तुम
सफलता की
बुलन्दियों
को छू सकते हो...
पूज्य
संत श्री
आशारामजी
बापू
पावन संदेश
जहाँ मन की गहरी चाह होती है, आदमी वहीं पहुँच जाता है। अच्छे कर्म, अच्छा संग करने से हमारे अंदर अच्छे विचार पैदा होते हैं और बुरे कर्म, बुरा संग करने से बुरे विचार उत्पन्न होते हैं एवं जीवन अधोगति की ओर चला जाता है।
हे मेरे विद्यार्थियो ! तुम हलके विद्यार्थियों का अनुकरण मत करना वरन् तुम तो संयमी-सदाचारी महापुरुषों के जीवन का अनुकरण करना। उनके जीवन में कितनी विघ्न-बाधाएँ आयीं फिर भी वे लगे रहे। मीरा, ध्रुव, प्रह्लाद आदि भक्तों के जीवन में कितने प्रलोभन और बाधाएँ आयीं फिर भी वे लगे रहे। हजार-हजार विघ्न-बाधाएँ आ जायें फिर भी जो संयम का, सदाचार का, सेवा का, ध्यान का, भगवान की भक्ति का रास्ता नहीं छोड़ता वह जीते जी मुक्तात्मा, महान आत्मा, परमात्मा के ज्ञान से सम्पन्न सिद्धात्मा जरूर हो जाता है और अपने कुल-खानदान का भी कल्याण कर लेता है। तुम ऐसे कुलदीपक बनना। ૐ....ૐ... बल.... हिम्मत... दृढ़ संकल्पशक्ति का विकास...... पवित्र आत्मशक्ति का विकास ......ૐ.....ૐ.....
शाबाश
वीर !
शाबाश.... उठो।
हिम्मत करो।
परमात्मा
तुम्हारे साथ
है, सदगुरु की
कृपा
तुम्हारे साथ
है फिर किस
बात का भय ? कैसी
निराशा ? कैसी
हताशा ?
कैसी मुश्किल ?
मुश्किल को
मुश्किल हो
जाये ऐसा
खजाना तुम्हारे
पास है। तुम
अवश्य सफलता
की बुलंदियों
को छू सकते
हो। संयम और
सदाचार – ये दो
सूत्र अपना
लो, बस !
प्रार्थना
हे
प्रभु!
आनन्ददाता!!
हे प्रभु! आनन्ददाता !! ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।।
हे प्रभु......
लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें।
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें।।
हे प्रभु......
निंदा किसी की हम किसी से भूलकर भी न करें।
ईर्ष्या कभी भी हम किसी से भूलकर भी न करें।।
हे प्रभु...
सत्य बोलें झूठ त्यागें मेल आपस में करें।
दिव्य जीवन हो हमारा यश तेरा गाया करें।।
हे प्रभु....
जाय हमारी आयु हे प्रभु ! लोक के उपकार में।
हाथ डालें हम कभी न भूलकर अपकार में।।
हे प्रभु....
कीजिये हम पर कृपा अब ऐसी हे परमात्मा!
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा।।
हे प्रभु....
प्रेम से हम गुरुजनों की नित्य ही सेवा करें।
प्रेम से हम संस्कृति ही नित्य ही सेवा करें।।
हे प्रभु...
योगविद्या ब्रह्मविद्या हो अधिक प्यारी हमें।
ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त करके सर्वहितकारी बनें।।
हे प्रभु....
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
महिला
उत्थान
ट्रस्ट
संत श्री
आशारामजी
आश्रम
संत श्री
आशारामजी
बापू आश्रम
मार्ग, साबरमती,
अहमदाबाद-380005
फोनः 079-27505010-11
079.39877749.50.51.88
email:
ashramindia@ashram.org website: http://www.ashram.org
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
तुम सफलता की बुलन्दियों को छू सकते हो...
प्रतियोगिता के प्रश्नपत्र का प्रारूप
प्रार्थना
सदगुणों
का विकास
नैतिक
मूल्य
आदर्श विद्यार्थी के पाँच लक्षण
ज्ञान
प्रकाश
समयरूपी घोड़ा भागा जा रहा है....
भारतीय
संस्कृति
गीता व गाय के बारे में महान उदगार
काव्य
गुंजन
सुषुप्त
शक्तियाँ
जगाने के
प्रयोग
आवश्यक है शिक्षा के बाद दीक्षा
प्रेरक
प्रसंग
राष्ट्रभक्ति
विवेक
दर्पण
दिन में सोना, रात्रि में जागना
व्यसन का शौक.... कुत्ते की मौत
शरीर की जैविक घड़ी पर आधारित दिनचर्या
पूज्य बापू जी की स्वास्थ्य कुंजियाँ
स्वास्थ्यप्रद व शक्तिप्रदायक घरेलु शरबत
पादपश्चिमोत्तानासन, उदराकर्षासन
अर्धमत्स्येन्द्रासन, कर्णपीड़ासन
ब्रह्म मुद्रा, जलोदरनाशक मुद्रा, वायु मुद्रा
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
प्रार्थना में ऐसी अलौकिक शक्ति है, जिससे हमें ईश्वरीय सत्प्रेरणा, सहायता, मार्गदर्शन, शांति व सफलता मिलती है। पूज्य बापू जी की अमृतवाणी
सन् 1956
में चेन्नई
(मद्रास) के
इलाके में
अकाल पड़ा।
वहाँ का तालाब
ʹरेड
स्टोन लेकʹ भी सूख
गया। लोग
त्राहिमाम
पुकार उठे। उस
समय वहाँ के
मुख्यमंत्री
थे श्री
राजगोपालाचारी।
उन्होंने
जनता से अपील
की किʹ सभी
लोग समुद्र के
किनारे एकत्र
होकर
प्रार्थना
करें।ʹ
सभी
समुद्र-तट पर
एकत्र हुए।
किसी ने जप
किया तो किसी
ने गीता-पाठ,
किसी ने ʹरामायणʹ की
चौपाइयाँ
गायीं तो किसी
ने अपनी भावना
के अनुसार
अपने इष्टदेव
की प्रार्थना
की। मुख्यमंत्री
ने सच्चे हृदय
से, गदगद कंठ
से वरुणदेव,
इन्द्रदेव और
सबमें बसे हुए
आदिनारायण की
प्रार्थना
की। लोग प्रार्थना
करके घर
पहुँचे। ʹवर्षा
का मौसम तो कब
का बीत चुका
है। आकाश में बादल
तो रोज आते और
चले जाते हैं।ʹ - ऐसा
सोचते-सोचते
सब लोग सो
गये। रात को
दो बजे
मूसलधार
बरसात ऐसी
बरसी-ऐसी बरसी
कि ʹरेड
स्टोन लेकʹ पानी
से छलक उठा।
स्थिति यहाँ
तक पहुँची कि
मद्रास सरकार
को शहर की
सड़कों पर
नावें चलानी
पड़ीं।
कितना
बल है
प्रार्थना
में ! कितना
बल है भगवान
की अदृश्य
सत्ता में ! इन
सर्वसमर्थ के
लिए असम्भव भी
सम्भव है।
जिन
दुर्गुणों को
हम अपने बल पर
दूर नहीं कर पा
रहे हैं,
उन्हें दूर
करने हेतु
हमें भगवान
से, सदगुरु से
प्रार्थना
करनी चाहिए,
उन्हें सच्चे
हृदय से
पुकारना
चाहिए। वे
हमें
दुर्गुणों को
दूर करने की
युक्ति, अच्छे
मार्ग पर चलने
की शक्ति व
अपने लक्ष्य
(सभी दुःशों
से मुक्ति और
परम आनंद की
प्राप्ति) को
पाने की कुंजी
देते हैं।
दृढ़
विश्वास,
शुद्ध भाव एवं
भगवन्नाम से
युक्त प्रार्थना
छोटे से छोटे
व्यक्ति को भी
उन्नत करने
में सक्षम है।
प्रार्थना
करो, मौन हो
जाओ... प्रेम से
पुकारो, चुप
हो जाओ.... भाव को
जगाओ, शांत हो
जाओ.... इस
प्रकार
प्रार्थना का
प्रभाव बहुत
बढ़ जाता है।
प्रार्थना करो,
ध्यान करो,
सत्संग करो और
सफल बनो।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
चेन्नई
(मद्रास) में
अकाल की
समस्या कैसे
सुलझी ?
प्रार्थना
के प्रभाव को
बढ़ाने के लिए
क्या करना
चाहिए ?
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
हिम्मत करो, आगे बढ़ो। दृढ़ निश्चय करो, प्रयत्न करो। शास्त्र और संत-महापुरुषों के वचनों पर श्रद्धा रखकर उनके ज्ञान के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चल, सफलता तेरे चरण चूमने को तेरा इंतजार कर रही है। पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से
जीवन में यदि उन्नति व प्रगति के पथ पर अग्रसर होना हो तो आलस्य, प्रमाद, भोग, दुर्व्यसन, दुर्गुण और दुराचार को विष के समान समझकर त्याग दो एवं सदगुण-सदाचार का सेवन, विद्या का अभ्यास, ब्रह्मचर्य का पालन, माता-पिता व गुरुजनों एवं दुःखी-अनाथ प्राणियों की निःस्वार्थ भाव से सेवा तथा ईश्वर की भक्ति को अमृत के समान समझकर उनका श्रद्धापूर्वक सेवन करो। यदि इनमें से एक का भी निष्काम भाव से पालन किया जाय तो भी कल्याण हो सकता है, फिर सबका पालन करने से तो कल्याण होने में संदेह ही क्या है ?
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर, स्नानादि से निवृत्त हो के स्वच्छ वातावरण में प्राणायाम करो। तदुपरांत तुलसी के 5-7 चबाकर एक गिलास पानी ऐसे ढंग से पीना चाहिए कि तुलसी के पत्तों के टुकड़े मुँह में रह न जायें। इन सबसे बुद्धिशक्ति में गजब की वृद्धि होती है। लेकिन ध्यान रहे कि तुलसी सेवन और दूध सेवन के बीच दो घंटे का अंतर होना चाहिए।
छः घंटे से अधिक सोना, दिन में सोना, काम में सावधानी न रखना, आवश्यक कार्य में विलम्ब करना आदि सब ʹआलस्यʹ ही है। इन सबसे हानि ही होती है।
मन, वाणी और शरीर के द्वारा न करने योग्य व्यर्थ चेष्टा करना तथा करने योग्य कार्य की अवहेलना करना ʹप्रमादʹ है।
ऐश, आराम, स्वाद-लोलुपता, फैशन, फिल्में, अधर्म को बढ़ावा देने वाले टीवी चैनल, अश्लील वेबसाइटें देखना, क्लबों में जाना आदि सब ʹभोगʹ हैं।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, दम्भ, अहंकार, ईर्ष्या आदि ʹदुर्गुणʹ हैं।
संयम, क्षमा, दया, शांति, समता, सरलता, संतोष, ज्ञान, वैराग्य, निष्कामता आदि ʹसदगुणʹ हैं। यज्ञ, दान, तप, तीर्थ, व्रत और सेवा-पूजा करना तथा अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य का पालन करना आदि ʹसदाचारʹ है।
इन शास्त्रीय वचनों को बार-बार पढ़ो, विचारो और उन्नति के पथ पर अग्रसर बनो।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
आदर्श
विद्यार्थी
के पाँच लक्षण
काकचेष्टा
बकध्यानं
श्वाननिद्रा
तथैव च।
स्वल्पाहारी
ब्रह्मचारी
विद्यार्थीपंचलक्षणम्।।
काकचेष्टाः जैसे कौआ हरेक चेष्टा में इतना सावधान रहता है कि उसको कोई जल्दी पकड़ नहीं सकता, ऐसे ही विद्यार्थी को विद्याध्ययन के विषय में हर समय सावधान रहना चाहिए। एक-एक क्षण का ज्ञानार्जन करने में सदुपयोग करना चाहिए।
बकध्यानः जैसे बगुला पानी में धीरे से पैर रखकर चलता है, उसका ध्यान मछली की ओर ही रहता है। ऐसे ही विद्यार्थी को खाना-पीना आदि सब क्रियाएँ करते हुए भी अपनी दृष्टि, ध्यान विद्याध्ययन की तरफ ही रखना चाहिए।
श्वाननिद्राः जैसे कुत्ता निश्चिंत होकर नहीं सोता, वह थोड़ी-सी नींद लेकर फिर जग जाता है, नींद में भी सतर्क रहता है, ऐसे ही विद्यार्थी को आरामप्रिय, विलासी होकर नहीं सोना चाहिए, अपितु केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से यथोचित सोना चाहिए।
स्वल्पाहारीः विद्यार्थी को उतना ही आहार लेना चाहिए जितने से आलस्य न आये, पेट याद न आये क्योंकि पेट दो कारणों से याद आता है – अधिक खाने से और भुखमरी करने से।
ब्रह्मचारीः विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। आश्रम से प्रकाशित, ʹदिव्य प्रेरणा प्रकाश, प्रेरणा ज्योत, निरोगता का साधन, अपने रक्षक आप, तू गुलाब होकर महक, आदि पुस्तकों के कुछ पन्ने रोज पढ़ने चाहिए व अपने जीवन को तदनुसार बनाने प्रयत्न करना चाहिए। ये पुस्तकें विद्यार्थियों के भावी जीवन को महानता के सदगुणों से भरने में सक्षम हैं।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
कौन से सदगुण विद्यार्थी को महान बनाते हैं ?
क्रियाकलापः आप अपने में जो सदगुण लाना चाहते हैं, उसे एक कागज पर लिखकर दीवार पर ऐसी जगह चिपकायें जहाँ आपकी रोज नजर जाती हो। उसे अपने भीतर लाने का दृढ़ संकल्प करें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
हे
भारत के
सपूतो-सुपुत्रियो
! तुम
हिम्मत मत
हारना, निराश
मत होना। अगर
कभी असफल भी
हुए तो हताश
मत होना वरन्
पुनः प्रयास
करना।
तुम्हारे लिए
असम्भव कुछ भी
नहीं होगा। ૐ.... ૐ.... ૐ....
राममूर्ति नामक एक विद्यार्थी बहुत दुबला-पतला और दमे की बीमारी से ग्रस्त था। शरीर से इतना कमजोर था कि विद्यालय जाते-जाते रास्ते में ही थक जाता और धरती पकड़कर बैठ जाता। जबकि राममूर्ति के पिता खूब मोटे-ताजे एवं तंदुरुस्त थानेदार थे। कई बार वे बोल पड़तेः "मेरा बेटा होकर तुझे अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है ! इससे तो अच्छा होता तू मर जाता।" अपने पिता द्वारा बार-बार तिरस्कृत होने से राममूर्ति का मनोबल टूट जाता लेकिन ऐसे में उसकी माँ उसमें साहस भर देती थी। हररोज उसे वीर पुरुषों की गाथाएँ सुनाया करती थी। महान योद्धाओं के चरित्र सुनकर राममूर्ति अपनी माँ से कहताः "माँ ! मैं भी वीर हनुमान, पराक्रमी भीम और अर्जुन जैसा कब बनूँगा ?"
माँ भारतीय संस्कृति का आदर करती थी। सत्संग में जाने से हमारे ऋषि-मुनियों के बताये हुए प्रयोगों की थोड़ी-बहुत जानकारी उसे थी। उसने उऩ प्रयोगों को राममूर्ति पर आजमाना शुरु कर दिया। सुबह उठकर खुली हवा में दौड़ लगाना, सूर्य की किरणों में योगासन-प्राणायाम करना, दंड-बैठक लगाना, उबले अंजीर का प्रयोग करना.... इत्यादि से राममूर्ति का दमे का रोग मिट गया। दमे की बीमारी से ग्रस्त राममूर्ति प्राणबल से विश्वप्रसिद्ध पहलवान राममूर्ति बन गये। 25-25 हार्स पावर की चालू जीप गाड़ियों को हाथों से पकड़े रखना, छाती पर पटिया रखकर उस पर हाथी को चलवाना – ऐसे कई चमत्कार राममूर्ति ने कर दिखाये।
हे भारत के सपूतो ! तुम ही भावी भारत के भाग्य-विधाता हो। अतः अभी से अपने जीवन में सत्यपालन, ईमानदारी, संयम, सदाचार, न्यायप्रियता आदि गुणों को अपनाकर अपना जीवन महान बनाओ।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
जीवन महान बनाने के लिए आप किन सदगुणों को अपनाओगे ?
दुबला-पतला विद्यार्थी राममूर्ति एक विश्वप्रसिद्ध पहलवान कैसे बना ?
राममूर्ति द्वारा अपनाये हुए प्रयोगों को आप अपने जीवन में कैसे लायेंगे ?
