रत
के पुण्य से पुत्रप्राप्ति
हुई। यह व्रत मनोवांछित
फल प्रदान करने
वाला है।
अजा एकादशी
(भाद्रपद कृष्ण
पक्ष)- किसी पूर्वकर्म
के प्रभाव से राज्यभ्रष्ट
राजा हरिश्चन्द्र
को इस एकादशी के व्रत, उपवास
व जागरण से पुनः
पत्नी, पुत्र व
निष्कंटक राज्य
की प्राप्ति हुई।
यह एकादशी सम्पूर्ण
कष्ट-संताप को
हरने वाली है।
पद्मा एकादशी
(भाद्रपद शुक्ल
पक्ष)- राजा मांधाता
द्वारा प्रजासहित
इस व्रत के अनुष्ठान
से मेघ बरसने लगे
तथा चारों तरफ
खुशहाली छा गयी।
यह व्रत पापों
को नष्ट व भक्ति-मुक्ति
प्रदान करने वाला
है। इस व्रत को
करने से मनुष्य
को समस्त तीर्थों
व यज्ञों का फल
मिल जाता है।
इंदिरा एकादशी
(आश्विन कृष्ण
पक्ष)- इस व्रत के
पुण्य से राजा
इऩ्द्रसेन के पिता
को स्वर्गलोक की
प्राप्ति हुई।
इसे करने से बड़े-बड़े
पापों का नाश हो
जाता है। यह एकादशी
नीच योनि में पड़े
हुए पितरों की
सदगति करने वाली
है।
पापांकुशा
एकादशी (आश्विन
शुक्ल पक्ष)- यह सब
पापों को हरने वाली, स्वर्ग
व मोक्षप्रद, शरीर
को निरोग बनाने
वाली तथा सुंदर
स्त्री, धन एवं
मित्र देने वाली
है। इस दिन उपवास
और रात्रि जागरण
करने वाले माता,
पिता तथा पत्नी
के पक्ष की 10-10 पीढ़ियों
का उद्धार कर लेते
हैं।
रमा एकादशी
(कार्तिक शुक्ल
पक्ष)- इस व्रत के
प्रभाव से चन्द्रभागा
दिव्य भोग, दिव्य
रूप को प्राप्त
हो मंदराचल के
शिखर पर विहार
करती है। यह एकादशी
बड़े-बड़े पापों
को हरने तथा चिंतामणि
व कामधेनु के समान
सब मनोरथों को
पूर्ण करने वाली
है।
प्रबोधिनी/देवउठी
एकादशी (कार्तिक
शुक्ल पक्ष)- विधिपूर्वक
इस व्रत को करने
वाला नंत सुख पाता
है और अंत में स्वर्गलोक
जाता है।
मोक्षदा एकादशी
(मार्गशीर्ष शुक्ल
पक्ष)- यह व्रत चिंतामणि
के समान समस्त
कामनाओँ को पूर्ण
करने वाला है।
इस व्रत के प्रभाव
से पाप नष्ट होता
है और मरने के बाद
मोक्ष की प्राप्ति
होती है।
पुत्रदा एकादशी
(पौष शुक्ल पक्ष)-
संतानहीन
राजा सुकेतुमान
को विधिपूर्वक
इस एकादशी के अनुष्ठान
से पुत्ररत्न की
प्राप्ति हुई।
यह सब पापों को
हरने वाली उत्तम
तिथि है।
जया एकादशी
(माघ शुक्ल पक्ष)-
शाप
से पिशाचत्व को
प्राप्त माल्यवान
व पुष्पवंती इस
व्रत के प्रभाव
से मुक्त हो गये।
इस व्रत को करने
वाला कभी प्रेतयोनी
में नहीं जाता।
यह ब्रह्महत्या
जैसे पाप तथा पिशाचत्व
का भी विनाश करने
वाली है।
आमलकी एकादशी
(फाल्गुन शुक्ल
पक्ष) इस दिन आँवले के
वृक्ष के पास रात्रि-जागरण
करने से मनुष्य
सब पापों से छूट
जाता है और सहस्र
गोदान का फल पाता
है।
(वर्ष की सभी
एकादशियों की विस्तृत
कथाओं तथा व्रत
महिमा एवं विधि
की विस्तृत जानकारी
