फैशन बन गया है बलात्कार का आरोप लगाना ?

फैशन बन गया है बलात्कार का आरोप लगाना ?


रेपसंबंधी नये कानूनों के परिणाम, मीडिया की भूमिका तथा राजनैतिकों द्वारा इसका इस्तेमाल आदि विभिन्न विषयों पर वास्तविकता को जनता के समक्ष रखते हुए शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के सम्पादकीय में लिखा गया हैः

(बालिक, नाबालिग द्वारा) छेड़खानी और बलात्कार का आरोप लगाकर सनसनी पैदा करना अब फैशन हो गया है क्या ? ऐसा सवाल लोगों के मन में उठने लगा है। निर्भया कांड के बाद बलात्कार और महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के संदर्भ में नये कानून बनाये गये। परंतु इन कानूनों के कारण महिलाओं पर होने वाला अत्याचार कम हुआ क्या ? यह संशोधन का विषय है। लेकिन छेड़खानी, बलात्कार जैसे आरोप लगाकर सनसनी फैलाने के मामले बढ़ने लगे। ऐसे मामलों में सच बाहर आने के पूर्व ही उस संदेहास्पद अभियुक्त की मीडिया ट्रायल के नाम पर जो भरपूर बदनामी चलती है, वह बहुत ही घिनौनी है। टीवी चैनलों के लोग वारदात, सनसनी जैसे आपराधिक कार्यक्रमों में बलात्कार का आँखों देखा हाल दिखाकर ऐसा दर्शाते हैं कि उन्होंने जैसे अपनी खुली आँखों से बलात्कार देखा हो। संदेहास्पद बलात्कार मामलों को छोंक बघारकर पाठक तथा दर्शकों तक परोसा जाता है।

चरित्रहनन तथा बदनामी, राजनीति में एक बहुत बड़ा हथियार बन गया है। कानून महिलाओं के साथ है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि ऐसे कानून कोई गलत इस्तेमाल कर किसी को भी तख्त पर चढ़ाये। (एक मामले का उदाहरण देकर) इस मामले में छः महीने बाद बलात्कार का मामला दर्ज किया गया है। अर्थात् बलात्कार हुआ यह समझने में छः महीने लग गये क्या ? शक्ति मिल मामले में पीड़ित युवती ने 2 घंटे के भीतर बलात्कार की शिकायत दर्ज करायी थी। बलात्कार बहुत ही घिनौना और गम्भीर मामला है। कोई भी महिला यह कलंक क्षणभर भी बर्दाश्त नहीं कर सकती। लेकिन इन दिनों बलात्कार का आरोप तथा शिकायत (तथाकथित) घटना घटित होने के बाद छः छः महीने और दो दो साल के बाद दाखिल की जाती है। (पूज्य बापू जी पर तो एक महिला को मोहरा बनाकर 12 साल पहले बलात्कार हुआ ऐसी कल्पित, झूठी कहानी बनाकर मामला दर्ज करवाया गया है। दूसरे मामले में भी जोधपुर से शाहजहाँपुर और शाहजहाँपुर से दिल्ली जाकर 5 दिन बाद रात को 2.45 बजे बोगस मामला दर्ज करवाया गया है। – संकलक) इन पर कोई भी सवाल नहीं उठाता। सिक्के का दूसरा पहलू क्या है – इस बात को भी देखा जाना चाहिए।

हाल ही में मुंबई पुलिस दल के एक बहादुर अधिकारी अरूण बोरूडे पर भी ऐसा ही आरोप लगाया गया और उन्होंने आत्महत्या कर ली। जाँच के बाद बोरुडे निर्दोष साबित हुए। बलात्कार का आरोप यह बड़ों के खिलाफ विरोध का एक हथियार बन गया है। छेड़खानी, बलात्कार यह अमानवीय है लेकिन इस तरह के गलत आरोप लगाकर स्त्रीत्व का बेजा इस्तेमाल करना भी समस्त महिला समुदाय को कलंकित कर रहा है।

(संकलन व संक्षिप्तिकरणः श्री आर.एन. ठाकुर)

नये रेप कानूनों का हो रहा है दुरुपयोगः उच्च न्यायालय

दिल्ली उच्च न्यायालय ने नये रेप कानूनों के लगातार बढ़ते गलत इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए कहा है कि बलात्कार केसों को बदला लेने, परेशान करने, पैसा उगाहने और यहाँ तक कि पुरुषों को शादी के लिए मजबूर करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 29, अंक 261

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