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
हमारे
शारीरिक व
मानसिक
आरोग्य का
आधार हमारी
जीवनशक्ति (Life Energy) है। यह
प्राणशक्ति
भी कहलाती है।
छात्रों
के महान
आचार्य पूज्य
बापू जी द्वारा
सूक्ष्म
विश्लेषण
हमारे जीवन जीने के ढंग के अनुसार हमारी जीवनशक्ति का ह्रास या विकास होता है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने योगदृष्टि से, अंतदृष्टि से और जीवन का सूक्ष्म निरीक्षण करके जीवनशक्ति विषयक गहनतम रहस्य खोज लिये थे। डॉ. डायमंड ने उन मनीषियों की खोज को कुछ हद तक समझने की कोशिश कीः
भाव का
अभाव
ईर्ष्या, घृणा, तिरस्कार, भय, कुशंका आदि कुभावों से जीवनशक्ति क्षीण होती है। भगवत्प्रेम, श्रद्धा, विश्वास, हिम्मत और कृतज्ञता जैसे सदभावों से जीवनशक्ति पुष्ट होती है।
किसी प्रश्न के उत्तर में ʹहाँʹ कहने के लिए सिर को आगे-पीछे हिलाने से जीवनशक्ति का विकास होता है। नकारात्मक उत्तर में सिर को दायें-बायें घुमाने से जीवनशक्ति कम होती है।
हँसने और मुस्कराने से जीवनशक्ति बढ़ती है। रोते हुए, उदास, शोकातुर व्यक्ति को या उसके चित्र को देखने से जीवनशक्ति का ह्रास होता है।
ʹहे भगवान ! हे खुदा ! हे मालिक ! हे ईश्वर....ʹ ऐसा अहोभाव से कहते हुए हाथों को आकाश की ओर उठाने से जीवनशक्ति बढ़ती है।
धन्यवाद देने से, धन्यवाद के विचारों से हमारी जीवनशक्ति का विकास होता है। ईश्वर को धन्यवाद देने से अंतःकरण में खूब लाभ होता है।
जवाब
दें और जीवन
में लायें
जीवनशक्ति क्या है ? जीवनशक्ति बढ़ाने के पाँच उपाय लिखो।
ब्रह्मज्ञानी महापुरुष के दर्शन से हमारी जीवनशक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
शरीर
की जैविक घड़ी
पर आधारित
दिनचर्या
अपनी दिनचर्या को कालचक्र के अनुरूप नियमित करें तो अधिकांश रोगों से रक्षा होती है और उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायुष्य की भी प्राप्ति होती है।
समय (उस समय विशेष सक्रिय अंगः सक्रिय अंग के अनुरूप कार्यों का विवरण
प्रातः 3 से 5 बजे (फेफड़े)- ब्राह्ममुहूर्त में उठने वाले व्यक्ति बुद्धिमान व उत्साही होते हैं। इस समय थोड़ा-सा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना चाहिए। दीर्घ-श्वसन भी करना चाहिए।
प्रातः 5 से 7 (बड़ी आँत)- जो इस समय सोये रहते हैं, मल त्याग नहीं करते, उन्हें कब्ज व कई अन्य रोग होते हैं। अतः प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल त्याग कर लें।
सुबह 7 से 9 (आमाशय या जठर)- इस समय (भोजन के 2 घंटे पूर्व) दूध अथवा फलों का रस या कोई पेट पदार्थ ले सकते हैं।
सुबह 9 से 11 (अग्नाशय व प्लीहा)- यह समय भोजन के लिए उपयुक्त है।
दोपहर 11 से 1 (हृदय)- करुणा, दया, प्रेम आदि हृदय की संवेदनाओं को विकसित एवं पोषित करने के लिए दोपहर 12 बजे के आसपास संध्या करें। भोजन वर्जित है।
दोपहर 1 से 3 (छोटी आँत)- भोजन के करीब 2 घंटे बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए। इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है व शरीर रोगी तथा दुर्बल हो जाता है।
दोपहर 3 से 5 (मूत्राशय)- 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृत्ति होगी।
शाम 5 से 7 (गुर्दे)- इस काल में हलका भोजन कर लेना चाहिए। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल में) भोजन न करें। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते हैं।
रात्रि 7 से 9 (मस्तिष्क)- प्रातः काल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है।
रात्रि 9 से 11 (रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरूरज्जु)- इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है और जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है।
11 से 1 (पित्ताशय)- इस समय का जागरण पित्त को प्रकुपित कर अनिद्रा, सिरदर्द आदि पित्त विकार तथा नेत्र रोगों को उत्पन्न करता है। इस समय जागते रहोगे तो बुढ़ापा जल्दी आयेगा।
1 से 3 (यकृत)- इस समय शरीर को गहरी नींद की जरूरत होती है। इसकी पूर्ति न होने पर पाचनतंत्र बिगड़ता है।
ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखें, जिससे ऊपर बताये समय में खुलकर भूख लगे।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
ૐकार
महिमा
"रोज रात्रि में तुम 10 मिनट ૐकार का जप करके सो जाओ। फिर देखो इस मंत्र भगवान की क्या-क्या करामात होती है ! सात बार ૐकार जपने के बाद इस ब्रह्मांड में होते हुए भी इस ब्रह्माण्ड को चीरकर आपकी ૐकार की ध्वनि अनंत ब्रह्माण्डों के साथ एकाकार हो जाती है। आप जप किये जाओ और रहस्य खोलो जाओ।" – पूज्य बापू जी
ʹयजुर्वेदʹ में आता हैः ૐ खं ब्रह्म। ʹૐ (अक्षर ) आकाशरूप में ब्रह्म ही संव्याप्त है।ʹ मंत्राणां प्रणवः सेतुः। ʹयह प्रणव मंत्र सारे मंत्रों का सेतु है।ʹ - महर्षि वेदव्यासजी
परमात्मा का वाचक ૐकार है। - पतंजलि महाराज।
एक ओंकार सतिनाम.... – गुरु नानक जी।
ૐ सबसे उत्कृष्ट मंत्र है। - धन्वंतरी महाराज।
आज पूरी दुनिया में वैज्ञानिक ૐकार के द्वारा लोगों के रोग मिटा रहे हैं। न्यूयार्क के ʹकोलम्बिया प्रेसबाइटेरियनʹ के ʹहार्ट इन्स्टीच्यूटʹ में वहाँ के डॉक्टर मरीजों को ऑपरेशन से पहले ૐ का उच्चारण करने को कहते हैं क्योंकि ૐ के जप से विश्रांति मिलती है।
ʹमाइंड बॉडी मेडिकल इन्स्टीच्यूटʹ के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. हर्बर्ट बेन्सन कहते हैं- "आज के युग में यह (मंत्रोच्चारण, योग, ध्यान) और भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आज का मनुष्य तनावसम्बन्धी तकलीफों से ग्रस्त होता है।"
अब विज्ञान भी भारत के वैदिक मंत्र-विज्ञान के आगे नतमस्तक हो गया है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
ʹश्रीमद्
भगवद् गीताʹ पर
महापुरुषों
के उदगार
गीता, गंगा और गाय को महत्त्व देने से ही देश का सर्वांगीण विकास होगा। ये तीनों भारत की सस्कृति के प्रतीक हैं। - पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
भगवान श्री कृष्ण की कही हुई भगवद् गीता के समान छोटे वपु (काया, शरीर) में इतना विपुल ज्ञानपूर्ण कोई दूसरा ग्रंथ नहीं है। - महामना पं. मदनमोहन मालवीय
गीता (के ज्ञान) से मैं शोक में भी मुस्कराने लगता हूँ। - महात्मा गाँधी।
गीता हमारे ग्रंथों में एक अत्यन्त तेजस्वी और निर्मल हीरा है। - लोकमान्य तिलक।
मैं नित्य प्रातः काल अपने हृदय और बुद्धि को गीतारूपी पवित्र जल में स्नान करवाता हूँ। - महात्मा थोरो।
गायः
महापुरुषों व
विद्वानों की
दृष्टि में
एक गाय अपने जीवनकाल में 410440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटा सकती है, जबकि उसके मांस से केवल 80 मांसाहारी एक समय अपना पेट भर सकते हैं। गोवंश धर्म, संस्कृति व स्वाभिमान का प्रतीक रहा है। - स्वामी दयानंद सरस्वती
गाय का दूध रसायन, गाय का घी अमृत तथा मांस बीमारियों का घर है। - पैगम्बर हजहत मोहम्मद साहेब।
कुरान और बाइबिल, दोनों धार्मिक ग्रंथों का मैंने अध्ययन किया है। उन ग्रंथों के अनुसार अप्रत्यक्ष रूप से भी गौहत्या करना जघन्य पाप है। - आचार्य विनोबा भावे।
इस संसार में गौओं के समान दूसरा कोई धन नहीं है। - महर्षि च्यवन।
ʹगौʹ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की धात्री होने के कारण कामधेनु है। - महर्षि अरविन्द।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
श्रीमद्
भगवद् गीता के
सातवें
अध्याय का माहात्म्य
भगवान शिव कहते हैं – पार्वती ! अब मैं सातवें अध्याय का माहात्म्य बतलाता हूँ, जिसे सुनकर कानों में अमृत-राशि भर जाती है। पाटलिपुत्र नामक एक दुर्गम नगर है, जिसका गोपुर (द्वार) बहुत ही ऊँचा है। उस नगर में शंकुकर्ण नामक एक ब्राह्मण रहता था, उसने वैश्य-वृत्ति का आश्रय लेकर बहुत धन कमाया, किंतु न तो कभी पितरों का तर्पण किया और न देवताओं का पूजन ही। वह धनोपार्जन में तत्पर होकर राजाओं को ही भोज दिया करता था।
एक समय की बात है। एक समय की बात है। उस ब्राह्मण ने अपना चौथा विवाह करने के लिए पुत्रों और बन्धुओं के साथ यात्रा की। मार्ग में आधी रात के समय जब वह सो रहा था, तब एक सर्प ने कहीं से आकर उसकी बाँह में काट लिया। उसके काटते ही ऐसी अवस्था हो गई कि मणि, मंत्र और औषधि आदि से भी उसके शरीर की रक्षा असाध्य जान पड़ी। तत्पश्चात कुछ ही क्षणों में उसके प्राण पखेरु उड़ गये और वह प्रेत बना। फिर बहुत समय के बाद वह प्रेत सर्पयोनि में उत्पन्न हुआ। उसका वित्त धन की वासना में बँधा था। उसने पूर्व वृत्तान्त को स्मरण करके सोचाः
'मैंने घर के बाहर करोड़ों की संख्या में अपना जो धन गाड़ रखा है उससे इन पुत्रों को वंचित करके स्वयं ही उसकी रक्षा करूँगा।'
साँप की योनि से पीड़ित होकर पिता ने एक दिन स्वप्न में अपने पुत्रों के समक्ष आकर अपना मनोभाव बताया। तब उसके पुत्रों ने सवेरे उठकर बड़े विस्मय के साथ एक-दूसरे से स्वप्न की बातें कही। उनमें से मंझला पुत्र कुदाल हाथ में लिए घर से निकला और जहाँ उसके पिता सर्पयोनि धारण करके रहते थे, उस स्थान पर गया। यद्यपि उसे धन के स्थान का ठीक-ठीक पता नहीं था तो भी उसने चिह्नों से उसका ठीक निश्चय कर लिया और लोभबुद्धि से वहाँ पहुँचकर बाँबी को खोदना आरम्भ किया। तब उस बाँबी से बड़ा भयानक साँप प्रकट हुआ और बोलाः
'ओ मूढ़ ! तू कौन है? किसलिए आया है? यह बिल क्यों खोद रहा है? किसने तुझे भेजा है? ये सारी बातें मेरे सामने बता।'
पुत्रः "मैं आपका पुत्र हूँ। मेरा नाम शिव है। मैं रात्रि में देखे हुए स्वप्न से विस्मित होकर यहाँ का सुवर्ण लेने के कौतूहल से आया हूँ।"
पुत्र की यह वाणी सुनकर वह साँप हँसता हुआ उच्च स्वर से इस प्रकार स्पष्ट वचन बोलाः "यदि तू मेरा पुत्र है तो मुझे शीघ्र ही बन्धन से मुक्त कर। मैं अपने पूर्वजन्म के गाड़े हुए धन के ही लिए सर्पयोनि में उत्पन्न हुआ हूँ।"
पुत्रः "पिता जी! आपकी मुक्ति कैसे होगी? इसका उपाय मुझे बताईये, क्योंकि मैं इस रात में सब लोगों को छोड़कर आपके पास आया हूँ।"
पिताः "बेटा ! गीता के अमृतमय सप्तम अध्याय को छोड़कर मुझे मुक्त करने में तीर्थ, दान, तप और यज्ञ भी सर्वथा समर्थ नहीं हैं। केवल गीता का सातवाँ अध्याय ही प्राणियों के जरा मृत्यु आदि दुःखों को दूर करने वाला है। पुत्र ! मेरे श्राद्ध के दिन गीता के सप्तम अध्याय का पाठ करने वाले ब्राह्मण को श्रद्धापूर्वक भोजन कराओ। इससे निःसन्देह मेरी मुक्ति हो जायेगी। वत्स ! अपनी शक्ति के अनुसार पूर्ण श्रद्धा के साथ निर्व्यसी और वेदविद्या में प्रवीण अन्य ब्राह्मणों को भी भोजन कराओ। इससे निःसन्देह मेरी मुक्ति हो जायेगी।"
सर्पयोनि में पड़े हुए पिता के ये वचन सुनकर सभी पुत्रों ने उसकी आज्ञानुसार तथा उससे भी अधिक किया। तब शंकुकर्ण ने अपने सर्पशरीर को त्यागकर दिव्य देह धारण किया और सारा धन पुत्रों के अधीन कर दिया। पिता ने करोड़ों की संख्या में जो धन उनमें बाँट दिया था, उससे वे पुत्र बहुत प्रसन्न हुए। उनकी बुद्धि धर्म में लगी हुई थी, इसलिए उन्होंने बावली, कुआँ, पोखरा, यज्ञ तथा देवमंदिर के लिए उस धन का उपयोग किया और अन्नशाला भी बनवायी। तत्पश्चात सातवें अध्याय का सदा जप करते हुए उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। - पद्म पुराण
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
श्रेयान्स्वधर्मो
विगुणः
परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे
निधनं श्रेयः
परधर्मो
भयावहः।।
ʹअच्छी प्रकार आचरण में लाये हुए दूसरे धर्म से गुणरहित भी अपना धर्म अति उत्तम है। अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देने वाला है।ʹ (गीताः 3.35)
तेरह वर्षीय हकीकत राय सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान में) के एक छोटे से मदरसे में पढ़ता था। एक दिन कुछ उदंड बच्चों ने हिन्दुओं के देवी-देवताओं के नाम की गालियाँ देनी शुरु कीं, तब उस वीर बालक से अपने धर्म का अपमान सहा नहीं गया।
हकीकत राय ने कहाः "मेरे धर्म, गुरु और भगवान के लिए एक भी शब्द बोलोगे तो यह मेरी सहनशक्ति से बाहर की बात है। मेरे पास भी जुबान है। मैं भी तुम्हें बोल सकता हूँ।"
आपके हृदय में धर्म के प्रति जितनी सच्चाई है, ईश्वर के प्रति जितनी वफादारी है, उतनी ही आपकी उन्नति होती है। - पूज्य बापू जी।
उद्दण्ड बच्चों ने कहाः "बोलकर तो दिखा ! हम तेरी खबर ले लेंगे।"
हकीकत राय ने भी उनको दो चार कटु शब्द सुना दिये। उस समय मुगलों का ही शासन था। इसलिए हकीकत राय को यह फरमान भेजा गयाः "अगर तुम हमारे धर्म में आ जाओ तो तुम्हें अभी माफ कर दिया जायेगा और यदि नहीं तो तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दिया जायेगा।"
"मैं अपने धर्म में ही मरना पसंद करूँगा। मैं जीते जी दूसरों के धर्म में नहीं जाऊँगा।" आखिर क्रूर शासकों ने आदेश दियाः "हकीकत राय का शिरोच्छेद कर दिया जाये।"
वह तेरह वर्षीय किशोर जल्लाद के हाथ में चमचमाती हुई तलवार देखकर जरा भी भयभीत न हुआ वरन् वह अपने गुरु के दिए हुए ज्ञान को याद करने लगाः ʹयह तलवार किसको मारेगी ? मार-मारकर पंचभौतिक शरीर को ही तो मारेगी ! और ऐसे पंचभौतिक शरीर तो की बार मिले और कई बार मर गये। .....तो क्या यह तलवार मुझे मारेगी ? नहीं। मैं तो अमर आत्मा हूँ... परमात्मा का सनातन अंश हूँ। मुझे यह कैसे मार सकती है ? ૐ....ૐ.....ૐ.....
जल्लाद ने तलवार उठायी लेकिन उस निर्दोष बालक को देखकर उसकी अंतरात्मा थर्रा उठी। उसके हाथ काँपने लगे और तलवार गिर पड़ी।
तब हकीकत राय ने अपने हाथों से तलवार उठायी और जल्लाद के हाथ में थमा दी। फिर किशोर आँखें बंद करके परमात्मा का चिंतन करने लगाः ʹहे अकाल पुरुष ! जैसे साँप केंचुली का त्याग करता है, वैसे ही मैं यह नश्वर देह छोड़ रहा हूँ। मुझे तेरे चरणों की प्रीति देना ताकि मैं तेरे चरणों में पहुँच जाऊँ..... फिर से मुझे वासना का पुतला बनकर इधर-उधर न भटकना पड़े। अब तू मुझे अपनी ही शरण में रखना... मैं तेरा हूँ, तू मेरा है.... ૐ....ૐ....ૐ....
इतने में जल्लाद ने तलवार चलायी और हकीकत राय का सिर धड़ से अलग हो गया। हकीकत राय ने 13 वर्ष की नन्हीं सी उम्र में धर्म के लिए अपनी कुर्बानी दे दी। उसने शरीर छोड़ दिया लेकिन धर्म न छोड़ा।
गुरुतेगबहादुर
बोलिया, सुनो
सिखो !
बड़भागिया,
धड़
दीजे धरम न
छोड़िये...
हकीकत राय ने अपने जीवन में यह चरितार्थ करके दिखा दिया। ऐसे वीरों के बलिदान के फलस्वरूप ही हमें आजादी प्राप्त हुई है।
ऐसे लाखों-लाखों प्राणों की आहुति द्वारा प्राप्त की गयी इस आजादी को हम कहीं व्यसन, फैशन और चलचित्रों से प्रभावित होकर गँवा न दें ! अतः देशवासियों को सावधान रहना होगा।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
हकीकत राय का चरित्र आपको कैसा लगा ? इससे आपको क्या प्रेरणा मिली ?
ʹपाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण में युवा कहीं अपने धर्म व संस्कृति को तो नहीं खो रहे हैं ?ʹ इस पर टिप्पणी लिखें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
सेवा
पूज्य बापू जी की कल्याणमयी वाणी
हे विद्यार्थियो ! तुम्हारे जीवन में यदि परहित की भावना होगी, निष्काम कर्मयोग की भावना होगी तो तुम अवश्य अपना, अपने माता-पिता का एवं राष्ट्र का गौरव बढ़ा सकोगे।
बंगाल में एक साधु पुरुष हो गये, जिनका नाम था नाग महाशय। ʹडॉक्टरी व्यवसाय पैसा कमाने के लिए नहीं अपितु सेवा करने के लिए है...ʹ ऐसी उत्तम भावना से ही वे इस व्यवसाय में लगे थे।
एक एक गरीब वृद्धा के बीमार होने की सूचना पर वे उसको देखने के लिए गये। थरथऱ कँपा देने वाली ठंड में भी वे लम्बा मार्ग तय करके उस बीमार वृद्धा की झोंपड़ी में पहुँचे। नाग महाशय ने उसकी जाँच करके दवा देते हुए कहाः "जीर्ण-शीर्ण, फटे कम्बल से तो आपको सर्दी लग जायेगी !" ऐसा कहकर मानो ʹउस वृद्धा में अपना ही प्रभु हैʹ ऐसा सोचकर उन्होंने उसे अपना नया कम्बल ओढ़ा दिया और चले गये। जरूरतमंद की की हुई बिना दिखावे की सेवा से जो सच्चा सुख व आत्मसंतोष मिलता है, वह विलक्षण होता है। क्यों विद्यार्थियो ! आप भी करोगे न बिना दिखावे की सेवा ?
हे भारत के लाल ! तुम भी बड़े होकर डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या उद्योगपति आदि बनोगे। उस वक्त तुम भी अपना लक्ष्य केवल पैसे कमाना ही न रखना वरन् किसी गरीब-गुरबे की सेवा करके उसके अंतःकरण में विराजमान परमात्मा के आशीर्वाद मिलें, ऐसी शाश्वत कमाई करने का लक्ष्य भी रखना। शाबाश वीर ! प्रभु के प्यारे ! ૐ आनंद... ૐ साहस.... ૐૐसेवा और स्नेह.... ૐ ૐ प्रभुनाम और प्रभुध्यान.... सभी सदगुणों को विकसित करने की यह मुख्य कुंजी है।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
बड़े बनकर क्या केवल पैसा कमाना ही लक्ष्य होना चाहिए ? यदि नहीं तो क्या लक्ष्य होना चाहिए ?
नाग महाशय को कौन-सा कार्य करने से आत्मसंतोष की अनुभूति हुई ?
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के सत्संग में एक सज्जन आते थे। उनके विवाह को 17 साल हो गये थे पर प्रारब्धवश कोई संतान नहीं हुई। चिकित्सकों ने स्पष्ट कह दिया कि "आपकी पत्नी को गर्भ नहीं ठहर सकता, अतः बच्चा होना नामुमकिन है।" साँईं श्री लीलाशाहजी के प्रति उस सज्जन का पूर्ण विश्वास था और वह उनके श्रीचरणों में श्रद्धा से सिर भी झुकाता था। साँईं जी भी उसे प्रेमपूर्वक दया की दृष्टि से देखते थे।
एक दिन प्रातःकाल साँईं जी सत्संग कर रहे थे। सत्संग में वह व्यक्ति भी बैठा था। अचानक साँईं जी ने उसकी ओर इशारा करते हुए सत्संगियों से कहाः "सब लोग प्रभु के नाम पर एक ताली बजाओ कि इसे संतान मिले।" सभी ने ताली बजायी। साँईं जी ने फिर कहाः "एक ताली और बजाओ।" सबने दुबारा ताली बजायी। तीसरी बार फिर कहाः "एक ताली और बजाओ।"
कुछ समय पश्चात ईश्वर की कृपा से उसकी पत्नी गर्भवती हुई। समय बीतता गया। अब बच्चे के जन्म का समय आया। गर्भवती को अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टर ने कहाः "ऑपरेशन करवाना पड़ेगा।" उसने कहाः "मुझे अपनी पत्नी का ऑपरेशन नहीं करवाना है।"
डॉक्टरः "ऑपरेशन नहीं करेंगे तो माँ और बच्चा दोनों की जान को खतरा है।"
परंतु वह नहीं माना, डॉक्टर घर चली गयी। जब वह वापस आयी तो उसने देखा कि बच्चा प्राकृतिक रूप से संसार में आ चुका है। दो साल बाद उसे दूसरा पुत्र और पाँच साल बाद तीसरा पुत्र भी हुआ। तीन बार तालियाँ बजवायीं तो पुत्र भी तीन ही हुए। यह सब देख महिला डॉक्टर दंग रह गयी और उसने कहा कि "हमारे विज्ञान के अऩुसार इस महिला को बच्चा होना नामुमकिन था।" तब उस व्यक्ति ने कहाः "यह मेरे संतों का विज्ञान है !"
