सेवा

आज्ञा सम नहीं साहिब सेवा ...

गुरुदेव की सेवा ही तीर्थराज गया है ।

भगवान शिवजी

गुरुसेवा समस्त भाग्यों की जन्मभूमि है क्योंकि गुरुसेवा ही शोकग्रस्त जीव को ब्रह्मस्वरूप बनाती है ।

संत ज्ञानेश्वर

आत्मविचार की उत्पत्ति गुरुसेवा से होती है । जैसे भृंगी का ध्यान करते-करते कीड़ा तद्रूप हो जाता है, इसी प्रकार गुरु की सेवा में तत्पर रहने से शिष्य में गुरु के गुण आ जाते हैं ।

श्री उड़िया बाबा

गुरू के आशीर्वाद का खजाना खोलने के लिए गुरू सेवा गुरूचाबी है।

स्वामी शिवानंद सरस्वती

शास्त्रमार्ग पर चलने वाला तो कोई विरला ही तरता है परंतु गुरुमार्ग से जाने वाले सब के सब तर जाते हैं । जो भगवान को ढूँढने जाता है, वह भगवान को ढूँढता ही रहता है पर जो गुरु की सेवा करता है, उसको भगवान ढूँढने आते हैं कि वह कहाँ सेवा कर रहा है ।

स्वामी मुक्तानंद

गुरु की सेवा साधु जाने, गुरुसेवा कहाँ मूढ़ पिछाने ।

स्वामी चरणदास जी

गुरु के दैवीकार्य में जो भागीदार होते हैं , वो गुरु के दैवी अनुभव में भी भागीदार हो जाते हैं |

पूज्य बापूजी

Articles

Audios

Videos