के लिए पढ़ें आश्रम
की पुस्तक ʹएकादशी
व्रत-कथाएँʹ)
स्वस्थ सुखी
सम्मानित
जीवन
जीने की कला
सर्वरोगनाशक
व स्वास्थ्प्रद
स्थलबस्ति या अश्विनी
मुद्रा
132 प्रकार की
बीमारियाँ दूर
होती हैं।
श्वेत-प्रदर,
धातुक्षय, स्वप्नदोष,
पेट के विकार दूर
होते हैं।
कुंडलिनी शक्ति,
प्राणशक्ति ऊर्ध्वगामी
होती है।
विधिः सुबह
खाली पेट चटाई
या कम्बल बिछा
के पूर्व अथवा
दक्षिण की तरफ
सिर करके शवासन
में लेट जायें।
पूरा श्वास बाहर
फेंक दें और 30-40 बार
गुदाद्वार का आकुंचन-प्रसरण
करें, जैसे घोड़ा
लीद छोड़ते समय
करता है। इस प्रक्रिया
को 4-5 बार दुहरायें।
घर में बरकत
व सुख शांति हेतु
गोदुग्ध से
बने दही को शरीर
पर रगड़कर स्नान
करें।
लक्ष्मी पुरुषार्थ
व पुण्यों की वृद्धि
से आती है, दान, पुण्य
व कौशल से बढ़ती
है, संयम सदाचार
से स्थिर होती
है। पाप, ताप एवं
भय से आया धन कलह
व भय पैदा कर 10 वर्ष
में नष्ट हो जाता
है।
घर के बाहर
हल्दी व चावल के
मिश्रण या केवल
हल्दी से स्वस्तिक
अथवा ૐकार बनाने से गृहबाधा
से रक्षा होती
है।
आश्रम का बना
हुआ, ʹगृहदोष बाधा निवारकʹ, जो निःशुल्क
दिया जाता है, वह
प्रत्येक कमरे
में रखने से घर
के क्लेश, वास्तुदोष,
पितृदोष और बुरी
नजर के प्रभाव
से रक्षा होती
है। कार्यालय में
रखने से आपसे जो
मिलने आयेंगे वे
भी खुश होकर जायेंगे।
आरोग्यता
व पुण्यदायक प्रयोग
सप्तधान्य
उबटन (पिसे हुए
गेहूँ, चावल, जौ,
तिल, चना, मूँग और
उड़द से बना मिश्रण)
लगाकर स्नान करने
से पुण्य, प्रसन्नता
व आरोग्यता की
प्राप्ति होती
है। (संत श्री आशारामजी
आश्रमों व सेवा-समितियों
के सेवाकेन्द्रों
पर उपलब्ध
है) किसी भी पर्व
के दिन गोमूत्र
से रगड़कर स्नान
करना पापनाशक स्नान
होता है।
सूर्यकिरणें
सर्वरोगनाशक व
स्वास्थ्यप्रद
हैं। रोज सुबह
सिर को कपड़े से
ढककर 8 मिनट सूर्य
की ओर मुख व 10 मिनट
पीठ करके बैठें।
समय अधिक न हो व
धूप तेज न हो।
तो भोजन बनेगा
पुष्टिदायक टॉनिक
भोजन से पहले गुरुदेव या इष्टदेव का स्मरण कर उन्हें मन ही मन भोग लगायें। गीता के पन्द्रहवें अध्याय का पाठ करें।
भोजन के बीच में गुनगुना पानी पियें।
भोजन के पश्चात टहलने के बाद प्रथम 8 श्वास तक सीधे, पीठ के बल लेटें। उसके बाद 16 श्वास तक दाहिनी करवट लेटें। उसके बाद 32 श्वास तक बायीं करवट लेटें, किंतु सोये नहीं ऐसा करने से भोजन शीघ्र पचता है।
ʹहरड़ रसायन योगʹ त्रिदोषशामक व शरीरशुद्धि करने वाला उत्तम योग है। इससे 132 प्रकार के रोगों में लाभ होता है। सुबह-शाम दो-दो गोलियाँ चूसें।
(सभी संत श्री आशारामजी आश्रमों व सेवा-समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध है)