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
साँईं श्री लीलाशाहजी ने भक्तों से तीन तालियाँ क्यों बजवायीं ?
संत-महापुरुषों पर दृढ़ श्रद्धा-विश्वास रखने से असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। इस पर अपने विचार प्रकट करें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
हे
विद्यार्थी ! किसी
भी कार्य में
सफलता पाने के
लिए अपनी शक्ति
एवं समय का
यथार्थ ढंग से
उपयोग करो।
पूज्य
बापू जी की
अमृतवाणी
कार्य़ तभी सफल होता है जब वह योजनाबद्ध तरीके से बिना आलस्य के किया जाय। ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि ʹआज नहीं तो कल.....ʹ क्योंकि कल कभी आता नहीं, काल जरूर आ जाता है। लंका में राम-रावण का का घोर युद्ध समाप्त हो गया था। श्रीरामजी ने लक्ष्मण से कहाः "आज धरती से एक महायोद्धा, महाबुद्धिमान, महाप्रजापालक जा रहा है। जाओ, उनसे कुछ ज्ञान ले लो।"
लक्ष्मण ने जाकर विनम्र वाणी से रावण को प्रार्थना की, तब लंकेश ने कहाः "मेरे पास समुद्र को खारेपन से रहित तथा चन्द्रमा को निष्कलंक बनाने की योजनाएँ थीं। अग्नि कहीं भी जले, धुआँ न हो और स्वर्ग तक की सीढ़ियाँ मैं बनाना चाहता था ताकि सामान्य आदमी भी स्वर्ग की यात्रा करके आ सके। मुझे प्रजा के लिए यह सब करना था लेकिन सोचा, ʹयह बाद में करेंगे।ʹ मैंने विषय-सुख में, जरा नाच में, जरा सुंदरी के साथ वार्ता में, वाहवाही में... पाँचों विषयों में जरा-जरा करके समय गँवा दिया। जो करने थे वे काम मेरे रह गये। इसलिए मेरे जीवन का सार यह है कि मनुष्य को अच्छे काम में देर नहीं करनी चाहिए और विषय विकारों की बात को टालकर उनसे बचते हुए निर्विषय नारायण के सुख को पाना चाहिए, अन्यथा वह मारा जाता है। मेरे जैसे लंकेश की दुर्दशा होती है तो सामान्य आदमी की बात क्या करना !"
इसलिए हे पुरुषार्थी ! आलस्य रूपी शत्रु से अपना पिंड छुड़ाकर अपने उच्च उद्देश्य ʹसर्वभूतहिते रताःʹ पर केन्द्रित हो के सर्वेश्वर-परमेश्वर के नाते कर्म करके उसे कर्मयोग बना लो। सुख-दुःख में समता बनाये रखो, अपनी अमरता को पहचानने का पुरुषार्थ करो और अमर पद पाओ। ૐ.... ૐ..... ૐ.....
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
हमें अमर पद कैसे प्राप्त होगा ?
रावण के पास कौन-सी योजनाएँ थीं ? वह उन्हें पूरी न कर सका ?
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
समयरूपी
घोड़ा भागा जा
रहा है.....
समय
बीता जा रहा
है। वह किसी
की बाट नहीं
देखता। एक
क्षण का समय
भी लाकों
रूपये खर्च
करने से,
स्तुति-प्रार्थनापूर्वक
रूदन करने से
अथवा अन्य
किसी भी उपाय
से मिलना
सम्भव नहीं है।
एक भारतीय सज्जन ने जापान में देखा कि स्टेशन पर ट्रेन रुकने के बाद ड्राइवर नोटबुक में कुछ लिख रहा है। पूछने पर ड्राइवर ने बतायाः "मैं स्टेशन पर पहुँचने का समय लिख रहा हूँ। गाड़ी पहुँचाने में अगर एक मिनट भी देर करूँगा तो इसमें सफर करने वाले 3000 यात्रियों के उतने ही मिनट बरबाद होंगे और इस प्रकार मुझसे देशद्रोह का अपराध हो जायेगा।"
एक बार नेपोलियन का मंत्री दस मिनट देर से आया। नेपोलियन के कारण पूछने पर उसने कहाः "मेरी घड़ी दस मिनट लेट है।" तब नेपोलियन ने कहाः "या तो तुम अपनी घड़ी बदल लो, नहीं तो मैं तुम्हें बदल दूँगा।"
टिक-टिक करती हुई घड़ी आपको यही संदेश देती है, सावधान करती है कि उद्यम और पुरुषार्थ ही जीवन है। निरन्तर कार्य में लगे रहो, प्रभु सुमिरन में लगे रहो। जो समय बरबाद करता है, समय उसीको बरबाद कर देता है।
विद्यार्थी प्रायः अपने कीमती समय को टीवी, सिनेमा, इन्टरनैट आदि देखने में तथा चरित्रभ्रष्ट करने वाली फालतू पुस्तकें पढ़ने में बरबाद कर देते हैं। बड़े धनभागी हैं वे विद्यार्थी, जो मिली हुई समय-शक्ति का सदुपयोग कर अपने जीवन को महानता के पथ पर अग्रसर कर लेते हैं।
याद रखिये, अमूल्य समय का उपयोग अमूल्य से भी अमूल्य परमात्मा को पाने के लिए करना ही मनुष्य जीवन का वास्तविक उद्देश्य है। जिन्होंने इस उद्देश्य को पाने का दृढ़ संकल्प करके समय का सदुपयोग किया है, वे ही वास्तव मे महान बने हैं, उन्हीं का जीवन कृतार्थ हुआ है।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
घड़ी की टिक-टिक हमें क्या संदेश देती है ?
जो समय बरबाद करता है, उसका क्या हाल होता है ?
सुबह से रात तक की समय-सारणी बनाकर रोज अपनी दिनचर्या डायरी में लिखो।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
माता-पिता ने हमसे अधिक वर्ष दुनिया में गुजारे हैं, उनका अनुभव हमसे अधिक है और सदगुरु ने जो महान अनुभव किया है उसकी तो हमारे छोटे अनुभऴ से तुलना ही नहीं हो सकती।
माता-पिता और सदगुरु के आदर से उनका अनुभव हमें सहज में ही मिलता है। अतः जो भी व्यक्ति अपनी उन्नति चाहता है, उस सज्जन को माता-पिता और सदगुरु का आदर-पूजन-आज्ञापालन तो करना चाहिए, चाहिए और चाहिए ही !
माता पिता और सदगुरु की की कैसी सेवा पूजा करनी चाहिए इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पूज्य बापू जी के जीवन में देखने को मिलता है। पूज्य श्री कहते हैं-
"मैं अपने आप में बहुत-बहुत संतुष्ट हूँ। पिता ने संतोष के कई बार उदगार निकाले और आशीर्वाद भी देते थे। माँ भी बड़ी संतुष्ट रही और सदगुरु भी संतुष्ट रहे तभी तो महाप्रयाण मेरी गोद में किये और उन्हीं की कृपा मेरे द्वारा साधकों और श्रोताओं को संतुष्ट कर रही है। अब मुझे क्या चाहिए ! जो मुझे सुनते हैं, मिलते हैं, वे भी संतुष्ट होते हैं तो मुझे कमी किस बात की रही !"
माता-पिता एवं गुरुजनों का आदर करना हमारी संस्कृति की शोभा है। बुद्धिमान, शिष्ट संतानें माता-पिता का आदर पूजन करके उनके शुभ संकल्पमय आशीर्वाद से लाभ उठाती हैं।
महान बनना सभी चाहते हैं, तरीके भी आसान हैं। बस, आपको चलना है। महापुरुषों के जीवन-चरित्र को आदर्श बनाकर आप सही कदम बढ़ायें, जरूर बढ़ायें। आपसे कईयों को उम्मीद है। हम भी आपके उज्जवल भविष्य की अपेक्षा करते हैं।
"मैं दुनिया के लोगों को संदेशा देता हूँ कि वेलेन्टाइन डे मनाकर बच्चे-बच्चियाँ तबाही के रास्ते न जायें बल्कि ʹमातृ-पितृ-पूजनʹ दिवस मनायें, जिससे बच्चों के जीवन में नित्य उत्सव, नित्य श्री और नित्य मंगल हो।" – पूज्य बापू जी।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
बुद्धिमान व शिष्ट संतानें क्या करती हैं ?
क्या आप माता-पिता को नित्य प्रणाम करते हैं ? 14 फरवरी के दिन ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ अपने घर व आसपास में मनाने हेतु क्या करोगे ?
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
आओ
मनायें 14
फरवरी
को मातृ-पितृ
पूजन दिवस
"हिन्दू भी चाहते हैं, ईसाई भी चाहते हैं, यहूदी भी चाहते हैं, मुसलमान भी चाहते हैं कि हमारे बेटे बेटियाँ लोफर न हों। ऐसा कोई माँ-बाप नहीं चाहते कि हमारी संतानें लोफर हों, हमारे मुँह पर लात मारें, आवारा की नाईं भटकें। तो सभी की भलाई का मैंने यह संकल्प किया है।"
– पूज्य बापू जी।
विश्वमानव
के मांगल्य
में रत पूज्य
संत श्री
आशारामजी
बापू का
परमहितकारी
संदेश
प्रेम तो परमात्मा से अल्लाह से मिलाता है। अल्लाह कहो, गॉड कहो, भगवान कहो, परम सत्ता का नाम है ʹप्रेमʹ। वही राम, वही रहीम और गॉड का असली स्वरूप है, इसी में मानवता का मंगल है।
सच्चे प्रेमस्वभाव से केवल भारतवासियों का ही नहीं, विश्वमानव का कल्याण होगा। लेकिन शादी-विवाह के पहले पढ़ाई के समय ही एक दूसरे को फूल देकर युवक-युवतियाँ अपनी तबाही कर रहे हैं तो मुझे उनकी तबाही देखकर पीड़ा होती है। मानव-समाज को कहीं घाटा होता है तो मेरा दिल द्रवित हो जाता है। नारायण-नारायण.....
मैं किसी का विरोध नहीं करना चाहता हूँ लेकिन मानवता का विनाश देखकर मेरे हृदय व्यथित होता है। यह बाहर की आँधी आयी है। हम विरोध करने के बजाय इसको थोड़ी दिशा दे देते हैं ताकि यहाँ की दिशा से उन लोगों का भी मंगल हो। प्रेम-दिवस मनायें लेकिन ʹमातृदेवो भव। पितृदेवो भव।ʹ करके।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
ૐ जय
जय मात-पिता
(आरती
की तर्ज-ૐजय
जगदीश हरे....)
ૐ जय जय
मात-पिता,
प्रभु गुरु जी
मात-पिता।
सदभाव
देख
तुम्हारा-2,
मस्तक झुक
जाता।। ૐ जय जय....
कितने
कष्ट उठाये
हमको जनम
दिया,
मइया
पाला-बड़ा
किया।
सुख
देती, दुःख
सहती -2,
पालनहारी
माँ।। ૐ जय जय...
अनुशासित
कर आपने उन्नत
हमें किया,
पिता आपने जो
है दिया।
कैसे
ऋण मैं चुकाऊँ
-2, कुछ न समझ
आता।। ૐ जय जय...
सर्व
तीर्थमयी
माता
सर्वदेवमय
पिता, ૐ
सर्व देवमय
पिता।
जो कोई
इनको पूजे-2,
पूजित हो
जाता।। ૐ जय जय....
मात-पिता
की पूजा
गणेशजी ने की,
श्रीगणेशजी
ने की।
सर्वप्रथम
गणपति को -2, ही
पूजा जाता।। ૐ जय जय....
बलिहारी
सदगुरु की
मारग दिखा
दिया, सच्चा
मारग दिखा
दिया।
मातृ-पितृ
पूजन कर -2, जग जय
जय गाता।। ૐ जय जय...
मात-पिता
प्रभु गुरु की
आरती जो गाता,
है प्रेम सहित
गाता।
वो
संयमी हो
जाता, सदाचारी
हो जाता, भव से
तर जाता।। ૐ जय जय....
लफंगे-लफंगियों
की नकल छोड़,
गुरु सा संयमी
होता, गणेश सा
संयमी होता।
स्वयं
आत्मसुख
पाता-2, औरों को
पवाता।। ૐ जय जय....
यह उत्सव
क्यों ?
मातृ-पितृ
पूजन दिवस (14
फरवरी) = "दिव्य
जीवन की
शुरुआत"।
इस दिन
से रोज
माता-पिता और
सदगुरु को
प्रणाम करने
का लेंगे
संकल्प।
पायेंगे
माता-पिता और
सदगुरु के
जीवन-अनुभव से
सीख।
करेंगे
पूज्य बापू जी
का ʹविश्वगुरु
भारतʹ का
संकल्प
साकार।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
महामंडलेश्वर
ब्रह्मर्षि
कुमार स्वामी,
निरंजनी
अखाड़ाः "युवाओ ! आप यह
जानकर हैरान
होंगे कि पूरे
विश्व में करोड़ों
लोग एचआईवी
(एडस) से
पीड़ित हैं।
हर्पिस,
गोनोरिया,
सिफलिस.... ऐसे
ऐसे रोग हैं
जो वेलेंटाइन
डे मनाने से
हो रहे हैं।
इस तरह से
बच्चों की
दुर्दशा हो
रही है। अतः
वेलेंटाइन डे
नहीं, ʹमातृ-पितृ
पूजन दिवसʹ
मनायें।"
श्री
अशोक सिंघल,
मुख्य
संरक्षक एवं
पूर्व अंतर्राष्ट्रीय
अध्यक्ष,
विश्व हिन्दू
परिषदः "परम
पूज्य बापू जी
ने ʹमातृदेवो
भव। पितृदेवो
भव।ʹ -
इस महान संदेश
को
विश्वव्यापी
बनाकर समस्त
विश्व का
कल्याण करने
के लिए जो
रास्ता अपनाया
है, वास्तव
में वही सही
रास्ता है।"
श्री
राजनाथ सिंह,
राष्ट्रीय
अध्यक्ष,
भाजपाः "मातृ-पितृ
पूजन दिवस से
निश्चित रूप
से बच्चों में
एक अच्छा संस्कार
पड़ेगा।"
श्री
सिकंदर सिंह
मलूका, शिक्षा
मंत्री, पंजाबः
"पूरे
देश में ʹमातृ-पितृ
पूजनʹ
कार्यक्रम का
सफल आयोजन यह
एक प्रशंसनीय
कार्य है।"
वेणु
राजामणि,
राष्ट्रपति
के प्रेस
सचिवः "भारत
के
राष्ट्रपति
श्री प्रणव
मुखर्जी को यह
जानकर
हार्दिक
प्रसन्नता
हुई है कि
भारत को पुनः
विश्वगुरु
बनाने हेतु
वैश्विक स्तर
पर प्रतिवर्ष
14 फरवरी को
मातृ-पितृ पूजन
अभियान चलाया
जा रहा है।"
हजरत
मौलाना असगर
अली, अजमेर
शरीफ के शाही
इमामः "यह
वेलेन्टाइन
डे सिर्फ
हिन्दुओं के
लिए नहीं
बल्कि
मुसलमानों
तथा
पूरी दुनिया
के इन्सानों के
लिए एक मसला
खड़ा है। बापू
जी ने एक बड़ी
अच्छी शुरुआत
की है।"
श्री
बृजमोहन
अग्रवाल,
शिक्षा
संस्कृति, पर्यटन
व लोक निर्माण
विभाग मंत्री,
छत्तीसगढ़ः "वास्तव
में यह
राष्ट्रोन्नतिकारक
एवं पर्व किसी
एक राज्य में
नहीं बल्कि
पूरे भारत के
सभी
विद्यालयों-महाविद्यालयों
में
प्रतिवर्ष
मनाया जाना
चाहिए।"
प्रसिद्ध
फिल्म
अभिनेता एवं
पूर्व सांसद
गोविंदाः "मातृ-पितृ
पूजन दिवस
मनाना बहुत ही
अच्छा है। मैं
जो बन पाया, वह
माता-पिता का
आशीर्वाद और गुरु
की कृपा रही
मुझ पर, उसी की
बदौलत है।"
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
अपने
कल्याण के
इच्छुक
व्यक्ति को
बुधवार व शुक्रवार
के अतिरिक्त
अन्य दिनों
में बाल नहीं
कटवाने
चाहिए।
बुधवार को बाल
कटवाने से धन
की प्राप्ति
और शुक्रवार
को कटवाने से
लाभ और यश की
प्राप्ति
होती है।
रविवार
सूर्यदेव का
दिन है इस दिन
बाल कटवाने से
धन, बुद्धि और
धर्म की हानि
होती है।
सोमवार,
बुधवार और
शनिवार शरीर
में तेल लगाने
हेतु उत्तम
दिन हैं। शरीर
में तेल लगाते
समय पहले नाभि
और हाथ-पैर की
उँगलियों के
नखों के नीचे
के भागों में
भलीप्रकार
तेल लगाना चाहिए।
सिर पर तेल
लगाने के बाद
उसी हाथ से
दूसरे अंगों
का स्पर्श
नहीं करना
चाहिए।
अश्लील
पुस्तक आदि न
पढ़कर
ज्ञानवर्धक
सत्संग की
पुस्तकों का
अध्ययन करना
चाहिए।
अपने
मन के गुलाम
नहीं, स्वामी
बनो। तुच्छ
इच्छाओं की
पूर्ति के लिए
कभी स्वार्थी
न बनो।
किसी
भी व्यक्ति,
परिस्थिति या
कठिनाई से कभी न
डरो बल्कि
हिम्मत से
उसका सामना
करो।
अपना
रहन-सहन,
वेशभूषा
सादगी से
युक्त रखनी चाहिए।
सिनेमा की
अभिनेत्रियों
तथा अभिनेताओं
के चित्र छपे
हुए अथवा उनके
नाम के वस्त्र
को कभी मत
पहनो। जितना
सादा भोजन,
सादा रहन-सहन रखोगे,
उतने ही
स्वस्थ
रहोगे। फैशन
की वस्तुओं का
जितना उपयोग
करोगे या
जिह्वा के
स्वाद में
जितना फँसोगे,
स्वास्थ्य
उतना ही
दुर्बल होता
जायेगा।
दीन-हीनों,
असहायों व
जरूरत-मंदों
की सहायता-सेवा
करो। किसी की
उपेक्षा न
करो।
तुलसी
या पीपल की
जड़ की मिट्टी
अथवा गाय के खुर
के मिट्टी
पुण्यदायी,
कार्यसाफल्यदायी
व सात्त्विक
होती है। उसका
या हल्दी या
चंदन का अथवा हल्दी-चंदन
के मिश्रण का
तिलक हितकारी
है।
जूठे
मुँह
पढ़ना-पढ़ाना,
शयन करना,
जूठे हाथ से
मस्तक का
स्पर्श करना
कदापि उचित
नहीं है। सात्त्विकता
और स्वास्थ्य
चाहने वाले एक
दूसरे से हाथ
मिलाने की आदत
से बचें।
अभिवादन हेतु दोनों
हाथ जोड़कर
प्रणाम करना
उत्तम है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
हे
भारत की
देवियो !
आपमें अथाह
सामर्थ्य है....
मेवाड़
के महाराणा
प्रताप के भाई
शक्तिसिंह की
कन्या का नाम
था किरण देवी।
अकबर
शक्तिशाली सम्राट
अवश्य था
किंतु उतना ही
विलासी भी था।
उसने ʹखुशरोज
मेराʹ की एक
प्रथा निकाली,
जिसमें
स्त्रियाँ
जाया करती
थीं। पुरुषों
को जाने की
अनुमति नहीं
थी परंतु इस
मेले में अकबर
स्त्री वेश
में घूमा करता
था। जिस
सुंदरी पर वह
मुग्ध हो
जाता, उसे
उसकी
कुट्टिनियाँ
फँसाकर
राजमहल में ले
जाती थीं।
एक दिन
खुशरोज मेले
में किरण देवी
आयी। अकबर के
संकेत से उसकी
कुट्टिनियों
ने किरण देवी
को धोखे से
अकबर के महल
में पहुँचा
दिया। किरण देवी
के सौंदर्य को
देखकर विषांध
अकबर की कामवासना
भड़की। ज्यों
ही उसने किरण
देवी को
स्पर्श करने
के लिए हाथ
आगे बढ़ाया,
त्यों ही उसने
रणचंडी का रूप
धारण कर लिया
और अपनी कमर
से तेज
धारवाली कटार
निकाली तथा
अकबर को धरती
पर पटककर उसकी
छाती पर पैर
रख के बोलीः "नीच ! नराधम ! भगवान
ने
सती-साध्वियों
की रक्षा के
लिए तुझे
बादशाह बनाया
है और तू उन पर
बलात्कार
करता है ? दुष्ट ! अधम ! तुझे
पता नहीं मैं
किस कुल की
कन्या हूँ ?
