जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्षों का कम कर लेना होगा | उसे इस युग की रफ़्तार से बहुत आगे निकलना होगा | जैसे स्वप्न में मान-अपमान, मेरा-तेरा, अच्छा-बुरा दिखता है और जागने के बाद उसकी सत्यता नहीं रहती वैसे ही इस जाग्रत जगत में भी अनुभव करना होगा | बस…हो गया हजारों वर्षों का काम पूरा | ज्ञान की यह बात हृदय में ठीक से जमा देनेवाले कोई महापुरुष मिल जायें तो हजारों वर्षों के संस्कार, मेरे-तेरे के भ्रम को दो पल में ही निवृत कर दें और कार्य पूरा हो जाये |

जैसे मछलियाँ जलनिधि में रहती हैं, पक्षी वायुमंडल में ही रहते हैं वैसे आप भी ज्ञानरूप प्रकाशपुंज में ही रहो, प्रकाश में चलो, प्रकाश में विचरो, प्रकाश में ही अपना अस्तित्व रखो | फिर देखो खाने-पीने का मजा, घूमने-फिरने का मजा, जीने-मरने का मजा |

वेदान्त का यह सिद्धांत है कि हम बद्ध नहीं हैं बल्कि नित्य मुक्त हैं |  इतना ही नहीं, ‘बद्ध हैं’ यह सोचना भी अनिष्टकारी है, भ्रम है | ज्यों ही आपने सोचा कि ‘मैं बद्ध हूँ…, दुर्बल हूँ…, असहाय हूँ…’ त्यों ही अपना दुर्भाग्य शुरू हुआ समझो | आपने अपने पैरों में एक जंजीर और बाँध दी | अतः सदा मुक्त होने का विचार करो और मुक्ति का अनुभव करो |

Vedant Shastra

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