मधुमेह
का अनुभूत अक्सीर
इलाज
आधा किलो करेले (पके, सस्ते भी चलेंगे) काटकर तसले में रखें और मुँह कड़वा होने तक पैरों तले कुचलते रहें। 7 से 10 दिन में लाभ होगा।
शीत
ऋतु में पाइये
बल का खजाना
5 से 7 खजूर (बच्चों हेतु 2-4 खजूर) धोकर रात को भिगो के सुबह खाने से शरीर, हृदय व मस्तिष्क पुष्ट होता है। दूध या घी में मिला के खाना विशेष लाभदायी।
किशमिश पचने में हलकी, मधुर व त्रिदोषशामक है। यह बल-वीर्य बढ़ाती व तुरंत शक्ति-स्फूर्ति देती है। (आश्रमों व समितियों के मुख्य सेवाकेन्द्रों पर दोनों उपलब्ध)
आध्यात्मिक
उन्नति हेतु
श्री आशारामायण के 108 पाठ करने से मनोकामनाएँ तो पूर्ण होती ही हैं, साथ ही आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। दो कार्यों के बीच अपने अंतरात्मा में शांत होने से अगला कार्य करने के लिए उत्तम सूझबूझ, योग्यता व शक्ति प्राप्त होती है।
नूतन
वर्ष पर लोकलाड़ले
पूज्य बापू जी
का संदेश
ʹૐʹ या ʹहरि ૐʹ का दीर्घ उच्चारण करें, फिर जितनी देर उच्चारण किया उतनी देर शांत। तुम स्वयं सुखस्वरूप, ज्ञानस्वरूप, आनंदस्वरूप हो। तुम जब बाहर की वस्तु पर अपना आनंद उँडेलते हो तब वह तुम्हें सुखदायक लगती है। तो यह प्रयोग करते-करते शांत होकर सीधा अपने अंतरात्मा भगवान का आनंद लो न !
संतों
के प्यारे पूज्य
संत श्री आशारामजी
बापू
"सुख-शांति व स्वास्थ्य का प्रसाद बाँटने के लिए ही बापू जी जैसे महापुरुष का अवतरण हुआ है।" – काँची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जगदगुरु श्री जयेन्द्र सरस्वती जी महाराज
"हर व्यक्ति जो निराश है, उसे आशारामजी की जरूरत है।" – प्रसिद्ध योगाचार्य श्री रामदेव जी
"बापू जी ! आप तो व्यास हो। आप ही का ज्ञान प्रसाद हम सब बाँट रहे हैं।" श्री श्री रविशंकरजी महाराज
"पूज्य बापू जी नित्य नवीन, नित्य वर्धनीय आनंदस्वरूप हैं।" – सुप्रसिद्ध कथाकार श्री मोरारी बापू जी
ब्रह्मसंकल्प
पूज्य बापू जी का विश्वमानव के कल्याण के उद्देश्य से आकाश में फैलाया गया ब्रह्मसंकल्पः "14 फरवरी ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ को अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनायेंगे। ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ में पाँच भूत, देवी-देवता और मेरे साधक और मुसलमान, हिन्दु, ईसाई, पारसी सभी जुड़ जायें, ऐसा मैं संकल्प आकाश में फैला रहा हूँ। देवता सुन लें, यक्ष सुन लें, गंधर्व सुन लें, पितर सुन लें कि भारत और विश्व में मातृ-पितृ पूजन दिवस का कार्यक्रम मैं व्यापक करना चाहता हूँ।"
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