महाराणा
प्रताप के नाम
से तू आज भी
थर्राता है।
मैं उसी
पवित्र
राजवंश की
कन्या हूँ।
मेरे अंग-अंग
में पावन
भारतीय
वीरांगनाओं
के चरित्र की
पवित्रता है।
अगर तू
बचना चाहता है
तो प्रतिज्ञा
कर कि अब से
खुशरोज मेला
नहीं लगेगा और
किसी भी नारी
की आबरू पर तू
मन नहीं
चलायेगा।
नहीं तो आज
इसी तेज धार
की कटार से
तेरा काम तमाम
किये देती
हूँ।"
अकबर
के हाथ थरथर
काँपने लगे ! उसने
हाथ जोड़कर
कहाः "माँ
! क्षमा
कर दो। मेरे
प्राण
तुम्हारे
हाथों में
हैं, पुत्र
प्राणों की भीख
चाहता है। अब
से खुशरोज
मेला कभी नहीं
लगेगा।"
दयामयी
किरण देवी ने
अकबर को
प्राणों की
भीख दे दी ! कैसा
था किरण देवी
का शौर्य ! हे
भारत की
देवियो ! आपमें
अथाह शौर्य
है, अथाह
सामर्थ्य है,
अथाह बल है।
जरूरत है केवल
अपनी सुषुप्त
शक्तियों को
जगाने की।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
किरणदेवी
ने अकबर की
छाती पर पैर
रखकर क्या सीख
दी ?
ʹहममें
पावन भारतीय
वीरों एवं
वीरांगनाओं
के चरित्र की
पवित्रता है।ʹ -
टिप्पणी
लिखें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
विद्या
ददाति
विनयम्।
विद्या
विनयेन शोभते।
अर्थात्
विद्या विनय
प्रदान करती
है और वह विनय
से ही शोभित
होती है।
हमारा
सबका अनुभव है
कि जो नम्र
बनता है, वह सभी
का प्यारा हो
जाता है।
शास्त्रकार
यहाँ ʹविद्याʹ शब्द के
द्वारा
आत्मविद्या
की ओर संकेत
करना चाहते
हैं। भगवान
श्रीकृष्ण ʹगीताʹ में
अर्जुन को
आत्मविद्या
का उपदेश दे
रहे हैं और
इन्हीं
उपदेशों में
विनम्र बनने
का भी उपदेश
आता हैः
तद्विद्धि
प्रणिपातने
परिप्रश्नेन
सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति
ते ज्ञानं
ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।
ʹउस
ज्ञान को तू
तत्त्वदर्शी
ज्ञानियों के
पास जाकर समझ,
उनको भली
भाँति दंडवत्
प्रणाम करने
से, उनकी सेवा
करने से और
कपट छोड़कर
सरलतापूर्वक
प्रश्न करने
से वे
परमात्म-तत्त्व
को भलीभाँति
जानने वाले
ज्ञानी
महात्मा तुझे
उस तत्त्वज्ञान
का उपदेश
करेंगे।ʹ (गीताः
4.34)
किसी
को विनम्रता
का प्रकट रूप
देखना हो तो
उसे पूज्य संत
श्री
आशारामजी
बापू के दर्शन
करने चाहिए।
ये अपने
सत्संग-कार्यक्रम
के अंतिम सत्र
में हाथ
जोड़कर कहा
करते हैं- "सत्संग
में जो
अच्छा-अच्छा
आपको सुनने को
मिला, वह तो
मेरे गुरुदेव
का, शास्त्रों
का, महापुरुषों
का प्रसाद था
और कहीं कुछ
खारा-खट्टा आ
गया हो तो उसे
मेरी ओर से
आया मानकर
क्षमा करना।"
आत्मविद्या
के सागर पूज्य
श्री की यह
परम
विनम्रता
देखकर
सत्संगियों
की आँखों से
अश्रुधाराएँ
बरसने लगती
हैं।
नम्रता
विद्वान की
विद्वता में,
धनवान के धन में,
बलवान के बल
में और सुरूप
के रूप में
चार चाँद लगा
देती है। हम
किसी को छोटा
न समझें।
सच्चा बड़प्पन
और सभ्यता भी
नम्रता में ही
है।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
विद्या
किससे शोभित
होती है ?
नम्रता किसमें चार चाँद लगा देती है ?
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
जैसे
पानी की एक
बूँद को वाष्प
बनाने से
उसमें 1300 गुनी
ताकत आ जाती
है, वैसे ही
मंत्र को
जितनी गहराई
से जपा जाता
है, उसका
प्रभाव उतना
ही ज्यादा
होता है।
सदगुरु
से सारस्वत्य
मंत्र की
दीक्षा
प्राप्त करने
से एवं उसका
श्रद्धापूर्वक
जप करने से
विद्यार्थियों
की चंचलता दूर
होती है, उनके
जीवन में संयम
आता है तथा वे
अपनी कुशाग्र
बुद्धि को
चमत्कारिक
रूप से मेधा व
प्रज्ञा
बनाकर इहलोक
में तो सफलता
के शिखर को छू
सकते हैं, साथ
ही
आत्मा-परमात्मा
का सामर्थ्य
भी पा सकते
हैं। बौद्धिक
जगत के बादशाह
कहलाने वाले
बीरबल की
बुद्धि एवं
चातुर्य के
पीछे भी
सारस्वत्य
मंत्र का ही
प्रभाव था।
आज के
भौतिकवादी
युग में
यंत्रशक्ति
जितनी अधिक
प्रभावी हो
सकती है, उससे
कहीं अधिक
प्रभावी एवं
सूक्ष्म
मंत्रशक्ति
होती है। इसी
मंत्रशक्ति
का रहस्य
जानने वाले
अर्जुन सशरीर
स्वर्ग में
गये थे और
वहाँ से दिव्य
अस्त्र लाये थे।
मंत्रशक्ति
की महिमा को
जानकर उसका
लाभ उठाने
वाले कई
महापुरुष आज
विश्व में
आदरणीय एवं पूजनीय
स्थान
प्राप्त कर
चुके हैं।
जैसे – आद्य
शंकराचार्यजी,
कबीर जी,
नानकजी, स्वामी
विवेकानंद,
श्री
रामकृष्ण
परमहंस,
महावीर स्वामी,
महात्मा
बुद्ध, स्वामी
रामतीर्थ,
श्री लीलाशाहजी
महाराज, पूज्य
बापू जी
आदि-आदि। सती
अनसूया ने
मंत्रशक्ति
से ही
ब्रह्मा-विष्णु-महेश
को दूध पीते
बच्चे बना
दिया था।
आप भी
मंत्रशक्ति
का पूरा लाभ
लेने हेतु
पहुँच जाइये
किन्हीं
समर्थ सदगुरु
के
सत्संग-सान्निध्य
में,
सारस्वत्य
मंत्रदीक्षा
प्राप्त करके
तेजस्वी जीवन
की ओर कदम
बढ़ाइये। कदम
अपना आगे
बढ़ाता चला
जा.... युवा वीर
है दनदनाता
चला जा, भारत
का वीर है
दनदनाता चला
जा, कदम....
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
सारस्वत्य
मंत्र के जप
से
विद्यार्थियों
में क्या
परिवर्तन
होता है ?
ऐसे
कुछ संतों व
भक्तों के नाम
लिखो
जिन्होंने
मंत्रशक्ति
से खूब लाभ
उठाया है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
आवश्यक
है शिक्षा के
साथ दीक्षा
जितना
जितना आध्यात्मिक
बल बढ़ता है,
उतनी-उतनी
भौतिक वस्तुएँ
खिंचकर आती
हैं और
प्रकृति
अनुकूल हो जाती
है।
एक
होती है
शिक्षा, दूसरी
होती है
दीक्षा। स्कूल
कालेजों में
मिलने वाली
शिक्षा ऐहिक
वस्तुओं का
ज्ञान देती
है। शरीर का
पालन पोषण
करने के लिए
इस शिक्षा की
आवश्यकता है। यह
शिक्षा अगर
दीक्षा से
रहित होती है
तो विनाशक भी
हो सकती है।
शिक्षित आदमी
समाज को जितनी
हानि पहुँचा
सकता है, उतनी
अशिक्षित
आदमी नहीं
पहुँचा सकता।
साथ-ही-साथ,
शिक्षित आदमी
अगर सेवा करना
चाहे तो
अशिक्षित
आदमी की
अपेक्षा ज्यादा
कर सकता है।
देख लो रावण
का जीवन, कंस
का जीवन। उनके
जीवन में तो
शिक्षा तो है लेकिन
आत्मज्ञानी
गुरुओं की
दीक्षा नहीं
है। अब देखो,
राम जी का
जीवन,
श्रीकृष्ण का
जीवन। शिक्षा
से पहले
उन्हें
दीक्षा मिली
है। ब्रह्मवेत्ता
सदगुरु से
दीक्षित होने
के बाद उनकी
शिक्षा का
प्रारम्भ हुआ
है। जनक के
जीवन में
शिक्षा और
दीक्षा दोनों
हैं तो सुन्दर
राज्य किया
है।
सफलताओं
की वर्षा
पूज्य
बापू जी से
सारस्वत्य
मंत्रदीक्षा
लेकर जिन
विद्यार्थियों
ने लौकिक एवं
आध्यात्मिक
सफलता
प्राप्त की,
उनमें से कुछ
सौभाग्यशालियों
के उदगार-
मैंने
डॉक्टर बनने
का उद्देश्य
बनाया और बापू
जी की कृपा से
सहज में ही
डॉक्टर (एम.
बी.बी.एस.) बन भी
गयी। पूज्य
बापू जी के
आशीर्वाद से मेरा
चयन भारतीय
प्रशासनिक
सेवा (I.A.S.) में भी
हो गया है। - डॉ.
प्रीति मीणा (I.A.S.), बारां
(राज.)
पढ़ाई
के दौरान ही
मैंने
फिजियोथैरेपी
के इलाज में
अत्यंत
उपयोगी दो
व्हील चेयरों
का आविष्कार
किया।
अमेरिका के
विश्वप्रसिद्ध
डॉ. रूरी कूपर,
जो ʹफादर
ऑफ व्हील चेयर
के नाम से
जाने जाते
हैं, उन्होंने
मुझसे कहाः "मैं भी
ऐसा कुछ बनाने
की सोच ही रहा
था पर तुमने
तो कमाल ही कर
दिया !"
- नेशनल
रिसर्च
डेवलपमेंट
कॉरपोरेशन के
राष्ट्रीय
पुरस्कार से
सम्मानित
युवा
वैज्ञानिक और फिजियोथैरेपिस्ट
डॉ. राहुल
कत्याल,
रोहतक, (हरि.)
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
जिसके
मुख में गुरु
मंत्र है उसके
सब कर्म सिद्ध
होते हैं,
दूसरे के नहीं।
दीक्षा के
कारण शिष्य के
सर्व कार्य
सिद्ध हो जाते
हैं। - भगवान
शिवजी।
उद्धव ! तुम
गुरुदेव की
उपासना रूप
अनन्य भक्ति
के द्वारा
अपने ज्ञान की
कुल्हाड़ी को
तीखी कर लो और
उसके द्वारा
धैर्य एवं
सावधानी से
जीवभाव को काट
डालो। - भगवान
श्रीकृष्ण।
मन के
शिकंजे से
छूटने का सबसे
सरल और
श्रेष्ठ उपाय
यह है कि आप
किसी समर्थ
सदगुरु के
सान्निध्य
में पहुँच जायें।
- साँईं श्री
लीलाशाहजी
महाराज।
यह तन
विष की बेलरी,
गुरु अमृत की
खान।
सिर
दीजै सदगुरु
मिले, तो भी
सस्ता जान।। -
संत कबीर जी।
यदि
तुम गुरु
वाक्य पर बालक
की भाँति विश्वास
करो तो तुम
ईश्वर को पा
जाओगे। - श्री
रामकृष्ण
परमहंस।
भगवान,
गुरु और आत्मा
एक ही है। -
श्री रमण महर्षि।
बारह
कोस चलकर जाने
से भी यदि ऐसे
महापुरुष के
दर्शन मिलते
हों तो मैं
पैदल चलकर
जाने के लिए
तैयार हूँ
क्योंकि ऐसे
ब्रह्म
वेत्ता महापुरुष
के दर्शन से
कैसा
आध्यात्मिक
खजाना मिलता
है वह मैं अच्छी
प्रकार से
जानता हूँ। -
स्वामी
विवेकानंद
ऐसे
गुरुदेव का ऋण
मैं किस
प्रकार चुका
सकता हूँ
जिन्होंने
मुझे फिर से
जन्म नहीं
लेना पड़े –
ऐसी कृपा मुझ
पर कर दी। - संत
नामदेव जी महाराज।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
आसुमल
सो हो गये
साँईं
आशाराम...
अलख
पुरुष की
आरसी, साधु का
ही देह।
लखा जो
चाहे अलख को,
इन्हीं में तू
लख लेह।।
किसी
भी देश की
सच्ची
सम्पत्ति
संतजन ही होते
हैं। विश्व के
कल्याण के लिए
जिस समय जिस
धर्म की
आवश्यकता
होती है, उसका
आदर्श
उपस्थित करने
के लिए स्वयं
भगवान ही
तत्कालीन
संतों के रूप
में नित्य
अवतार लेकर
आविर्भूत
होते हैं। वर्तमान
युग में यह
दैवी कार्य
जिन संतों
द्वारा हो रहा
है, उनमें एक
लोकलाड़ले
संत हैं
श्रोत्रिय,
ब्रह्मनिष्ठ
योगिराज
पूज्य संत
श्री आशाराम
जी बापू।
दिव्य
जन्म....
आप
श्री के जन्म
के पहले
अज्ञात
सौदागर ने आकर
एक भव्य झूला
अनुनय-विनय
करके आपके
पिताश्री को
दिया। बोलाः "आपके
घर संतपुरुष
आने वाले हैं।"
जन्म
स्थानः अखंड
भारत के सिंध
प्रांत का बेराणी
गाँव।
तिथिः
वैशाख
(गुजरात-महाराष्ट्र
अऩुसार चैत्र)
कृष्ण षष्ठी
वि.सं. 1998, (17
अप्रैल 1941)
पिताः
नगरसेठ श्री
थाउमल जी
सिरूमलानी।
माताः
धर्मपरायणा
श्री
महँगीबाजी।
भविष्य
वेत्ताओं की
घोषणाएँ....
आपकी
विलक्षण
क्रियाओं को
देखकर अनेक
लोगों तथा
भविष्यवेत्ताओं
ने यह
भविष्यवाणी
की थी कि ʹयह
बालक पूर्व का
अवश्य ही कोई
सिद्ध योगी
पुरुष है, जो
अपना अधूरा
कार्य पूरा
करने के लिए ही
अवतरित हुआ
है। निश्चित
यह एक महान
संत बनेगा....
मातृ-पितृ
शक्ति
पूज्य
बापू जी ने
बाल्यकाल से
ही अपने
माता-पिता की
सेवा की और
उनसे ये आशीर्वाद
प्राप्त
कियेः
पुत्र
तुम्हारा जगत
में, सदा
रहेगा नाम।
लोगों
के तुमसे सदा,
पूरण होंगे
काम।।
युवावस्था-प्रबल
वैराग्य
आप
अपनी तीव्र
विवेक
सम्पन्न
बुद्धि से
संसार की
असत्यता को
जानकर अमर पद
की प्राप्ति
हेतु गृह
त्याग के
प्रभु मिलन की
प्यास में
जंगलों-बीहड़ों
में
घूमते-तड़पते
रहे।
सदगुरु
की प्राप्ति
ईश्
कृपा बिन गुरु
नहीं, गुरु
बिना नहीं
ज्ञान।
ज्ञान
बिना आत्मा
नहीं, गावहिं
वेद पुरान।।
ईश्वर
की कृपा कहो
या
ईश्वरप्राप्ति
की तीव्र
लालसा,
नैनीताल के
जंगल में परम
योगी,
ब्रह्मनिष्ठ
साँईं श्री
लीलाशाहजी महाराज
आपको सदगुरु
के रूप में
प्राप्त हुए।
गुरुमुखी
सेवा... गुरु
आज्ञा-पालन
पूज्य
श्री अपने
सदगुरु
भगवत्पाद
साँईं श्री
लीलाशाहजी
महाराज की
आज्ञा में
रहकर खूब श्रद्धा
व प्रेम से
गुरुसेवा
करते थे। भोजन
में मात्र
मूँग की दाल
लेते। साढ़े
चार फीट के
छोटे से कमरे
में सोते।
आश्रम के सभी
सेवा कार्य
आपश्री ने अपने
ऊपर ले लिये।
आत्मसाक्षात्कार
साधना
की विभिन्न
घाटियों को
पार करते हुए
आश्विन मास,
शुक्ल पक्ष
द्वितिया
संवत 20221 (7
अक्तूबर, वर्ष
– 1964) के दिन
मध्याह्न ढाई
बजे सदगुरु की
कृपादृष्टि
और
संकल्पमात्र
से आपश्री को
आत्मा-परमात्मा
का
साक्षात्कार
हो गया।
पूर्ण
गुरु कृपा
मिली, पूर्ण
गुरु का
ज्ञान।
आसुमल
से हो गये,
साँईं
आशाराम।।
एकांत
साधना
आपने
सात वर्ष तक
डीसा आश्रम
(गुजरात) और
माउंट आबू की
नल गुफा में
योग की
गहराइयों तथा ज्ञान
के शिखरों की
यात्रा की।
डीसा में एक
मरी हुई गाय
को जीवनदान
दिया, तब से
लोग आपकी महानता
को जानने लगे।
जिसको
गरज होगी
आयेगा...
एक दिन
सुबह भूख लगी
तो उस समय
जंगल में रमते
जोगी हठ कर
बैठ गयेः ʹजिसको
गरज होगी
आयेगा,
सृष्टिकर्ता
खुद लायेगा।ʹ और दो
किसान स्वप्न
में परमात्मा
की प्रेरणा पा
के दूध व फल
लेकर हाजिर !
आज्ञा
सम व साहिब
सेवा....
भगवत्पाद
साँईं श्री
लीलाशाहजी
महाराज ने
आपमें औरों को
उन्नत करने का
सामर्थ्य
पूर्ण रूप से
विकसित देखकर
आदेश दियाः "आशाराम
! अब तुम
गृहस्थी में
रहकर
संसार-ताप से
तप्त लोगों में
यह पाप, ताप,
तनाव, रोग, शोक,
दुःख-दर्द से
छुड़ाने वाला
आध्यात्मिक
प्रसाद बाँटो
और उऩ्हें भी
अपने
आत्मस्वरूप
में जगाओ।"
.....अपना
पूरा जीवन
समर्पित कर
दिया
आप
अपने पूज्य
सदगुरुदेव की
आज्ञा
शिरोधार्य
करके अपनी
उच्च
समाधि-अवस्था
का सुख छोड़कर
अशांति का भीषण
आग से तप्त
लोगों में
शांति का
संचार करने हेतु
समाज के बीच आ
गये। सन् 1972 में
आपश्री अहमदाबाद
में साबरमती
के पावन तट पर
स्थित मोटेरा गाँव
पधारे। तब
यहाँ दिन में
भी भयानक
मारपीट,
लूटपाट, डकैती
व असामाजिक
कार्य होते
थे। वही
मोटेरा गाँव
आज करोड़ों
श्रद्धालुओं
का पावन
तीर्थधाम,
शांतिधाम बन
चुका है। आज
विश्वभर में
करीब 425 से भी
अधिक आश्रम
स्थापित हो
चुके हैं।
ध्यानयोग
शिविरों में
आकर उन्हें
आपश्री की
अहैतु की
करुणा-कृपा से
चित्शक्ति-उत्थान
के दिव्य
अनुभव होते
हैं, जिससे चिंता-तनाव,
हताशा-निराशा
आदि पलायन कर जाते
हैं और जीवन
की उलझी
गुत्थियाँ
सुलझने लगती
हैं।
निष्काम
कर्मयोग हेतु
आश्रम द्वारा
स्थापित 1400 से
भी अधिक सेवा
समितियाँ
आश्रम की
सेवाओं को
समाज के
कोने-कोने तक
पहुँचाने में
जुटी रहती
हैं। भारत की
राष्ट्रीय
एकता-अखंडता व
शांति के
प्रबल समर्थक
पूज्य बापूजी
ने राष्ट्र के
कल्याणार्थ
अपना पूरा
जीवन समर्पित
कर दिया है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
आत्मविश्वास
सुदृढ़ करने
के लिए
प्रतिदिन शुभ
संकल्प व शुभ
कर्म करने
चाहिए तथा
सदैव अपने
लक्ष्य पर
ध्यान
केन्द्रित
रखना चाहिए।
पूज्य
बापू जी के
सत्संग-प्रवचन
से
ʹआत्मविश्वासʹ यानी
अपने-आप पर
विश्वास।
जीवन में
सफलता पाने के
लिए
आत्मविश्वास
का होना अति
आवश्यक है। आत्मविश्वास
की कमी होना,
स्वयं
पुरुषार्थ न करके
दूसरे के
भरोसे अपना
कार्य छोड़ना –
यह अपने साथ
अपनी आत्मिक
शक्तियों का
अनादर करना
है। ऐसा व्यक्ति
जीवन में असफल
रहता है। जो
अपने को अजन्मा
आत्मा, अमर
चैतन्य मानता
है, उसको दृढ़
विश्वास हो
जाता है कि
ईश्वर व
ईश्वरीय
शक्तियों का
पुंज उसके साथ
है।
सभी
महान
विभूतियों
एवं
संत-महापुरुषों
की सफलता व
महानता का रहस्य
आत्मविश्वास,
आत्मबल,
सदाचार में ही
निहित रहा है।
उनके जीवन में
चाहे कितनी भी
प्रतिकूल व
कठिन
परिस्थिति
आयीं, वे
घबराये नहीं,
आत्मविश्वास
व निर्भयता के
साथ उनका
सामना किया और
महान हो गये।
वीर शिवाजी ने
आत्मविश्वास
के बल पर ही 16
वर्ष की उम्र
में तोरणा का
किला जीत लिया
था। भगवत्पाद
साँईं श्री लीलाशाहजी
महाराज ने 20
वर्ष की उम्र
में ही ईश्वर
की अनुभूति कर
ली।
दुबले-पुतले
महात्मा गाँधी
ने
आत्मविश्वास
के बल पर ही
कुटिल
अंग्रेजों से
लोहा लिया और ʹअंग्रेजो
! भारत
छोड़ोʹ का
नारा लगाकर
अंग्रेज
शासकों को
भारत छोड़ के
भागने पर
मजबूर कर
दिया।
अतः
कैसी भी विषम
परिस्थिति
आने पर
घबरायें नहीं,
परमात्म-चिंतन
करके ʹૐʹ का
दीर्घ
उच्चारण करते
हुए ईश्वर की
शरण चले जायें।
इस तरह
आत्मविश्वास
जगाकर साहस,
उद्यम, बुद्धि
व धैर्य
पूर्वक
परिस्थिति का
सामना कर अपने
लक्ष्य को
पाने का संकल्प
दृढ़ करें।
हमें
रोक सके, ये
जमाने में दम
नहीं। हमसे
जमाना है,
जमाने से हम
नहीं।।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
संत
पुरुषों की
सफलता का क्या
रहस्य है ?
कोई
विषम
परिस्थिति
आये तो आप
क्या करोगे ?
आत्मविश्वास
के बल पर
साँईं
श्रीलीलाशाहजी
महाराज ने
क्या किया ?
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
अपने
सदगुरु की
प्रसन्नता के
लिए अपने
प्राणों तक का
बलिदान करने
का सामर्थ्य
रखने वाले शिवाजी
धन्य हैं।
"भाई
शिवाजी राजा
हैं, छत्रपति
हैं इसीलिए
गुरुजी हम
सबसे ज्यादा
उन पर प्रेम बरसाते
हैं।"
शिष्यों का यह
वार्तालाप
अनायास ही
समर्थ रामदास
स्वामी जी के
कानों में पड़
गया। समर्थ ने
सोचा कि ʹउपदेश
से काम नहीं
चलेगा, इनको
प्रयोगसहित
समझाना
पड़ेगा।ʹ
एक दिन
समर्थ ने लीला
की। वे
शिष्यों को
साथ लेकर जंगल
में घूमने
गये। तब अचानक
समर्थ को
पेटदर्द शुरु
हुआ। शिष्यों
के कंधे के
सहारे चलते
हुए किसी तरह
समर्थ एक गुफा
में प्रवेश
करते ही जमीन
पर लेट गये
एवं पीड़ा से
कराहने लगे।
सभी ने मिलकर
गुरुदेव से उस
पीड़ा का इलाज
पूछा।
समर्थ
ने कहाः "इस रोग
की एक ही औषधि
है – शेरनी का
दूध !" सब एक
दूसरे का मुँह
ताकते हुए सिर
पकरड़कर बैठ
गये।
उसी
समय शिवाजी
अपने गुरुदेव
के दर्शन करने
आश्रम
पहुँचे। यह
पता चलने पर
कि गुरुदेव
शिष्यों के
साथ जंगल की
ओर गये हैं,
शिवाजी जंगल
की ओर निकल
पड़े।
खोजते-खोजत
मध्यरात्रि
हो गयी किन्तु
उन्हें गुरु
जी के दर्शन
नहीं हुए।
इतने में एक
करुण स्वर वन में
गूँजाः "अरे
भगवान ! हे
रामरायाઽઽઽ.... मुझे
इस पीड़ा से
बचाओ।"
ʹयह तो
गुरु जी की
वाणी है !ʹ
शिवाजी घोड़े
से उतरे और
अपनी तलवार से
कँटीली
झाड़ियों को
काटकर रास्ता
बनाते हुए
गुफा तक पहुँच
गये।
उन्होंने
गुरुजी को
पीड़ा से
कराहते और
लोटपोट होते
देखा। शिवाजी
की आँखें
आँसुओं से छलक
उठीं और वे
उनके चरणों
में गिर पड़े।
शिवाजी से
पूछाः "गुरुदेव
! आपको
यह कैसी पीड़ा
हो रही है ? कृपा
करके मुझे
इसकी औषधि का
नाम बताइये।
शिवा
आकाश-पाताल एक
करके भी वह
औषधि ले
आयेगा।"
"शिवा ! इस रोग
की एक ही औषधि
है – शेरनी का
दूध ! लेकिन
उसे लाना माने
मौत को
निमंत्रण
देना।"
"गुरुदेव
! जिनकी
कृपादृष्टिमात्र
से हजारों
शिवा तैयार हो
सकते हैं, ऐसे
समर्थ सदगुरु
की सेवा में एक
शिवा की
कुर्बानी हो
भी जाय तो कोई
बात नहीं।
नश्वर देह को
तो एक बार जला
ही देना है।
ऐसी देह का
मोह कैसा ?
गुरुदेव ! मैं
अभी शेरनी का
दूध लेकर आता
हूँ।"
शिवाजी
गुरु को
प्रणाम करके
पास में पड़ा
हुआ पात्र
लेकर चल पड़े।
सत्शिष्य की
कसौटी करने प्रकृति
ने भी मानो
कमर कसी और
आँधी तूफान के
साथ जोरदार
बारिश शुरु
हुई।
जंगल
में बहुत दूर जाने
पर शिवा को
अँधेरे में
चमकती हुई चार
आँखें दिखीं।
वे समझ गये कि
ये शेरनी के
बच्चे हैं,
अतः शेरनी भी
कहीं पास में
ही होगी। शिवा
के कदमों की
आवाज सुनकर
पास में ही
बैठी शेरनी क्रोधित
हो उठी। उसने
शिवा पर छलाँग
लगायी परंतु
कुशल योद्धा
शिवा ने अपने
को शेरनी के
पंजे से बचा
लिया।
परिस्थितियाँ
विपरीत थीं।
शेरनी क्रोध
से जल रही थी।
शिवा
शेरनी से
प्रार्थना
करने लगे कि ʹहे
माता ! मैं
तेरे बच्चों
का अथवा तेरा
कुछ बिगाड़ने
नहीं आया हूँ।
मेरे गुरुदेव
को हो रहे
पेटदर्द में
तेरा दूध ही
एकमात्र इलाज
है। मेरे लिए
गुरुसेवा से
बढ़कर इस
संसार में
दूसरी कोई
वस्तु नहीं।
हे माता ! मुझे
मेरे सदगुरु
की सेवा करने
दे। तेरा दूध दुहने
दे।ʹ
पशु भी
प्रेम की भाषा
समझते हैं।
शिवाजी की प्रार्थना
से एक महान
आश्चर्य घटित
हुआ – शिवाजी
के रक्त की
प्यासी शेरनी
उनके आगे गौमाता
बन गयी !
शिवाजी ने
शेरनी के शरीर
पर
प्रेमपूर्वक
हाथ फेरा और वे
शेरनी का दूध
निकालने लगे।
दूध लेकर शिवा
गुफा में आये।
समर्थः
"आखिर
तू शेरनी का
दूध भी ले आया
शिवा ! जिसका
शिष्य
गुरुसेवा में
अपने जीवन की
बाजी लगा दे,
प्राणों को
हथेली पर रखकर
मौत से जूझे, उसके
गुरु का
पेटदर्द कैसे
रह सकता है ? मेरा
पेटदर्द तो जब
तू शेरनी का
दूध लेने गया, तभी
अपने-आप शांत
हो गया था।
शिवा तू धन्य
है ! धन्य
है तेरी
गुरुभक्ति !" ऐसा
कहकर समर्थ ने
शिवाजी के
प्रति
ईर्ष्या रखने
वाले शिष्यों
के सामने
अर्थपूर्ण
दृष्टि से
देखा। ʹगुरुदेव
शिवाजी को
अधिक क्यों
चाहते हैं ?ʹ - इसका
रहस्य उनको
समझ में आ
गया।
धन्य
हैं ऐसे
सत्शिष्य ! जो
सदगुरु के
हृदय में अपना
स्थान बनाकर
अमर पद
प्राप्त कर
लेते हैं...
धन्य है भारत
माता ! जहाँ
ऐसे सदगुरु और
सत्शिष्य
पाये जाते
हैं।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
क्रोधित
शेरनी शिवाजी
के सामने गाय
जैसी क्यों बन
गयी ?
समर्थ
रामदासजी की
सेवा में
शिवाजी ने
अपनी जान की
बाजी क्यों
लगा दी ?
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
एक
तुम्हीं आधार,
सदगुरु ! एक
तुम्हीं
आधार।
जब तक
मिलो न तुम
जीवन में,
शांति कहाँ
मिल सकती मन
में।
खोज
फिरे संसार,
सदगुरु ! एक
तुम्हीं
आधार।।
जब
दुःख पाते
अटक-अटककर, सब
आते हैं भूल
भटककर।
एक
तुम्हारे
द्वार, सदगुरु
! एक
तुम्हीं
आधार।।
जीव
जगत में सब
कुछ खोकर, बस
बच सका
तुम्हारा होकर।
हे
मेरे सरकार,
सदगुरु ! एक
तुम्हीं
आधार।।
कितना
भी हो
तैरनहारा,
लिया न जब तक
शरण सहारा।
हो न
सका वह पार,
सदगुरु ! एक
तुम्हीं
आधार।।
हे
प्रभु !
तुम्हीं
विविध रूपों
से, सदा बचाते
दुःख कूपों
से।
ऐसे
परम उदार,
सदगुरु ! एक
तुम्हीं
आधार।।
हम आये
हैं शरण
तुम्हारी, अब
उद्धार करो
दुःखहारी।
सुन लो
पथिक पुकार,
सदगुरु ! एक
तुम्हीं
आधार।।
- संत
पथिक जी
महाराज
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
राजा
भर्तृहरि ने
राजपाट का
त्याग किया और
गोरखनाथजी के
चरणों में जा
पहुँचे। उनसे
दीक्षित हुए
और उनकी
आज्ञानुसार
कौपीन पहन के
निकल पड़े।
भर्तृहरि
किसी गाँव से
गुजर रहे थे।
वहाँ किसी
हलवाई की
दुकान पर
गरमागरम
जलेबी को
देखकर मन
ललचाया। वे
दुकानदार से
बोलेः "थोड़ी
जलेबी दे दो !"
दुकानदार ने
डाँटते हुए
कहाः "अरे
मुफ्त का खाने
को साधु बना
है ? जरा
काम-धंधा करो
और कुछ टका
कमा लो, फिर
आना।"
दिन भर
तालाब की
मिट्टी खोदी,
टोकरी भर-भरकर
फेंकी तो दो
टका मिल गया।
जलेबी ले आये।
रास्ते में से
भिक्षापात्र
में गोबर भर
लिया। तालाब के
किनारे जाकर
बैठे और खुद
से ही कहने
लगेः ʹदिन भर
की मेहनत का
फल खा ले।ʹ होठों
तक जलेबी लाये
और दूसरे हाथ
से मुँह में
गोबर भर दिया
और जलेबी
तालाब में
फेंक दी। ʹराजपाट
छोड़ा,
सगे-सम्बन्धी
छोड़े, फिर भी
अभी स्वाद
नहीं छूटा ? तो ले,
खा ले।ʹ ऐसा
कहकर फिर से
मुँह में गोबर
ठूँस लिया। मुँह
से थू-थू होने
लगा तब भी वे
कहते हैं- ʹनहीं-नहीं,
अभी और खा ले....ʹ ऐसे
एक-एक करके
उन्होंने
सारी
जलेबियाँ
तालाब में
फेंक दीं। अब
आखिरी जलेबी
बची थी हाथ में।
मन ने कहाः ʹदेखो,
इतना मुझे
सताया है, दिन
भर मेहनत करके
थकाया है,
चलना भी
मुश्किल हो
रहा है। अब
कुल्ला करके
एक जलेबी तो
खाने दो।ʹ
ʹअच्छा
तो अभी मेरा
स्वामी ही बना
रहना चाहता है
तो ले।ʹ तपास
से जलेबी
तालाब में डाल
दी और कहाः ʹअब और
जलेबी कल ला
दूँगा और ऐसे
ही खिलाऊँगा।ʹ
अब
भर्तृहरि का
मन तो मानो
उनको हाथ
जोड़ता है कि ʹअब
जलेबी नहीं
खानी है, कभी
नहीं खानी है।
आप जो कहोगे
अब मैं वही
करूँगा।ʹ अब मन
हो गया नौकर
और खुद तो हैं
ही स्वामी।
जब कभी
मन में विकार
आये तो उसका
बलपूर्वक सामना
करो। विकारों
का सामना नहीं
करोगे और मन
को जरा-सी भी
छूट दे दोगे
कि ʹजरा
चखने में क्या
जाता है.... जरा
देखने में क्या
जाता है...ʹ ऐसे
जरा-जरा करने
में मन कब
पूरा घसीटकर
ले जाता है,
पता भी नहीं
चलता है।
इसलिए मन को
जरा भी छूट मत
दो। अपने
रक्षक आप बनो।
जवाब
दें और जीवन
मे लायें।
राजा
भर्तृहरि ने
जलेबियाँ
क्यों खायीं ?
आप
अपने मन
को अपना नौकर
बनाने के लिए
क्या करोगे ?
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
हम
भारत देश के
वासी हैं, हम
ऋषियों की
संतानें हैं
अपनी
मातृभाषा में
शिक्षा
प्राप्त करना
जन्मसिद्ध
अधिकार है।
मैकाले
ने कहा थाः "मैं
यहाँ कि
शिक्षा
पद्धति में
ऐसे कुछ संस्कार
डाल जाता हूँ
कि आने वाले
वर्षों में
भारतवासी
अपनी ही
संस्कृति से
घृणा करेंगे....
मंदिर में
जाना पसंद
नहीं करेंगे....
माता-पिता को
प्रणाम करने
में तौहीन
महसूस
करेंगे.... वे शरीर
से तो भारतीय
होंगे लेकिन
दिलोदिमाग से
हमारे ही
गुलाम होंगे....ʹ
महात्मा
गाँधी के
शब्दों में "मैकाले
ने शिक्षा की
जो बुनियाद
डाली, वह सचमुच
गुलामी की
बुनियाद थी।
हम विदेशी
शिक्षा के
शिकार होकर
मातृद्रोह
करते हैं।"
रवीन्द्रनाथ
टैगोर ने भी
मातृभाषा को
बड़े सम्मान
से देखा और
कहा था कि "अपनी
भाषा में
शिक्षा पाना
जन्मसिद्ध
अधिकार है।"
गांधी
जी ने
मातृभाषा-प्रेम
को व्यक्त
करते हुए कहा
कि "मैं
अंग्रेजी को
दूसरी जबान के
तौर पर जगह
दूँगा लेकिन
विश्वविद्यालय
के पाठ्यक्रम
व विद्यालयों
में नहीं। रूस
ने बिना
अंग्रेजी के
विज्ञान में
इतनी उन्नति
की है। आज
अपनी मानसिक
गुलामी की वजह
से ही हम यह मानने
लगे हैं कि
अंग्रेजी के
बिना हमारा
काम नहीं चल
सकता। मैं इस
चीज को नहीं
मानता।"
रवीन्द्रनाथ
टैगोर ने
जापान का
दृष्टान्त देते
हुए बताया है
कि "उस देश
में जितनी
उन्नति हुई
है, वह वहाँ की
अपनी भाषा
जापानी के ही
कारण है।"
अतः
अपनी
मातृभाषा में
पढ़ने की
स्वतन्त्रता
देकर उनके
चहुँमुखी
विकास में
सहभागी बनें।
कोई भी ऐसे
माता-पिता
नहीं होंगे जो
अपने
पुत्र-पुत्रियों
की भलाई या
उन्नति न
चाहते हों।
चाहते ही हैं,
सिर्फ
आवश्यकता है तो
अपनी
विचारधारा
बदलने की।
ʹमैं
पुरानी
अस्वस्थ
परम्परा
तोड़ना चाहता
हूँʹ
महामना मदनमोहन मालवीयजी के हृदय में अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति अपार प्रेम था। एक बार वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाषण दे रहे थे। अभी उन्होंने कुछ ही वाक्य बोले होंगे कि एक नवयुवक बीच सभा में से उठ खड़ा हुआ व ऊँची आवाज में बोलाः "Sir, Speak in English. We can’t catch your Hindi." अर्थात् ʹश्रीमान् ! आप अंग्रेजी में बोलिये। आपकी हिन्दी हमारी समझ में नहीं आती।ʹ)
यह सुनकर मालवीय जी ने दृढ़तापूर्वक प्रखर स्वर में कहाः "महाशय ! मुझे अंग्रेजी बोलनी आती है। शायद हिन्दी की अपेक्षा मैं अंग्रेजी में अपनी बात अधिक अच्छे ढंग से कह सकता हूँ परंतु मैं एक पुरानी अस्वस्थ परम्परा को तोड़ना चाहता हूँ।" यह सुनकर वह युवक बहुत शर्मिन्दा हुआ और उसे एक नयी प्रेरणा मिली।
गणेशशंकर
विद्यार्थी
का संस्कृति
प्रेम
एक विद्यालय में, जिसमें अधिकांश छात्र फैशनपरस्त दिखायी पड़ते थे, एक नये छात्र ने प्रवेश लिया। उस छात्र का परिधान धोती, कुर्ता व टोपी था। कुछ उस पर हँसे, कुछ ने व्यंग्य कियाः "तुम कैसे छात्र हो जो तुम्हें अप-टु-डेट रहना भी नहीं आता ?"
नया छात्र हँसा और बोलाः "अगर फैशनेबल परिधान पहनने से ही व्यक्तित्व ऊपर उठ जाता को टाई और सूट पहनने वाला हर अंग्रेज महान विद्वान होता। ठंडे मुल्क के अंग्रेज भारतवर्ष जैसे गर्म देश में भी केवल इसलिए अपना परिधान नहीं बदल सकते कि वह उनकी संस्कृति का अंग है तो मैं ही अपनी संस्कृति को क्यों हेय होने दूँ ? मुझे अपने स्वयं के मान, प्रशंसा और प्रतिष्ठा से ज्यादा धर्म प्यारा है, संस्कृति प्यारी है। जिसे जो कहना हो कहे, मैं अपनी संस्कृति का परित्याग नहीं कर सकता।"
ये धर्मप्रिय, संस्कृतिप्रिय छात्र थे महान देशभक्त गणेशशंकर विद्यार्थी, जिन्होंने देश की स्वाधीनता हेतु अपने प्राणों का भी बलिदान दे दिया। गणेशशंकर विद्यार्थी ने अपने धर्म, संस्कृति, लक्ष्य और कर्तव्य के लिए सब कुछ अर्पण कर दिया।
यह लेख आप विद्यार्थियों को पढ़ा सके, समझा सके तो मेरे चित्त में बड़ी प्रसन्नता होगी और आपके द्वारा भारतीय संस्कृति की महान सेवा होगी। - पूज्य बापूजी।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
गणेशशंकर विद्यार्थी के जीवन से आपको क्या सीख मिली ?
मालवीय जी कौन-सी अस्वस्थ परम्परा को तोड़ना चाहते थे ?
गांधी जी व टैगोरजी के दृष्टान्तो-वक्तव्यों से क्या सीख मिलती है ?
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
जिस
प्रकार एरियल
अथवा एन्टेना
रेडियो और टीवी
की तरंगे
ग्रहण करता
है, उसी
प्रकार
ब्रह्माण्ड
की सूक्ष्म
शक्तियों को
ग्रहण करने का
कार्य शिखा
स्थान द्वारा
ही होता है।
शिखा(चोटी)
रखना हमारी
संस्कृति का
एक पावन संस्कार
है। प्रसिद्ध
वैज्ञानिक
नेल्सन ने अपनी
पुस्तक ʹह्यूमन
मशीनʹ में
लिखा हैः ʹमानव-शरीर
में सतर्कता
के सारे
कार्यक्रमों
का संचालन सिर
पर शिखा रखने
के स्थान से
होता है।ʹ
भारतीय
संस्कृति का
छोटे-से-छोटा
सिद्धान्त, छोटी-से-छोटी
बात भी अपनी
जगह पूर्ण और
कल्याणकारी
है। प्रसिद्ध
विद्वान डॉ.
आई.ई. क्लार्क ने
कहा हैः "मैंने
जब से इस
विज्ञान की
खोज की है तब
से मुझे
विश्वास हो
गया है कि
हिन्दुओं का
हर एक नियम
विज्ञान से
परिपूर्ण है।
चोटी रखना हिन्दुओं
का धर्म ही
नहीं,
सुषुम्ना के
केन्द्रों की
रक्षा के लिए
ऋषि-मुनियों
की खोज का
विलक्षण
चमत्कार है।"
शिखा
रखने के लाभः
सुषुम्ना
नाड़ी की
रक्षा से
मनुष्य
स्वस्थ, बलिष्ठ,
तेजस्वी और
दीर्घायु
होता है।
नेत्रज्योति सुरक्षित
रहती है।
कार्यों
में सफलता
मिलती है।
दैवी
शक्तियाँ रक्षा
करती हैं।
सदबुद्धि,
सदविचार आदि
की प्राप्ति
होती है। आत्मशक्ति
प्रबल बनी
रहती है।
मनुष्य धार्मिक,
सात्त्विक व
संयमी बना
रहता है।
इस
प्रकार
धार्मिक,
सांस्कृतिक,
वैज्ञानिक
सभी
दृष्टियों से
शिखा की
महत्ता
स्पष्ट हो
जाती है।
परंतु आज फैशन
की होड़ में
भारतवासी
शिखा नहीं
रखते व अपने
ही हाथों अपने
धर्म व
संस्कृति का
त्याग कर डालते
हैं। लोग हँसी
उड़ायें, पागल
कहें तो सह लो
पर संस्कृति
का त्याग मत
करो।
जवाब दें
और जीवन में
लायें।
शिखा
क्यों रखनी
चाहिए ?
शिखा
रखने के कोई 5
लाभ बतायें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
पर्यावरण
मित्र आँवला,
तुलसी, पीपल,
नीम और वटवृक्ष
में प्रदूषण
नियंत्रण व
पर्यावरण-सुरक्षा
की अतुलित
क्षमता है।
साथ ही ये
मानव के
शारीरिक-मानसिक
स्वास्थ्य व
आध्यात्मिक
उन्नति में चार
चाँद लगाते
हैं।
पूज्य
बापू जी के
निर्दशानुसार
संत श्री आशारामजी
आश्रमों,
आश्रम की
समितियों, 17000
बाल संस्कार
केन्द्रों
में आने वाले
बाल मंडल,
छात्र मंडल व
कन्या मंडल के
विद्यार्थियों,
युवा सेवा
संघ, महिला
उत्थान मंडल
तथा पूज्य
श्री के
शिष्यों
द्वारा
पर्यावरण
मित्र आँवला,
तुलसी, पीपल,
नीम और
वटवृक्ष का
अपने-अपने
क्षेत्रों
में रोपण किया
जा रहा है।
भगवान
श्रीकृष्ण ने
कहा हैः अश्वत्थः
सर्ववृक्षाणां.....
अर्थात् ʹमैं सब
वृक्षों में
पीपल का वृक्ष
हूँ।ʹ (गीताः
10.26)
पीपल
में वातावरण
को शुद्ध करने
का एक अनोखा गुण
है। यह
चौबीसों
घंटों
ऑक्सीजन
उत्सर्जिन करता
है।
धुएँ
तथा धूलि को
वातावरण से
सोखकर
पर्यावरण-रक्षा
करने वाला यह
एक
महत्त्वपूर्ण
वृक्ष है।
इसके
नित्य स्पर्श
से शरीर में
रोगप्रतिकारक
क्षमता की
वृद्धि, मनः
शुद्धि, आलस्य
में कमी तथा
ग्रहपीड़ा का
शमन, शरीर के
आभामंडल की शुद्धि
और विचारधारा
में धनात्मक
परिवर्तन होता
है।
पीपल
के वृक्ष को
स्पर्श करके
बालकों व
पुरुषों को
लाभ उठाना
चाहिए। बालिकाएँ
व महिलाएँ दूर
से ही प्रणाम
करें।
विद्यार्थियों
के हित के लिए
पीपल का
स्पर्श बुद्धिवर्धक
है। इसके
नित्य स्पर्श
से दब्बूपने(भय
या डर) का नाश
होता है। पीपल
को स्पर्श करते
हुए आप मंगल
भावना करें कि
ʹहम
तेजस्वी हो
रहे हैं,
हमारी बुद्धि
का विकास हो
रहा है।ʹ
ʹब्रह्म
पुराण के 118 वे
अध्याय में
शनिदेव कहते हैं-
ʹजो
शनिवार को
प्रातःकाल
उठकर पीपल के
वृक्ष का
स्पर्श
करेंगे,
उन्हें
ग्रहजन्य
पीड़ा नहीं
होगी।ʹ
वास्तुशास्त्र
के अनुसार घर
की पश्चिम
दिशा की ओर
पीपल का वृक्ष
होना शुभ है।
पीपल के लिए पूर्व
दिशा अशुभ है।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
पीपलः
अनमोल वृक्ष
क्यों है ?
विद्यार्थियों
के लिए पीपल
के वृक्ष
लाभदायी कैसे
हैं ?
अपने
मोहल्ले व
विद्यालय के
परिसर में
आँवला, तुलसी,
पीपल,
वटवृक्ष, नीम
आदि के पौधे
लगायें तथा घर
व पड़ोस में
इनकी महत्ता
बतायें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
संयम
बड़ी चीज है।
जो संयमी है,
सदाचारी है और
अपने
परमात्म-भाव
में है, वही
महान बनता है।
हे भारत के
युवानो ! तुम भी
उसी गौरव को
हासिल कर सकते
हो।
संत
श्री
आशारामजी
बापू का
बलप्रद संदेश
चाहे
बड़ा
वैज्ञानिक हो
या दार्शनिक,
विद्वान हो या
बड़ा उपदेशक,
सभी को संयम
की जररूत है। स्वस्थ
रहना हो, सुखी
रहना हो और
सम्मानित रहना
हो, सबमें
ब्रह्मचर्य
की जरूरत है।
ब्रह्मचर्य
बुद्धि में
प्रकाश लाता
है, जीवन में
ओज तेज लाता
है। जो
ब्रह्मचारी
रहता है वह
आनंदित रहता
है, निर्भीक
रहता है,
सत्यप्रिय
होता है। उसके
संकल्प में बल
होता है, उसका
उद्देश्य
ऊँचा होता है
और उसमें
दुनिया को हिलाने
का सामर्थ्य
होता है।
स्वामी
रामतीर्थ, रमण
महर्षि, समर्थ
रामदास,
भगवत्पाद
साँईं श्री
लीलाशाहजी
महाराज,
स्वामी
विवेकानंद
आदि
महापुरुषों
को ही देखें।
उनके जीवन में
ब्रह्मचर्य
था तो
उन्होंने
पूरी दुनिया
में भारतीय
अध्यात्म-ज्ञान
का डंका बजा
दिया था।
यदि
जीवन में संयम
को अपना लो,
सदाचार को
अपना लो एवं
समर्थ सदगुरु
का सान्निध्य
पा लो तो तुम
भी
महान-से-महान
कार्य करने
में सफल हो
सकते हो। लगाओ
छलाँग.... कस लो
कमर... संयमी
बनो.... ब्रह्मचारी
बनो और ʹयुवाधन
सुरक्षा
अभियानʹ के
माध्यम से ʹदिव्य
प्रेरणा-प्रकाशʹ
पुस्तक अपने
भाई-बन्धुओं,
मित्रों,
पड़ोसियों,
ग्रामवासियों,
नगरवासियों
तक पहुँचाओ।
उन्हें भी
संयम की महिमा
समझाओ और
शास्त्र की इस
बात को
चरितार्थ
करोः
सर्व
भवन्तु
सुखिनः सर्वे
सन्तु
निरामयाः।
सर्वे
भद्राणि
पश्यन्तु मा
कश्चिद्
दुःखभाग्भवेत्।।
ʹसभी
सुखी हों, सभी
नीरोगी हों,
सभी सबका मंगल
देखें और कोई
दुःखी न हो।ʹ
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
ब्रह्मचर्य
से जीवन में
कौन-कौन से
सदगुण आ जाते
हैं ?
योग्यता
विस्तारः संत
श्री आशाराम
जी आश्रम
द्वारा
प्रकाशित ʹदिव्य
प्रेरणा
प्रकाशʹ
पुस्तक कम से
कम 5 बार पढ़ें
तथा अपने अन्य
मित्रों को भी
पढ़ने को दें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
क्या
है ब्रह्मचर्य
? और
ब्रह्मचर्य
जरूरी क्यों ?
भगवान
वेदव्यास जी
ने कहा हैः
ब्रह्मचर्यं
गुप्तेन्द्रियस्योपस्थस्य
संयमः
ʹविषय-इन्द्रियों द्वारा प्राप्त होने वाले सुख का संयमपूर्वक त्याग करना ब्रह्मचर्य है।ʹ
शक्ति,
प्रभाव और सभी
क्षेत्रों
में सफलता की कुंजी
– ब्रह्मचर्य
राजा
जनक शुकदेव जी
से बोलेः तपसा
गुरुवृत्त्या
च
ब्रह्मचर्येण
वा विभो।
ʹबाल्यावस्था
में
विद्यार्थी
को तपस्या,
गुरु की सेवा,
ब्रह्मचर्य
का पालन एवं
वेदाध्ययन करना
चाहिए।ʹ
(महाभारत,
मोक्षधर्म
पर्वः 326.15)
ब्रह्मचर्य
का
ऊँचे-में-ऊँचा
अर्थ हैः
ब्रह्म में
विचरण करना। ʹजो मैं
हूँ वही
ब्रह्म है और
जो ब्रह्म है
वही मैं हूँ....ʹ ऐसा
अनुभव जिसे हो
जाये वही
ब्रह्मचारी
है।
ʹव्रतों
में
ब्रह्मचर्य
उत्कृष्ट है।ʹ
(अथर्ववेद)
ʹअब्रह्मचर्य
घोर
प्रमादरूप
पाप है।ʹ (दश
वैकालिक
सूत्रः 6.17)
अतः
चलचित्र और
विकारी
वातावरण से
अपने को
बचायें।
पितामह भीष्म,
हनुमानजी और
गणेशजी का
चिंतन करने से
रक्षण होता
है।
"मैं
विद्यार्थियों
और युवकों से
यही कहता हूँ
कि वे
ब्रह्मचर्य
और बल की
उपासना करें।
बिना शक्ति व
बुद्धि के,
अधिकारों की
रक्षा और प्राप्ति
नहीं हो सकती।
देश की
स्वतंत्रता
वीरों पर ही
निर्भर है।" –
लोकमान्य
तिलक
आश्रम
से प्रकाशित ʹदिव्य
प्रेरणा
प्रकाशʹ
पुस्तक
बार-बार
पढ़ें-पढ़ायें।
ब्रह्मचर्य
रक्षा का
मंत्र
ૐ नमो
भगवते महाबले
पराक्रमाये
मनोभिलाषितं मनः
स्तंभ कुरु
कुरु स्वाहा।
रोज
दूध में
निहारकर 21 बार
इस मंत्र का
जप करें और
दूध पी लें।
इससे
ब्रह्मचर्य
की रक्षा होती
है।
जवाब
दें और जीवन
में लायें।
बाल्यावस्था
में
विद्यार्थी
को क्या करना
चाहिए ?
ब्रह्मचर्य
का
ऊँचे-में-ऊँचा
अर्थ क्या है ? इसकी
रक्षा के उपाय
लिखें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
ब्रह्मलीन
संयममूर्ति
साँईं श्री
लीलाशाहजी
महाराज का
संदेश
ब्रह्मचर्य
तन से अधिक मन
पर आधारित है।
इसलिए मन को
नियंत्रण में
रखो
और अपने सामने
ऊँचे आदर्श
रखो।
मन को
सदैव
कुछ-न-कुछ
चाहिए। अवकाश
में मन प्रायः
मलिन हो जाता
है। अतः शुभ
कर्म करने में
तत्पर रहो व
भगवन्नाम-जप
में लगे रहो।
आँख और
कान मन के
मुख्यमंत्री
हैं। इसलिए
गंदे चित्र व
भद्दे दृश्य
देखने तथा
अभद्र बातें सुनने
से
सावधानीपूर्वक
बचो।
इन्द्रियों को
भड़काने वाली
अश्लील
किताबें न
पढ़ो, न ही ऐसी
फिल्में और
वेबसाइटें
देखो।
ʹजैसा
खाओ अन्न,
वैसा बने मन।ʹ गरम
मसाले,
चटनियाँ, अधिक
गरम भोजन तथा
मांस, मछली,
अंडे, चाय,
कॉफी,
फास्टफूड आदि
का सेवन बिल्कुल
न करो।
लँगोटी
बाँधना
अत्यन्त
लाभदायक है।
सीधे, रीढ़ के
सहारे न सोओ,
हमेशा करवट
लेकर ही सोओ।
प्रातः
जल्दी उठो।
सूर्योदय के
बाद न सोओ।
बदहजमी व कब्ज
से अपने को
बचाओ। हररोज
प्रातः और
सायं व्यायाम,
योगासन तथा
प्राणायाम करने
का नियम रखो।
पान-मसाला,
गुटखा,
सिगरेट, शराब,
चरस, अफीम,
भाँग आदि सभी
मादक (नशीली)
चीजों से दूर
रहो। सेंट, परफ्यूम
आदि के उपयोग
से काम विकार
को प्रोत्साहन
मिलता है, अतः
इनसे भी बचो।
संयम
की अनुपम
कुंजियाँ
ʹૐ
अर्यमायै
नमः।ʹ मंत्र
का सोने से
पूर्व 21 बार जप
करने से बुरे
सपने नहीं
आते।
सोने
से पहले
अँगूठे के
पासवाली
उँगली से (स्याही
से नहीं)
तकिये पर अपनी
माता का नाम
लिखकर सोने से
बहुत लाभ होता
है।
आँवले
के चूर्ण में
चौथाई हिस्सा
(25%) हल्दी
चूर्ण मिलाकर
रखें। 7 दिन तक
सुबह शाम यह
मिश्रण 3-4
ग्राम लेने से
चमत्कारिक
लाभ होता है।
इसके सेवन से 2
घंटे पूर्व व
पश्चात दूध न
लें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
दिव्य
प्रेरणा
प्रकाश ज्ञान
प्रतियोगिता
के
प्रश्नपत्र
के प्रारूप के
उत्तरः
1.(3) 2.(2) 3.(4) 4.(2) 5.(4) 6.(4) 7.(3)
8.(4) 9.(1) 10.(5) 11.(2) 12(4) 13.(1) 14.(3) 15.(2)
तपः सु
सर्वेषु
एकाग्रता परं
तपः।
ʹसब
तपों में
एकाग्रता परम
तप है।ʹ
एकाग्रता
से सामर्थ्य
का भंडार
खुलता है।
बिखरी हुई
सूर्यकिरणों
को उन्नतोदर
ताल (Convex Lens)
द्वारा
केन्द्रित
किया जाय तो
आग पैदा होती है।
आईंस्टीन
बचपन में
पढ़ने-लिखने व
प्रत्येक कार्य
करने में बहुत
ही पीछे थे।
एक दिन उन्होंने
अपने अध्यापक
से पूछाः "क्या
मैं सुयोग्य
बन सकता हूँ ?"
अध्यापक
बोलेः "बेटा
!
तत्परता व
एकाग्रता से
ही जीवन में
महान बना जा
सकता है।"
आईंस्टीन
संयम, ध्यान व
एकाग्रता के
अभ्यास में
तत्पर हो गये।
इससे उनकी
बुद्धि
विकसित हुई और
वे एक
वैज्ञानिक के
रूप में
विश्वप्रसिद्ध
हुए। भारतीय
संस्कृति के
खजाने का
सदुपयोग करके
ऐसे बुद्धु
विद्यार्थी
भी महान बन
सकते हैं तो
तुम क्यों
नहीं ?
खोज लो
किन्हीं
महापुरुष को
और तत्पर हो
जाओ।
अपनी
एकाग्रता के
बल से संत
ज्ञानेश्वर
महाराज ने
चबूतरा चला
दिया था व
भगवत्पाद
साँईं श्री
लीलाशाहजी
महाराज ने नीम
के पेड़ को
चला दिया था।
ऐसे अनेक उदाहरण
हैं जिनसे
एकाग्रता की
महिमा का पता
चलता है।
एकाग्रता
बढ़ाने के सरल
उपाय
रूचि
एकाग्रता की
जननी है। रूचि
कैसे पैदा करें
? अपने
को कठिन लगने
वाले विषय में
जिनकी रूचि है
और जिन्होंने
उसमें उत्तम
सफलता भी
प्राप्त की
है, उनका संग
करके ज्ञान व
रूचि बढ़ायें।
प्रतिदिन
8-10 प्राणायाम
करने चाहिए।
जो पाठ
आज पढ़ाया
जाने वाला है
उस पर एक नजर
डालकर
विद्यालय
जाओ। इससे जब
वह पढ़ाया
जायेगा, आप
अपने-आप
एकाग्र हो
जाओगे।
रोज
त्राटक करें –
भगवान या
सदगुरु के
श्रीचित्र को
एकटक देखें।
हो सके
उतना मौन
रखें। शांत मन
ही एकाग्र हो
सकता है।
सुबह
सूर्योदय से
पहले स्नान
करके पूर्व की
ओर मुख करके
बैठ जायें।
गहरे श्वास
लें व ʹૐʹ का
लम्बा
उच्चारण
करें।
सारस्वत्य
मंत्र का
मानसिक
जप-स्मरण करते
हुए ध्यान में
बैठें, फिर
अध्ययन करें।
हे
विद्यार्थियो
!
एकाग्रता ही
सफलता की
कुंजी है।
एकाग्रतारूपी
तप से जगत की
तुच्छ चीजें
तो क्या,
जगदीश्वर को
भी पा सकते
हो।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
दिन
में सोना,
रात्रि में
जागना माने
स्वास्थ्य को
खोना
दिन
कार्य करने के
लिए है और
रात्रि
विश्राम के
लिए। दिन में
सोने से
त्रिदोष (वात,
पित्त व कफ)
प्रकुपित हो
जाते हैं,
जबकि रात्रि
में सोने से
आलस्य दूर
होता है,
पुष्टि,
कांति, बल और
उत्साह बढ़ता
है तथा
जठराग्नि
प्रदीप्त
होती है। ʹन्यूकेसल
विश्वविद्यालयʹ के
शोधकर्ताओं
ने 20 से 24
आयुवर्ग के
पुरुषों पर किये
अध्ययन से
निष्कर्ष
निकाला कि
पूरी रात
जागकर कार्य करना,
देर रात की
पारी में
कार्य करना या
फिर नींद का
पूरा न होना
पेट में अल्सर
के खतरे को बढ़ाता
है।
रात्रि
में जागते
रहने से
स्वभाव में
चिड़चिड़ापन,
बेचैनी,
एकाग्रता की
कमी, बदन व सिर
में दर्द, भूख
कम लगना, थकान, आँखें
भारी होना,
खून की खराबी,
अजीर्ण, त्वचा
पर झुर्रियाँ
पड़ना,
माइग्रेन,
कार्यक्षमता घटना
आदि
परेशानियाँ आ
खड़ी होती
हैं। 9 से 10 बजे
के बीच सोना
और 3 से 4 बजे के
बीच जागना
सर्वांगीण
विकास की
कुंजी है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
घर में
चोरी हो जाय
तो कुछ न कुछ
सामान बच जाता
है लेकिन आग
लगे तो सब
भस्मीभूत हो
जाता है। इसी
प्रकार हमारे
अंतःकरण में
काम, मोह, लोभ,
अहंकाररूपी
चोर आयें तो
कुछ पुण्य
क्षीण होते हैं
लेकिन
क्रोधरूपी आग
लगे तो हमारा
तमाम जप, तब,
पुण्यरूपी धन
भस्म हो जाता है।
अतः सावधान
होकर
क्रोधरूपी
भस्मासुर से बचो।
25 मिनट
तक चबा-चबाकर
भोजन करो।
सात्त्विक
आहार लो।
लहसुन, लाल
मिर्च और तली
हुई चीजों से
दूर रहो।
क्रोध आये तब
हाथ की
उँगलियों के
नाखून हाथ की
गद्दी पर
दबें, इस प्रकार
मुट्ठी बंद
करो। एक गिलास
पानी, तुलसी
के पत्ते, दस
ग्राम शहद और
संतकृपा
चूर्ण मिलाकर
बनाया हुआ
शरबत यदि हर
रोज सुबह लिया
जाय तो चित्त
की प्रसन्नता
बढ़ती है।
चूर्ण और
तुलसी न मिले
तो केवल शहद
ही लाभदायक
है। मधुमेह
(डायबिटीज) के
रोगियों को
शहद नहीं लेना
चाहिए। वे
अंगूर या
किशमिश ले
सकते हैं
क्योंकि ये
मधुमेह में
हानि नहीं
करते बल्कि बल
देते हैं।
एक
महीने तक किये
हुए जप-तप से
चित्त की जो
योग्यता बनती
है, वह एक बार
क्रोध करने से
नष्ट हो जाती
है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
मनुष्य
के दाँतों व
आँतों की रचना
व कार्यप्रणाली
शाकाहार के ही
अनुकूल है,
मांसाहार के
नहीं।
वैज्ञानिकों
ने इस बात को
सिद्ध किया है
कि मरते समय
पशुओं में
उत्पन्न भय,
कम्पन, चीत्कार
तथा उनमें
उपस्थित
विषाक्त
पदार्थ, बीमारियाँ
व उनकी हिंसक
प्रवृत्तियाँ
मांस रखने
वालों के तन व
मन पर गहरा
कुप्रभाव
डालती हैं। ʹविश्व
स्वास्थ्य
संगठनʹ ने
मांसाहार से
होने वाली 160
बीमारियों के
नाम प्रमाणित
किये हैं।
मांसाहारी
व्यक्ति कब्ज,
गैस, बवासीर व
सिरदर्द से
पीड़ित रहते
हैं। मांसाहार
से मिर्गी,
कैंसर,
हृदयरोग,
चर्मरोग, पथरी
व गुर्दे-संबंधी
अनेक
बीमारियाँ
होती हैं।
तनाव, क्रोध,
आवेग,
आपराधिकता,
कामुकता आदि
मानसिक रोग
घेर लेते हैं।
जबकि शाकाहार
से सत्त्वगुण
की वृद्धि
होती है,
जिससे
प्रसन्नता,
स्फूर्ति प्राप्त
होती है। हरी
सब्जियाँ,
फलों, अनाज
आदि से
पर्याप्त
पोषक तत्त्व
मिलने से रोगग्रस्त
होने की
सम्भावना कम
होती है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
अमेरिकी
विद्यालयों
में
कोल्डड्रिंक्स
पर प्रतिबंध
फास्टफूड
तथा
कोल्डड्रिंक्स
पश्चिमी देशों
की देन हैं, पर
अब वे ही इनके
दुष्प्रभावों
से परेशान
होकर इनसे
छुटकारा पाना
चाहते हैं।
अमेरिका में
अभिभावक,
चिकित्सक और
सरकारी
अधिकारी –
विद्यालयों
की कैन्टीनों
में फास्टफूड,
शीतल पेयों
तथा चॉकलेट पर
प्रतिबंध
लगाने के लिए एकमत
हैं। अब
अभिभावक अपने
बच्चों को टिफिन
में ताजे फल,
सलाद एवं
गेहूँ के आटे
से बनी रोटियाँ
व ताजी सब्जी
आदि दे रहे
हैं, जो कि भारतीय
खुराक है।
अमेरिका
के कनेक्टिकट
राज्य के
विद्यालयों, उच्च
शिक्षा
संस्थानों
आदि में शीतल
पेयों की
बिक्री पर
प्रतिबंध लगा
दिया गया।
न्यूजर्सी के ʹरटजर्स
विश्वविद्यालयʹ के साठ
हजार से
ज्यादा
छात्रों,
शिक्षकों, कर्मचारियों
ने ʹकोका
कोलाʹ को
विश्वविद्यालय
से बाहर किया।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
पापनाशक
व अक्षय पुण्य
प्रदान करने
वाला व्रत
भगवान
श्रीकृष्ण ने
कहाः हे
अर्जुन ! मैं
तुम्हें
मुक्ति देने
वाली कार्तिक
मास के शुक्ल
पक्ष की ʹप्रबोधिनी
एकादशीʹ के
संबंध में
नारद और
ब्रह्माजी के
बीच हुए वार्तालाप
को सुनाता
हूँ।
एक बार
नारद ने
ब्रह्मजी से
पूछाः "हे पिता !
प्रबोधिनी
एकादशी के
व्रत का क्या
फल होता है, आप
कृपा करके
मुझे
विस्तारपूर्वक
बतायें।"
ब्रह्मजी
बोलेः "हे
पुत्र ! जिस
वस्तु का
त्रिलोक में
मिलना दुष्कर
है, वह भी
कार्तिक मास
के शुक्ल पक्ष
की प्रबोधिनी एकादशी
के व्रत से
मिल जाती है।
इसके प्रभाव से
पूर्वजन्म के
किये हुए अनेक
बुरे कर्म
क्षणभर में
नष्ट हो जाते
हैं। जो
मनुष्य इस
व्रत का पालन
करता है, वह
धनवान, योगी,
तपस्वी तथा
इन्द्रियों
को जीतने वाला
होता है
क्योंकि
एकादशी भगवान
विष्णु को
अत्यंत प्रिय
है। इस दिन
मनुष्य को ब्राह्ममुहूर्त
में उठकर व्रत
का संकल्प
लेना चाहिए।
भगवान के समीप
गीत,
कथा-कीर्तन
आदि करते हुए
रात्रि
व्यतीत करनी
चाहिए। इसका
फल तीर्थ और
दान आदि से
करोड़ गुना
अधिक होता है।
प्रबोधिनी
एकादशी के दिन
विधिपूर्वक
व्रत करने
वालों को अनंत
सुख मिलता है
और अंत में वे स्वर्ग
को जाते हैं।"
उपवास
एक विज्ञान भी
है और एक कला
भी
उपवास
में तन मन की
शुद्धि होती
है। हिन्दुओं
में एकादशी
एवं श्रावण सोमवारों
को, जैनों में
पर्युषण व
इस्लाम में रमजान
के दिनों में
रोजों को
महत्त्व दिया
गया। एकादशी
व्रत को
विधिवत करने
वाले मनुष्य
धन, धर्म और
मोक्ष की
प्राप्ति
करते है।
एकादशी
का उपवास रख
के रात्रि को
भगवान के समीप
कथा-कीर्तन
करते हुए
रात्रि-जागरण
करना चाहिए।
(रात्रि 12 या 1
बजे तक जागरण)
इस दिन
चावल तो
बिल्कुल नहीं
खाना चाहिए।
व्रत-उपवास
में औषधि ले
सकते हैं। (एकादशियों
की व्रत-महिमा
एवं विधि की
विस्तृत
जानकारी के
लिए पढ़े
आश्रम की
पुस्तक ʹएकादशी-व्रत-कथाएँʹ)
क्रियाकलापः
प्रबोधिनी
एकादशी व्रत
माहात्म्य की
कथा अपने
साथियों को
बतायें और सभी
एकदाशियों की
महिमा का पता
लगायें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
स्वास्थ्य
लाभ तथा पानी
व धन की बचत
होली
हुई तब
जानिये,
पिचकारी
गुरुज्ञान की
लगे।
सब रंग
कच्चे जायें
उड़, एक रंग
पक्के में रंगें।।
होली हमारा
राष्ट्रीय,
सामाजिक और
आध्यात्मिक
पर्व है। होली
अर्थात् हो...
ली....। जो हो गया
उसे भूल जाओ।
निंदा हो ली
सो हो ली....
प्रशंसा हो ली
सो हो ली.. तुम
तो रहो मस्ती
और आनंद में।
छोटे बड़े,
मेरे तेरे के
भेदभाव को भूल
के सबमें उसी
एक
सत्यस्वरूप,
चैतन्यस्वरूप
परमात्मा को
निहारकर अपना
जीवन धन्य
बनाने के
मार्ग पर
अग्रसर हों।
होलिकोत्सव
के अवसर पर
कीचड़ उछालना,
धुलेंडी के
दिन धूल
उछालना, जूतों
का हार पहनाना
और गंदे स्वाँग
करना – इनसे
हमारी मानसिक
वृत्तियाँ
बहुत नीच हो
जाती हैं,
हमारी
सामाजिक और
मानसिक हानि
होती है। तमाम
प्रकार के
रासायनिक रंग
एक दूसरे को
लगाने से वे
आँख, चेहरे और
मन पर
हानिकारक
प्रभाव डालते
हैं। - पूज्य
बापू जी
केमिकल
रंगों से होली
खेलने में
प्रति व्यक्ति
35 से 300 लीटर पानी
खर्च होता है।
पूज्य बापू जी
ने देश की
जल-सम्पदा की
हजारों गुना
बचत करने हेतु
प्रति
व्यक्ति 30 से 60
मि.ली. से भी कम
पानी में खेली
जाने वाली
सामूहिक
प्रकाशित
होली का
अभियान शुरु
किया है। पलाश
के फूलों के
प्राकृतिक
रंग में नीम व
तुलसी के
पत्तों का
अर्क, गंगाजल
तथा गुलाबजल
को मिलाया
जाता है,
जिससे यह रंग
जब शरीर को
लगता है तो
पूरे साल
चर्म-रोगों से
रक्षा होती
है। इससे
तन-मन दोनों
स्वस्थ रहते
हैं।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
शुरुआत
में जरा सा... पर
बाद में मौत....
व्यसन
का शौक कुत्ते
की मौत
कैंसर,
नपुंसकता,
हृदयरोग,
टी.बी., लकवा,
अंधापन, माइग्रेन,
श्वासरोग,
ब्रेन ट्यूमर
जी हाँ, ये ही
हैं आपकी
दुर्दशा के
जिम्मेदार !
गुटखा खाकर
गाल जलाया, कल
तक कहते थे
फैशन है।
दुःख नरक का
भोग रहे हो, अब यह
भी कोई जीवन
है ?
तम्बाकू में
उपस्थित घातक
रसायन ʹनिकोटिनʹ हृदय
तथा मस्तिष्क
को हानि
पहुँचाता है।
पान मसाला
घुनयुक्त
सुपारियों को
पीसकर, छिपकली
का चूर्ण,
सुअर के मांस
का चूर्ण व
तेजाब मिला के
बनाया जाता
है। इसके सेवन
से शरीर का सारस्वरूप
धातु कमजोर व
शारीरिक
शक्ति क्षीण
हो जाती है
एवं मुँह, गले
आदि का कैंसर
होता है।
जरा सोचो...
कहीं आप भी
इसी मार्ग के
राही तो नहीं ?
मेरा
संकल्पः ʹनहीं ! कभी नहीं !! मैं अपने
शरीर की ऐसी
दुर्दशा कभी
नहीं होने दूँगा।
मैं इसी क्षण
दृढ़ संकल्प
करता हूँ कि जीवन
में कभी भी इन
व्यसनों को
नहीं
अपनाऊँगा।
मेरा दृढ़
आत्मबल एवं
ईश्वर की अनंत
कृपा अवश्य
मेरा साथ
देंगे। ૐ....ૐ....ૐ....ʹ
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
प्रश्नः
गुरुजी
!
नास्तिक किसे
कहते हैं और
आस्तिक किसे
कहते हैं ?
उत्तरः जो
भगवान की
सत्ता और
परलोक को
मानता है तथा
सत्य, संयम,
सदाचार को
अपनाकर इहलोक
एवं परलोक में
सुखी होने का
यत्न करता है
वह आस्तिक है।
जो भगवान और
परलोक को नहीं
मानता, उसे
नास्तिक कहते
हैं। नास्तिक
को ईश्वर की
अदृश्य सहायता
से वंचित रहना
पड़ता है।
जैसे अगर कोई
सरकार को न
माने और किसी
का खून कर दे,
तब भी उस पर
अपराध की कलम
तो लग ही जाती
है, कारावास
और पुलिस के
डंडे सहने ही पड़ते
हैं, ऐसे ही
परलोक को न
मानने पर भी
पाप-पुण्य का
फल तो भोगना
ही पड़ता है।
प्रश्नः
गुरु
जी धर्म के
लक्षण क्या
हैं ?
पूज्य
बापू जीः धैर्य,
क्षमा, संयम,
चोरी न करना,
पवित्रता, सत्य
क्रोध न करना,
निर्भयता – ये
सब धर्म के
लक्षण हैं।
प्रश्नः
धर्म
क्या है ?
पूज्य
बापू जीः बेटा ! जो
परमेश्वर
सारे विश्व को
धारण कर रहा
है, उसको
जानने की रीति
का नाम है
धर्म। यह दो
प्रकार का होता
हैः मानवीय
धर्म और
सामाजिक
धर्म। मानवीय धर्म
है अहिंसा। एक
दूसरे को
मारना नहीं
चाहिए। किसी
प्राणी अथवा
जीव जंतु को
परेशान नहीं करना
चाहिए। किसी
को कटु वचन के
द्वारा दुःख नहीं
पहुँचाना
चाहिए। दूसरा
है सामाजिक
धर्म। बन सके
उतना दूसरों
की सेवा करना
यह सामाजिक
धर्म है।
प्रश्नः
भगवान साकार
हैं कि
निराकार ?
पूज्य
बापू जीः भगवान साकार
भी हैं और
निराकार भी।
उन्होंने साकार
को भी बनाया
है और निराकार
को भी, जैसे पक्षी
साकार है और
आकाश
निराकार। अगर
भगवान निराकार
नहीं होते तो
बुद्धि में
निराकार की कल्पना
कैसे आती और अगर
साकार नहीं
होते तो ये
साकार शरीर
कैसे बनते ? परमात्मा
माता में भी
हैं और पिता
में भी, मित्र
में भी हैं
एवं शत्रु की
गहराई में भी।
जैसे
विद्युत-प्रवाह
कूलर के
माध्यम में
ठंडक देता है
और हीटर के
माध्यम से
गर्मी, वैसे
ही प्यार की
वृत्ति से
मित्र, मित्र
देखता है और
वैर की वृत्ति
से शत्रु,
शत्रु। किंतु
दोनों की
गहराई में है
एक परमात्मा
ही !
प्रश्नः
लज्जा क्या है
?
पूज्य
बापू जीः न करने
योग्य कर्म से
मुँह मोड़
लेना, अयोग्य प्रवृत्ति
से सकुचा जाना
इसे लज्जा
कहते हैं।
प्रश्नः
ऐसा कौन सा
वैद्य है जो
सब रोगों को मिटाने
में सहायक है ?
पूज्य
बापूजी
सदगुरु।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
शुद्ध
आयुर्वेदिक
उपचार-पद्धति
और भगवान के नाम
का आश्रय लेकर
अपना शरीर
स्वस्थ रखो,
मन प्रसन्न
रखो और बुद्धि
में बुद्धिदाता
का प्रसाद
पाकर शीघ्र ही
महान आत्मा,
मुक्त आत्मा
बन जाओ। -
पूज्य बापू
जी।
पूज्य
बापूजी की
स्वास्थ्य
कुंजियाँ
100 ग्राम सौंफ,
100 ग्राम बादाम
और 200 ग्राम
मिश्री तीनों
को कूटकर मिला
लें। सुबह 3 से 5
ग्राम चबा-चबाकर
खायें। ऊपर से
दूध पी लें।
(दूध के साथ भी
ले सकते हैं)
इससे स्मरण
शक्ति
बढ़ेगी।
सूर्यकिरणें
सर्वरोगनाशक
व
स्वास्थ्यप्रदायक
हैं। रोज सुबह
सिर को कपड़े
से ढककर आठ मिनट
सूर्य की ओर
मुख व दस मिनट
पीठ करके
बैठें। समय
अधिक न हो व
धूप तेज न हो
इसकी सावधानी
रखें। ऐसा
सूर्यस्नान
लेटकर करें तो
अच्छा।
सुबह जल्दी
उठें। खाली
पेट तुलसी के 5-7
पत्ते खाकर जल
पियें। सूर्य
को अर्घ्य
देकर नमस्कार
करें। इससे
स्वास्थ्य
लाभ के
साथ-साथ
बुद्धि तेजस्वी
होती है।
स्वास्थ्यप्रद
व शक्तिदायक
घरेलु शरबत
नींबू
का शरबतः यह
पित्त-विकार,
मंदाग्नि,
अरूचि, प्यास,
उबकाई,
अजीर्ण, कब्ज
और रक्त विकार
आदि दूर करता
है। इससे
जठराग्नि
प्रदीप्त
होती है तथा
शरीर में
तरावट आती है।
विधिः नींबू
के रस में ढाई
गुनी मिश्री
मिला के चाशनी
बनायें औऱ गरम
गरम ही छान के
काँच की बोतल
में भर लें।
एक गिलास पानी
में दो चम्मच
शरबत घोलकर
दोपहर के भोजन
के 1-2 घंटे के
बाद उपयोग
करें।
शक्कर, भुना
जीरा तथा
पुदीने को पीस
के पानी में
घोलकर पीने से
गर्मियों में
ठंडक मिलती है।
कदवृद्धिः
जिन
विद्यार्थियो
(18 वर्ष से कम
उम्र) का कद
नहीं बढ़ता वे
पुलअप्स का
अभ्यास करें
और बेल के 6 पत्ते
व 2-4 काली मिर्च
हनुमान जी का
स्मरण करते
हुए चबाकर खायें।
उसमें पानी
डाल के पीसकर
भी खा सकते
हैं।
बादाम
बौद्धिक व
शारीरिक
शक्ति तथा
नेत्रज्योति
वर्धक है। रात
को 4 बादाम
पानी में भिगो
दें। सुबह
छिलके उतार के
जैसे हाथ से
चंदन घिसते
हैं, इस तरह
घिस के दूध
में मिलाकर
सेवन करें। इस
प्रकार से
घिसा हुआ 1
बादाम 10 बादाम
की शक्ति देता
है। बालकों के
लिए 1-2
बादाम पर्याप्त
हैं।
20 ग्राम सौंफ
के चूर्ण में
समान मात्रा
में मिश्री
मिलाकर रात को
गोदुग्ध से
लेने पर नेत्रज्योति
बढ़ती है।
ठंडे पानी
से स्नान करते
समय पहेल सिर
पर पानी डालें
फिर पूरे शरीर
पर, ताकि सिर
आदि शरीर के
ऊपरी भागों की
गर्मी पैरों
से निकल जाये।
दौड़कर आने
पर, पसीना
निकलने पर तथा
भोजन के तुरंत
पहले तथा बाद
में स्नान
नहीं करना
चाहिए। भोजन
के तीन घंटे
बाद स्नान कर
सकते हैं।
भोजन के
बीच-बीच में
गुनगुना पानी
पीना
पुष्टिदायक
है और भोजन के एक
घंटे बाद पानी
पीना
अमृततुल्य
माना जाता है।
प्रायः भोजन
के बीच
थोड़ा-थोड़ा
करके एक गिलास
(250 मि.ली.) पानी
पीना
पर्याप्त है।
भोजन के आरम्भ
में और भोजन
के तुरंत बाद
पानी नहीं
पीना चाहिए।
पूर्व या
उत्तर की ओर
मुख करके भोजन
करने से
क्रमश-
दीर्घायु और
सत्य की
प्राप्ति
होती है। भूमि
पर बैठकर भोजन
न करें,
चलते-फिरते
कभी न करें।
किसी के साथ
एक पात्र में
तथा अपवित्र
मनुष्य के
निकट बैठकर
भोजन करना
निषिद्ध है।
अष्टमी को
नारियल का फल
खाने से
बुद्धि का नाश
होता है।
दूध के साथ
नमक, दही,
लहसुन, मूली,
गुड़, तिल,
नींबू तथा केला,
पपीता आदि सभी
प्रकार के फल,
आइसक्रीम, तुलसी
व अदरक का
सेवन नहीं
करना चाहिए।
ये विरुद्ध
आहार हैं। रात
को फल नहीं
खाने चाहिए।
शरद
पूर्णिमा की
शीतल रात्रि
में (9से12 बजे के
बीच) छत पर
चन्द्रमा की
किरणों में
महीन कपड़े से
ढककर रखी हुई
दूध-चावल अथवा
दूध-पोहे की
खीर अवश्य
खानी चाहिए।
यह सर्वप्रिय,
शीतल,
पित्तशामक,
मेदवर्धक,
शक्तिदायक
तथा वातपित्त,
रक्तपित्त,
मंदाग्नि व
अरुचि का नाश
करने वाला
सात्त्विक
आहार है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
इस आसन से
शरीर का कद
लम्बा होता
है। यदि शरीर में
मोटापन है तो
वह दूर होता
है और यदि
दुबलापन है तो
वह दूर होकर
शरीर सुडौल,
तंदुरुस्त अवस्था
में आ जाता
है।
ब्रह्मचर्य पालने
वालों के लिए
यह आसन भगवान
शिव का प्रसाद
है। इसे भगवान
शिवजी ने
सर्वश्रेष्ठ
आसन कहा है।
लाभः इससे
नाड़ियों की
विशेष शुद्धि
होकर हमारी कार्यक्षमता
बढ़ती है व
बीमारियाँ
दूर होती हैं।
बदहजमी,
कब्ज जैसे पेट
के सभी रोग,
सर्दी जुकाम,
कफ गिरना,
कमरदर्द,
हिचकी, पेशाब
की बीमारियाँ,
स्वप्नदोष, अपेंडिसाइटिस,
सायटिका,
पीलिया,
अनिद्रा, दमा,
खट्टी डकारें,
ज्ञानतंतुओं
की कमजोरी व
अन्य कई
प्रकार की
बीमारियाँ यह
आसन करने से
दूर होती हैं।
विधिः जमीन पर
आसन बिछाकर
दोनों पैर
सीधे करके बैठ
जाओ। फिर
दोनों हाथों
से पैरों के
अँगूठे पकड़कर
झुकते हुए
ललाट को दोनों
घुटनों से
मिलाने का
प्रयास करो।
घुटने जमीन पर
सीधे रहें।
प्रारम्भ में
घुटने जमीन पर
न टिकें
कोई हर्ज
नहीं। सतत्
अभ्यास से यह
आसन सिद्ध हो
जायेगा। यह
करने के 15 मिनट
बाद एक-दो
कच्ची भिण्डी
खानी चाहिए।
सेवफल का सेवन
भी फायदा करता
है।
प्रारम्भ
में यह आसन
आधा मिनट से
शुरु करके
प्रतिदिन
थोड़ा समय बढ़ाते
हुए 15 मिनट कर
सकते हैं।
पहले 2-3 दिन तक
तकलीफ होती
है, फइर सरल हो
जाता है।
इस आसन में
उदर अर्थात्
पेट को आँतों
सहित भलीभाँति
खींचते हैं,
इसलिए इसे
उदराकर्षासन
कहते हैं।
लाभः कब्जियत
की शिकायत वाले
को इसे
प्रतिदिन
करना चाहिए।
पेट की सभी
प्रकार की
गड़बड़ियों
के लिए यह अत्यन्त
लाभदायक है।
अपच की
शिकायत दूर
होकर खाना
भलीप्रकार पच
जाता है।
पैरों का
दर्द ठीक हो
जाता है।
पंजों में
अधिक बल आता
है।
विधिः जमीन पर
दोनों पैरों
के बीच एक फुट
का अंतर रखकर
बैठें। दोनों
हाथों को
दोनों घुटनों
पर रखें। दायें
पाँव के घुटने
को दायें हाथ
से जोर देते हुए
जमीन की ओर ले
जायें तथा
गर्दन व धड़
को अधिक से
अधिक बायीं और
घुमायें एवं
पीछे देखें। दोनों
हाथों को इस
अवस्था में भी
घुटनों पर ही
रखें। पुनः
पहले की
स्थिति में
लौट आयें।
इसी प्रकार
बायें हाथ से
बायें घुटने
पर जोर देते
हुए जमीन की
ओर ले
जायें तथा
गर्दन एवं धड़
को अधिक से
अधिक दायीं और
घुमायें व पीछे
की ओर देखें।
इस आसन को 5 से 10
बार कर सकते
हैं।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
अर्धमत्स्येन्द्रासन
की रचना योगी
गोरखनाथजी के
गुरु श्री
मत्स्येन्द्रनाथजी
ने की थी। वे
इस आसन में
ध्यान किया
करते थे।
मत्स्येन्द्रासन
की आधी
क्रियाओं को
लेकर
अर्धमत्स्येन्द्रासन
प्रचलित हुआ
है।
लाभः मधुमेह
के रोगियों को
अधिक लाभ होता
है।
पाचन संबंधी
रोगों का
निवारण होता
है। भूख खुलकर
लगती है।
वातरोग,
कमरदर्द तथा
मांसपेशियों
की जकड़न दूर
होती है।
सम्पूर्ण
शरीर में फैली
हुई मस्तिष्क
से संबंधित
नाड़ियाँ
शक्तिशाली और
स्वस्थ बनती
हैं।
विधिः जमीन पर
बैठकर बायें
पाँव की एड़ी
को गुदा के
पास लगायें।
फिर दायें
पाँव को घुटने
से मोड़कर
बायें पाँव के
ऊपर से ले
जाते हुए
घुटने के पास
जमीन पर जमा
के रख दें।
अब बायें
हाथ से दायें
घुटने को बगल
में दबाते हुए
दायें पैर के
पंजे को
पकड़ें।
तत्पश्चात दायें
हाथ से कमर को
लपेटकर बायीं
जाँघ को पकड़ने
का प्रयत्न
करें।
मेरुदण्ड को
सीधा रखें,
झुकें नहीं।
सिर को
दायीं तरफ
घुमाते हुए
ठोड़ी को कंधे
की सीध में
लायें।
फिर पैरों व
हाथों को
बदलकर यही
क्रिया विपरीत
दिशा में
करें। यह आसन 10
से 15 मिनट कर
सकते हैं।
सावधानीः
जिन्हें
हृदयरोग है
उन्हें इसका
अभ्यास नहीं
करना चाहिए।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
लाभः नेत्रज्योति
बढ़ती है।
मोटापा कम हो
जाता है।
मस्तिष्क,
गला, नाक तथा
सबसे विशेष
कानों को लाभ
होता है।
टॉन्सिलाइटिस
आदि गले की
बीमारियों
में लाभ होता
है। दमा आदि
श्वास
सम्बन्धी
बीमारियों
में लाभ होता
है।
मंदाग्नि,
कब्ज, बवासीर
और रक्तदोष
आसानी से दूर
हो जाता है।
विधिः यह आसन
घुटनों से
दोनों कानों
को दबाकर किया
जाता है। पीठ
के बल जमीन पर
लेट जायें।
दोनों पैरों
को उठाकर इतना
पीछे लायें कि
पैरों के घुटने
दोनों कानों
से सट जायें।
उसी स्थिति
में यथासाध्य
रूके रहें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
लाभः यह
प्राणायाम
अग्नाश्य को
प्रभावित कर
पाचन-प्रणाली
को सक्रिय
करता है।
विधिः वज्रासन
में बैठकर हाथों
को घुटनों पर
रख के सामने
देखें। श्वास पूर्णरूप
से बाहर निकाल
के ʹरंʹ बीजमंत्र
का मानसिक जप
करते हुए पेट
को 20 से 40 बार
आगे-पीछे
चलायें। फिर
चार-पाँच बार
लम्बे-गहरे
श्वास लें और
छोड़ें। पुनः
उपरोक्त
क्रिया
दोहरायें।
ऐसा रोज 4-5 बार
करने से
जठराग्नि प्रदीप्त
होती है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
ʹघेरंड
संहिताʹ के
श्लोक 71 के
अनुसार इस
प्राणायाम से
सब कार्यों
में सिद्धि
मिलती है।
इसलिए इसे ʹउज्जायी
प्राणायामʹ कहते
हैं। एक अन्य
अर्थ यह भी है
कि इसमें
फेफड़े
विस्तृत होते
हैं और छाती
विजेता की तरह
फूल जाती है,
इसलिए भी इसे ʹउज्जायी
प्राणायामʹ कहते
हैं। यह शक्ति
का सूचक है।
लाभः इससे
पेट का दर्द,
वीर्यविकार,
स्वप्नदोष,
प्रदररोग
जैसे
धातु-संबंधि
रोग मिटते
हैं।
विधिः पद्मासन
या सुखासन में
बैठकर गुदा का
संकोचन करके
मूलबंध
लगायें।
अब दोनों
नथुनों को
खुला रखकर
सम्भव हो सके
उतना गहरा
श्वास
धीरे-धीरे,
समान गति से
लेते हुए नाभि
तक के प्रदेश
को श्वास से
भर दें। श्वास
लेते समय छाती
को फुला लें।
इसके बाद एकाध
मिनट श्वास
अंदर रोकें
फिर बायें
नथुने से श्वास
धीरे-धीरे
छोड़ दें। ऐसे
दस उज्जायी
प्राणायाम
करें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
लाभः एकाग्रता
बढ़ती है।
आँखों की
कमजोरी दूर
होती है।
मानसिक
तनाव (Depression)
दूर करने में
मदद मिलती है।
जप ध्यान व
अध्ययन के समय
नींद नहीं
आती।
कम्पयूटर
या लेपटॉप पर
कार्य करने
वालों के लिए
यह अत्यन्त
उपयोगी है।
इससे गर्दन का
रोग सर्वाइकल
स्पॉण्डिलाइटिस
नहीं होता।
विधिः
इस
मुद्रा में
गर्दन व सिर
को ऊपर-नीचे,
दायें-बायें,
गोलाकार (सीधी
व विपरीत दिशा
में) 10-10 बार
घुमाना होता
है।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
लाभः शरीर
में जल तत्त्व
का प्रमाण कम
करने में मदद
करती है।
शरीर
में जल तत्त्व
का प्रमाण
बढ़ने से
उत्पन्न हुई
जलोदर जैसी
बीमारियाँ इस
मुद्रा के
नियमित
अभ्यास से ठीक
होती है।
विधिः
कनिष्ठिका
(छोटी उँगली)
के अग्रभाग को
अँगूठे के मूल
में स्पर्श
करायें और
अँगूठे से इस
उँगली पर
थोड़ा सा दबाव
दें। अन्य
उँगलियाँ
सीधी रहें।
5 से 10
मिनट तक कर
सकते हैं सुबह
व शाम मुद्रा
का अभ्यास
अधिक लाभदायी
है।
टिप्पणीः
रोग
पूर्णरूप से
ठीक होने तक
इस मुद्रा का
अभ्यास चालू
रखें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
लाभः हाथ
पैर के जोड़ों
में दर्द,
लकवा,
हिस्टीरिया
आदि रोगों में
लाभ होता है।
इस मुद्रा के
साथ प्राण
मुद्रा करने
से शीघ्र लाभ
होता है।
विधिः
तर्जनी
अर्थात्
प्रथम उँगली
को मोड़कर
अँगूठे के मूल
में लगायें और
अँगूठे से
हलका सा दबायें।
शेष तीनों
उँगलियाँ
सीधी रहें।
सावधानीः
आसन-प्राणायाम
आदि किसी
जानकर के
मार्गदर्शन
में सीखें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
संत
श्री आशाराम
जी आश्रम
द्वारा
आयोजित
दिव्य
प्रेरणा
प्रकाश ज्ञान
प्रतियोगिता
के
प्रश्नपत्र
का प्रारूप
समयः 1
घंटा कुल
अंक – 50 (प्रति
प्रश्न 1 अंक)
आपकी
जानकारी के
लिए यहाँ
प्रश्नों के
कुछ नमूने दिये
गये हैं। ʹदिव्य
प्रेरणा
प्रकाश ज्ञान
प्रतियोगिताʹ में
ऐसे 50 सरल व
विकल्पात्मक
प्रश्न (MCQ)
होंगे।
निम्नलिखित
रिक्त
स्थानों की
पूर्ति हेतु सही
विकल्प का
क्रमांक
कोष्ठक में
लिखें।
...............
मंत्र का सोने
से पूर्व 21 बार
जप करने से
बुरे सपने
नहीं आते।
1. ૐरवये
नमः। 2.ૐखगाय
नमः। 3. ૐ
अर्यमायै
नमः। 4.इनमें
से कोई नहीं। ( )
..................सेवा
से सच्चा सुख
व आत्म संतोष
मिलता है।
1.दम्भपूर्ण
2.बिना दिखावे
की 3. दिखावटी 4.
तीनों सही। (
)
समय का
उपयोग..................को
पाने के लिए
करना ही मनुष्य
जीवन का
वास्तविक
उद्देश्य है।
1.धन 2.
प्रसिद्धि
3.सुख-सुविधा
4.परमात्मा। (
)
......................मुद्रा
से जप-ध्यान व
अध्ययन के समय
नींद नहीं
आती।
1.जलोदरनाशक
2.ब्रह्म 3.वायु
4.इनमें से कोई
नहीं।
( )
निम्नलिखित
विकल्पों में
सही विकल्प का
क्रमांक कोष्ठक
में लिखें।
प्रार्थना
में ऐसी
अलौकिक शक्ति
है जिससे हमें
मिलती है –
1.सहायता
2.मार्गदर्शन
व शांति 3.
सफलता 4.तीनों
सही ( )
किरण
देवी –
1.अथाह
शौर्यवान
2.बलशाली
3.सामर्थ्य की
धनी 4.तीनों
सही ( )
उचित
मिलान
कीजिये।
पीपल मातृपितृपूजन
दिवस
वायु
मुद्रा ૐकार
14 फरवरी प्रदूषण
नियंत्रक व
पर्यावरण
रक्षक
संस्कृति
के प्रतीक लकवे
के रोग में
लाभदायक
उत्कृष्ट
मंत्र गंगा,
गीता व गाय
निम्नलिखित
वचन किनके हैं
यह नीचे दिये
गये विकल्पों
में से
छाँटिये।
"माँ ! मैं भी
वीर हनुमान, पराक्रमी
भीम और अर्जुन
जैसा कब
बनूँगा ?" (
)
"विषय-इन्द्रियों
द्वारा
प्राप्त होने
वाले सुख का
संयमपूर्वक
त्याग करना
ब्रह्मचर्य है।" ( )
"अपने
धर्म में तो
मरना भी
कल्याणकारक
है और दूसरे
का धर्म भय को
देने वाला है।"
"हे
माता !
मुझे मेरे
सदगुरु की सेवा
करने दे। तेरा
दूध दुहने दे।"
विकल्पः
1.वेदव्यासजी
2.शिवाजी
महाराज
3.भगवान श्रीकृष्ण
4.राममूर्ति
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
विद्यार्थियों,
शिक्षकों व
अभिभावकों के
लिए पूज्य संत
श्री आशाराम
जी बापू का
उपहार
आपको
मैं ૐकार
का जप करने की
रीति बताता
हूँ। आपको
पापनाशिनी
ऊर्जा
मिलेगी।
बच्चे-बच्चियों
के परीक्षा
में अच्छे अंक
आयेंगे,
यादशक्ति
बढ़ेगी। कानों
में उँगलियाँ
डालकर लम्बा
श्वास लो। फिर
श्वास रोककर
कंठ में भगवान
के पवित्र,
सर्वकल्याणकारी
ʹૐʹ का जप
करो।
मुँह
बन्द रख के
कंठ से ʹૐ.....ૐ.....ૐ.....ૐ....ૐ.....ૐ....
ૐ....ૐ.... ओઽઽઽम्.....ʹ का
उच्चारण करते
हुए श्वास
छोड़ो। इस
प्रकार दस बार
करो। फिर
कानों में से
उँगलियाँ
निकाल दो।
इतना करने के
बाद शांत बैठ
गये। होठों से
जपो - ʹૐ ૐ प्रभुजी ૐ, आनंद
देवा ૐ,
अंतर्यामी ૐ....ʹ दो
मिनट करना है।
फिर हृदय से
जपो - ʹૐ शांति..... ૐ आनंद.... ૐૐૐ.....ʹ जीभ व
होंठ मत
हिलाओ। अब कंठ
से जप करना
है। श्रीकृष्ण
ने यह चस्का
यशोदाजी को
लगाया था। दो मिनट
करो, ʹૐૐૐ.... मैं
प्रभु का,
प्रभु मेरे.....ʹ आनंद
आयेगा, रस
आयेगा। बैठने
के लिए
विद्युत का
कुचालक कम्बल,
कारपेट आदि का
आसन हो। यह
प्रयोग सभी के
लिए लाभदायी
है।
आप लोग
बच्चों से यह
प्रयोग करवाओ,
फिर बच्चों के
जीवन में चार
चाँद न लगें
तो मेरी
जिम्मेदारी ! शुरु-शुरु
में चस्का
डालो, फिर
बच्चे खुद ही
चालू कर
देंगे। बच्चे
खुश रहेंगे,
माँ-बाप की
बात को टालकर
बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड
बनाने की गंदी
आदत से बच
जायेंगे, नेक
बनेंगे और
माँ-बाप का भी
मंगल होगा। और
इसका चस्का
जिनको भी
लगेगा उनके
सम्पर्क में
आऩे वाले
स्वाभाविक ही
भारतीय
संस्कृति के
भक्त बन
जायेंगे।
(टिप्पणीः
इस प्रयोग की
विडियो क्लिप http://www.bskashram.org/dppgp/cp.aspx
पर
देंखें।
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